वंश भास्कर की वंशवली

वंश भास्कर की वंशवली – 19वीं शताब्दी में राजस्थान में राष्ट्रीय भावनाओं से औत-प्रेत लेखन का प्रारंभ सूर्यमल्ल मिश्रण द्वारा माना जाता है सूर्यमल्ल मिश्रण राजस्थान के हाडा शासक महाराव रामसिंह के प्रसिद्ध दरबारी कवि थे इनकी सर्वाधिक प्रसिद्ध रचना वंश भास्कर है जिसमें बूँदी के चौहान शासकों का इतिहास है इनके द्वारा रचित अन्य ग्रंथ वीर सतसई बलवंत विलास व छंद मयूख हैं वीर रस के इस कवि को रसावतार कहा जाता है सूर्यमल मिश्रण को आधुनिक राजस्थानी काव्य के नवजागरण का पुरोधा कवि माना जाता है ये अपने अपूर्व ग्रंथ वीर सतसई के प्रथम दोहे में ही अंग्रेज़ी दासता के विरुद्ध बिगुल बजाते हुए प्रतीत हुए थे

वंश भास्कर का इतिहास 

वंश भास्कर की रचना चारण कवि सूर्यमल्ल मिश्रण द्वारा की गई थी जो बूँदी के हाड़ा शासक महाराव रामसिंह के दरबारी कवि थे अपूर्ण वंश भास्कर को कवि सूर्यमल के दत्तक पुत्र मुरारीदान ने पूरा किया था
वंश भास्कर में राजस्थान के बूंदी जिले का इतिहास वर्णित है वंश भास्कर उन्नीसवीं शताब्दी में रचित राजस्थान के इतिहास से सम्बंधित एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक पिंगल काव्य ग्रंथ है। इस में बूँदी राज्य एवं उत्तरी भारत का इतिहास वर्णित है।

सूर्यमल्ल मिश्रण साहित्य के माध्यम से लोगों को जागृत 

महाकविसूर्यमल्ल मिश्रण की जयंती पर रविवार को भारतीय सांस्कृतिक निधि इंटेक की ओर से विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन हुआ सुबह रानीजी की बावड़ी के समीप स्थित महाकवि की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया इसके बाद हुई संगोष्ठी में इंटेक संयोजक विजयराज सिंह मालकपुरा ने कहा कि मिश्रण ने भारतीय स्वाधीनता संग्राम में अपने साहित्य के माध्यम से लोगों को जागृत करने में योगदान दिया।

वंश भास्कर का कार्य 

वंश भास्कर राजस्थान के इतिहास से सम्बंधित एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक कृति है जिसकी रचना चारण कवि सूर्यमल्ल मिश्रण द्वारा उन्नीसवीं शताब्दी में की गई थी कवि सूर्यमल बूँदी के हाड़ा शासक महाराव रामसिंह के दरबारी कवि थे 19वीं शताब्दी में रचित इस पिंगल काव्य ग्रंथ में बूँदी राज्य का विस्तृत ऐतिहासिक एवं उत्तरी भारत का इतिहास तथा राजस्थान में मराठा विरोधी भावना का उल्लेख किया गया है वंश भास्कर को पूर्ण करने का कार्य कवि सूर्यमल के दत्तक पुत्र मुरारीदान ने किया था।

सूर्यमल्ल मिश्रण के दोहे 

धमचक्क रचक्कन लग्गि लचक्कन, कोल मचक्कन तोल कढ्यो।
पखरालन भार खुभी खुरतालन, व्याल कपालन साल बढ्यो।।
डगमग्गि सिलोच्चय श्रृंग डुले, झगमग्गि कुपानन अग्गि झरी।
बजि खल्ल तबल्लन हल्ल उझल्लन, भुम्मि हमल्लन घुम्मि भरी

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