मोतीलाल नेहरू कौन थे 

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मोतीलाल नेहरू कौन थे 

नाम मोतीलाल नेहरू
जन्म की तारीख 06 मई 1861
जन्म स्थान आगरा (भारत)
निधन तिथि 06 फरवरी 1931
उपलब्धि 1923 – स्वराज पार्टी के पहले सचिव एवं अध्यक्ष
माता व पिता का नाम जानुरानी (इंद्राणी) नेहरू / गंगाधर

नमस्कार दोस्तों आज हम एक ऐसे स्वतंत्र क्रांतिकारी के बारे में बात करना जा रहे हैं उनका नाम मोतीलाल नेहरू है मोतीलाल नेहरू का जन्म 06 मई, 1861 को आगरा,भारत में एक कश्मीरी पंडित परिवार में हुआ था इनके पिता का नाम गंगाधर और माता का नाम जानुरानी (इंद्राणी) नेहरू था ये अपने माता पिता की पांच संतानों में से सबसे छोटे थे इनके दो भाई और दो बहन थी बड़े भाई का नाम बंसीधर नेहरु और नंदलाल नेहरु था पटरानी और महारानी इनकी दो बहनों थी मोतीलाल नेहरू के जन्म के तुरंत बाद ही उनकी माता का देहांत हो गया था इनके पिता पहले दिल्ली में ही रहते थे जहाँ वह कोतवाल का कार्य करते थे परंतु 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद वह आगरा चले गए थे आगरा जाने के बाद जब मोतीलाल मात्र तीन महीने के ही थे, उनकी दोनों बहनों की शादी कर दी गई, जिसके तुरंत बाद मोतीलाल के पिता गंगाधर का भी देहांत हो गया था मोतीलाल नेहरू का पालन-पोषण उनके दोनों बड़े भाइयों ने ही किया था।

मोतीलाल नेहरू का करियर –

1883 में मोतीलाल ने वकिली की परीक्षा उत्तीर्ण की और कानपूर में वकिली का अभ्यास करने लगे तीन साल बाद वे अल्लाहाबाद चले गये और वहां उन्होंने अपने भाई नंदलाल द्वारा पहसे से स्थापित संस्था में अभ्यास करने लगे।
अगले साल अप्रैल 1887 में 42 साल की उम्र में उनके भाई की मृत्यु हो गयी और अपने पीछे वे पांच बेटे और 2 बेटियों का हरा-भरा परिवार छोड़ चले गए। तभी से केवल 25 साल की उम्र में हि मोतीलाल अपने विशाल नेहरु परिवार के कर्ता-धर्ता बन चुके थे।
बाद में उन्होंने अल्लाहाबाद में खुद के वकिली के ज्ञान को स्थापित किया सफल अभ्यास के बाद 1900 में उन्होंने शहर के सिविल लाइन्स में अपने परिवार के लिए एक विशाल घर भी ख़रीदा और उस घर को उन्होंने आनंद भवन का नाम दिया।
1909 में अपने वकिली के करियर में वे शिखर पर पहुचे और महान ब्राह्मणों की गुप्त मंत्रीपरिषद् में उन्हें जाने की अनुमति भी मिल चुकी थी अल्लाहाबाद के प्रमुख्य दैनिक प्रकाशित अखबार के वे बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर भी थे।
5 फरवरी 1919 को उन्होंने नये दैनिक अख़बार, दी इंडिपेंडेंट की घोषणा की।
इसके बाद उन्होंने भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के समृद्ध नेता बनने की राह पर चलने की कोशिश की। 1918 में महात्मा गांधी के प्रभाव में नेहरु ने विदेशी वस्त्रो का त्याग कर देशी वस्त्रो को पहनना शुरू किया।
अपने विशाल परिवार और घर के खर्चो को पूरा करने के लिए नेहरु को कभी-कभी कानून का अभ्यास करना पड़ता था स्वराज्य भवन असल में 19 वि शताब्दी के मुस्लिम नेता और शिक्षावादी सर सैयद अहमद खान से जुड़ा हुआ था कुछ समय बाद भारतीय स्वतंत्रता अभियान के संघर्ष में भाग लेने निकल पड़े, ताकि वे भारत से ब्रिटिश कानून का सफाया कर सके।

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शिक्षा –

मोतीलाल नेहरु नहीं अपनी प्रारंभिक शिक्षा अरबी और फारसी में प्राप्त की मोतीलाल नेहरू अपनी पढ़ाई की और ज्यादा ध्यान नहीं देते थे जिसके कारण वे बीए की परीक्षा मे पास नहीं हो पाये। बी. ए. की परीक्षा में उन्होंने बिल्कुल भी तैयारी नहीं की थी, जिसके कारण उन्होने अपना एक ही पेपर देकर यह सोचा कि वे परीक्षा में पास नहीं हो पाएंगे और ताजमहल घूमने के लिए चले गए लेकिन उनका वह पेपर बिल्कुल ठीक हुआ था और उनके शिक्षक ने उन्हे बुलाकर फटकार लगाई इसका परिणाम यह हुआ कि मोतीलाल नेहरू की पढ़ाई यहीं पर समाप्त हो गई। वह बी. ए. पास नहीं कर पाए उनकी शुरुआती पढ़ाई कानपुर बाद में इलाहाबाद में हुई।
उन्होंने कानपुर में ही वकालत की शुरुआत की थी अपने कॉलेज के समय में मोतीलाल नेहरू पश्चिमी सभ्यता से इतने प्रभावित हो गए की उन्होंने अपने आप को पूरी तरह उसी में ढाल लिया था मोतीलाल नेहरू ने इलाहाबाद जैसे छोटे से शहर की वेशभूषा और सभ्यता को अपनाकर एक नई क्रांति को जन्म दिया भारत में जब पहली बार बाइसिकल आई, तो मोतीलाल नेहरू वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने इसको खरीदा था।

योगदान –

1887 में 42 साल की उम्र में उनके भाई की मृत्यु हो गई थी, और वे अपने पीछे पांच बेटे और दो बेटियों को छोड़कर चले गए थे बाद में मोती लाल नेहरू ने ही उनका पालन पोषण किया
अल्लाहाबाद में खुद के वकील के ज्ञान को स्थापित किया और 1900 में उन्होंने शहर के सिविल लाइन में अपने लिए एक विशाल घर बनाया जिसका नाम उन्होंने आनंद भवन रखा।
1909 में अपने वकीली करियर से शिखर पर पहुंचे और महान ब्राह्मणों की गुप्त मंत्रिपरिषद में उन्हें जाने की अनुमति मिली अल्लाहाबाद के प्रमुख दैनिक प्रकाशित अखबार के वे बोर्ड ऑफ डायरेक्टर भी बने थे।
फरवरी 5 फरवरी 1919 को उन्होंने नए दैनिक अखबार, दी इंडिपेंट घोषणा की
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के समृद्ध नेता बनने की राह पर चलने की कोशिश में, उन्होंने 1918 में महात्मा गांधी नेतृत्व में विदेशी वस्त्रों का त्याग कर देसी वस्त्र पहनने शुरू कर दिए |

मोतीलाल नेहरु की मृत्यु –

मोतीलाल नेहरु की उम्र और घटते हुए स्वास्थ ने उन्हें 1929 से 1931 के बीच होने वाली एतिहासिक घटनाओ से दूर रखा उस समय कांग्रेस ने भी पूरी आज़ादी को अपने लक्ष्य के रूप में अपना लिया था और गांधीजी ने भी नमक सत्याग्रह की घोषणा कर दी थी।
उन्हें उनके बेटे जवाहरलाल नेहरु के साथ जेल में डाला गया लेकिन ख़राब स्वास्थ के चलते उन्हें रिहा कर दिया गया जनवरी 1931 के अंतिम सप्ताह में गांधीजी और कांग्रेस की कार्यकर्ता समिति को सर्कार ने रिलीज़ कर दिया था अंतिम दिनों में गांधीजी और अपने पुत्र को अपने पीछे देख मोतीलाल नेहरु काफी खुश थे 6 फरवरी 1931 को उनकी मृत्यु हो गयी।

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