जोधपुर की प्रमुख वेश भूषा – धोती

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जोधपुर की प्रमुख वेश भूषा

* सलवार एवं कुर्ती :-
* कुर्ता एवं पायजामा :-
* धोती :-
* साड़ी :-
* घाघरा :-
* लहंगा :-
* गरारा सूट : –
* अचकन या शेरवानी :-
* ओढ़नी :-

सलवार एवं कुर्ती :-
सलवार एवं कुर्ती जिस तरह पुरुष कुर्ता और पायजामा पहनते हैं उसी तरह महिलाएं कुर्ती और पायजामे (सलवार) के साथ चुनरी, ओढ़नी या दुपट्टा भी पहनती हैं। यह महिलाओं के लिए अलग शैली में निर्मित होता है। पंजाबी शैली, उत्तर भारतीय शैली (स्टाइल) आदि में निर्मित सलवार-कुर्ती महिलाओं के लिए सबसे उत्तम वस्त्र माना गया है।

कुर्ता एवं पायजामा :-
कुर्ता एवं पायजामा भारतीय सनातन संस्कृति का विशेष वस्त्र है कुर्ता एवं पजामा (पायजामा)। यह प्रत्येक प्रांत में अलग-अलग शैली में पहना जाता है। कुर्ते को अफगानिस्तान में पैरहन, कश्मीर में फिरान और नेपाल में दौरा के नाम से जाना जाता है। राजस्थानी, भोपाली, लखनवी, मुल्तानी, पठानी, पंजाबी, बंगाली, हर कुर्ते की डिजाइन अलग होती है।

धोती :-
धोती प्राचीनकाल से ही भारत में पुरुषों द्वारा साधारणत धोती, अंतरिय (शरीर के निचले हिस्से में लपेटा हुआ वस्त्र), उतरिय (शरीर के ऊपरी हिस्से में लपेटा हुआ वस्त्र), कमरबंध (जैसा कि नाम से जाहिर है कमर से बांधा हुआ) और पगड़ी पहने जाते थे। अंतरिय कमर पर कायाबंध द्वारा टिकाया जाता था, जो कि अक्सर सामने से कमर के मध्य भाग में बांधा जाता था। महिलाएं धोती, साड़ी, स्तनपट्टा (स्तनों को संभाले रखने के लिए) पहनती थीं। उपरोक्त वस्त्रों की खासियत यह थी कि ये सिले हुए नहीं होते थे, लेकिन बाद में इन वस्त्रों को पहनने के तरीके में काफी बदलाव आए। सबसे पहले धोती के ऊपर के वस्त्र में बदलाव आया। उतरिय वस्त्र की जगह कुर्ता पहने का प्रचलन हुआ।

साड़ी :-
साड़ी यजुर्वेद में सबसे पहले ‘साड़ी’ शब्द का उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद की संहिता के अनुसार यज्ञ या हवन के समय पत्नी के साड़ी पहनने का विधान है और विधान के क्रम से ही साड़ी जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बनती चली गई। पौराणिक ग्रंथ महाभारत में द्रौपदी के चीरहरण के प्रसंग से सिद्ध होता है कि साड़ी लगभग 3500 ईसा पूर्व से ही प्रचलन में है। हिन्दू धर्म, जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म का स्पष्ट प्रभाव इसमें देखा जा सकता है।

घाघरा :-
घाघरा घाघरे को पेटीकोट भी कहते हैं। इसे लगभग पूरे उत्तर भारत और नेपाल में भी पहना जाता है। इसे चोली और दुपट्टे के साथ पहनते हैं। साड़ी के साथ अंतरवस्त्रों में अधोवस्त्र घाघरा होता है जिसके ऊपर साड़ी को लपेटकर कसा जाता है। हालांकि पेटीकोट के स्थान पर महिलाएं शेपवेयर पहनने लगी हैं, जो कि बहुत ही तंग होता है। यह नुकसानदायक भी हो सकता है।

लहंगा : –
लहंगा घाघरा का आधुनिक स्वरूप है स्कर्ट और लहंगा। लहंगा जो महिलाओं के लिए पोशाक होती है। यह ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में पहना जाता है। शहरों में डिजाइन वाले लहंगे, चोली और चुनरी एकसाथ विवाह आदि समारोह में पहने जाते हैं, जो कि बहुत ही महंगे होते हैं। आमतौर पर महिलाएं कुर्ती के साथ लहंगा पहनती हैं।

गरारा सूट :-
गरारा सूट गरारे का जन्म लखनऊ में हुआ। यह भारतीय लहंगा, चुनरी और कुर्ती का एक नया रूप है। अवध के नवाबों और तालुकदारों की पत्नियां इन्हें पहना करती थीं। गरारा का घेर कमर से शुरू होता है और घुटनों पर इनमें छोटी-छोटी प्लीट्स होती हैं जिसकी वजह से घुटनों पर इनका घेर बढ़ जाता है। ट्रेडिशनल गरारे की 1 टांग बनाने में ही 12 मीटर कपड़ा लगता है। इसे पहनने वाली औरतें सड़क पर महंगे सिल्क का पोंछा लगाते हुए चलती थीं।

लुंगी :-
लुंगी इसे सारौंग भी कहते हैं। इसे कमर पर लपेटकर कसा जाता है। इसे कमर में लपेटने वाला बड़ा अंगोछा या तहमद भी कहते हैं। दक्षिण भारत में लुंगी प्रचलित है। खासकर आंध्र और तेलंगाना में भी इसका प्रचलन है। यह धोती का ही एक छोटा रूप है। धोती में कपड़ा ज्यादा होता है जबकि लुंगी में कम।

अचकन या शेरवानी :-
अचकन या शेरवानी पहले इसे अचकन कहते थे तथा बाद में इसे शेरवानी कहने लगे। शेरवानी कोटनुमा एवं घुटने से लंबी होती है। इसे ज्यादातर पायजामे के साथ पहना जाता है। शेरवानी भारत में आमतौर पर राजस्थान, उत्तरप्रदेश और हैदराबाद में पहनी जाती है। शेरवानी एक भारतीय परिधान है। अक्सर इसे विवाह समारोह आदि में पहना जाता है।

ओढ़नी :-
ओढ़नी इसे चुनरी, लहरिया और दुपट्टा भी कहते हैं। ओढ़नी थोड़ी बड़ी होती लेकिन चुनरी या दुपट्टा छोटा होता है। इसी का सबसे छोटा रूप स्कॉर्फ है। ओढ़नी स्त्रियां घाघरे और कुर्ती के ऊपर ओढ़ती हैं। ओढ़नी की लंबाई प्राय: ढाई से तीन मीटर और चौड़ाई डेढ़ से पौने दो मीटर होती है जिससे कि घूंघट निकालने पर भी ओढ़नी नीचे घाघरे तक रहती है। ओढ़नियां विविध रंगों में रंगी जाती हैं और इन पर कीमती बेलें या गोटा पत्ती लगाई जाती हैं।

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