मकर संक्रांति क्यों मनाते है

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मकर संक्रांति क्यों मनाते है

देशभर में मकर संक्रांति के पर्व का व‍िशेष महत्‍व है. इस त्योहार को हर साल जनवरी के महीने में धूमधाम से मनाया जाता है इस द‍िन सूर्य उत्तरायण होता है यानी कि पृथ्‍वी का उत्तरी गोलार्द्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है मान्यता है कि इस द‍िन सूर्य मकर राश‍ि में प्रवेश करता है देश के व‍िभिन्‍न राज्‍यों में इस पर्व को अलग-अलग नामों से जाना जाता है उत्तर प्रदेश में इसे खिचड़ी उत्तराखंड में घुघुतिया (Ghughutiya) या काले कौवा (Kale Kauva), असम में बिहू (Bihu) और दक्षिण भारत में इसे पोंगल (Pongal) के रूप में मनाया जाता है हालांकि प्रत्‍येक राज्‍य में इसे मनाने का तरीका अलग होता है, लेकिन सब जगह सूर्य की उपासना जरूर की जाती है इस साल मकर संक्रांति 14 जनवरी को है |

भारत देश में हर साल 2000 से अधिक त्यौहार मनाये जाते है. इन सभी त्योहारों के पीछे महज सिर्फ परंपरा या रूढि बातें नहीं होती है, हर एक त्यौहार के पीछे छुपी होती है ज्ञान, विज्ञान, कुदरत, स्वास्थ्य और आयुर्वेद से जुड़ी तमाम बातें. हर साल 14 या 15 जनवरी को हिन्दूओं द्वारा मनाये जाने वाला त्यौहार मकर संक्रांति को ही लें, तो यह पौष मास में सूर्य से मकर राशि में प्रवेश करने पर मनाया जाता है. वैसे तो संक्राति साल में 12 बार हर राशि में आती है, लेकिन मकर और कर्क राशि में इसके प्रवेश पर विशेष महत्व है. जिसके साथ बढती गति के चलते मकर में सूर्य के प्रवेश से दिन बड़ा तो रात छोटी हो जाती है. जबकि कर्क में सूर्य के प्रवेश से रात बड़ी और दिन छोटा हो जाता है |

मकर संक्रांति 2021 के दिन शुभ मुहूर्त –
मकर संक्रांति प्रतिवर्ष 14 या 15 जनवरी को मनाया जाता है. इस साल मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाई जाएगी
पुण्य काल के लिए शुभ मुहूर्त 07:14 बजे से 12:36 बजे के बीच है, जोकि कुल 5 घंटे और 21 मिनिट है
संक्रांति 14 जनवरी को 20:05 पर शुरू है
इसके अलावा महा पूण्य काल के शुभ मुहूर्त 07:14 बजे से 09:01 बजे के बीच होता है जोकि कुल 1 घंटे 47 मिनिट के लिए है

मकर संक्रांति क्या है –
ज्योतिष के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है| सूर्य के एक राशि से दूसरी में प्रवेश करने को संक्रांति कहते हैं| मकर संक्रांति में ‘मकर’ शब्द मकर राशि को इंगित करता है, जबकि ‘संक्रांति’ का अर्थ संक्रमण अर्थात प्रवेश करना है| चूंकि सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं, इसलिए इस समय को ‘मकर संक्रांति’ कहा जाता है| मकर संक्रान्ति पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायण भी कहा जाता है| इस दिन गंगा स्नान कर व्रत, कथा, दान और भगवान सूर्यदेव की उपासना करने का विशेष महत्त्व है|

जब सूर्यदेव अपने पुत्र शनि की राशि मकर में प्रवेश करते है, तब उसे ‘मकर संक्रांति’ कहा जाता है। जब सूर्य की गति उत्तरायण होती है, तो कहा जाता है कि उस समय से सूर्य की किरणों से अमृत की बरसात होने लगती है। इस वर्ष इसे 15 जनवरी को मनाया जाएगा। मान्यता है, कि इस दिन गंगा-यमुना-सरस्वती के संगम प्रयाग में सभी देवी-देवता अपना स्वरूप बदलकर स्नान करने आते है। इसलिए इस अवसर पर गंगा स्नान व दान-पुण्य का विशेष महत्व है। इस त्यौहार का निर्धारण सूर्य की गति के अनुसार होता है और सूर्य के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करने के कारण यह पर्व ‘मकर संक्रांति’ व ‘देवदान पर्व’ के नाम से जाना जाता है।

मकर संक्रांति को ‘ख‍िचड़ी’ का पर्व क्यों कहा जाता है –
उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में इस त्योहार को ‘ख‍िचड़ी’ (Khichdi) कहा जाता है, क्योंकि इस दिन खिचड़ी बनाने, खाने और दान करने खास होता है

मकर संक्रान्ति का ऐतिहासिक महत्व –
मकर संक्रान्ति के अवसर पर भारत के विभिन्न भागों में, और विशेषकर गुजरात में, पतंग उड़ाने की प्रथा है ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं चूँकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है. महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति का ही चयन किया था मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं

मकर संक्रांति क्यों मनाते है –
मकर संक्रांति का पर्व पौष मास के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है। इस दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। इसी दिन से सूर्य उत्तरायण (उत्तर की और चलना) हो जाता है। शास्त्रों में उत्तारायण की अवधि को देवी-देवताओं का दिन और दक्षिणायन को देवताओं की रात के रूप में माना गया है। मकर संक्रांति के दिन स्नान, दान, तप, जप, श्राद्ध तथा अनुष्ठान आदि का अत्यधिक महत्व है। शास्त्रों के अनुसार इस अवसर पर किया गया दान सौ गुना होकर प्राप्त होता है। मकर संक्रांति के दिन घी और कंबल के दान का भी विशेष महत्व है। इस त्योहार का संबंध केवल धर्मिक ही नहीं बल्कि इसका संबंध ऋतु परिवर्तन और कृषि से है। इस दिन से दिन एंव रात दोनों बराबर होते है।

मकर संक्रांति की कथा व कहानी –
हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार इस विशेष दिन पर भगवान् सूर्य अपने पुत्र भगवान् शनि के पास जाते है, उस समय भगवान् शनि मकर राशि का प्रतिनिधित्व कर रहे होते है. पिता और पुत्र के बीच स्वस्थ सम्बन्धों को मनाने के लिए, मतभेदों के बावजूद, मकर संक्रांति को महत्व दिया गया. ऐसा माना जाता है कि इस विशेष दिन पर जब कोई पिता अपने पुत्र से मिलने जाते है, तो उनके संघर्ष हल हो जाते हैं और सकारात्मकता खुशी और समृधि के साथ साझा हो जाती है. इसके अलावा इस विशेष दिन की एक कथा और है, जो भीष्म पितामह के जीवन से जुडी हुई है, जिन्हें यह वरदान मिला था, कि उन्हें अपनी इच्छा से मृत्यु प्राप्त होगी. जब वे बाणों की सज्जा पर लेटे हुए थे, तब वे उत्तरायण के दिन की प्रतीक्षा कर रहे थे और उन्होंने इस दिन अपनी आँखें बंद की और इस तरह उन्हें इस विशेष दिन पर मोक्ष की प्राप्ति

मकर संक्रांति पूजा से होने वाले लाभ –
1. इससे चेतना और ब्रह्मांडीय बुद्धि कई स्तरों तक बढ़ जाती है, इसलिए यह पूजा करते हुए आप उच्च चेतना के लाभ प्राप्त कर सकते हैं
2. अध्यात्मिक भावना शरीर को बढ़ाती है और उसे शुद्ध करती है
3. इस अवधि के दौरान किये गए कामों में सफल परिणाम प्राप्त होते है
4. समाज में धर्म और आध्यात्मिकता को फ़ैलाने का यह धार्मिक समय होता है

मकर संक्रांति का त्यौहार क्यों मनाया जाता है महत्व –
मकर संक्रांति किसानों के लिए बहुत अधिक महत्वपूर्ण होती है, इसी दिन सभी किसान अपनी फसल काटते है मकर संक्रांति भारत का सिर्फ एक ऐसा त्यौहार है जो हर साल 14 या 15 जनवरी को ही मनाया जाता है यह वह दिन होता है जब सूर्य उत्तर की ओर बढ़ता है हिन्दूओं के लिए सूर्य एक रोशनी, ताकत और ज्ञान का प्रतीक होता है मकर संक्रांति त्यौहार सभी को अँधेरे से रोशनी की तरफ बढ़ने की प्रेरणा देता है एक नए तरीके से काम शुरू करने का प्रतीक है मकर संक्रांति के दिन, सूर्योदय से सूर्यास्त तक पर्यावरण अधिक चैतन्य रहता है, यानि पर्यावरण में दिव्य जागरूकता होती है, इसलिए जो लोग आध्यात्मिक अभ्यास कर रहे है, वे इस चैतन्य का लाभ उठा सकते है

मकर संक्रांति पूजा विधि –
जो लोग इस विशेष दिन को मानते है, वे अपने घरों में मकर संक्रांति की पूजा करते है. इस दिन के लिए पूजा विधि को नीचे दर्शाया गया है-
1. सबसे पहले पूजा शुरू करने से पहले पूण्य काल मुहूर्त और महा पुण्य काल मुहूर्त निकाल ले, और अपने पूजा करने के स्थान को साफ़ और शुद्ध कर ले. वैसे यह पूजा भगवान् सूर्य के लिए की जाती है इसलिए यह पूजा उन्हें समर्पित करते है.
इसके बाद एक थाली में 4 काली और 4 सफेद तीली के लड्डू रखे जाते हैं. साथ ही कुछ पैसे भी थाली में रखते हैं
2. इसके बाद थाली में अगली सामग्री चावल का आटा और हल्दी का मिश्रण, सुपारी, पान के पत्ते, शुद्ध जाल, फूल और अगरबत्ती रखी जाती है
3. इसके बाद भगवान के प्रसाद के लिए एक प्लेट में काली तीली और सफेद तीली के लड्डू, 4. कुछ पैसे और मिठाई रख कर भगवान को चढाया जाता है
4. यह प्रसाद भगवान् सूर्य को चढ़ाने के बाद उनकी आरती की जाती है
5. पूजा के दौरान महिलाएं अपने सिर को ढक कर रखती हैं
6. इसके बाद सूर्य मंत्र ‘ॐ हरं ह्रीं ह्रौं सह सूर्याय नमः’ का कम से कम 21 या 108 बार उच्चारण किया जाता है
7. कुछ भक्त इस दिन पूजा के दौरान 12 मुखी रुद्राक्ष भी पहनते हैं, या पहनना शुरू करते है. इस दिन रूबी जेमस्टोन भी फना जाता है |

आर्युवेद में मकर संक्रांति का महत्व –
आयुर्वेद के अनुसार इस मौसम में चलने वाली सर्द हवाओं से लोगो को अनेक प्रकार की बीमारिया हो जाती है, इसलिए प्रसाद के रूप में खिचड़ी, तिल और गुड़ से बनी हुई मिठाई खाने का प्रचलन है। तिल और गुड़ से बनी हुई मिठाई खाने से शरीर के अंदर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ता है। इन सभी चीजों के सेवन से शरीर के अंदर गर्मी बढ़ती है। तिल में कॉपर, मैग्नीशियम, ट्राइयोफान, आयरन, मैग्नीज, कैल्शियम, फास्फोरस, जिंक, विटामिन बी 1 और रेशे प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। एक चौथाई कप या 36 ग्राम तिल के बीज से 206 कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है। यह गठिया रोग के लिए अत्यंत लाभकारी है|

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