आखातीज क्यों मनाई जाती है

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आखातीज क्यों मनाई जाती है

हर वर्ष वैसाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि में जब सूर्य और चन्द्रमा अपने उच्च प्रभाव में होते हैं, और जब उनका तेज सर्वोच्च होता है, उस तिथि को हिन्दू पंचांग के अनुसार अत्यंत शुभ माना जाता है| और इस शुभ तिथि को कहा जाता है ‘अक्षय तृतीया’ अथवा ‘आखा तीज’ इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं, उनका सुखद परिणाम मिलता है| पारंपरिक रूप से यह तिथि भगवान विष्णु के छठे अवतार श्री परशुराम की जन्मतिथि होती है| इस तिथि के साथ पुराणों की अहम वृत्तांत जुड़े हुए है। राजस्थान में यो तो कई त्यौहारों का अपना एक महत्व होता है। उन त्यौहारों में से एक मुख्य त्यौहार आखातीज भी होता है।

बैसाख शुक्ला तृतीया को आखातीज का त्यौहार मनाया जाता है । इस दिन होम, जप, तप, दान, स्नान आदि किए जाते है। इसी कारण इसे अक्षय तृतीया कहते हैं । इस दिन प्रत्येक घर में नया धान आ जाता है । अतः उसका स्वागत करते गेहूं, चना, तिल, जौ, बाजरी, मूंग और मोंठ आदि सात खाद्यानों की पूजा करके शीघ्र वर्शा हेतु प्रार्थना की जाती है कि आगामी वर्श भी अच्छी फसल वाला हो । गांव गांव में मेले लगते हैं । स्त्रियां मंगलाचरण गाती हैं और छोटे बच्चे वर वधू के स्वांग रचते हैं । शाम को लोग हवा का रुख देख कर शकुन लेते हैं । अतिथियों की अफीम, गुड़ आदि से मनुहार करते हैं । इस अवसर पर सीरा, लापसी, मूंग और चावल की खीचड़ी, बाजरे का खीच व गुड़ की ‘गलवानी’ बनाते हैं । लड़के व नवयुवक पतंग उड़ाते हैं । इस दिन विवाह हेतु बिना देखाअबूझ मुहूत्र्त होता है । कृशक वर्ग अपनी संतान का ज्यादातर विवाह इसी दिन करते हैं।

जैसलमेर क्षेत्र में वैशाख शुक्ला द्वितीया तथा तृतीया को इसे किसानों के त्यौहार के रूप में मनाने की परंपरा हैं । किसानों के बच्चे इस दिन लकड़ी के छोटे-छोटे हल लिये हुए इधर उधर घूमते दिखाई देते हैं । इस त्यौहार के दिन नये गेंहुओं का खीच बनाया जाता है । सारे गांव के लोग अपने पुराने बैर-भाव को भुलाकर एक साथ भोजन करते हैं । इसी दिन ये फसल तथा जमाने के शकुन देखते हैं व सभी तरह के अनाजों के छोटे ढिगले कर घरों में खाने का स्वरूप बनाते हैं । राजस्थानी संस्कृति में आखातीज के इस त्यौहार का बहुत महत्व होता जो हिंदु संस्कृति की पहचान है।(आखातीज क्यों मनाई जाती है)

वैशाख शुक्ल तृतीया पर 14 मई को शुक्रवार के दिन सुकर्मा योग में आखा तीज मनाई जाएगी। धार्मिक मान्यता के अनुसार अक्षय तृतीया पर दान का विशेष महत्व है। धर्मशास्त्र के जानकारों के अनुसार इस दिन सुकर्मा योग होने से दिए गए दान का पुण्य फल इंद्र के समान सुख के रूप में प्राप्त होगा। आखातीज को अबूझ मुहूर्त की मान्यता है। इस दिन मांगलिक कार्यों के लिए मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं है।

ज्योतिषाचार्य पं.अमर डब्बावाला के अनुसार अक्षय तृतीया पर शुक्रवार के दिन सुकर्मा योग, तैतिल करण, मृगशिरा नक्षत्र तथा वृषभ राशि का चंद्रमा रहेगा। शास्त्रीय अभिमत से देखें तो शुक्रवार के दिन के स्वामी इंद्र है। सुकर्मा योग व मृगशिरा नक्षत्र के स्वामी भी इंद्र को माना गया है। शास्त्रीय मान्यता में इस प्रकार के विशेष योग में आने वाला विशेष पर्व अथवा त्यौहार महत्वपूर्ण माना जाता है। इसी मान्यता के अनुसार अक्षय तृतीया पर इन योगों में दिए गए दान का पुण्य फल इंद्र के समान सुख के रूप में प्राप्त होगा।

राजस्थान में आखातीज यानी अक्षय तृतीया शादियों का सबसे बड़ा दिन होता है और इस दिन को विवाह के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है लेकिन इस बार आखातीज सूनी है. राजस्थान में इस बड़े सावे पर होने वाली लगभग 25,000 शादियां टल गयी हैं. वजह है- कोरोना वायरस संक्रमण और उसे काबू करने के लिए लागू किया गया |

रविवार को आखातीज के अवसर पर इस बार जो कुछे एक शादियां होंगी, वे भी बिलकुल सादे ढंग से होंगी. ‘ऑल इंडिया टेंट डीलर्स वेलफेयर एसोसिएशन’ के वरिष्ठ उपाध्यक्ष रवि जिंदल ने बताया कि राजस्थान में होने वाली 20,000 से 25,000 शादियां कोरोना वायरस और बंद के कारण स्थगित हो गयी हैं |

उन्होंने कहा कि आखा तीज या अक्षय तृतीया राजस्थान में शादी का सबसे बड़ा सावा होता है इसे अबूझ सावा मुहूर्त माना जाता है, लेकिन इस बार इस पर कोरोना वायरस और बंद का ग्रहण है उन्होंने कहा कि राजस्थान में लगभग 55,000 टेंट हाउस या व्यवसायी हैं और टेंट कारोबार से तीन लाख लोग सीधे तौर पर जुड़े हैं इसके अलावा इवेंट मैनेजमेंट, कैटरिंग, लाइट आदि की व्यवस्था करने वाले हजारों लोग हैं |

जिंदल ने बताया कि रविवार को होने वाली शादियां टलने से इस उद्योग को कम से कम 12,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है उन्होंने कहा कि केवल जयपुर जिले में ही सात हजार से आठ हजार विवाह होने थे, जो टल गए हैं |(आखातीज क्यों मनाई जाती है)

एक इंवेंट मैनेजमेंट कंपनी के अधिकारी ने कहा, ‘‘शादियां टल गयी हैं. कुछेक शादियां सादे कार्यक्रम में होंगी जिसके लिए भी प्रशासन से कई तरह की मंजूरियां लेनी पड़ रही हैं सामाजिक दूरी बनाए रखने और 20 से ज्यादा लोगों के समारोह में शामिल नहीं होने जैसी कई शर्तों का पालन अनिवार्य है.’’

अक्षय तृतीया पर शिव मंदिरों में गलंतिका बांधने तथा भगवान श्रीकृष्ण को चंदन का अर्पण करने का विशेष महत्व है। इस दिन पितरों के निमित्त जल दान करना महापुण्य फलदायी बताया गया है।

अक्षय घट का करें दान –
आखातीज पर दो घट (जल से भरे मिट्टी के कलश) का विधिवत पूजन कर अलग-अलग ब्राह्मणों को दान करने का विशेष महत्व है। एक घट भगवान विष्णु के नाम तथा दूसरा घट अपने पितरों के नाम से दान किया जाता है। भगवान विष्णु के घट में जौ तथा पितरों के घट में काले तिल डालें। दोनों कलशों को सफेद कपड़े से ढंक कर उन पर खरबूजे का फल रखें। विधिवत पूजन के पश्चात इन्हें ब्राह्मणों को दान करें इससे भगवान विष्णु तथा पितरों की कृपा प्राप्त होती है।

युगादि तिथि है अक्षय तृतीया –
ज्योतिष शास्त्र में 12 में से 11 माह युगादि व मन्वादि तिथि का संयोग आता है। अर्थात इन्हें गणितीय पक्ष में युग के आरंभ की तिथि तथा मनुओं के मन्वंतर की तिथि कहा जाता है। शास्त्रीय मान्यता में जिस समय युग का आरंभ हुआ उन्हें युगादि तिथि कहा जाता है। अक्षय तृतीया युगादि तिथि की श्रेणी में आति है।

अक्षय तृतीया का मुहूर्त –
1. वैशाख मास में शुक्लपक्ष की तृतीया अगर दिन के पूर्वाह्न (प्रथमार्ध) में हो तो उस दिन यह त्यौहार मनाया जाता है।
2. यदि तृतीया तिथि लगातार दो दिन पूर्वाह्न में रहे तो अगले दिन यह पर्व मनाया जाता है, हालाँकि कुछ लोगों का ऐसा भी मानना है कि यह पर्व अगले दिन तभी मनाया जायेगा जब यह तिथि सूर्योदय से तीन मुहूर्त तक या इससे अधिक समय तक रहे।
3. तृतीया तिथि में यदि सोमवार या बुधवार के साथ रोहिणी नक्षत्र भी पड़ जाए तो बहुत श्रेष्ठ माना जाता है।

अक्षय तृतीया व्रत व पूजन विधि –
1. इस दिन व्रत करने वाले को चाहिए की वह सुबह स्नानादि से शुद्ध होकर पीले वस्त्र धारण करें।
2. अपने घर के मंदिर में विष्णु जी को गंगाजल से शुद्ध करके तुलसी, पीले फूलों की माला या पीले पुष्प अर्पित करें।
3. फिर धूप-अगरबत्ती, ज्योत जलाकर पीले आसन पर बैठकर विष्णु जी से सम्बंधित पाठ (विष्णु सहस्त्रनाम, विष्णु चालीसा) पढ़ने के बाद अंत में विष्णु जी की आरती पढ़ें।
4. साथ ही इस दिन विष्णु जी के नाम से गरीबों को खिलाना या दान देना अत्यंत पुण्य-फलदायी होता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन नर-नारायण, परशुराम व हयग्रीव अवतार हुए थे। इसलिए मान्यतानुसार कुछ लोग नर-नारायण, परशुराम व हयग्रीव जी के लिए जौ या गेहूँ का सत्तू, कोमल ककड़ी व भीगी चने की दाल भोग के रूप में अर्पित करते हैं।

अक्षय तृतीया कथा –
हिन्दू पुराणों के अनुसार युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से अक्षय तृतीया का महत्व जानने के लिए अपनी इच्छा व्यक्त की थी। तब भगवान श्री कृष्ण ने उनको बताया कि यह परम पुण्यमयी तिथि है। इस दिन दोपहर से पूर्व स्नान, जप, तप, होम (यज्ञ), स्वाध्याय, पितृ-तर्पण, और दानादि करने वाला व्यक्ति अक्षय पुण्यफल का भागी होता है।

प्राचीन काल में एक गरीब, सदाचारी तथा देवताओं में श्रद्धा रखने वाला वैश्य रहता था। वह गरीब होने के कारण बड़ा व्याकुल रहता था। उसे किसी ने इस व्रत को करने की सलाह दी। उसने इस पर्व के आने पर गंगा में स्नान कर विधिपूर्वक देवी-देवताओं की पूजा की व दान दिया। यही वैश्य अगले जन्म में कुशावती का राजा बना। अक्षय तृतीया को पूजा व दान के प्रभाव से वह बहुत धनी तथा प्रतापी बना। यह सब अक्षय तृतीया का ही पुण्य प्रभाव था।(आखातीज क्यों मनाई जाती है)

अक्षय तृतीया महत्व –
1. अक्षय तृतीया का दिन साल के उन साढ़े तीन मुहूर्त में से एक है जो सबसे शुभ माने जाते हैं। इस दिन अधिकांश शुभ कार्य किए जा सकते हैं।
2. इस दिन गंगा स्नान करने का भी बड़ा भारी माहात्म्य बताया गया है। जो मनुष्य इस दिन गंगा स्नान करता है, वह निश्चय ही सारे पापों से मुक्त हो जाता है।
3. इस दिन पितृ श्राद्ध करने का भी विधान है। जौ, गेहूँ, चने, सत्तू, दही-चावल, दूध से बने पदार्थ आदि सामग्री का दान अपने पितरों (पूर्वजों) के नाम से करके किसी ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए।
4. इस दिन किसी तीर्थ स्थान पर अपने पितरों के नाम से श्राद्ध व तर्पण करना बहुत शुभ होता है।
5. कुछ लोग यह भी मानते हैं कि सोना ख़रीदना इस दिन शुभ होता है।
6. इसी तिथि को परशुराम व हयग्रीव अवतार हुए थे।
7. त्रेतायुग का प्रांरभ भी इसी तिथि को हुआ था।
8. इस दिन श्री बद्रीनाथ जी के पट खुलते हैं।

इन्हीं सब कारणों से इस त्यौहार को बड़ा पवित्र और महान फल देने वाला बताया गया है। आशा करते हैं कि आप इस लेख के माध्यम से अक्षय तृतीया के त्यौहार का भरपूर आनंद ले पाएँगे। आपको अक्षय तृतीया की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।

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