जयपुर का फेमस किला

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जयपुर में आमेर किला :-
आमेर फोर्ट न सिर्फ जयपुर बल्कि पूरे राजस्थान के बेस्ट टूरिस्ट डेस्टिनेशन्स में से एक है। लाल बलुआ पत्थर और संगमरमर से बने इस किले में चार मंजिले हैं। हर मंजिल पर अलग आंगन हैं। माना जाता है कि इसका निर्माण असल में मीणाओं ने करवाया था जिस पर बाद में राजा मानसिंह प्रथम ने राज किया। यह किला कलात्मक हिंदू वास्तुशैली के लिए जाना जाता है।जयपुर का फेमस किला |
इस किले में दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास, शीश महल (दर्पण महल), जय मंदिर और सुख निवास शामिल हैं जहां किले में मौजूद पानी पर से होकर हवा जब अंदर आती है तो कृत्रिम रूप से ठंडा वातावरण बन जाता है। इस किले को देखने के लिए न सिर्फ देश बल्कि दुनियाभर के टूरिस्ट आते हैं।

जयपुर में आमेर किला का इतिहास :-
हिन्दू- राजपूताना वास्तुशैली से निर्मित आमेर का किला राजस्थान के सबसे बड़े किलों में से एक है, जो कि जयपुर से करीब 11 किलोमीटर की दूरी पर अरावली की पहाड़ियों पर स्थित है। वहीं अगर आमेर के इतिहास और इस किले के निर्माण पर नजर डालें तो यह पता चलता है कि आमेर, पहले सूर्यवंशी कछवाहों की राजधानी रह चुका है, जिसका निर्माण मीनास नामक जनजाति द्धारा करवाया गया था।जयपुर का फेमस किला |
इतिहासकारों की माने तो राजस्थान के इस सबसे बड़े आमेर के किले का निर्माण 16 वीं शताब्दी में राजा मानसिंह प्रथम द्धारा करवाया गया था। जिसके बाद करीब 150 सालों तक राजा मानसिंह के उत्तराधिकारियों और शासकों ने इस किले का विस्तार और नवीनीकरण का काम किया था।
इसके बाद सन् 1727 में सवाई जय सिंह द्धितीय शासन ने अपने शासनकाल के दौरान अपनी राजधानी आमेर से जयपुर को बना लिया, उस समय जयपुर की हाल ही में स्थापना की गई थी। आपको बता दें कि जयपुर से पहले कछवाहा ( मौर्य ) राजवंश की राजधानी आमेर ही था। भारत के सबसे प्रचीनतम किलों में से एक आमेर के किले को पहले कदीमी महल के नाम से जाना जाता था, इसके अंदिर शीला माता देवी का मशहूर मंदिर भी स्थित है, जिसका निर्माण राजा मान सिंह द्धारा करवाया गया था।जयपुर का फेमस किला |
कुछ लोगों का मानना है कि इस किले का नाम आमेर, भगवान शिव के नाम अंबिकेश्वर पर रखा गया था। जबकि, कुछ लोग आमेर किले के नाम को लेकर को ऐसा मानते हैं कि इस किले का नाम मां दुर्गा का नाम, अंबा से लिया गया है।जयपुर का फेमस किला |
राजस्थान के इस सबसे मशहूर और भव्य किले में अलग-अलग शासकों के समय में किले के अंदर कई ऐतिहासिक संरचनाओं को नष्ट भी किया गया तो कई नई शानदार इमारतों का निर्माण किया गया, लेकिन कई आपदाओं और बाधाओं को झेलते हुए भी आज यह आमेर का किला राजस्थान की शान को बढ़ा रहा है एवं गौरवपूर्ण एवं समृद्ध इतिहास की याद दिलवाता है।जयपुर का फेमस किला |

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जयपुर में आमेर के किले में कैसे पहुंचे :-
आमेर के किले को देखने के लिए आपको सबसे पहले तो जयपुर पहुंचना होगा। देशभर के कई शहरों से जयपुर तक की डायरेक्ट फ्लाइट्स हैं। एक बार जयपुर पहुंचे तो वहां से आप ऑटो, टैक्सी, कैब किसी के भी जरिए आमेर तक पहुंच सकते हैं।जयपुर का फेमस किला |

जयपुर में आमेर के किले में जाने का समय :-
यह किला जयपुर से करीब 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह सुबह 9 बजे पर्यटकों के लिए खोल दिया जाता है। शाम 6 बजे यह किला बंद हो जाता है। यहां पर हाथी की सवारी का भी सुबह 9:30 बजे से दोपहर 1:00 बजे तक मजा लिया जा सकता है। पूरे किले को अच्छे से घूमने के लिए आपको कम से कम दो घंटे का समय लगेगा लेकिन यह ट्रिप उतनी ही मजेदार भी होगी।जयपुर का फेमस किला |

जयपुर में आमेर के किले में एंट्री फीस :-
आमेर के किले को देखने के लिए आपको एंट्री फीस देनी होगी। भारतीय पर्यटकों के लिए यह फीस मात्र 50 रुपये है, वहीं विदेश टूरिस्ट के लिए एंट्री फीस 550 रुपये है। आमेर फोर्ट पर लाइट शो भी होता है इसके लिए अलग से फीस देनी होगी। अंग्रेजी में लाइट शो के लिए 200 और हिंदी शो के लिए 100 रुपये का भुगतान करना होगा। वहीं हाथी की सवारी के लिए आपको 1100 रुपये खर्च करने पड़ेंगे।

जयपुर में आमेर के किले की अनूठी वास्तुकला एवं संरचना :-
यह किला मुगल और हिन्दू वास्तुशैली का नायाब नमूना है। इस किले के अंदर प्राचीन वास्तुशैली एवं इतिहास के प्रसिद्द एवं साहसी राजपूत शासकों की तस्वीरें भी लगी हुई हैं। इस विशाल किले के अंदर बने ऐतिहासिक महल, उद्यान, जलाशय एवं सुंदर मंदिर इसकी खूबसूरती को दो गुना कर दते हैं।
राजस्थान के आमेर किले में पर्यटक इस किले के पूर्व में बने प्रवेश द्धार से अंदर घुसते हैं, यह द्धार किले का मुख्य द्धार है, जिसे सूरपोल या सूर्य द्धार कहा जाता है, इस द्धार का नाम पूर्व में स्थित सूर्य के उगने से लिया गया है। वहीं इस किले के अंदर दक्षिण में भी एक भव्य द्धार बना हुआ है, जो कि चन्द्रपोल द्धार के नाम से जाना जाता है। इस द्धार के ठीक सामने जलेब चौक बना हुआ है। जहां से सैलानी महल के प्रांगण में प्रवेश करते हैं।

जयपुर में आमेर किले के प्रमुख आर्कषण एवं दर्शनीय स्थल :-
दीवान-ए-आम
जयपुर की अरावली पहाड़ी पर स्थित इस विशाल दुर्ग के परिसर में बनी ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण संरचनाओं में दीवान-ए-आम बेहद खास है। इसका निर्माण राजा जय सिंह द्धारा किया गया था। दीवान-ए-आम, को आम जनता के लिए बनाया गया था, इस भव्य हॉल में सम्राटों द्धारा आम जनता की समस्याएं सुनी जाती थी और उसका निस्तारण किया जाता है।
इस खास ऐतिहासिक संरचना को शीशे के पच्चीकारी काम के साथ बेहद शानदार नक्काशीदार स्तंभों के साथ बनाया गया है। इस हॉल में बेहद आर्कषक 40 खंभे बने हुए हैं, जिसमें से कुछ संगमरमर के भी हैं, वहीं इस खंभों पर बेशकीमती स्टॉन्स लगे हुए हैं। इस खास ऐतिहासिक इमारत के पत्थरों पर अलग-अलग बेहद सुंदर चित्रों की मूर्तियां खुदी हुई हैं।

जयपुर में सुख निवास :-
राजस्थान के इस विशाल किले के अंदर बने दीवान-ए-आम के ठीक सामने बेहद सुंदर सुख निवास बना हुआ है, जो कि इस किले के प्रमुख आर्कषणों में से एक है। सुख निवास के दरवाजे चंदन के हैं, जिसे हाथी के दांतो से सजाया गया है।
इतिहासकारों की माने तो इस किले के परिसर में बने सुख निवास में सम्राटों अपनी रानियों के साथ अपना कीमती समय बिताते थे। इसी वजह से इसे सुख निवास के रुप में जाना जाता है। सुख निवास की अद्भुत कलाकारी और बेहतरीन नक्काशी पर्यटकों का ध्यान अपनी तरफ खींचती है।

जयपुर में जयगढ़ किला :-
जयगढ़ दुर्ग (राजस्थानी: जयगढ़ क़िला) भारत के पश्चिमी राज्य राजस्थान की राजधानी जयपुर में अरावली पर्वतमाला में चील का टीला (ईगल की पहाड़ी) पर आमेर दुर्ग एवं मावता झील के ऊपरी ओर बना किला है।[1][2इस दुर्ग का निर्माण मिर्जा राजा जयसिंह ने 1667 ई. में आमेर दुर्ग एवं महल परिसर की सुरक्षा हेतु करवाया था और इसका नाम उन्हीं के नाम पर रखा गया है।
जयगढ़ दुर्ग को जीत का किला भी कहा जाता है। यह दुर्ग आमेर में स्थित है, जयपुर शहर सीमा मे यह किला 1762 में बनकर तैयार हुआ था। यहाँ पर विश्व की सबसे बड़ी तोप रखी हुई है।

जयपुर में जयगढ़ किला का इतिहास :-
राजस्थान के शूरवीरों की धरती हमेशा से अपने शौर्य, साहस, बलिदान के लिए जानी जाती है।
यहां के हर शहर की अपनी एक खास और अलग पहचान है। राजस्थान की धरती पर अनेक अभेद किलो का निर्माण हुआ है। लेकिन यहां एक दुर्ग ऐसा भी है जिसने अपने में अब तक एक राज छुपा रखा है, जो अब तक सामने नहीं आया है।
इस दुर्ग का नाम है जयगढ़ किला ये एक रहस्यमयी किला है। जो जयपुर में है।जयपुर में मध्ययुगीन भारत के कुछ सैनिक इमारतों में से एक “जयगढ़ किला” भी है। महलों, बगीचों पानी टांकों, अन्य भंडार, शास्त्रागार, तोप बनाने का कारखाना, मंदिर जैसे कई जगह बनें होते है। इस किले में भी कुछ खास बना हुआ है। जयगढ़ किला के फैले हुए परकोट और प्रवेश द्वार इसकी कई कहानियां बयां करते है।
1975 में जब देश में इंदिरा गांधी ने आपातकालीन लगाया उस समय जयगढ़ किला छिपे खजाने की भी तलाश की गई। 10 जून 1976 को शुरु हुई तलाश नवंबर, 1976 में खत्म हुई।
हार कर सरकार ने घोषणा भी कर दी की किले में कोई खजाना नहीं है। लेकिन सरकार की इस बात पर लोग संदेह जताने लगे। लोगों को ये झूठ लग रहा था। इसकी सबसे बड़ी वजह है कि जब सेना ने अपना अभियान समाप्त किया तो उसके बाद एक दिन के लिए दिल्ली-जयपुर हाईवे आम लोगों के लिए बंद कर दिया गया था।
ऐसा लोगों का कहना है कि इस दौरान जयगढ़ किले में मिले खजाने को ट्रकों में भरकर दिल्ली लाया गया और सरकार इसे जनता की नजरों से छिपाकर रखना चाहती है। हाई-वे बंद होने की पुष्टि कई विश्वसनीय सूत्रों से मिला लेकिन सरकार ने कभी हांमी नहीं भरी। अनुमान है कि 128 करोड़ रुपए की दौलत होगी। 128 करोड़ के खजाने की मांग
भारत ही नहीं इस खजाने के पीछे पाक भी अपनी नजरें गढ़ाएं बैठा है। जो लगातार अपने हिस्से की मांग करता रहता है। 11 अगस्त, 1976 को भुट्टो ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को एक खत लिखा, जिसमें पाकिस्तान ने खुद को जयगढ़ की दौलत का हकदार मानते हुए लिखा कि “विभाजन के समय ऐसी किसी दौलत की अविभाजित भारत को जानकारी नहीं थी। विभाजन के पूर्व के समझौते के अनुसार जयगढ़ की दौलत पर पाकिस्तान का हिस्सा बनता है।
इंदिरा गांधी ने भुट्टो के पत्र का जवाब ही नहीं दिया। इसके बाद आयकर, भू-सर्वेक्षण विभाग, केन्द्रीय सार्वजनिक निर्माण विभाग और अन्य विभिन्न विभागों को जब खोज में कोई सफलता नहीं मिली तो इंदिरा गांधी ने खोज का काम सेना को सौंप दिया, लेकिन जब सेना को भी किसी तरह का खजाना नहीं मिला तो इंदिरा गांधी ने 31 दिसम्बर 1976 को भुट्टो को लिखे खत के जवाब में कहा कि,विशेषज्ञों की राय है कि पाकिस्तान का इस खजाने में कोई दावा ही नहीं बनता। जयपुर शहर के विकास में लगाया कुछ इतिहासकारों का मानना ये भी है कि जयगढ़ किले का खजाना था, लेकिन राजा जयसिंह ने उसी खजाने से जयपुर शहर का विकास किया। लेकिन अब सवाल ये उठता है कि यदि सरकार को जयगढ़ किला का खजाना नहीं मिला तो आखिर वो खजान लेकिन जवाब किसी के पास नहीं है। जयगढ़ किला और उसका खजाना अब देखते है कि इस खजाने का रहस्य कब तक पहेली बन इन किलों की दीवारों से टकराता रहेगा। या कभी कोई इस रहस्य की गूंथी को सुलझा पाएगा।

जयपुर में नाहरगढ़ का किला :-
नाहरगढ़ का किला जयपुर को घेरे हुए अरावली पर्वतमाला के ऊपर बना हुआ है। आरावली की पर्वत श्रृंखला के छोर पर आमेर की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इस किले को सवाई राजा जयसिंह द्वितीय ने सन 1734 में बनवाया था। यहाँ एक किंवदंती है कि कोई एक नाहर सिंह नामके राजपूत की प्रेतात्मा वहां भटका करती थी। किले के निर्माण में व्यावधान भी उपस्थित किया करती थी। अतः तांत्रिकों से सलाह ली गयी और उस किले को उस प्रेतात्मा के नाम पर नाहरगढ़ रखने से प्रेतबाधा दूर हो गयी थी।
19 वीं शताब्दी में सवाई राम सिंह और सवाई माधो सिंह के द्वारा भी किले के अन्दर भवनों का निर्माण कराया गया था जिनकी हालत ठीक ठाक है जब कि पुराने निर्माण जीर्ण शीर्ण हो चले हैं। यहाँ के राजा सवाई राम सिंह के नौ रानियों के लिए अलग अलग आवास खंड बनवाए गए हैं जो सबसे सुन्दर भी हैं। इनमे शौच आदि के लिए आधुनिक सुविधाओं की व्यवस्था की गयी थी। किले के पश्चिम भाग में “पड़ाव” नामका एक रेस्तरां भी है जहाँ खान पान की पूरी व्यवस्र्था है। यहाँ से सूर्यास्त बहुत ही सुन्दर दिखता है।

नाहरगढ़ का किला का इतिहास :-
नाहरगढ़ का किला जयपुर को घेरे हुए अरावली पर्वतमाला के ऊपर बना हुआ है। आरावली की पर्वत श्रृंखला के छोर पर आमेर की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इस किले को सवाई राजा जयसिंह द्वितीय ने सन 1734 में बनवाया था। यहाँ एक किंवदंती है कि कोई एक नाहर सिंह नामके राजपूत की प्रेतात्मा वहां भटका करती थी। किले के निर्माण में व्यावधान भी उपस्थित किया करती थी। तांत्रिकों से सलाह ली गयी और उस किले को उस प्रेतात्मा के नाम पर नाहरगढ़ रखने से प्रेतबाधा दूर हो गयी थी।
19 वीं शताब्दी में सवाई राम सिंह और सवाई माधो सिंह के द्वारा भी किले के अन्दर भवनों का निर्माण कराया गया था जिनकी हालत ठीक ठाक है जब कि पुराने निर्माण जीर्ण शीर्ण हो चले हैं। यहाँ के राजा सवाई राम सिंह के नौ रानियों के लिए अलग अलग आवास खंड बनवाए गए हैं जो सबसे सुन्दर भी हैं। इनमे शौच आदि के लिए आधुनिक सुविधाओं की व्यवस्था की गयी थी। किले के पश्चिम भाग में “पड़ाव” नामका एक रेस्तरां भी है जहाँ खान पान की पूरी व्यवस्र्था है। यहाँ से सूर्यास्त बहुत ही सुन्दर दिखता है।

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