राम प्रसाद बिस्मिल कौन थे 

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राम प्रसाद बिस्मिल कौन थे 

नाम राम प्रसाद बिस्मिल
जन्म 11 जून 1897 को शाहजहाँपुर, संयुक्त प्राँत ब्रिटिश भारत
मृत्यु 19 दिसम्बर 1927 को गोरखपुर जेल, संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत
धर्म हिन्दू
नागरिकता भारतीय
पिता मुरलीधर
माता मूलमती
दादा नारायण लाल
बारे में राम प्रसाद बिस्मिल एक भारतीय क्रांतिकारी थे। उन्होंने वर्ष 1918 के मणिपुरी षडयंत्र में और वर्ष 1925 में काकोरी कांड में सहभागिता निभाई थी।
उपनाम राम प्रसाद बिस्मिल ने अजीत, राम और बिस्मिल के नामों से हिंदी और उर्दू में कविताएं लिखीं।
राजनीतिक आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन

राम प्रसाद बिस्मिल का जीवन परिचय –

राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म 11 जून 1897 को भारत देश के उत्तर प्रदेश राज्य के पावन धरी शाहजहापुर जिले के खिरनीबाग मुह्ह्ले में हुआ था इनके पिता का नाम पंडित मुरलीधर जिनके वंशज मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले से आते थे और माता का नाम श्रीमती मूलमती था राम प्रसाद बिस्मिल अपने माता पिता की दूसरी सन्तान थे |
क्यूकी इनकी माता पिता की पहली संतान पैदा होते ही मर चूका था और रामप्रसाद बिस्मिल भी जब पैदा हुए तो इतने कमजोर थे की इनके भी बचने की कोई उम्मीद नही थी इनके दोनों हाथो की उंगलियों में चक्र का निशान बना था जिसे देखकर ज्योतिषी ने भविष्यवाणी भी किया था ऐसे दिव्यपुत्र का बचना बहुत ही मुश्किल है |

राम प्रसाद बिस्मिल भारत के स्वाधीनता इतिहास में महान क्रांतिकारियों में एक थे जिन्होंने मात्रभूमि की आज़ादी के लिए मात्र 30 साल की उम्र में अपने प्राणों की आहुति दे दी जिन्होंने ‘मैनपुरी कांड’ और ‘काकोरी कांड’ को सफलता पूर्वक अंजाम देकर अंग्रेजी हुकूमत की नीव हिला के रख दी |
राम प्रसाद बिस्मिल क्रन्तिकारी ही नहीं, बल्कि उच्च कोटि के कवि, शायर, अनुवादक, बहुभाषाविद् व साहित्यकार भी थे अपने 11 वर्ष के क्रान्तिकारी जीवन में कई पुस्तकों को लिखा और उसका प्रकाशन भी कराया लेकिन उनकी सभी पुस्तको को अंग्रेजी सरकार ने प्रतिबन्ध लगा दिया और उसे जब्त कर लिया |

शिक्षा –

हिन्दी की वर्णमाला पढ़ने में बिस्मिल ने बचपन में रूचि नहीं दिखाई जिलके बाद उनकी शुरुआती शिक्षा उर्दू में प्रारंभ की गई मिडिल स्कूल की परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने के बाद
उन्होंने अंग्रेजी पढ़ना शुरू किया इसके साथ ही अपने एक पुजारी पड़ोसी द्वारा उन्हें पूजा विधि का ज्ञान प्राप्त हुआ, और उनकी विद्वता का प्रभाव भी बिस्मिल के व्यक्तित्व प पड़ा। उन्होंने अपने जीवन में ब्रम्हचर्य का पालन किया और व्यायाम आदि को अपनाकर बुरी लतों को त्याग दिया इसके बाद उनका मन पढ़ाई में पहले से बेहतर लगने लगा और वे अंग्रेजी में पांचवे स्थान पर आ गए।

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जीवन में बदलाव –

रामप्रसाद जी नवी की पढाई के बाद आर्य समाज के सम्पर्क में आये जिसके कारण उनके जीवन एक नया परिवर्तन आया. जब शाहजहाँपुर में स्थित आर्य समाज मंदिर में स्वामी सोमदेव जी से उनकी मुलाकात हुयी
जब वे 18 साल के थे तब उन्होंने एक खबर पढ़ी कि भारत की आज़ादी के लिए भाई परमानन्द जी को अंग्रेजी हुकूमत ने “ग़दर षड्यंत्र” में शामिल होने के जुर्म में उन्हें फांसी की सजा दे दी लेकिन बाद में इस फांसी को आजीवन कारावास में बदल दिया गया और उसके बाद सन 1920 में उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया |

मैनपुरी षड्यंत्र –

कुछ समय पश्चात रामप्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेजी साम्राज्यवाद से लड़ने के लिए तथा देश को आज़ाद कराने के लिए ‘मातृदेवी’ नामक एक क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की इस क्रांतिकारी संगठन की स्थापना के लिए रामप्रसाद बिस्मिल ने औरैया के पंडित गेंदा लाल दीक्षित की मदद ली स्वामी सोमदेव चाहते थे कि इस क्रांतिकारी संगठन की स्थापना में रामप्रसाद की मदद कोई अनुभवी व्यक्ति करे, इस कारण स्वामी सोमदेव ने रामप्रसाद बिस्मिल का परिचय पंडित गेंदा लाल से करवाया।
रामप्रसाद बिस्मिल की तरह पंडित गेंदा लाल जी ने भी ‘शिवाजी समिति’ नामक एक क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की थी उन दोनों ने मिलकर मैनपुरी, इटावा, आगरा और शाहजहाँपुर जिलों के कई युवकों को देश सेवा के लिए संगठित किया जनवरी 1918 में रामप्रसाद बिस्मिल जी ने ‘देशवासियों के नाम सन्देश’ नामक एक पैम्फलेट प्रकाशित किया और उन्होंने अपनी कविता ‘मैनपुरी की प्रतिज्ञा’ के साथ-साथ इस पैम्फलेट का भी वितरण करने लगे।
वर्ष 1918 में रामप्रसाद बिस्मिल अपने संगठन को और अधिक मजबूत करने के लिए तीन बार डकैती भी डाली साल 1918 में कांग्रेस के दिल्ली अधिवेसन के दौरान पुलिस ने रामप्रसाद बिस्मिल और उनके द्वारा बनाए संगठन के अन्य सदस्यों को प्रतिबंधित साहित्य बेचने पर छापा डाला पर रामप्रसाद बिस्मिल वहां से भागने में सफल रहे।
पुलिस से मुठभेड़ के बाद उन्होंने यमुना में छलांग लगा दी और तैर कर आधुनिक ग्रेटर नॉएडा के घने जंगलों में चले गए इन घने जंगलों में उन दिनों केवल बबूल के पेंड़ ही हुआ करते थे और इंसान कहीं दूर-दूर तक नहीं दीख रहा था।
उधर ब्रिटिश जज ने ‘मैनपुरी षड्यंत्र’ मुकदमे में फैसला सुनते हुए रामप्रसाद बिस्मिल और पंडित गेंदा लाल दीक्षित को भगोड़ा घोषित कर दिया।
रामप्रसाद जी ने ग्रेटर नॉएडा के एक छोटे से गाँव रामपुर जागीर में शरण ली और कई महीने यहाँ के निर्जन जंगलों में घूमते रहे इसी दौरान रामप्रसाद बिस्मिल ने अपना क्रांतिकारी उपन्यास ‘बोल्शेविकों की करतूत’ लिखा और ‘यौगिक साधन’ का हिन्दी अनुवाद भी उन्होंने किया इसके बाद रामप्रसाद बिस्मिल कुछ समय तक इधर-उधर भटकते रहे और जब फरवरी 1920 में सरकार ने ‘मैनपुरी षड्यंत्र’ के सभी कैदियों को रिहा कर दिया तब रामप्रसाद बिस्मिल जी भी शाहजहाँपुर वापस लौट आएं।
सितम्बर 1920 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में रामप्रसाद बिस्मिल शाहजहाँपुर काँग्रेस कमेटी के अधिकृत प्रतिनिधि के रूप में शामिल हुए कलकत्ता अधिवेशन में रामप्रसाद बिस्मिल की मुलाकात लाला लाजपत राय से हुई, लाला लाजपतराय जी उनकी लिखी हुई पुस्तकों से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने रामप्रसाद बिस्मिल का परिचय कलकत्ता के कुछ प्रकाशकों से करा दिया।
“इन्हीं प्रकाशकों में से एक थे उमादत्त शर्मा उमादत्त शर्मा ने ही आगे चलकर साल 1922 में राम प्रसाद बिस्मिल की एक पुस्तक कैथेराइन को छापी थी।”
वर्ष 1921 में रामप्रसाद बिस्मिल जी ने कांग्रेस के अहमदाबाद अधिवेशन में भाग लिया और उन्होंने मौलाना हसरत मोहनी के साथ मिलकर ‘पूर्ण स्वराज’ का प्रस्ताव कांग्रेस के साधारण सभा में पारित करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
शाहजहाँपुर लौटकर रामप्रसाद बिस्मिल ने लोगों को गांधीजी के ‘असहयोग आन्दोलन’ में भाग लेने के लिए प्रेरित किया जब चौरी चौरा काण्ड के पश्चात गांधी जी ने असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया तो वर्ष 1922 के गया अधिवेशन में रामप्रसाद बिस्मिल व उनके साथियों के विरोध स्वरुप कांग्रेस में फिर दो विचार धारायें बन गयीं – एक उदारवादी और दूसरा विद्रोही।

साहित्यिक कार्य –

राम प्रसाद बिस्मिल की कविताएँ और शायरी बहुत प्रसिद्ध हैं उनकी क्रांतिकारी भावना ही थी जिस कारण वह हमेशा औपनिवेशिक शासक से भारत की स्वतंत्रता चाहते थे यहां तक ​​कि जब वे देशभक्ति कविताएं लिखते थे तो उनके जीवन का मूल्य ही उनकी मुख्य प्रेरणा हुआ करती थी।
कविता ‘सरफरोशी की तमन्ना’ सबसे प्रसिद्ध कविता है इसका श्रेय राम प्रसाद बिस्मिल को जाता है, हालांकि कई लोग राय देते हैं कि कविता मूल रूप से बिस्मिल अजीमबादी ने लिखी थी जब वह काकोरी कांड के मुख्य क्रांतिकारी घटना में अभियोग के बाद जेल में थे, तब पंडित राम प्रसाद बिस्मिल ने अपनी आत्मकथा लिखी थी।

फांसी की सजा –

इस काकोरी कांड के लिए रामप्रसाद बिस्मिल को अशफाक उल्ला खाँ, राजेन्द्र लाहिड़ी और रोशन सिंह के साथ मौत की सजा सुनाई गयी उन्हें 19 दिसम्बर 1927 को गोरखपुर जेल में फांसी दे दी गयी।
जिस समय रामप्रसाद बिस्मिल को फांसी लगी उस समय जेल के बाहर हजारों लोग उनके अंतिम दर्शनों की प्रतीक्षा कर रहे थे हज़ारों लोग रामप्रसाद बिस्मिल जी की शव यात्रा में सम्मिलित हुए और उनका अंतिम संस्कार वैदिक मंत्रों के साथ राप्ती के तट पर किया गया।

राजस्थान के सम्राट

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