बाड़मेर का इतिहास

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बाड़मेर शहर के निर्माण व इतिहास में जिस शख्स का नाम लिया जाता है वो हैं काछबाराम मेगवाल, बात 20 वीं सदी के अग्रेजी हुकूमत काल की है उस समय मेघवाल बाड़मेर में रेलवे लाइन बिछाने वाले ठेकेदार हुआ करते थे वर्ष 1935 के काल में राज्य के इस पश्चिमी इलाके में एक गोरा हाकिम सरकार के प्रतिनिधि के रूप में यहाँ बैठा करता था इसी काल में बाड़मेर रेलवे स्टेशन का निर्माण करवाया गया, जिसके सामने मेघवाल की हवेली हुआ करती थी |

इतिहास चट्टानी पहाड़ी शीर्ष पर एक दुर्ग वाले इस शहर के बारे में कहा जाता है कि 13वीं शताब्दी में इसकी स्थापना की गई थी, जब एक स्थानीय राजा के नाम पर इसका नामकरण बहदमेर (बहद का पहाड़ी क़िला) किया गया था। इसके बाद यह नाम छोटा होकर बाड़मेर हो गया। यह शहर जोधपुर से पाकिस्तान सीमा और आगे हैदराबाद तक जाने वाले रेलमार्ग पर स्थित है।

बाड़मेर जिले का इतिहास क्या है 

कई सारी इमारते जो आज भी शहर में है वो यहाँ के पुराने दिनों की तस्वीर को जिन्दा कर जाती हैं बाड़मेर से एक रेल लाइन का निर्माण हैदराबाद के लिए किया गया था जो काछबाराम के समय बनी, जिले में आयकर विभाग का कार्यालय यह वहीँ मेघवाल की प्राचीन हवेली है जिन्होंने यह सोचकर बनाई थी कि हर रेल यात्री की पहली नजर उस हवेली पर पड़े एक अन्य अंग्रेजी हुकुमत के रूप में यहाँ का प्राचीन राजकीय विद्यालय आज भी है जिन्हें अंग्रेज जेल के रूप में उपयोग किया करते थे |

आजादी के समय बाड़मेर एक बेहद छोटा सा कस्बा हुआ करता था यहाँ मात्र जैनों का वास, ढाणी बाजार और जोशियों का पुराना वास तथा शहर कोतवाली से आगे रेलवे स्टेशन को छोड़कर बस अंगुलियों पर गिने जाने योग्य ही घर बने थे आजादी के बाद 1952 में बाड़मेर का कलक्ट्रेट हाउस बनाया गया. अंग्रेजी एवं प्राचीन भारतीय शिल्प शैली में बना कलेक्ट्रेट का ऊपर भाग गुम्बंद नुमा है साथ ही यह काफी प्राचीन भी प्रतीत होता हैं

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