अजमेर के राजघराने का इतिहास

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अजमेर का इतिहास

राजस्थान के प्रमुख जिलो में से अजमेर जिला है । इस शहर का नाम अजयमेरु के नाम पड़ा है । चोहान रजा अजयराज ने 1113 ईस्वी में स्थापित किया था । अजमेर से 10 किलोमीटर दूर अजयपाल का मंदिर स्थित है । ये अजमेर की प्राचीन धरोहर है जो आज भी अजमेर के स्थापक की याद दिलाती है। इतिहासकारो के अनुसार अजमेर पर 700 साल तक चोहान वंस का राज रहा है। दिल्ली में मुगलो के राज के बाद अजमेर के भाग्य का फेसला मुगलों के हाथ में आ गया । 12 वीं शताब्दी में मुईनुद्दीन चिश्ती ईरान से भारत आए थे। अकबर और जहाँगीर ने इस दरग़ाह के पास ही मस्जिदें बनवाई थीं। शाहजहाँ ने अजमेर को अपने अस्थायी निवास-स्थान के लिए चुना था। निकटवर्ती तारागढ़ की पहाड़ी पर भी उसने एक दुर्ग-प्रासाद का निर्माण करवाया था |

अजमेर के पर्यटक स्थल

अजमेर में बहुत सारे पर्यटक स्थल है। जो आज विश्व भर में अपनी पहचान बनाये हुए है। अजमेर राजस्थान के मुख्य पर्यटक स्थल में से एक है । अजमेर के मुख्य पर्यटक स्थल में दौलत बाग, आनासागर झील, अजमेर शरीफ -दरगाह शरीफ, अजमेर के करीब तीर्थराज पुष्कर , अढाई दिन का झोपडा, तारागढ़ किला , फ़ॉयसागर आदि मुख्य स्थल है। अजमेर के पर्यटक स्थल सेलानियो को पसंद आते है।

दौलत बाग अजमेर

दौलत बाग अजमेर का एक सुदर बगीचा है। जो आनासागर के नजदीक स्थित है । 16 सताब्दी में मुग़ल शासक जंहागीर ने आनासागर झील के पास बाग लगायाथा । बाद में मराठा सूबेदार बालराम 1805 इस्वी के पास शासन रहा था । जिन्होंने इस बाग़ को खुबसूरत बगीचे का रूप दिया। बाला सूबेदार ने राजा दोलत राव सिंधिया को जागिर में देना चाहते थे । और इसका उनके नाम पर दोलत बाग़ रखा गया । आज इस बाग़ को सुभाष उद्यान के नाम से जानते है । आजादी के बाद सरकार ने इसका नाम सुभास चन्द्र बॉस के नाम पर रखा । दौलत बाग खूबसरत गार्डन के साथ साथ पिकनिक स्पॉट है। शहर के बिच में स्थित होने की वजह से यहाँ लोग परिवार के साथ घुमने आते है ।

आनासागर झील

आनासागर झील राजस्थान के अजमेर छेत्र स्थित है। ये एक एक कृत्रिम झील है । आनासागर झील का निर्माण आणाजी चोहान ने करवाया था। आणा जी चोहान प्रथ्वीराज चोहान के पिताहम थे। आणाजी ने 1135 – 1150 इस्वी के बिच इस झील का निर्माण करवाया था । और इस झील को उनके नाम { आणा जी } से ही आनासागर झील की पहचान बन गई । आनासागर झील लगभग 13 किलोमीटर के छेत्र में फेली है। सन 1637 में मुग़ल शासक शाहजहाँ पुननिर्माण करवाया। शाहजहाँ इस झील के किनारे 1240 फिट लम्बा कटहरा लगवाया । छोटी छोटी पहाडियों के बिच स्थित ये झील बहुत सुंदर है । शहर के पास बनी आनासागर झील अजमेर का मुख्य पर्यटक स्थल है । संध्या के समय इस झील का नजारा बहुत ही सुहाना हो जाता है। आनासागर झील पर्यटको और फोटोग्राफ़र की पहली पसंद है।

दरगाह अजमेर शरीफ़

अजमेर शरीफ़ राजस्थान के अजमेर में स्थित प्रसिद्ध दरगाह है। अजमेर शरीफ दर्गगाह सूफी संत मोइंनुदीन चिश्ती का मकबरा है। ये बाहरवी शताब्दी से अजमेर में स्थित है। दरगाह अजमेर शरीफ का मुख्य द्वार को कहते है। इसका निर्माण सन 1911 में मीर उस्मान अली खा ने करवाया था।सन 2015 में ख्वाजा चिश्ती का 800 वा महाउस्तव मनाया गया है। आज अजमेर शरीफ की दरगाह दुनिया में सर्वधर्म सद्भाव की अद्‍भुत मिसाल है। कहते है अजमेर शरीफ की दरबार में किसी की झोली खाली नहीं रहती है। इनके दर पे गरीब अमीर, छोटे बड़े का भेद भाव नहीं होता है । कहते है 800 साल में जिसने भी अजमेर शरीफ की चोखट को चूमा है, उसकी झोली भरी है । महान सूफी संत ख्वाजा मोइनुदीन चिश्ती की दरगाह अजमेर शरीफ हर दर्म के लोगो को प्रेम का संदेश देती है

तीर्थ स्थल पुष्कर

पुष्कर शहर राजस्थान के अजमेर जिले में स्थित हैं। अजमेर से पुष्कर की दुरी 15 किलोमीटर है। पुष्कर को संस्कृति और ब्रह्मा का शहर भी कहा जाता हैं। ये हिन्दूओ के प्रमुख धर्म स्थल में एक है। ब्रह्मा जी का एक मात्र मंदिर पुष्कर में ही बना हुआ हैं। राजस्थान का पुष्कर शहर भारत के सबसे पुराने शहरों में से एक माना जाता है। यहां आयोजित होने वाले ऊंट मेला के लिए पुष्कर विश्व प्रसिद्ध हैं। जो हर वर्ष में नवम्बर के महीने में धूम-धाम से मनाया जाता हैं। राजस्थान का पुष्कर बहुत ही प्यारा पर्यटक स्थल है । हिन्दुओ की आस्था के अनुसार पुष्कर के जल में स्नान करने व डुबकी लगाने का विशेष ही महत्व माना जाता है। पुष्कर के बारे ज्यादा जाने |

दिन का झोंपड़ा अजमेर  

अढ़ाई दिन का झोंपड़ा अजमेर में स्थित एक प्राचीन इमारत है। यह ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती दरगाह अजमेर शरीफ से कुछ ही दूरी पर स्थित है। कहा जाता है की ये एतिहासिक संस्क्रत विधालय था। जो सरस्वती कंठाभरण महाविद्यालय के नाम से जाना जाना जाता था। इस के परसिर में भगवान् विष्णु का मंदिर भी था। जिसका निर्माण बीसलदेव चोहान ने सन 1153 में करवाया था। जिसको सन 1192 में मोहम्मद गोरी के सासन काल मस्जिद का रूप दे दिया गया । माना जाता है, इस काम को करने में ढाई दिन ही लगे थे। और इस लिए इस इमारत का नाम अढाई दिन का झोंपड़ा पडा। यहाँ भारतीय शेली अलंकृत स्तंभों का उपयोग किया गया है। इस मस्जिद में बासुरी की मीनारे निर्मित है। इस इमारत में बहुत से गुंबद और स्तंब है जिन पर खुबसूरत नक्काशियों का काम किया गया है इस इमारत अढाई दिन का झोंपड़ा के बारे बहुत सी बाते चर्चित है यहाँ हर साल अढाई दिन का मेला भी लगता है

तारागढ़ का किला अजमेर

तारागढ़ का किला राजस्थान के अरावली की पर्वत एक ऐतिहासिक धरोहर है। अजमेर के ढाई दिन का झोंपड़ा के पश्चिम में 700 फिट ऊँची पहाड़ी पर स्थित है। इस किले को पहले अजयभेरू के नाम से जाना जाता था 11 सदी में सम्राट अजय पाल ने करवाया था। इस किले का निर्माण विदेशी और मुगलों के आक्रमणों से सुरक्षा के लिहाज से करवाया गया था । मेवाड़ के राजा प्रथ्वी राज अपनी रानी तारा के लिए इस किले का पुननिर्माण करवाया था। जिसके कारण इस किले का नाम तारागढ़ का किला प्रशिद्ध हुआ। तारागढ़ का किला राजस्थान के मुख्य दर्शनीय स्थलों में एक है। ये अजमेर की ऐतिहासिक इमारत है । इस किले केपरसिर बने महल अपनी शिल्पकला एंव चित्रों के कारण अद्बुत लगते है। इन महलों में छत्रमहल, अनिरूद्ध महल, रतन महल, बादल महल और फुल महल प्रमुख है।तारागढ़ में प्रवेस के लिए तीन प्रवेस द्वार है। इनको लक्ष्मी पोल, फूटा दरवाजा और गागुडी का फाटक के नाम बोला जाता है।

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