सूर्यकांत त्रिपाठी निराला कौन थे 

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सूर्यकांत त्रिपाठी निराला कौन थे 

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय –

पूरा नाम सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
जन्म स्थान मेदनीपुर बंगाल
माता का नाम माता का नाम रुक्मिणी
पिता का नाम पंडित रामसहाय त्रिपाठी
पत्नी का नाम मनोहरा
निधन 15 अक्टूबर 1961 ईस्वी में प्रयागराज उत्तरप्रदेश
प्रमुख रचनायें ‘गितिका, तुलसीदास, राम की शक्ति पूजा, सरोज स्मृति आदि

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला हिंदी साहित्य जगत के छायावाद के चार स्तंभ में से एक स्तंभ है जयशंकर प्रसाद सुमित्रानंदन पंत महादेवी वर्मा के साथ छायावादी युग के प्रमुख स्तंभ में से एक स्तंभ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी माने जाते हैं सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी ने बहुत सारी कहानियां उपन्यास और निबंध लिखे हैं लेकिन उनकी सबसे ज्यादा प्रचलित और ख्याति विशेष रूप से कविता के कारण ही मिले हैं
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी के जन्म के संबंध में अनेकों मत है लेकिन कुछ लोगों के मत के अनुसार उनका जन्मसूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी का जन्म बंगाल की महिषादल रियासत में जिला मेदिनीपुर में हुआ था निराला जी का जन्म 21 फरवरी 1896 में हुआ था लेकिन सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी के कहानी संग्रह लिली में उनके जन्म तिथि 21 फरवरी 1899 दी गई है

‘निराला’ की शिक्षा –

‘निराला’ की शिक्षा बंगाली माध्यम से शुरू हुई हाईस्कूल पास करने के बाद उन्होंने घर पर ही संस्कृत और अंग्रेज़ी साहित्य का अध्ययन किया हाईस्कूल करने के बाद वे लखनऊ और उसके बाद गढकोला -उन्नाव चले गये। शुरुआत से ही रामचरितमानस उन्हें काफी प्रिय था वे हिन्दी, बंगला, अंग्रेज़ी और संस्कृत भाषा में निपुण थे और श्री रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानन्द और श्री रवीन्द्रनाथ टैगोर से विशेष रूप से प्रभावित थे मैट्रीकुलेशन कक्षा में पहुँचते-पहुँचते उनकी दार्शनिक रुचि का परिचय मिलने लगा निराला जी स्वच्छन्द प्रकृति के थे और स्कूल में पढ़ने से अधिक उनकी रुचि घूमने, खेलने, तैरने और कुश्ती लड़ने इत्यादि में थी संगीत में उनकी विशेष रुचि थी।

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जीवन में नया मोड़ –

दुर्भाग्य सन 1918 ईस्वी में इंफ्लुएंजा की चपेट में आकर उनकी पत्नी का निधन हो गया धीरे-धीरे उनके परिवार के अन्य सदस्य भी काल के गाल में समा गये अपनी आजीविका के लिए उनके पास कोई चारा नहीं था।
उन्होंने महिषादल के राजा का पास नौकरी पकड़ी लेकिन थोड़े ही समय के बाद ही उन्होंने नौकरी छोड़ दि उसके बाद वे रामकृष्ण मिशन की पत्रिका ‘समन्वय’ के सम्पादन के कार्य में लग गये।
वे स्वामी विवेकानंद के वेदान्त दर्शन से अत्यंत ही प्रभावित होकर वेदांती बन गये सम्पादन के साथ वे काव्य में भी रुचि लेने लगे।

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का वैवाहिक जीवन –

उनका विवाह 15 वर्ष की आयु में ही मनोहरा देवी नाम की कन्या से हुआ था मनोहरा देवी बहुत ही सुंदर और शिक्षित स्त्री थी और उनका संगीत का बारे में भी ज्ञान था पत्नी के ही कहने से निराला जी ने हिंदी के बारे में भी अभ्यास किया और उसके बाद ही उन्होंने हिंदी में कविता लिखना शुरू कर दिया था निराला जी जब 3 वर्ष के थे तो उनके माता जी का मृत्यु हो गया था।
जब वह 20 वर्ष की आयु के हुए तो उनके पिता का भी मृत्यु हो गया निराला जी का जीवन शादी के बाद बहुत ही सुख में बीत रहा था क्योंकि उनकी पत्नी बहुत ही समझदार और शिक्षित भी थी उनकी एक पुत्री भी थी लेकिन शादी के कुछ दिन बाद ही किसी महामारी के फैलने कारण उनकी पत्नी का देहांत हो गया था फिर आर्थिक तंगी से गुजरने लगे थे
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी पर एक के बाद एक विपत्तियों का पहाड़ गिरने के बाद भी उन्होंने बहुत ही दृढ़ता से अपने साहित्यिक जीवन में आगे बढ़ते गए और एक से बढ़कर एक युग परिवर्तनकारी कृतियों रचनाओं को प्रकाशित करते रहे 1916 ईस्वी में उनकी पहली कविता जूही की कली हिंदी साहित्य जगत में बहुत ही प्रचलित हुए और लोगों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करने लगे सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी गद्य और पद्य दोनों के जानकार थे

निराला की रचना की विशेषता –

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की भाषा शैली की सबसे बड़ी विशेषता उनकी रचना में पाये जाने वाला संगितात्मकता और ओज है उन्होंने कहानी, उपन्यास, काव्य, निबंध सभी जगह अपनी रचना से अमिट छाप बनायी।
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कविता में खड़ी बोली की प्रधानता हैं उन्होंने अपनी रचना से खड़ी बोली का मस्तक ऊँचा किया सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की भाषा, शैली अत्यंत ही अनुपम है।

कृतियाँ – काव्य संग्रह –

1.अनामिका -1923
2.परिमल -1930
3.गीतिका -1936
4.अनामिका -द्वितीय -1939 -इसी संग्रह में सरोज स्मृति और राम की शक्तिपूजा जैसी प्रसिद्ध 5.कविताओं का संकलन है।
6.तुलसीदास -1939
7.कुकुरमुत्ता -1942
8.अणिमा -1943
9.बेला -1946
10.नये पत्ते -1946
11.अर्चना -1950
12.आराधना 91953
13.गीत कुंज -1954
14.सांध्य काकली
15.अपरा -संचयन

उपन्यास –

1.अप्सरा -1931
2.अलका -1933
3.प्रभावती -1936
4.निरुपमा -1936
5.कुल्ली भाट -1938-39
6.बिल्लेसुर बकरिहा -1942
7.चोटी की पकड़ -1946
8.काले कारनामे -1950
9.चमेली
10.इन्दुलेखा

कहानी संग्रह –

1.लिली -1934
2.सखी -1935
3.सुकुल की बीवी -1941
4.चतुरी चमार -1945 [‘सखी’ संग्रह की कहानियों का ही इस नये नाम से पुनर्प्रकाशन।]
5.देवी -1948

निबन्ध-आलोचना –

1.रवीन्द्र कविता कानन -1929
2.प्रबंध पद्म -1934
3.प्रबंध प्रतिमा -1940
4.चाबुक -1942
5.चयन -1957
6.संग्रह -1963[9]

पुराण कथा –

1.महाभारत -1939
2.रामायण की अन्तर्कथाएँ -1956
3.बालोपयोगी साहित्य
4.भक्त ध्रुव -1926
5.भक्त प्रहलाद -1926
6.भीष्म -1926
7.महाराणा प्रताप -1927
8.सीखभरी कहानियाँ -1969

अनुवाद –

1.रामचरितमानस -विनय-भाग-1948 -खड़ीबोली हिन्दी में पद्यानुवाद
2.आनंद मठ -बाङ्ला से गद्यानुवाद
3.विष वृक्ष
4.कृष्णकांत का वसीयतनामा
5.कपालकुंडला
6.दुर्गेश नन्दिनी
7.राज सिंह
8.राजरानी
9.देवी चौधरानी
10.युगलांगुलीय
11.चन्द्रशेखर
12.रजनी
13.श्रीरामकृष्णवचनामृत -तीन खण्डों में
14.परिव्राजक
15.भारत में विवेकानंद
16.राजयोग -अंशानुवाद

“निराला” ने अपनी रचनाओं से समाज के लिए एक पथ – प्रदर्शक का भी काम किया इतना ही नहीं इन्होने अपनी रचनओं में ज़्यादा से ज़्यादा गरीब और सामान्य लोगो की पीड़ा का भावपूर्ण चित्रण किया, जिससे की वह समाज को इनकी पीड़ा से अवगत करा सके।
इस लेख के माध्यम से हमने आपको, साहित्यिक विशेषताओं के धनि “सूर्यकांत त्रिपाठी निराला” के जीवन से जुड़ी कई महत्वपूर्ण जानकारियां, उनकी रचनाएं, काव्यगत विशेषताएं, आदि के बारे में बताने का प्रयास किया।
आपको यह लेख केसा लगा, हमे ज़रुर बताएं और अगर आप इसमें किसी प्रकार का बदलाव चाहते हे तो हमे कमैंट्स में सुझाव दे।

मृत्यु –

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला 15 अक्टूबर 1961 को इलाहाबाद में देहांत हो गया था

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