कलाल जाति के गोत्र

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भगवान परशुराम जी ने 21 बार क्षत्रियों का संहार किया। उस समय हैहय वंश के पराक्रमी राजा सहस्रबाहु अर्जुन ने वीरता के साथ परशुराम जी से युद्ध किया। सहस्रबाहु को भगवान शिव‌ से कई वरदान‌ प्राप्त थे। जब सहस्रबाहु रणभुमि में अपनी एक हजार भुजाओं में शस्त्र लेकर शत्रुओं का संहार करते तो तीनों लोक थर-थर काँप उठते। जब रणभूमि में भगवान परशुराम ने सहस्रबाहु से अंतिम युद्ध किया तो भगवान् शिव की आज्ञा से भगवान् सहस्त्रबाहु शिवलिंग में समाहित हो गए। इससे भयभीत होकर उनके वंशज जंगलों की ओर भाग गए। कई वर्षों तक जंगलों में रहने के बाद जब वे बाहर आए तो उनके नाखून और काले बाल बहुत बढ़ गए थे और वे कलचुरि कहलाए।

कलचुरि राजवंश ने त्रिपुरी, जबलपुर आदि अनेक दक्षिण भारतीय क्षेत्रों में अपनी रियासते स्थापित की। कलचुरियों को कला संरक्षक होने के कारण कल्यापाल नाम से भी जाना गया। इस महान राजवंश ने 12 वीं शताब्दी तक भारत के कई भागों में शासन किया किन्तु 12 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में इस महान राजवंश का पतन आरम्भ हो गया और कलचुरि या कल्यपाल कुल के वंशज इधर उधर जाकर बसने लगे। अधिकांश वंशज अहलू गांव (पंजाब) में जाकर बस गए और इनका नाम कलचुरि या कल्यापाल से अपभ्रंश होकर कलाल हो गया।

इसके अलावा एक मत यह भी है कि हैहय ब्राह्मण युद्ध के समय कुछ हैहय क्षत्रिय काबुल गजनी की ओर चले गए थे जो कालांतर में पंजाब आए और महान् अहलूवालिया कौम के नाम से विख्यात हुए। इन्हीं में से जागीरदार बदर सिंह कलाल के पुत्र जस्सा सिंह कलाल ने खालसा राज्य की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन्होंने ही नादिरशाह और अहमदशाह अब्दाली जैसे लुटेरे आक्रमणकारियों से कई बार युद्ध किए। अब्दाली को पराजित कर 2200 हिंदू कन्याओं को उसकी कैद से मुक्त करवाया और 1762 ई. में कपूरथला रियासत की नींव रखी। अहलू गांव से होने के कारण यह राजवंश “अहलुवालिया राजवंश” के नाम से जाना गया। तब से लेकर 1947 तक इस राजवंश ने कपूरथला रियासत पर राज किया। 1765 में बाबा जस्सा सिंह अहलूवालिया के जयपुर कूच के समय जो अहलूवालिया सिपाही राजपुताने में स्थानांतरित हुए वो कालांतर में हिंदू धर्म में चले गए और राजपूत जागीरदारों के छोटे गढ़ के दुर्ग- रक्षक नियुक्त हो गए। ये अपने हाथ में चौब नामक चांदी या सोने से बनी विशेष छड़ी धारण करते थे। इसलिए इन्हे ” अहलूवालिया चोपदार” कहा जाता है।

कलवार शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई –
कलवार शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के शब्द “कल्यापाल’ से हुई है, इसका अर्थ होता है- “शराब आसवक’.इस समाज के लोग “कलार” शब्द का एक अन्य अर्थ भी बताते हैं. उनके अनुसार, कलार शब्द का शाब्दिक अर्थ है- “मृत्यु का शत्रु, या काल का भी काल”. हैहय वंशियों को बाद में “काल का काल” की उपाधि दी जानें लगी जो कालांतर में शाब्दिक रूप में बिगड़ते हुए काल का काल से “कल्लाल” हुई और फिर “कलाल” और अब “कलवार” हो गई.

कलवार जाति का इतिहास –
इस जाति के लोग हैहय वंशी क्षत्रिय होने का दावा करते हैं. उनका कहना है कि राजपाट नष्ट हो जाने के कारण, आपातकाल में इन्हें जीवन यापन के लिए व्यापार का सहारा लेना पड़ा. इसीलिए कालांतर में यह वैश्य कहलाने लगे. लेकिन यह धारणा गलत है कि कलवार आदिकाल से शराब बनाने और बिक्री के कार्यों से जुड़े हुए थे.चूंकि शराब बनाने और बेचने के पुश्तैनी व्यवसाय को तुच्छ और अपमानजनक माना जाता था, इसीलिए कलवारों को दक्षिण एशिया के जाति व्यवस्था के पदानुक्रम में नीचे समझा जाता था. इसीलिए, बीसवीं शताब्दी के शुरुआत के आसपास, संस्कृतिकरण प्रक्रिया के माध्यम से सामाजिक स्थिति को सुधारने के उद्देश्य से, यह अपने पारंपरिक व्यवसाय को छोड़कर अन्य व्यवसायों को अपनाने लगे. इनकी सामाजिक स्थिति विशेष रुप से तब बदली जब 18वीं शताब्दी में कलवार प्रमुख जस्सा सिंह राजनीतिक सत्ता में आए. उन्होंने अपने पैतृक गांव के नाम पर खुद को अहलूवालिया के रूप में पेश किया, और कपूरथला राज्य के शासक वंश की स्थापना की. जस्सा सिंह के उदय के बाद, अन्य सिख कलालों ने भी अहलूवालिया को अपनी जाति के नाम के रूप में अपना लिया और अपना पारंपरिक व्यवसाय छोड़ना शुरू कर दिया. बीसवीं शताब्दी के शुरुआत तक, अधिकांश कलालो अपने पारंपरिक व्यवसाय को छोड़ दिया था. इस समय तक, अहलूवालिया ने अपनी सामाजिक स्थिति को और बढ़ाने के लिए खत्री या राजपूत मूल का दावा करना शुरू कर दिया. इलाहाबाद के कलवार 1890 दशक से खुद को क्षत्रिय होने का दावा कर रहे हैं. ब्रिटिश शासन के दौरान, कलालों ने पारंपरिक व्यवसाय को त्याग कर, व्यापार, कृषि, सैनी सेवा (विशेष रूप से आहलूवालिया), सरकारी सेवा और वकालत आदि करने लगे

नके शराब बनाने और विक्रय करने का वंशानुगत व्यवसाय तुच्छ माना जाता है, इसके अतिरिक्त दक्षिण एशिया की जाति व्यवस्था में कलाल को निम्न वर्ग में माना जाता है। यह स्थिति तब बदल गयी जब कलाल प्रमुख जस्सा सिंह की 18 वीं सदी में राजनीतिक शक्ति बढ़ी। जस्सा सिंह ने अपनी पहचान को अहलुवालिया के रूप में ही रखा जो उनके पैदाइसी गाँव का नाम है। इसी नाम से उन्होंने कपूरथला राज्य की स्थापना की |

जस्सा सिंह से प्रेरित होकर अन्य सिख कलालों ने अहलुवालिया उपनाम को स्वीकार कर लिया और अपने पारम्परिक व्यवसाय को छोड़ दिया। शराब के निर्माण और विक्रय पर ब्रितानी प्रशासनिक उपनिवेश द्वारा लगाये गये नियमों ने इस प्रक्रिया को और तेजी से कम कर दिया और 20वीं सदी की शुरुआत में अधिकतर कलालों ने पुस्तैनी व्यवसाय को छोड़ दिया। इसी समय से अहलुवालिया लोगों ने अपनी स्थिति को खत्री अथवा राजपूत मूल के रूप में प्रस्तुत करना आरम्भ कर दिया।

कपूरथला रियासत का अहलुवालिया(कलाल) राजवंश –
कपूरथला रियासत का राजघराना स्वयं को कलचूरि क्षत्रियों का वंशज मानता है जिनके पूर्वज कालान्तर में गुरु गोविन्द सिंह के शिष्य बन गए थे। महाराजा जस्सा सिंह कलाल ने खालसा राज्य की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन्होंने ही नादिरशाह और अहमदशाह अब्दाली जैसे लुटेरे आक्रमणकारियों से कई बार युद्ध किए। अब्दाली को पराजित कर 2200 हिंदू कन्याओं को उसकी कैद से मुक्त करवाया और 1762 ई. में कपूरथला रियासत की नींव रखी। अहलू गांव से होने के कारण यह राजवंश “अहलूवालिया राजवंश” के नाम से जाना गया। तब से लेकर 1947 तक इस राजवंश ने कपूरथला रियासत पर राज किया। ब्रितानी काल में भारत की एक देशी रियासत थी जिसकी राजधानी कपूरथला था। इसका शासन पंजाब के आहलूवालिया शासकों के द्वारा होता था। इसका क्षेत्रफल 352 वर्ग मील (910 कि॰मी2) था। सन 1901 की जनगणना के अनुसार इस राज्य की जनसंख्या 314,341 थी और इसके अन्तर्गत 167 गाँव थे। सन 1930 में यह राज्य पंजाब स्टेट एजेन्सी का भाग बना तथा भारत की स्वतन्त्रता के उपरान्त सन 1947 में भारत में विलीन हो गया।

कपूरथला रियासत के शासक –
अहलूवालिया (कलाल) राजाओं का राज्य चिह्न
> सुल्तान-उल-कौम महाराजा जस्सा सिंह अहलुवालिया (1718-1783)
> महाराजा बाघ सिंह अहलुवालिया (1783-1801)
> महाराजा फतेह सिंह अहलुवालिया (1801-1837)
> महाराजा निहाल सिंह अहलुवालिया (1837-1852)
> महाराजा रणधीर सिंह अहलुवालिया (1852-1870)
> महाराजा खड़ग सिंह अहलुवालिया (1870-1877)
> महाराजा जगजीत सिंह अहलुवालिया (1877-1949)
> महाराजा जस्सा सिंह अहलूूूूवालिया (कलाल)
> नवाब जस्सा सिंह ने 1762 में रखी कपूरथला रियासत की नींव

Conclusion:- दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हमने कलाल जाति के गोत्र के बारे में विस्तार से जानकारी दी है। इसलिए हम उम्मीद करते हैं, कि आपको आज का यह आर्टिकल आवश्यक पसंद आया होगा, और आज के इस आर्टिकल से आपको अवश्य कुछ मदद मिली होगी। इस आर्टिकल के बारे में आपकी कोई भी राय है, तो आप हमें नीचे कमेंट करके जरूर बताएं।

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