स्वामी विवेकानंद कौन थे

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स्वामी विवेकानंद कौन थे

स्वामी विवेकानंद सामान्य परिचय –

नाम नरेन्द्रनाथ दत्त
घरेलु नाम नरेन्द्र और नरेन
मठवासी  बनने के बाद नाम स्वामी विवेकानंद
पिता का नाम विश्वनाथ दत्त
माता का नाम भुवनेश्वरी देवी
भाई – बहन 9
जन्म तिथी 12 जनवरी, 1863
जन्म स्थान कलकत्ता, भारत
राष्ट्रीयता भारतीय
गुरु का नाम रामकृष्ण परमहंस
शिक्षा – दीक्षा बेचलर ऑफ़ आर्ट [1984]
संस्थापक रामकृष्ण मिशन और रामकृष्ण मठ
फिलोसोफी आधुनिक वेदांत और राज योग

 

स्वामी विवेकानन्द (जन्म: 12 जनवरी,1863 – मृत्यु: 4 जुलाई,1902) वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे उनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन् 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था भारत का वेदान्त अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानन्द की वक्तृता के कारण ही पहुँचा उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी अपना काम कर रहा है वे रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे उन्हें प्रमुख रूप से उनके भाषण की शुरुआत ” मेरे अमेरिकी भाइयों एवं बहनों ” के साथ करने के लिए जाना जाता है उनके संबोधन के इस प्रथम वाक्य ने सबका दिल जीत लिया था।

नरेंद्र का परिवार –

नरेन्द्र का जन्म ब्रिटिश राज में कलकत्ता शहर में मकर संक्रांति के दिन हुआ था वे एक पारंपरिक बंगाली परिवार से थे और कुल 9 भाई – बहन थे उनके पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता उच्च न्यायलय में अभिवक्ता थे और माता भुवनेश्वरी देवी एक धार्मिक घरेलु महिला थी उनके दादाजी संस्कृत और फारसी के विद्वान थे घर में ही इस प्रकार के धार्मिक और शिक्षित माहौल ने नरेन्द्र का इतना उच्च व्यक्तित्व बनाया

विवेकानंद का प्रारम्भिक जीवन, बचपन –

नरेंद्र बचपन से ही बहुत शैतान थे,कई बार उनकी माँ के लिए उन्हें सम्भालना ही मुश्किल हो जाता था,ऐसे में उनकी माँ उन पर ठंडा पानी डालती थी और भगवान शिव का जाप करती थी,जिससे वो तुरंत शांत हो जाते थे वो उन्हें कहती थी कि यदि अब भी तुम शांत नहीं हुए तो शिव तुमसे नाराज हो जाएंगे और तुम्हे कैलाश में प्रवेश नहीं करने देंगे इस तरह उनके व्यक्तित्व के प्रारम्भिक विकास में उनकी माँ का महत्वपूर्ण योगदान रहा एक बार स्कूल में किसी बात पर अन्याय को देखकर उनकी माँ ने कहा था कि ये बहुत महत्वपूर्ण हैं कि “तुम सही और सत्य की राह पर चलो, कई बार तुम्हे सत्य की राह पर चलते हुए कडवे अनुभव भी हो सकते हैं और लेकिन तुम्हे किसी भी परिस्थिति में विचलित नहीं होना हैं बहुत वर्षों बाद नरेन्द्रनाथ ने अपने भाषण में माना भी था की मैं अपनी माँ की शिक्षा का आभारी हूँ

स्वामी विवेकानन्द द्वारा कही गयीं उक्तियाँ –

* उठो, जागो और तब तक रुको नही जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाये ।
* जो सत्य है, उसे साहसपूर्वक निर्भीक होकर लोगों से कहो–उससे किसी को कष्ट होता है या नहीं, इस ओर ध्यान मत दो। दुर्बलता को कभी प्रश्रय मत दो सत्य की ज्योति ‘बुद्धिमान’ मनुष्यों के लिए यदि अत्यधिक मात्रा में प्रखर प्रतीत होती है, और उन्हें बहा ले जाती है, तो ले जाने दो–वे जितना शीघ्र बह जाएँ उतना अच्छा ही है।
* तुम अपनी अंत:स्थ आत्मा को छोड़ किसी और के सामने सिर मत झुकाओ। जब तक तुम यह अनुभव नहीं करते कि तुम स्वयं देवों के देव हो, तब तक तुम मुक्त नहीं हो सकते।
* ईश्वर ही ईश्वर की उपलब्थि कर सकता है सभी जीवंत ईश्वर हैं–इस भाव से सब को देखो। मनुष्य का अध्ययन करो, मनुष्य ही जीवन्त काव्य है। जगत में जितने ईसा या बुद्ध हुए हैं, सभी हमारी ज्योति से ज्योतिष्मान हैं इस ज्योति को छोड़ देने पर ये सब हमारे लिए और अधिक जीवित नहीं रह सकेंगे, मर जाएंगे। तुम अपनी आत्मा के ऊपर स्थिर रहो।
* ज्ञान स्वयमेव वर्तमान है, मनुष्य केवल उसका आविष्कार करता है।
* मानव-देह ही सर्वश्रेष्ठ देह है, एवं मनुष्य ही सर्वोच्च प्राणी है, क्योंकि इस मानव-देह तथा इस जन्म में ही हम इस सापेक्षिक जगत् से संपूर्णतया बाहर हो सकते हैं–निश्चय ही मुक्ति की अवस्था प्राप्त कर सकते हैं, और यह मुक्ति ही हमारा चरम लक्ष्य है।
* जो मनुष्य इसी जन्म में मुक्ति प्राप्त करना चाहता है, उसे एक ही जन्म में हजारों वर्ष का काम करना पड़ेगा। वह जिस युग में जन्मा है, उससे उसे बहुत आगे जाना पड़ेगा, किन्तु साधारण लोग किसी तरह रेंगते-रेंगते ही आगे बढ़ सकते हैं।
* जो महापुरुष प्रचार-कार्य के लिए अपना जीवन समर्पित कर देते हैं, वे उन महापुरुषों की तुलना में अपेक्षाकृत अपूर्ण हैं, जो मौन रहकर पवित्र जीवनयापन करते हैं और श्रेष्ठ विचारों का चिन्तन करते हुए जगत् की सहायता करते हैं इन सभी महापुरुषों में एक के बाद दूसरे का आविर्भाव होता है–अंत में उनकी शक्ति का चरम फलस्वरूप ऐसा कोई शक्तिसम्पन्न पुरुष आविर्भूत होता है, जो जगत् को शिक्षा प्रदान करता है।

वह भाषण जो इतिहास बन गया – 

अपने संबोधन से ही सभा की जोरदार तालियां बटोर लेने वाले स्वामी जी ने आगे कहा, आपके इस स्नेहपूर्ण और जोरदार स्वागत से मेरा हृदय अपार हर्ष से भर गया है मैं आपको दुनिया की सबसे प्राचीन संत परंपरा की तरफ से धन्यवाद देता हूँ
मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं और सभी जाति, संप्रदाय के लाखों, करोड़ों हिंदुओं की तरफ से आपका आभार व्यक्त करता हूं मेरा धन्यवाद कुछ उन वक्ताओं को भी है जिन्होंने इस मंच से यह कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार सुदूर पूरब के देशों से फैला है

स्वामी विवेकानंद की जयंती में कब मनाई जाती है –

हर साल स्वामी विवेकानंद जी के जन्म दिन अर्थात 12 जनवरी को ही उनकी जयंती के रूप में मनाया जाता है. इसका मतलब इस साल 12 जनवरी 2021 दिन शनिवार को स्वामी विवेकानंद जयंती मनाई जाएगी

स्वामी विवेकानंद का योगदान –

अपने जीवनकाल में स्वामीजी ने जो भी कार्य किये और इसके द्वारा जो योगदान दिया गया, उसके क्षेत्र को हम निम्न 3 भागों में बाँट सकते हैं
1. वैश्विक संस्कृति के प्रति योगदान
2. भारत के प्रति योगदान
3. हिंदुत्व के प्रति योगदान

स्वामीजी का विश्व सम्मेलन और शिकागो का भाषण –

स्वामी जी ने 1893 मेंशिकागो के विश्व स्तरीय सम्मेलन का निमन्त्रण स्वीकार कर लिया और मई में बॉम्बे से रवाना हो गए, वो पहले जापान गए फिर वहां से यूनाइटेड स्टेट गए उनके पास बहुत कम पैसे थे,और विदेश में ज्यादा लोगों से परिचय नही था, लेकिन हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के जॉन राइट ने उनकी मदद की |
विवेकानंद शिकागो में हिन्दू धर्म के प्रतिनिधि के रूप में सम्मिलित हुए थे और वहाँ उन्होंने वेदों और उपनिषदों का व्याखायान दिया था,जिससे सारी दुनिया प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकी. 11 सितम्बर 1893 को विवेकान्द ने अपने पहले भाषण में स्टेज पर पहुचकर पहले माँ सरस्वती का वंदन किया फिर उन्होंने अपना व्याख्यान शुरू किया उनके व्याख्यान की प्रथम पंक्ति थी “मेरे अमेरिकन भाइयों और बहिनों” इतना सुनकर पूरा सभागार तालियों के शोर से गूंज उठा विदेशियों के लिए इतने आत्मीयता से किसी भी धर्म के विद्वान का भाषण की शुरुआत करना पहला अनुभव था, अत: स्वाभाविक था कि वो लोग सम्मोहित होते और वहाँ भीड में मौजूद लगभग 7000 लोग उनके सम्मान में उठकर खड़े हो गये |

स्वामी विवेकानंद का समाज को दिया योगदान –

स्वामी विवेकानंद अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के दिखाए मार्ग पर चलते हुए प्रेम,सद्भाव और समानता जैसे मूलभूत सिद्धांतों पर विशवास करते थे स्वामीजी का मानना था कि मानवता का धर्म ही सबसे महत्वपूर्ण धर्म हैं,जिसमें शक्तिहीनों के हितों की रक्षा करना,गरीबों को भोजन उपलब्ध करवाना जैसे आवश्यक कार्य शामिल थे उन्होंने हिंदुत्व को जिस तरीके से समझाया था,उससे पश्चिमी देशों में भारत और हिंदुत्व का काफी सकारात्मक प्रभाव पड़ा |
1. स्वामीजी का मानना था कि किसी भी देश के विकास के लिए ज्ञान और शिक्षा के विस्तार के साथ संस्कृतिक जड़ें मजबूत होना बहुत महत्वपूर्ण हैं. उन्होंने हिन्दू धर्म में आध्यात्म के साथ आधुनिक विज्ञान की महत्ता को जोड़ने की आवश्यकता भी समझी थी उनके अनुसार धर्म भी एक प्रकार की समाज सेवा हैं. उन्होंने अंग्रेजों के कारण ईसाई धर्म के बढ़ते प्रचार को देखते हुए इसे रोकने के लिए ही रामकृष्ण मठ की स्थापना की थी |
2. अमेरिका में ही विवेकानंदजी ने रामकृष्ण के विचारो का प्रचार-प्रसार शुरू कर दिया था बाद में उन्होंने अपने अनुयायी सन्यासियों को समाज उत्थान के लिए भी भेजा,जिसमें निर्धनों की मदद करना,अशिक्षित को शिक्षा उपलब्ध करना जैसे आवश्यक कार्य शामिल थे ये सभी काम किसी भी धार्मिक समुदाय या सन्यासियों द्वारा करना पहली बार था,जो कि समस्त पुरानी परम्पराओं को तोड़ रहा था विवेकानंद अपने मिशन से दुनिया की भौतिक और आध्यात्मिक दोनों रूप से जरूरतों को पूरा करना चाहते थे |
3. 1897 में वो भारत लौट आये,और यहाँ पर उनका भव्य स्वागत किया गया पश्चिम में उनके सफलता भारत के लिए गौरव का विषय थी और अब वे यहाँ काफी लोकप्रिय हो चुके थे वो भारतीय आध्यात्म के बारे में ओजस्वी उद्बोधन देते थे,और साथ ही भारत के गिरती अवस्था की आलोचना भी करते थे इस तरह के विरोधाभासी मतों का एक साथ समझने का अनुभव किसी भी भारतीय के लिए नया था यहाँ की जाति व्यवस्था,शिक्षा का अभाव,महिलाओं की पिछड़ी स्थिति और पुराने अंध-विशवास जैसे कुछ मुद्दे थे जिन पर विवेकाकंद खुलकर अपने विचार रखते थे साथ ही वेदों और उपनिषदों की व्याख्या वो बहुत ही सरल शब्दों में कर देते थे |

जब उड़ा कपड़ों का मजाक –

शिकागो की सड़कों पर स्वामी जी संन्यासी के वेष में भ्रमण कर रहे थे एक दिन रास्ते में एक महिला ने उनके कपड़ों को देखकर मजाक किया और इसे अजीब बताया |
स्वामी जी ठहरे और बोले, बहिन, तुम्हारे देश में कपड़ों से सज्जन व्यक्ति की पहचान होती है, लेकिन मैं जिस देश से आया हूं वहां विचार और आचरण किसी व्यक्ति को सज्जन बनाते हैं. यह जवाब सुनकर महिला शर्मिंदा हो गई. उसने स्वामी जी से क्षमा मांग ली |

संकट से भागो नहीं, सामना करो –

एक बार कहीं जाते हुए स्वामी विवेकानंद का पाला बंदरों से पड़ गया वह जितना आगे बढ़ते, बंदर पीछे-पीछे चलते रहते वह तेज भागते तो बंदर और तेज भागने लगते |
धीरे-धीरे उनकी संख्या बढ़ने लगी और उन्होंने घेराव करना भी शुरू कर दिया इसके बाद स्वामी जी रुके और पीछे मुड़ते हुए तेजी से कदम बढ़ाते हुए बंदरों की ओर बढ़ने लगे अब बारी बंदरों के डरने की थी |
तेज गति से बढ़ने के कारण वह भाग खड़े हुए इसके बाद विवेकानंद ने समझाया कि समस्या-संकट से जितना भागेंगे वह आपका पीछा कर आपको डराएंगे. डरे नहीं सामना करें |

विवेकानंदजी के प्रेरक वाक्य –

सत्य को हजार तरीके से बताया जा सकता हैं फिर भी सत्य एक ही होगा.
जब तक तुम खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक तुम भगवान पर विशवास नहीं कर सकते.
तुम्हे अन्दर से बाहर की तरफ विकसित होना है कोई तुम्हे पढ़ा नहीं सकता, कोई तुम्हे आध्यात्मिक नहीं बना सकता तुम्हारी आत्मा के अलावा कोई और गुरु नहीं है
शक्ति जीवन है, निर्बलता मृत्यु है विस्तार जीवन है, संकुचन मृत्यु है प्रेम जीवन है, द्वेष मृत्यु है
बस वही जीते हैं,जो दूसरों के लिए जीते हैं

 

राजस्थान के सम्राट

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