बहाई धर्म क्या है

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बहाई धर्म क्या है

बहाई धर्म मूल रूप से इस्लाम धर्म की शिया शाखा के द्वारा फारस (आधुनिक ईरान) में उत्पन्न होने वाले नए विश्व धर्मों में से एक है। तथापि, इसने स्वयं के लिए एक विशेष स्थान को प्राप्त किया है। बहाई धर्म ने स्वयं को अपने आकार (50 लाख सदस्यों) के कारण, अपने मूल धर्म इस्लाम से अपनी व्यावहारिक स्वायत्तता, और अपनी सैद्धान्तिक विशिष्टता (एकेश्वरवादी तथापि समावेशी) को प्राप्त करते हुए एक अद्वितीय विश्व धर्म के रूप में वैश्विक स्तर पर (236 देशों) प्रतिष्ठित किया है।

बहाई धर्म के सबसे पुराने अग्रदूत सईद अली मुहम्मद थे, जिन्होने 23 मई, 1844 को स्वयं को बाब (“फाटक”), अर्थात् परमेश्वर की आठवीं और मुहम्मद के पश्चात् पहली अभिव्यक्ति के रूप में घोषित किया। इस वक्तव्य में निहितार्थ रूप से मुहम्मद को अन्तिम और सबसे बड़े भविष्यद्वक्ता और कुरान के पास अद्वितीय अधिकार होने से इन्कार करना पाया जाता है। इस्लाम इस तरह के विचारों को दयालुता भरी दृष्टि से नहीं लेता है। बाब और उनके अनुयायियों, जिन्हें बाबिस कहा जाता है, ने भारी सताव का सामना किया और 1950 के आने से पहले के 9 वर्षों तक ताबरिज, एधीरबैजान में बाब को राजनीतिक कैदी के रूप में मारने से पहले उन पर हुए अत्याधिक उत्पीड़न भरे सताव के भाग रहे हैं। परन्तु अपनी मृत्यु से पहले, बाब ने आने वाले पैगंबर अर्थात् भविष्यद्वक्ता के बारे में बात की, जिसे उसने “परमेश्वर जिसे प्रकट करेगा” के रूप में उद्धृत किया है। 22 अप्रैल, 1863 को, उनके अनुयायियों में से एक मिर्जा हुसैन अली ने स्वयं को उस भविष्यद्वाणी की पूर्ति और परमेश्वर की नवीनतम अभिव्यक्ति अर्थात् प्रगटीकरण की घोषणा की। उन्होंने स्वयं को बाहा’ऊ’ल्लाह (“परमेश्वर की महिमा”) पदवी के साथ पुकारा। इसलिए बाब को “बपतिस्मा देने वाले यूहन्ना” के रूप में देखा गया था – जो कि बाहा’ऊ’ल्लाह के लिए अग्रदूत के जैसे था, जबकि बाहा’ऊ’ल्लाह इस युग के लिए अधिक महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति है। उनके अनुयायियों को बहाई कहा जाता है। इस उभरते हुए बहाई धर्म, जो अब इस नाम से पुकारा जाता है, की विशेषताएँ बाहा’ऊ’ल्लाह की घोषणाओं में स्पष्ट हो जाती हैं। उसने न केवल शिया इस्लाम में नवीनतम भविष्यद्वक्ता के आने का दावा किया, और न केवल उसने परमेश्वर की अभिव्यक्ति होने का दावा किया, परन्तु उसने स्वयं को मसीह का दूसरा आगमन, प्रतिज्ञा किया पवित्र आत्मा, परमेश्वर का दिन, मैत्रेय (बौद्ध धर्म से), और कृष्ण (हिन्दू धर्म से) होने का भी दावा किया है। बहाई धर्म की आरम्भिक अवस्थाओं में ही एक प्रकार का समावेशी विचार स्पष्ट रूप से पाया जाता है।(बहाई धर्म क्या है)

कहा जाता है कि बाहा’ऊ’ल्लाह के पश्चात् कोई अन्य अभिव्यक्ति प्रगट नहीं हुई है, परन्तु अनुयायियों का मार्गदर्शन करने के लिए मार्गदर्शक की नियुक्ति की जाती है। उन्होंने अपने बेटे अब्बास एफेन्दी (बाद में, अब्दुल-बहा, “बहा के दास”) को अपने उत्तराधिकारी के रूप में नामित किया था। जबकि उत्तराधिकारी परमेश्वर से प्रेरित पवित्रशास्त्रीय वचनों को नहीं बोल सकते थे, तथापि वे पवित्रशास्त्र की व्याख्या अचूकता के साथ कर सकते थे और उन्हें पृथ्वी पर परमेश्वर के सच्चे वचन को ज्यों का त्यों बनाए रखने के रूप में देखा गया था। अब्दुल-बहा ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में शोगी एफेन्दी को नियुक्त किया। यद्यपि, उत्तराधिकारी के नियुक्ति करने से पहले ही शोगी एफेन्दी की मृत्यु हो गई। इस अन्तराल को पाटने के लिए एक सार्वभौमिक रूप से संगठित शासकीय संस्थान को निर्मित किया गया जिसे यूनिवर्सल हाउस ऑफ जस्टिस या विश्व न्याय मन्दिर कहा जाता है, जो कि आज के दिन तक वैश्विक रूप से बहाई धर्म की शासकीय संस्था के रूप में कार्य कर रहा है। आज, बहाई धर्म इस्राएल के हाइफा नामक स्थान में यूनिवर्सल हाउस ऑफ जस्टिस में आयोजित वार्षिक अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों के द्वारा संचालित एक विश्व धर्म के रूप में विद्यमान है।

बहाई धर्म के मूल सिद्धान्त उसकी सादगी के कारण आकर्षक हैं:

1) एक परमेश्वर की आराधना और सभी मुख्य धर्मों का मेलमिलाप करना।

2) मानवीय परिवार की विविधता और नैतिकता और सभी पूर्वाग्रहों को समाप्त करने की सराहना करना।

3) विश्व शान्ति, महिलाओं और पुरुषों की समानता, और सार्वभौमिक शिक्षा की स्थापना करना।

4) सत्य के लिए व्यक्ति की खोज में विज्ञान और धर्म के बीच सहयोग करना।

इन्हें कुछ अन्तर्निहित मान्यताओं और प्रथाओं के साथ जोड़ा जा सकता है:

5) एक सार्वभौमिक सहायक भाषा का होना।

6) सार्वभौमिक मूल्यों और मापदण्डों का होना।

7) परमेश्वर जो कि स्वयं जानने योग्य नहीं है, तौभी अभिव्यक्तियों के माध्यम से स्वयं को प्रकट करता है।

8) ये अभिव्यक्तियाँ एक प्रकार का प्रगतिशील प्रकाशन हैं।

9) कोई धर्मांतरण नहीं (अर्थात् आक्रामक गवाही को नहीं देना)।

10) बहाई पुस्तकों के अतिरिक्त विभिन्न ग्रन्थों का अध्ययन करना।

11) प्रार्थना और आराधना को अनिवार्य रूप से करना और उनमें से अधिकांश को विशिष्ट निर्देशों के अनुसार करना।

बहाई धर्म बौद्धिक रूप से बहुत अधिक प्रभावशाली है, और इसके कई अनुयायी आज शिक्षित, वक्ता, विभिन्नदर्शनग्राही, राजनीतिक रूप से उदार, तौभी सामाजिक रूप से रूढ़िवादी हैं (अर्थात्, गर्भपात विरोधी, पारम्परिक-परिवार समर्थक इत्यादि)। इसके अतिरिक्त, बहाई अनुयायियों से न केवल अपने विशिष्ट बहाई ग्रन्थों को समझने की अपेक्षा की जाती है, अपितु अन्य विश्व धर्मों के ग्रन्थों का अध्ययन करने की भी अपेक्षा की जाती है। इसलिए, एक ऐसे बहाई अनुयायी का सामना होना सम्भव है, जो एक औसत मसीही विश्वासी की अपेक्षा अधिक शिक्षित है। इसके अतिरिक्त, बहाई धर्म में कुछ उदार मूल्यों जैसे लिंग समतावाद, सार्वभौमिक शिक्षा, और विज्ञान और धर्म के बीच सद्भाव के साथ शिक्षा पर बहुत अधिक जोर दिया जाता है।(बहाई धर्म क्या है)

तौभी, बहाई धर्म में कई धार्मिक अन्तराल और सैद्धान्तिक असंगतताएँ पाए जाती हैं। मसीहियत की तुलना में, इसकी मूल शिक्षाएँ अपनी समानता में केवल सतही ही हैं। भिन्नताएँ गहरी और मौलिक हैं। बहाई धर्म अलंकृत है, और एक पूर्ण आलोचना ज्ञानकोशीय ही होगा। इसलिए, केवल कुछ ही अवलोकन नीचे दिए गए हैं।

बहाई धर्म शिक्षा देता है कि परमेश्वर अपने सार में ही अज्ञात है। बहाई धर्म के अनुयायी को यह समझाने में कठिनाई होती है कि वे परमेश्वर के बारे में एक विस्तृत धर्मविज्ञान को कैसे प्राप्त कर सकते हैं, तौभी वह यह मानते हैं कि परमेश्वर “अज्ञात” अर्थात् जानने योग्य नहीं है। और यह कहने में सहायता प्रदान नहीं करता है कि भविष्यद्वक्ताओं और अभिव्यक्तियों ने मनुष्यों को कैसे परमेश्वर के बारे में सूचित किया है, क्योंकि यदि परमेश्वर “अज्ञात” हैं, तो मानवता का कोई ऐसा सन्दर्भ बिन्दु नहीं है, जिससे यह पता चल सके कि कौन सा शिक्षक सत्य बोल रहा है। मसीहियत पूर्णता के साथ शिक्षा देती है कि परमेश्वर का पता लगाया जा सकता है, जो कि स्वाभाविक रूप से गैर-विश्वासियों के द्वारा भी जाना जा सकता है, यद्यपि उनके पास परमेश्वर का सम्बन्धपरक ज्ञान नहीं हो सकता है। रोमियों 1:20 कहता है, “उसके अनदेखे गुण, अर्थात् उसकी सनातन सामर्थ्य और परमेश्‍वरत्व, जगत की सृष्‍टि के समय से उसके कामों के द्वारा देखने में आते हैं…।” परमेश्वर केवल सृष्टि के माध्यम से ही नहीं जाना जा सकता है, अपितु वह उसके वचन और पवित्र आत्मा की उपस्थिति के माध्यम से भी जाना जा सकता है, जो हमारी अगुवाई और मार्गदर्शन करता है और हमें गवाही देता है कि हम उसकी सन्तान हैं (रोमियों 8:14-16)। न केवल हम उसे जानते हैं, परन्तु हम उसे “अब्बा, पिता” (गलतियों 4:6) के रूप में निकटता से जान सकते हैं। यह सच है कि परमेश्वर हमारे सीमित मनों में अपनी अनन्तता को नहीं रख सकता है, परन्तु मनुष्य के पास तौभी परमेश्वर का आंशिक ज्ञान होता है, जो पूरी तरह से सत्य और सम्बन्धपरक रूप से सार्थक होता है।

यीशु के बारे में, बहाई धर्म शिक्षा देता है कि वह परमेश्वर की अभिव्यक्ति था, परन्तु देहधारी नहीं था। भिन्नता थोड़ी सी ही प्रतीत होती है, परन्तु यह वास्तव में बहुत बड़ी है। बहाई धर्म का मानना है कि परमेश्वर अज्ञात है; इसलिए, परमेश्वर मनुष्यों के बीच विद्यमान होने के लिए स्वयं का देहधारण नहीं कर सकता है। यदि यीशु शाब्दिक अर्थ में परमेश्वर है, और यीशु को जाना जा सकता है, तो परमेश्वर को जाना जा सकता है, और इस तरह से बहाई धर्मसिद्धान्त का मूल्य ही नहीं रह जाता है। इसलिए, बहाई धर्म शिक्षा देता है कि यीशु परमेश्वर का प्रतिबिम्ब था। जैसे एक व्यक्ति एक दर्पण में सूर्य के प्रतिबिम्ब को देख सकता है और कह सकता है, “सूर्य है,” वैसे ही एक व्यक्ति यीशु को देख सकता है और कह सकता है, “परमेश्वर है,” जिसका अर्थ यह हुआ कि वह “परमेश्वर का प्रतिबिम्ब है।” यहाँ दी गई शिक्षा में एक बार फिर से समस्या यह पाई जाती है कि परमेश्वर “अज्ञात” है, जो इस बात को सतह पर लो आती है, कि सत्य और झूठी अभिव्यक्तियों या भविष्यद्वक्ताओं के मध्य भिन्नता करने का कोई तरीका ही नहीं है। यद्यपि, मसीही विश्वासी यह तर्क दे सकता है कि मसीह ने स्वयं को अन्य सभी अभिव्यक्तियों से पृथक कर दिया और मृतकों में से भौतिक रूप से पुनरुत्थित होते हुए अपने स्वयं की प्रमाणित दिव्यता की पुष्टि की है, इस बात का इन्कार भी बहाई करते हैं। जबकि पुनरुत्थान एक आश्चर्यकर्म है, तथापि यह ऐतिहासिक रूप से मसीहियत का बचाव करने वाला एक प्रमाण है। डॉ गैरी हबर्मस, डॉ विलियम लेन क्रेग, और एन टी राइट ने यीशु मसीह के पुनरुत्थान की ऐतिहासिकता का बचाव बहुत ही अच्छी रीति से किया है।

बहाई धर्म भी मसीह और पवित्रशास्त्र की पूर्ण पर्याप्तता से इन्कार करता है। बहाई धर्म के विश्वास के अनुसार, कृष्णा, बुद्ध, यीशु, मुहम्मद, बाब और बहा’ऊ’ल्लाह सभी परमेश्वर की अभिव्यक्तियाँ थे, और इनमें से नवीनतम के पास ही सर्वोच्च अधिकार होगा क्योंकि प्रगतिशील प्रकाशन के विचार के अनुसार उसके पास परमेश्वर का सबसे नवीन प्रकाशन होगा। यहाँ, मसीही धर्म मण्डन करने वाले विचारकों को मसीहियत के दावों की विशिष्टता और इसके धर्मसिद्धान्त और व्यावहारिक सत्यता को विपरीत धार्मिक पद्धतियों की विशिष्टता के प्रति प्रदर्शन करने के लिए उपयोग किया जा सकता है। बहाई, यद्यपि, यह दिखाने के लिए चिन्तित रहते है कि संसार के सभी मुख्य धर्म अन्ततः मेलमिलाप के योग्य हैं। किसी भी भिन्नता की व्याख्या इस रीति से की जा सकती है:

1) सामाजिक कानून – के स्थान पर आधुनिक-सांस्कृतिक आत्मिक कानून।

2) आरम्भिक प्रकाशन- उत्तरोत्तर समय के अधिक “पूर्ण” प्रकाशन के विपरीत।

3) दूषित शिक्षा या गलत व्याख्या।

परन्तु इन योग्यताओं को देखते हुए हम पाते हैं कि संसार के धर्म स्वयं में एक दूसरे से बहुत अधिक भिन्न और मेलमिलाप करने में मूलभूत रूप से एक दूसरे से बहुत ही अधिक दूर हैं। यह देखते हुए कि संसार के धर्म स्पष्ट रूप से एक दूसरे से भिन्न शिक्षा को देते हैं और विपरीत बातों का अभ्यास करते हैं, यह बोझ बहाई विश्वासियों के ऊपर आ जाता है कि वे संसार के मुख्य धर्मों की मूलभूत बातों को समाप्त करते हुए उनका आपस में मेलमिलाप करें। विडंबना यह है कि जो धर्म सबसे अधिक समावेशी हैं – वे बौद्ध धर्म और हिन्दू धर्म हैं – जो शास्त्रीय रूप में नास्तिक और बहुदेववादी (क्रमशः) हैं, और न तो नास्तिकता और न ही बहुदेववाद को कठोरता के साथ एकेश्वरवाद आधारित बहाई धर्म के भीतर प्रवेश की अनुमति दी जा सकती है। इस बीच, जो धर्म अपने धर्मविज्ञान में बहुत ही कम समावेशी हैं – वे इस्लाम, मसीहियत, रूढ़िवादी यहूदी धर्म हैं – जो कि एकईश्वरवादी हैं – ठीक वैसे ही जैसे बहाई एकेश्वरवादी हैं।(बहाई धर्म क्या है)

इसके अतिरिक्त, बहाई धर्म एक तरह से कर्म – आधारित उद्धार की शिक्षा देता है। बहाई धर्म अपनी मूल शिक्षाओं को छोड़कर इस्लाम से बहुत अधिक भिन्न नहीं है, इसके अतिरिक्त, मृत्यु उपरान्त जीवन के बारे में बहुत ही कम बात की गई है। इस सांसारिक जीवन को अच्छे कामों से भरा हुआ होना चाहिए, जो किसी के बुरे कामों को सन्तुलित करता है, और एक व्यक्ति को अन्त में उद्धार के योग्य बनाता है। पाप का भुगतान या इसे समाप्त नहीं किया जा सकता है; अपितु, यह सम्भवतः परोपकारी परमेश्वर के द्वारा क्षमा किया जाता है। मनुष्य के साथ परमेश्वर का कोई महत्वपूर्ण सम्बन्ध नहीं है। वास्तव में, बहाई शिक्षा देते हैं कि परमेश्वर के सार में कोई व्यक्तित्व ही नहीं है, अपितु यह केवल उसकी अभिव्यक्तियों में ही पाया जाता है। इस प्रकार, परमेश्वर मनुष्य के साथ सम्बन्धों में आसानी से नहीं आता है। इसके परिणाम स्वरूप, अनुग्रह के मसीही सिद्धान्त की पुन: व्याख्या की गई है, अर्थात् “अनुग्रह” का अर्थ “मनुष्य के लिए परमेश्वर की ओर छुटकारे को कमाने के लिए परोपकारिता से भरा हुआ अवसर प्राप्त करना है।” इस सिद्धान्त में निर्मित मसीह के प्रायश्चित से भरे हुए बलिदान को अस्वीकृत और पाप के मूल्य को कम कर दिया गया है।

उद्धार का मसीही दृष्टिकोण बहुत ही भिन्न है। पाप को अनन्त और अनन्तकालीन परिणाम के रूप में समझा जाता है, क्योंकि यह असीमित रूप से पूर्ण परमेश्वर के विरूद्ध किया गया सार्वभौमिक अपराध है (रोमियों 3:10, 23)। इसी तरह, पाप इतना गम्भीर है कि यह एक जीवन (लहू) के बलिदान को दिए जाने के योग्य है और यह मृत्यु उपरान्त जीवन में अनन्तकालीन दण्ड को लाता है। परन्तु मसीह उस दण्ड का भुगतान करता है, जिसे हम सभों को अदा करना था, वह एक दोषी मानवता के लिए निर्दोष बलिदान के रूप में मर गया। क्योंकि मनुष्य अपने स्वयं के लिए प्रायश्चित करने के लिए कुछ भी नहीं कर सकता है या अनन्त प्रतिफल को पाने के योग्य नहीं हो सकता है, इसलिए उसे या तो अपने पापों के लिए मरना होगा या मानना चाहिए कि मसीह की मृत्यु अनुग्रहपूर्ण रूप से उसके स्थान पर हुई है (यशायाह 53; रोमियों 5:8)। इस प्रकार, उद्धार या तो मनुष्य के विश्वास के माध्यम से परमेश्वर के अनुग्रह से है या कोई शाश्वत उद्धार ही नहीं है।

इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि बहाई धर्म बाहा’ऊ’ल्लाह को मसीह के दूसरे आगमन के रूप में घोषित करता है। यीशु ने स्वयं अन्तिम बार मत्ती के सुसमाचार में चेतावनी दी है कि: “उस समय यदि कोई तुम से कहे, ‘देखो, मसीह यहाँ है!’ या ‘वहाँ है!’ तो विश्‍वास न करना। क्योंकि झूठे मसीह और झूठे भविष्यद्वक्‍ता उठ खड़े होंगे, और बड़े चिह्न, और अद्भुत काम दिखाएँगे कि यदि हो सके तो चुने हुओं को भी भरमा दें” (मत्ती 24:23-24)। रूचिपूर्ण बात यह है कि बहाई सामान्य रूप में बाहा’ऊ’ल्लाह के किसी भी आश्चर्यकर्म को अस्वीकार या कम कर देते हैं। उसके द्वारा किए गए अद्वितीय आत्मिक दावे स्व-प्रमाणित अधिकार, अनैतिक और अशिक्षित ज्ञान, फलदायी लेखन कार्य, शुद्ध जीवन, बहुमत की सर्वसम्मति, और अन्य व्यक्तिपरक जाँचों पर आधारित हैं। भविष्यद्वाणियों की पूर्ति जैसी अधिक उद्देश्यपूर्ण जाँच पवित्रशास्त्र की बहुतायात के साथ रूपक आधारित व्याख्याओं के ऊपर आधारित हैं (विलियम सीअर्स द्वारा रचित थीफ़ इन द नाईट अर्थात् रात में आने वाला चोर नामक पुस्तक को देखें)। बाहा’ऊ’ल्लाह में विश्वास एक बड़े पैमाने पर विश्वास के एक सार बिन्दु पर आ कर खड़ा हो जाता है – क्या कोई उसे प्रत्यक्ष प्रमाण की अनुपस्थिति के कारण परमेश्वर की अभिव्यक्ति या प्रकटन के रूप में स्वीकार करने के लिए तैयार है नि:सन्देह, मसीहियत भी विश्वास की मांग करता है, परन्तु मसीहियों के पास उस विश्वास के प्रति दृढ़ और प्रतीकात्मक प्रमाण उपलब्ध हैं।(बहाई धर्म क्या है)

बहाई धर्म इसलिए शास्त्रीय रूप से मसीहियत के अनुरूप नहीं है, और इसके पास अपने अधिकार में ही उत्तर देने के लिए बहुत कुछ है। कैसे एक अज्ञात परमेश्वर इस तरह के एक विस्तृत धर्मविज्ञान को प्रदान कर सकता है और एक नए विश्व धर्म के न्यायसंगत होने को प्रमाणित कर सकता है। बहाई धर्म पाप को सम्बोधित करने में कमजोर है, वह इसके साथ ऐसे व्यवहार करता है कि मानो यह एक बड़ी समस्या नहीं थी और यह मानवीय प्रयासों की बहुत बड़ी सीमा में सर्वोत्तम है। मसीह की दिव्यता को अस्वीकार कर दिया गया है, जो कि मसीह के पुनरुत्थान शाब्दिक स्वभाव और प्रमाणीय मूल्य में स्पष्ट दिखाई देता है। और बहाई धर्म के लिए, सबसे बड़ी समस्याओं में से एक बहुलवाद है। अर्थात्, कैसे कोई धर्मवैज्ञानिक रूप से भटके बिना विभिन्न धर्मों के साथ मेलमिलाप कर सकता है? यह तर्क देना आसान है कि संसार के धर्मों में पाई जाने वाली नैतिक शिक्षाओं में समानताएँ हैं और सर्वोच्च वास्तविकता के प्रति कुछ धारणा पाई जाती है। परन्तु वास्तविकता पूर्ण रूप से क्या है और कैसे ये नैतिकताएँ कैसे एक दूसरे पर आधारित हैं, इसके बारे में विभिन्न धर्मों की मौलिक शिक्षाओं में एकता होने पर चर्चा करने का प्रयास करना एक भिन्न बात है।

पूरे इतिहास के दौरान ईश्वर ने मानवजाति के पास ’दिव्य शिक्षकों’ की एक श्रृंखला भेजी है – जो ईश्वर के अवतारों के रूप में जाने जाते हैं – जिनकी शिक्षाओं ने सभ्यता के विकास के लिये आधारभूमि प्रदान की है। इन अवतारों में शामिल हैं अब्राहम, कृष्ण, ज़रतुस्थ, मूसा, बुद्ध, ईसा, मुहम्मद। इन अवतारों में नवीनतम हैं बहाउल्लाह जिन्होंने कहा है कि दुनिया के सभी धर्म एक ही ‘स्रोत’ से आये हैं और सार रूप में ईश्वर की ओर से आये एक ही धर्म के क्रमबद्ध अध्याय हैं।

बहाईयों की मान्यता है कि मानवजाति के सामने जो सबसे बड़ी ज़रूरत आज है वह है समाज के भविष्य को एकसूत्र में पिरोने वाली दृष्टि और जीवन के स्वरूप तथा उद्देश्य को जानने का। ऐसी ही दृष्टि बहाउल्लाह के लेखों में प्रकट होती है।

दुनिया के हज़ार-ओ-हज़ार स्थानों में बहाई धर्म की शिक्षायें उन व्यक्तियों और समुदायों को प्रेरणा देती हैं, जो अपना जीवन उन्नत करने और अपना योगदान देकर सभ्यता के विकास में योगदान देते हैं। बहाई मान्यतायें ईश्वर और धर्म की एकता, मानवजाति की एकता और पूर्वाग्रह से मुक्ति, मानव में अन्तर्निहित श्रेष्ठता, धार्मिक सत्य के प्रगतिशील प्रकाशन, आध्यात्मिक गुणों को विकसित करने, आराधना और सेवा का एकीकृत रूप से आंकलन करने, स्त्री-पुरूषों की मौलिक समानता, धर्म और विज्ञान के बीच समरसता, सभी मानवीय प्रयत्नों के प्रति न्याय की एकरूपता, शिक्षा की महत्ता और जैसे-जैसे मानवजाति सामूहिक परिपक्वता की ओर अग्रसर होती है, संबंधों की गत्यात्मकता व्यक्तियों, समुदायों तथा संस्थाओं को एक साथ जोड़ती है ।

वेबसाइट के इस हिस्से का उद्देश्य केन्द्रीय बहाई मान्यताओं को कुछ विषयों के अन्तर्गत व्यवस्थित करना है – आत्मा का जीवन; ईश्वर और उसकी सृष्टि; अनिवार्य सम्बन्ध और विश्व शांति। इसके अतिरिक्त, बाब, बहाउल्लाह,अब्दुल-बहा और शोगी एफेंदी के जीवन के संक्षिप्त विवरण के साथ बहाउल्लाह और उनकी संविदा शीर्षक के अंतर्गत बहाई धर्म के उद्भव का एक सारांश भी उपलब्ध कराया गया है। यह बहाउल्लाह द्वारा आदविश्व न्याय मंदिर का परिचय भी देता है, जिसकी ओर आज सम्पूर्ण बहाई समुदाय बहाई शिक्षाओं को व्यवहार में उतारने के लिये मार्गदर्शन की कामना करता है।(बहाई धर्म क्या है)

बहाई मान्यताओं की बेहतर समझ पाने के लिये आप बहाई सन्दर्भ ग्रंथालय का पन्ना देख सकते हैं जहाँ आप बाब, बहाउल्लाह और अब्दुल-बहा के लेखों को पढ़ सकते हैं; साथ ही, शोगी एफेंदी द्वारा लिखी गई किताबें औरविश्व न्याय मंदिर के वक्तव्यों और पत्राचारों का संकलन भी पा सकते हैं।

भारत वर्ष में इस समुदाय का एक प्रतीक ‘कमल मंदिर’ है। यह उपासना मंदिर मानवता को संदेश देता है कि मानव भौतिक जगत में रहते हुए भी कमल के फूल की भाँति रहे। यह मंदिर बहाई धर्म के आधार पर बना हुआ है।

बहाई धर्म के संस्थापक बहाउल्लाह ने 18वीं-19वीं शताब्दी में ऐसे समय में जब मानवता की दशा सोचनीय थी, अपने राजसी परिवार के सुखों व ऐशो-आराम का त्याग कर अपने जीवन में घोर कठिनाइयाँ सहन कीं और मानवता नवजीवन में संचारित हो सके तथा एकता की राह में आगे बढ़ सके, इसके लिए प्रयास किए।

उपवास एक प्रतीक है। व्रत का अभिप्राय विषय-वासना से रहित होना है। दैहिक उपवास निवृत्ति का एक स्मृति चिन्ह मात्र है अर्थात जिस प्रकार एक मनुष्य अपने पेट की वासना को रोक सकता है उसी प्रकार उसे सभी इन्द्रियों को वासनाओं को रोकना चाहिए। परन्तु केवल भोजन न करने का आत्मा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। यह तो प्रतीक या स्मृति मात्र है।

व्रत करना शरीर व आत्मा के लिए बहुत गुणकारी सिद्घ होता है। साथ ही व्रत रखने के माध्यम से ही मानव आध्यात्मिक रूप से मजबूत बनता है। वैसे भी आध्यात्मिक पक्ष को मजबूत करने के विषय में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी भी मानव के आध्यात्मिक पक्ष पर जोर देने के लिए कहते थे

‘मानव आध्यात्मिक तथा पाश्विक दोनों ही प्रकार की प्रवृत्तियों का संघात है तथा मानव के विकास की क्रिया पाश्विक से आध्यात्मिक की ओर हुआ करती है।’ उपवास रखने का वास्तविक उद्देश्य तो यही है कि हम विषय वासनाओं से दूर अहंकार से मुक्त रहते हुए, प्रभु का स्मरण करें।

बाहरी तौर तरीकों से उभरकर उपवास रखें, अहम्‌ से दूर रहें तथा ईश्वर के प्रति कृतज्ञ रहें, द्वेष भावों से मुक्त हों, हर हाल में खुश रहें। सभी एकात्मकता की भावना से जुड़ें।

बहाई धर्म के संस्थापक बहाउल्लाह का 200वां जन्मोत्सव पर उनके जीवन की जर्नी दिखाने के लिए बहाई विश्व केंद्र द्वारा प्रोग्राम होटल सेंट्रल पार्क में किया गया। इसमें बहाउल्लाह के जीवन पर फिल्म “विश्व के पथ प्रदर्शक’ दिखाई गई। साथ ही गिटार की धुन पर कलाकारों ने उनके पसंदीदा धुन बजाई। इस म्यूजिकल ईवनिंग में अंत में सभी ने केक कटिंग सेरेमनी भी की। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. नेसॉन अोल्लियाई ने की। कार्यक्रम की शुरुआत में स्नेहा, मोना, सैफ, श्रेया और अरुण शर्मा ने स्पेशल पेयर की। इस अवसर पर सुनील ओल्लियाई, टीना ओल्लियाई और वरिष्ठ बहाई सदस्य तुबा मुंजे, अशोक राव जाधव सहित अन्य लोग मौजूद रहे।(बहाई धर्म क्या है)

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