मराठा वंश का गोत्र

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प्रमुख मराठा सम्राट 

1. शिवाजी
2. शाहजी भोंसले
3. जीजाबाई
4. शम्भाजी
5. शाहू
6. ताराबाई
7. बालाजी बाजीराव
8. बालाजी विश्वनाथ
9. बाजीराव प्रथम
10. बाजीराव द्वितीय महाराष्ट्र
11. तुकाराम

मराठा वंश की लगभग 6.5 करोड़ जातियों थी

 * गोत्र ऋषी – सुर्यवंश,चंद्रवंश,शेषवंश,यदुवंश,अग्निवंश और ब्रह्मवंश ये क्षत्रियोके वंश मे जो प्रसिद्ध ऋषी और मंत्रद्रुष्टे यानी वेदमंत्र कि जाणकारी रखनेवाले ऋषी हो गये,उनके नामसे उस वंश की गोत्रपरंपरा चालु हो गई.क्षत्रिय कुल के मुल ऋषी को गोत्र ऋषी कहते है और वो शतप्रतिशत क्षत्रिय ही होते है |

* प्रवर ऋषी – जिस क्षत्रिय ऋषीयोने ऋग्वेद की सुक्त रची है और उस सुक्त के माध्यम से अग्नी की स्तुती की ऐसे पुर्वज ऋषी, उन्हे प्रवर ऋषी कहते है |

*आर्षेय म्रुषेरपत्यमग्निम् यजमानस्य ऋषि संतारवात् तं व्रुणिते प्रार्थयते होत्रादिभिःअर्थ – यद्न्य करनेवाला यजमान अग्नीकी प्रार्थना करता है कि,” हे अग्ने, ऋग्वेद मे के सुक्तोने तुम्हारी सेवा की है, ऐसे क्षत्रिय ऋषि का मै वंशज हुँ” इससे यह स्पष्ट होता है कि,” यजमान ये मुख्य क्षत्रिय प्रवर ऋषिका वंशज है, गोत्र ऋषि ये प्रवर ऋषिका वंशज है,फिर वो मंत्ररचना करनेवाला रहना चाहिए ऐसा कोई बंधन नही होता |

* गोत्र ऋषि ये प्रवर ऋषि का विख्यात वंशज रहेने से उससे उत्पन्न होने वाली शाखा /नया कुल उस क्षत्रिय ऋषिका नाम उस कुल को लागु होता है,इसलिए क्षत्रिय का गोत्र ऋषि उस कुल का मुल वंशज क्षत्रिय ऋषि होता है इससे स्पष्ट होता है कि,”एक प्रवर से यानी मुल मंत्र ऋषिसे अनेक गोत्र ऋषि उत्पन्न हो सकते है ” इसलिए क्षत्रियो मे गोत्र अनेक होते है मगर प्रवर कम और ठराविक होते है प्रवर ऋषि ये हर गोत्र को 3 या 5 रहते है और गोत्र ऋषि प्रवर ऋषियोमेसे रहता है |

* मांधाता,अंबरीष, युवनाश्व आदि प्रवर ऋषि क्षत्रिय के सुर्यवंश के विख्यात क्षत्रिय राजा थे शुनहोत्र,अजमीढ आदि चंद्रवंशकुल के क्षत्रिय राजा थे.भ्रुगु और अंगिरस गण प्रवर मे के ऋषि क्षत्रिय राजा थे |

*आज से 5000 सालपुर्वसे क्षत्रियोने आपने गोत्र और प्रवर ऋषि का विवरण पुर्वकालिन शिलालेख और ताम्रपट मे नमुद कीया है और वही गोत्र आजभी क्षत्रिय कुल मे देखने मे मिलते है |

* शिलालेख का आधार – बाराहुत के तोरण पे लिखा लेख= “गार्गा पुत्तस वीसदेव पुत्तेन गोतिपुत्तस अंगराजस पुत्तेन वच्छिपुत्तेन धन भुतिना करितां तोरणं” अर्थ – कनिँगहँमने इसका भाषांतर किया है वो,”राजा धनभुतीने ये तोरण तयार किया वो धनभुती राजा वच्छ गोत्र कि राणीके उदर से खुदके गोत्र (कौत्स) गोत्रिय राणीका पुत्र अंगराज राजा का पुत्र है और गर्गोगोत्रोत्पन्न राणी का पुत्र विसदेव इसका नाती था ” यहाँ पे राजाकि माता,आजी और पणजी इनके कुल गोत्रका सम्मानसे उल्लेख किया है और ये सब राणीया क्षत्रियकुलोत्पन्न है |

* क्षत्रियोके गोत्र= क्षत्रियोके 8 मुल क्षत्रिय गोत्र ऋषि है विश्वामित्र, जमदग्नी, भारद्वाज,गौतम,अत्रि,वसिष्ठ,कश्यप और अगस्त्य ऋषि. बाद मे जो मांडव्य,गार्ग्य,कौत्स,शौनक,कौशिक आदि जो गोत्र देखने को मिलते है वो इन्ही 8 मुल क्षत्रिय गोत्र ऋषि के वंशज है |

* ऋषि के भेद – 5 भेद है- छंद ऋषि, ब्रह्म ऋषि,महृर्षी,राज ऋषि आणी देव ऋषी. वसिष्ठ,कण्व,कवषेलुष आदि छंद ऋषि है, इन्होने धर्मग्रंथमे कि छंदोबद्ध रचना की. अत्रि आदि ब्रह्म ऋषी है ये ब्रह्मविद्या मे विख्यात थे भ्रुगु, अंगिरस आदि महर्षी थेविश्वामित्र,प्रियव्रत,जनक,ऋतुपर्ण,अत्रि,कश्यप,अंगिरस,जैमिनि,शांडिल्य,कौँडिण्य,भारद्वाज आदि राजर्षि थे,मगर इन राजर्षी मे से कुछ छंद ऋषि कुछ ब्रह्म ऋषि थे नारद देव ऋषि थे |

* क्षत्रियोका अधिकार- न प्राक् त्वत्तः पुरा विद्या ब्राह्मणान्गच्छति तस्मादु सर्वेषु लोकेषु क्षत्रस्यैव प्रशासनभुत् छांदोग्योपनिषद , अर्थ – प्रावाहण, जैवाली(क्षत्रिय राजर्षी) इनके पास जब ब्राह्मण ऋषि ब्रह्मविद्याध्ययन के लिए गया,तब वे क्षत्रिय राजर्षी ने कहा,”हे ब्राह्मण ऋषि, ब्रह्मविद्या ये तुज से पहले किसी भी ब्राह्मण को अवगत नही हुई,अर्थात वो उनको दुष्प्राप्य है और वो प्राप्त करने का अधिकार सिर्फ क्षत्रियोका है और उसके उत्पादक भी क्षत्रिय ही है”. इससे ये स्पष्ट होता है कि वेद और ब्रह्मविद्या का अधिकार सिर्फ क्षत्रिय का ही है |

* ऋग्वेद के जो 10 मंडल है उसके मंत्रद्रष्टे और सुक्तकार ये क्षत्रिय थे और बहुतांश उपनिषद ये क्षत्रिय राजाओने लिखी है इससे ये स्पष्ट होता है कि,”धर्मसुत्र और वेदसुत्र के मंत्रद्रुष्टे और ब्रह्मविद्याके अग्रगण्य क्षत्रिय हि थे” धर्म,वेद और ब्रह्मविद्या का अधिकार सिर्फ क्षत्रियोका था |

* चित्रगंगायन,प्रावाहण,जैवाली,कैकेय,अश्वपति,अजातशत्रु,जनक आदि ब्रह्म विद्यापारंगत क्षत्रियकुलभुषण थे. क्षत्रियकुलोद्भव जनकराजा ब्रह्म विद्यामे विख्यात था और “ब्रह्मविद्यापारंगत जो है उसे ब्रह्म क्षत्रिय कहते है ना कि ब्राह्मण” गंधर्व के बाद 3 अग्नी लानेवाला और यद्न्य की परंपरा पहिली बार शुरु करनेवाला क्षत्रियराजा पुरुरवा था गायत्री मंत्रका निर्माता ये क्षत्रिय राजर्षी विश्वामित्र था |

* यदुवंशी भगवान श्रीक्रुष्णजी ने अपने मुख से प्रतिपादित किया है,”परित्राणाय साधुनाम् विनाशायच दुष्क्रुताम् धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे” ये धार्मिक श्रेष्ठत्व का और धर्माधिकार्य का मान क्षत्रिय को ही है |

Conclusion:- दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हमने मराठा वंश का गोत्र के बारे में विस्तार से जानकारी दी है। इसलिए हम उम्मीद करते हैं, कि आपको आज का यह आर्टिकल आवश्यक पसंद आया होगा, और आज के इस आर्टिकल से आपको अवश्य कुछ मदद मिली होगी। इस आर्टिकल के बारे में आपकी कोई भी राय है, तो आप हमें नीचे कमेंट करके जरूर बताएं।

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