परमार वंश की वंशावली

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परमार या पँवार मध्यकालीन भारत का एक अग्निवंशी क्षत्रिय राजवंश था। इस राजवंश का अधिकार धार-मालवा-उज्जयिनी-आबू पर्वत और सिन्धु के निकट अमरकोट आदि राज्यों तक था। लगभग सम्पूर्ण पश्चमी भारत क्षेत्र में परमार वंश का साम्राज्य था। ये 8वीं शताब्दी से 14वीं शताब्दी तक शासन करते रहे। परमार शब्द का अर्थ शत्रु को मारने वाला होता है प्रारम्भ में ये आबू के आस पास के प्रदेशों में रहते थे ज्यों ज्यों प्रतिहार कमजोर होते गये परमार अपना प्रभाव बढ़ाते गये धीरे धीरे परमार वंश ने मारवाड़ सिंध गुजरात तथा मालवा आदि प्रदेशों पर अपने राज्य स्थापित कर लिये परमारों ने आबू जालौर किराडू मालवा वागड़ के परमार अधीक प्रसिध्द है

परमार वंश का इतिहास 

परमार वंश का संस्थापक उपेन्द्रराज था इसकी राजधनी धारा नगरी थी। (प्राचीन राजधनी उज्जैन) परमार वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक राजा भोज था।
परमार परिवार की मुख्य शाखा आठवीं शताब्दी के प्रारंभिक काल से मालवा में धारा को राजधानी बनाकर राज्य करती थी और इसका प्राचीनतम ज्ञात सदस्य उपेंद्र कृष्णराज था इस वंश के प्रारंभिक शासक दक्षिण के राष्ट्रकूटों के सामंत थे राष्ट्रकूटों के पतन के बाद सिंपाक द्वितीय के नेतृत्व में यह परिवार स्वतंत्र हो गया। सिपाक द्वितीय का पुत्र वाक्पति मुंज, जो 10वीं शताब्दी के अंतिम चतुर्थांश में हुआ, अपने परिवार की महानता का संस्थापक था उसने केवल अपनी स्थिति ही सुदृढ़ नहीं की वरन्‌ दक्षिण राजपूताना का भी एक भाग जीत लिया और वहाँ महत्वपूर्ण पदों पर अपने वंश के राजकुमारों को नियुक्त कर दिया उसका भतीजा भोज, जिसने सन्‌ 1000 से 1055 तक राज्य किया और जो सर्वतोमुखी प्रतिभा का शासक था, मध्युगीन सर्वश्रेष्ठ शासकों में गिना जाता था भोज ने अपने समय के चौलुभ्य, चंदेल, कालचूरी और चालुक्य इत्यादि सभी शक्तिशाली राज्यों से युद्ध किया बहुत बड़ी संख्या में विद्वान्‌ इसके दरबार में दयापूर्ण आश्रय पाकर रहते थे वह स्वयं भी महान्‌ लेखक था और इसने विभिन्न विषयों पर अनेक पुस्तकें लिखी थीं, ऐसा माना जाता है उसने अपने राज्य के विभिन्न भागों में बड़ी संख्या में मंदिर बनवाए |

राजस्थान का प्रथम परमार वंश 

राजस्थान में ई 400 के करीब राजस्थान के नागवंशों के राज्यों पर परमारों ने अधिकार कर लिया था इन नाग वंशों के पतन पर आसिया चारण पालपोत ने लिखा है-परमारा रुंधाविधा नाग गया पाताळ हमै बिचारा आसिया, किणरी झुमै चाळ मालवा के परमार- मालव भू-भाग पर परमार वंश का शासन काफी समय तक रहा है भोज के पूर्वजों में पहला राजा उपेन्द्र का नाम मिलता है जिसे कृष्णराज भी कहते हैं इसने अपने बाहुबल से एक बड़े स्वतंत्र राज्य की स्थापना की थी इनके बाद बैरीसिंह मालवा के शासक बने बैरीसिंह का दूसरा पुत्र अबरसिंह था जिसने डूंगरपुरबांसवाडा को जीतकर अपना राज्य स्थापित किया। इसी वंश में बैरीसिंह द्वितीय हुआ जिसने गौड़ प्रदेश में बगावत के समय हूणों से मुकाबला किया और विजय प्राप्त की इसी वंश में जन्में इतिहास प्रसिद्ध राजा भोज विद्यानुरागी व विद्वान राजा थे।

परमार वंश का संस्थापक 

परमार वंश का संस्थापक महर्षि वशिष्ठ थे कहते हैं इन्होंने विश्वामित्र से तंग होकर उनसे बचने के लिये राजस्थान में यज्ञ किया जहाँ यज्ञ किया वह पर्वत आज भी है नाम माउंट आबू यज्ञ से एक बलवान पुरुष उत्पन्न हुआ मार मार कहता हुआ और निकलते ही पर नामक असुर का अंत कर दिया और महर्षि वशिष्ठ ने उसका नाम परमार रख दिया और यही हुआ परमार वंश का संस्थापक। लेकिन ये अग्निवंशी राजवंश था

परमार वंश के शासकों की सूची 

> उपेन्द्र (800 – 818)
> वैरीसिंह प्रथम (818 – 843)
> सियक प्रथम (843 – 893)
> वाकपति (893 – 918)
> वैरीसिंह द्वितीय (918 – 948)
> सियक द्वितीय (948 – 974)
> वाकपतिराज (974 – 995)
> सिंधुराज (995 – 1010)
> भोज प्रथम (1010 – 1055), समरांगण सूत्रधार के रचयिता
> जयसिंह प्रथम (1055 – 1060)

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