बनिया में कितने गोत्र होते हैं

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गूजर शब्द गूर्जर का अपभ्रंश है। जो क्षत्रिय प्रायः गूर्ज से ही युद्ध करते थे वे गूर्जर कहलाये | गूर्ज लकड़ी के नीचे लोहे का ठोस पोला लगाकर बनता है। इससे चोट ज्यादा लगती है। गूर्जरों के द्वारा शासित प्रदेश गूर्जर देश सातवीं शताब्दी में कहलाता था। तब भीनमाल इनकी राजधानी थी। शेखावाटी क्षेत्र में बड़गगूजरों का राज्य था। ग्वालियर नरेश राजा मानसिंह की रानी गूजरी ही थी। गौर वर्ण और बलिष्ठ होने के कारण कई नरेशों के राजकुमारों को दूध पिलाने को गूर्जर महिलाओं को रखा जाता था। इस कारण यह जाति धायभाई के नाम से भी प्रसिद्ध है। बारहवीं शताब्दी तक पुष्कर के मंदिरों में पुजारी ज्यादातर गूजर ही थे तथा वही मंदिरों का चढ़ावा लेते थे। बाद में ब्राह्मण पुजारी लग गए। मेवाड़ क्षेत्र में गढ़बोर चारभुजा मंदिर के पुजारी गूजर ही हैं।

गूजर जाति के पुरोहित नहीं होते हैं। गूजर जाति के लोग केवल दिवाली पर ही श्राद्ध करते हैं। श्राद्ध तर्पण दिवाली के दिन किसी तालाब पर सब गांव के गूजर इकट्ठे होकर तड़के ही मूडापणती, कुशा, ओधा और कोई बेल पानी में डाल सभी उसे पकड़कर तर्पण करते हैं। गूजर डेरीमाता और देवजी भैरवजी के उपासक हैं। इनके ताबीज (फूल) सोना व चाँदी में मँढ़वाकर गले में पहनते हैं।

गूजरों की उत्पत्ति –
संस्कृत के विद्वानों के अनुसार, गुर्जर शुद्ध संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ ‘शत्रु का नाश करने वाला’ अर्थात ‘शत्रु विनाशक’ होता है। प्राचीन महाकवि राजशेखर ने गुर्जर नरेश महिपाल को अपने महाकाव्य में ‘दहाड़ता गुर्जर’ कहकर सम्बोधित किया है।

कुछ इतिहासकार कुषाणों को गुर्जर बताते हैं तथा कनिष्क के रबातक शिलालेख पर अंकित ‘गुसुर’ को गुर्जर का ही एक रूप बताते हैं। उनका मानना है कि गुसुर या गुर्जर लोग विजेता के रूप में भारत में आये क्योंकि गुसुर का अर्थ ‘उच्च कुलीन’ होता है।

गुर्जर अभिलेखों के हिसाब से ये सूर्यवंशी या रघुवंशी हैं। प्राचीन महाकवि राजशेखर ने गुर्जरों को ‘रघुकुल-तिलक’ तथा ‘रघुग्रामिणी’ कहा है। 9वीं से 10वीं शतब्दी के गुर्जर शिलालेखों पर सुर्यदेव की कलाकृतियाँ भी इनके सुर्यवंशी होने की पुष्टि करती हैं। राजस्थान में आज भी गुर्जरों को सम्मान से ‘मिहिर’ बोलते हैं, जिसका अर्थ ‘सूर्य’ होता है। कुछ इतिहासकारों के अनुसार गुर्जर मध्य एशिया के कॉकस क्षेत्र (अभी के आर्मेनिया और जॉर्जिया) से आए आर्य योद्धा थे। कुछ विद्वान इन्हें विदेशी भी बताते हैं क्योंकि गुर्जरों का नाम एक अभिलेख में हूणों के साथ मिलता है, परन्तु इसका कोई एतिहासिक प्रमाण नहीं है।

गूजरों का इतिहास –
गूर्जर समाज, प्राचीन एवं प्रतिष्ठित समाज में से एक है। यह समुदाय गुज्जर, गूजर, गोजर, गुर्जर, गूर्जर और वीर गुर्जर नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू गुर्जरों के लगभग 85 गोत्र होते हैं। गूजर प्राचीन काल से ही वीर और पराक्रमी होते आए हैं। गूजर मुख्यतः उत्तर भारत, पाकिस्तान और अफ़्ग़ानिस्तान में बसे हैं। इस जाति का नाम अफ़्ग़ानिस्तान के राष्ट्रगान में भी आता है। गुर्जरों के ऐतिहासिक प्रभाव के कारण उत्तर भारत और पाकिस्तान के बहुत से स्थान गुर्जर जाति के नाम पर रखे गए हैं, जैसे कि भारत का गुजरात राज्य, पाकिस्तानी पंजाब का गुजरात ज़िला और गुजराँवाला जिला और रावलपिंडी जिले का गूजर ख़ान शहर ।

गूजरों का साम्राज्य –
इतिहास के अनुसार 5वीं सदी में भीनमाल गुर्जर सम्राज्य की राजधानी थी तथा इसकी स्थापना गुर्जरों ने की थी । भरुच का सम्राज्य भी गुर्जरों के अधीन था। चीनी यात्री ह्वेन्सान्ग अपने लेखो में गुर्जर सम्राज्य का उल्लेख करता तथा इसे ‘kiu-che-lo’ बोलता है। छठी से 12वीं सदी में गुर्जर कई जगह सत्ता में थे। गुर्जर-प्रतिहार वंश की सत्ता कन्नौज से लेकर बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात तक फैली थी। मिहिरभोज को गुर्जर-प्रतिहार वंश का बड़ा शासक माना जाता है और इनकी लड़ाई बंगाल के पाल वंश और दक्षिण भारत के राष्ट्रकूट शासकों से होती रहती थी। 12वीं सदी के बाद प्रतिहार वंश का पतन होना शुरू हुआ और ये कई हिस्सों में बँट गए जैसे राजपूत वंश (चौहान, सोलांकी, चदीला और परमार) | अरब आक्रान्तों ने गुर्जरों की शक्ति तथा प्रशासन की अपने अभिलेखों में भूरि-भूरि प्रशंसा की है। इतिहासकार बताते हैं कि मुगल काल से पहले तक लगभग पूरा राजस्थान तथा गुजरात, ‘गुर्जरत्रा’ (गुर्जरो से रक्षित देश) या गुर्जर-भूमि के नाम से जाना जाता था । अरब लेखकों के अनुसार गुर्जर उनके सबसे भयंकर शत्रु थे। उन्होंने ये भी कहा है कि अगर गुर्जर नहीं होते तो वो भारत पर 12वीं सदी से पहले ही अधिकार कर लेते । 18वीं सदी में भी गुर्जरों के कुछ छोटे छोटे राज्य थे । दादरी के गुर्जर राजा, दरगाही सिंह के अधीन 133 ग्राम थे । मेरठ का राजा गुर्जर नैन सिंह था तथा उसने परिक्शित गढ का पुत्रनिर्माण करवाया था। भारत गजीटेयर के अनुसार 1857 की क्रान्ति में, गुर्जर तथा ब्रिटिश के बहुत बुरे दुश्मन साबित हुए। गुर्जरों का 1857 की क्रान्ति में भी अहम योगदान रहा है। कोतवाल धानसिंह गुर्जर 1857 की क्रान्ति का शहीद था । पन्ना धाय जैसी वीरांगना पैदा हुई, जिसने अपने बेटे चन्दन का बलिदान देकर उदय सिंह के प्राण बचाए । बिशालदेव गर्जर बैसला (अजमेर शहर के संस्थापक) जैसे वफादार दोस्त हए |

क्रांतिकारी नेता हुए, जो राजा-महाराजा किसानों को लूटा करते थे, उनके खिलाफ आँदोलन चलाकर उन्होंने किसानों को मजबूत किया। मोतीराम बैसला जैसे पराक्रमी हुए जिन्होंने मुगलों औऱ जाटों को आगरा में ही रोक दिया । धनसिंहजी कोतवाल हुए, जिन्होंने सबसे पहले मेरठ में अंग्रेजों से लड़ने का बिगुल बजाया, सरदार वल्लभ भाई पटेल जैसा महापुरुष पैदा हुआ, जिन्होंने पूरे देश के राजा-महाराजाओं की विरासत को एक करके नवभारत का निर्माण किया । इस देश की रक्षा के लिए इस वीर गुर्जर जाति ने लाखों बच्चों की कुर्बानियाँ दी थी, अंग्रेजों की नाक में नकेल कसने वाले गुर्जरों को अंग्रेजों ने क्रिमिनल ट्राइब (यानी बदमाश समुदाय) कह कर पुकारा था । इसलिए उस वक़्त अंग्रेज़ों की सरकार ने गुर्जरों को बागी घोषित कर दिया था, इसी वजह से गुर्जर जंगलों और पहाड़ों में रहने लगे और इसी वजह गुर्जर पढाई-लिखाई से वंचित रह गये।

गूजरों की निम्न खांपें हैं –
कोली, दहिया, हलसर, खटाण, भडक, नेकाडी, चाड, भाटी, धरड़, गेदां, डोया, खोडवा, बावला, वासला, बराबल, बगडवाल, भाभड़ा, चान्दण, गुँजल, लीवस्या, सराधना, चादीजा, मोरसर, कसाणो, खाटरा, पढ़िहार | इनके अलावा भी कई खांपें हैं यथा चहुवाण, बागड़ी आदि ।

गुर्जर समाज की कुलदेवियां –
यदि आपके पास गुर्जर समाज की खांप के अनुसार किसी कुलदेवी की जानकारी है तो कृपया Comment Box में जरूर बताएं। कृपया कुलदेवी के नाम के साथ खांप का नाम जरूर लिखें। आपके द्वारा दी गई जानकारी समाजहित में बहुत काम आएगी।

ग्रेटर नोएडा – नोएडा-ग्रेटर नोएडा से गुर्जरों का खास नाता रहा है। इस समाज को अलग-अलग एरिया में गुज्जर, गूजर, गोजर, गुर्जर और गूर्जर के नाम से जाना जाता है। इस समय नोएडा-ग्रेटर नोएडा एरिया में 65 से 70 गोत्र के लगभग 2 लाख गुर्जर रह रहे हैं। आजादी की लड़ाई में गुर्जरों का बेहद खास रोल रहा है। यहां के गुर्जरों ने 1857 की लड़ाई में राजा राव उमर सिंह की अगुवाई में अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे। बाद में अंग्रेजों ने दमन चक्र चलाया और राव उमर सिंह समेत हजारों गुर्जरों की हत्या कर दी। बड़ी संख्या में गुर्जर आंदोलनकारियों को बुलंदशहर के काला आम पर फांसी दी गई थी।

गुर्जर प्रमुख रूप से उत्तर भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में बसे हैं। अफगानिस्तान के राष्ट्रगान में भी गुर्जर शब्द आता है। गुर्जरों का ऐतिहासिक साम्राज्य रहा है, जिनमें सम्राट मिहिर भोज का नाम बेहद सम्मान के साथ लिया जाता है। कुछ इतिहासकारों का कहना है कि सम्राट कनिष्क भी गुर्जर थे, जिनसे कसाना गोत्र के गुर्जर बने। गुर्जरों के प्रभाव के कारण उत्तर भारत और पाकिस्तान के काफी स्थानों के नाम गुर्जर जाति के नाम पर रखे गए हैं। भारत में गुजरात, पाकिस्तानी पंजाब का गुजरात जिला और गुजरांवाला, रावलपिंडी का गूजर खान शहर इसमें शामिल हैं।

1857 की क्रांति में भी योगदान –
मेरठ में कोतवाल धनसिंह गुर्जर 1857 की क्रांति में शहीद हुए थे। दादरी में राव उमराव सिंह भाटी, बिशन सिंह, दरयाव सिंह, फत्तन ने अंग्रेजों से डटकर मुकाबला किया था। राव उमराव सिंह (1832-1857) ने 12 मई 1857 को सिकंदराबाद तहसील पर धावा बोला था। 7 दिन तक उनका अंग्रेज सेना से युद्ध चला था। 19 मई को सेना ने 46 लोगों को बंदी बना लिया। उमराव सिंह ने 21 मई को बुलंदशहर जेल पर धावा बोलकर अपने साथियों को छुड़ा लिया। इसके बाद उन्होंने हिंडन नदी के तट पर 30 व 31 मई को और 26 सितंबर 1857 को कासना-सूरजपुर के बीच अंग्रेजों के साथ युद्ध किया। इसमें उमराव सिंह ने दादरी में अंग्रेजों को बंदी बना लिया था। खेतों में उनसे हल चलवाया। उनकी तोप व हाथी-घोड़े जब्त कर लिए गए। अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर ने राव उमराव सिंह को दादरी का राजा घोषित किया था। बाद में उमराव सिंह गुर्जर और उनके परिजनों को गिरफ्तार कर बुलंदशहर के काला आम चौराहे पर हाथी के पैरों तले कुचलवाया और फांसी पर लटका दिया। अंग्रेजों ने गुर्जरों के खिलाफ दमन चक्र चलाया और गुर्जरों को अपराधी जाति घोषित कर दिया। इसके कारण गुर्जर विकास की दौड़ में पिछड़ गए। आजादी के बाद गुर्जरों को अपराधी जाति से बाहर किया गया।

करीब 70 गोत्र –
गुर्जर ह्यूमन रिसोर्सेज मैनेजमेंट एंड सोशल सर्विस के सचिव एडवोकेट रणपाल अवाना के अनुसार जिले में 65 से 70 गोत्र के गुर्जर रहते हैं। इनमें भाटी और नागर गोत्र के गुर्जर सबसे अधिक हैं। नोएडा-ग्रेनो एरिया में भाटी, नागर, अधाना, चपराना, बैसला, चावड़ा, चंदेल, चंदीला, डहालिया, मावी, तोंगड, कसाना, भड़ाना, अवाना, अंबावता, बैसोया, बिधूड़ी, बोकन, बट्ट, बड्डी, चेची, छाबरा, छोकर, चौहान, छापा, डेढ़ा, दहिया, धामा, गेहलौत, पटेल, गोगला, हूण, खारी, कपासिया, खोखर, तंवर, लोहिया, लोहमोड़, पोसवाल, पंवार और तोमर गोत्र के गुर्जर रह रहे हैं।

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