मेवाड़ राज्य का संस्थापक कौन था

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मेवाड़ राज्य का संस्थापक कौन था

राजस्थान का मेवाड़ राज्य पराक्रमी गहलौतों की भूमि रहा है, जिनका अपना एक इतिहास है। इनके रीति-रिवाज तथा इतिहास का यह स्वर्णिम ख़ज़ाना अपनी मातृभूमि, धर्म तथा संस्कृति व रक्षा के लिए किये गये गहलौतों के पराक्रम की याद दिलाता है। स्वाभाविक रूप से यह इस धरती की ख़ास विशेषताओं, लोगों की जीवन पद्धति तथा उनके आर्थिक तथा सामाजिक दशा से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होता रहा है। शक्ति व समृद्धि के प्रारंभिक दिनों में मेवाड़ सीमाएँ उत्तर-पूर्व के तरफ़ बयाना, दक्षिण में रेवाकंठ तथा मणिकंठ, पश्चिम में पालनपुर तथा दक्षिण-पश्चिम में मालवा को छूती थी।

महाराणा प्रताप –
महाराणा प्रताप सिंह (ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया रविवार विक्रम संवत १५९७ तदानुसार ९ मई १५४०–१९ जनवरी १५९७) उदयपुर, मेवाड में सिसोदिया राजवंश के राजा थे। उनका नाम इतिहास में वीरता और दृढ प्रण के लिये अमर है। उन्होंने कई सालों तक मुगल सम्राट अकबर के साथ संघर्ष किया। महाराणा प्रताप सिंह ने मुगलों को कईं बार युद्ध में भी हराया। उनका जन्म राजस्थान के कुम्भलगढ़ में महाराणा उदयसिंह एवं माता राणी जयवंत कँवर के घर हुआ था। १५७६ के हल्दीघाटी युद्ध में २०,००० राजपूतों को साथ लेकर राणा प्रताप ने मुगल सरदार राजा मानसिंह के ८०,००० की सेना का सामना किया। शत्रु सेना से घिर चुके महाराणा प्रताप को झाला मानसिंह ने आपने प्राण दे कर बचाया ओर महाराणा को युद्ध भूमि छोड़ने के लिए बोला। शक्ति सिंह ने आपना अश्व दे कर महाराणा को बचाया। प्रिय अश्व चेतक की भी मृत्यु हुई। यह युद्ध तो केवल एक दिन चला परन्तु इसमें १७,००० लोग मारे गए। मेवाड़ को जीतने के लिये अकबर ने सभी प्रयास किये। महाराणा की हालत दिन-प्रतिदिन चिंताजनक होती चली गई । २५,००० राजपूतों को १२ साल तक चले उतना अनुदान देकर भामा शाह भी अमर हुआ।

महाराणा सांगा –
चित्तौड़गढ का दुर्ग महाराणा संग्राम सिंह या राणा सांगा (१२ अप्रैल १४८४ – १७ मार्च १५२७) मेवाड़ के राजपूत शासक थे। उन्होने २४ मई १५०९ से १५२७ तक राज्य किया। संग्राम सिंह, राणा रायमल के पुत्र थे। वे शिशोदिया वंश के राजपूत थे। मुगलों के साथ उनकी खानवा के युद्ध में पराजय हुई। उसके थोड़े दिनों के बाद उनकी मृत्यु हो गयी।

महाराणा कुम्भा –
महाराणा कुम्भा महल महराणा कुम्भा या महाराणा कुम्भकर्ण (मृत्यु १४६८ ई.) सन १४३३ से १४६८ तक मेवाड़ के राजा थे। महाराणा कुंभकर्ण का भारत के राजाओं में बहुत ऊँचा स्थान है। उनसे पूर्व राजपूत केवल अपनी स्वतंत्रता की जहाँ-तहाँ रक्षा कर सके थे। कुंभकर्ण ने मुसलमानों को अपने-अपने स्थानों पर हराकर राजपूती राजनीति को एक नया रूप दिया। इतिहास में ये ‘राणा कुंभा’ के नाम से अधिक प्रसिद्ध हैं। महाराणा कुंभा राजस्थान के शासकों में सर्वश्रेष्ठ थे। मेवाड़ के आसपास जो उद्धत राज्य थे, उन पर उन्होंने अपना आधिपत्य स्थापित किया। 35 वर्ष की अल्पायु में उनके द्वारा बनवाए गए बत्तीस दुर्गों में चित्तौड़गढ़, कुंभलगढ़, अचलगढ़ जहां सशक्त स्थापत्य में शीर्षस्थ हैं, वहीं इन पर्वत-दुर्गों में चमत्कृत करने वाले देवालय भी हैं। उनकी विजयों का गुणगान करता विश्वविख्यात विजय स्तंभ भारत की अमूल्य धरोहर है। कुंभा का इतिहास केवल युद्धों में विजय तक सीमित नहीं थी बल्कि उनकी शक्ति और संगठन क्षमता के साथ-साथ उनकी रचनात्मकता भी आश्चर्यजनक थी। ‘संगीत राज’ उनकी महान रचना है जिसे साहित्य का कीर्ति स्तंभ माना जाता है।

जवान सिंह –
मेवाड, राजस्थान के शिशोदिया राजवंश के शासक थे। श्रेणी:मेवाड़ के शासक

अमर सिंह द्वितीय –
मेवाड, राजस्थान के शिशोदिया राजवंश के शासक थे। श्रेणी:मेवाड़ के शासक

उदयपुर
उदयपुर राजस्थान का एक नगर एवं पर्यटन स्थल है जो अपने इतिहास, संस्कृति एवम् अपने अाकर्षक स्थलों के लिये प्रसिद्ध है। इसे सन् 1559 में महाराणा उदय सिंह ने स्थापित किया था। अपनी झीलों के कारण यह शहर ‘झीलों की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। उदयपुर शहर सिसोदिया राजवंश द्वारा ‌शासित मेवाड़ की राजधानी रहा है।

उदयपुर के सरदार सिंह –
मेवाड, राजस्थान के शिशोदिया राजवंश के शासक थे। श्रेणी:मेवाड़ के शासक

इस वंश की उतपति सूर्यवंश से है भगवान राम के पुत्र लव को लाहौर का राजा बनाया गया बाद मैं इन्ही के वंश मैं तीसरी शताब्दी मैं राजा कनकसेन हुए जिन्होंने अपनी पत्नी वलभी के नाम पर वलभी नगर बसाया ओर उसे अपनी राजधानी बनाया इनके चार पुत्र थे 1 चन्द्रसेन 2 राघवसेन 3 धीरसेन 4 वीरसेन इनके बड़े बेटे चन्द्रसेन से गुहिल (सिसोदिया ) वंश चला तथा इनके दूसरे बेटे राघव सेन से राघव वंश चला जो अन्य जगहों पर शाशन करने के कारण अलग अलग नामों से जाना गया जैसे गुर्जरप्रदेश के बड़ प्रान्त पर शाशन करने के कारण बड़गुर्जर राजपूत ओर सीकरी पर शाशन करने के कारण सिकरवार राजोरगड पर शाशन करने के कारण राजोरा ,मडाड कहलाये गुहिल वंश विश्व का सबसे प्राचीन एकमात्र वंश है जिसने एक ही जगह पर 1558

राजस्थान के दक्षिण – पश्चिम भाग पर गुहिलों का शासन था। “नैणसी री ख्यात” में गुहिलों की 24 शाखाओं का वर्णन मिलता है जिनमें मेवाड़, बागड़ और प्रताप शाखा ज्यादा प्रसिद्ध हुई। इन तीनो शाखाओं में मेवाड़ शाखा अधिक महत्वपूर्ण थी। मेवाड़ के प्राचीन नाम शिवि,प्राग्वाट व मेदपाट रहे हैं।

इस वरदान के बाद बप्पा ने चित्तोड़ के शासक मानमोरी की और सब अरबी आक्रमणों का निष्फल कर दिया। और मानमोरी से चित्तौड़ का किला अधिकार में ले लिया। बप्पा परम् शिव(एकलिंगनाथ) भक्त थे तथा इस्लाम के कट्टर दुश्मन। इन्होंने अरबो को सिंध व अफ़ग़ानिस्तान से भी खदेड़ दिया। पाकिस्तान के रावल पिंडी शहर का नाम बाप्पा की शौर्यता व बोलबाले का दर्शता है।। धन्य है ये धरा जिसमे ऐसे वीरो ने जन्म लिया।।

महाराणा प्रताप ने अपने पिताजी के साहित्य संस्थान से युद्ध कर उस अफगानी शम्स खान को परास्त किया था और अपने किले पर मेवाड़ी

में वह क्षमता नहीं थी जिसकी अपेक्षा मेवाड को थी। महाराजा भीमसिंह योग्य व्यक्ति थे निर्णय भी अच्छा लेते थे परन्तु उनके क्रियान्वयन पर ध्यान नही देते थे। इनमें व्यवहारिकता का आभाव था।ब्रिटिश एजेन्ट के मार्गदर्शन, निर्देशन एवं सघन पर्यवेक्षण से मेवाड राज्य प्रगति पथ पर अग्रसर होता चला गया।

मेवाड भारत के साथ था और अब भी वहीं रहेगा। यह कह कर वे इतिहास में अमर हो गये। स्वतंत्र भारत के वृहद राजस्थान संघ के भूपाल सिंह प्रमुख बनाये गये| महाराणा भोपाल सिंह जी ने भोपलसागर बसाया और वहा एक विशाल तालाब का निर्माण भी करवाया।

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