बेणेश्वर धाम मेला कब लगता है

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बेणेश्वर धाम मेला कब लगता है

बेणेश्वर मंदिर डूंगरपुर का एक प्रमुख मंदिर है जो सोम और माही नदियों के संगम पर बनने वाले डेल्टा पर स्थित है। 5 फिट ऊँचे भगवान शिव के इस लिंग को स्वयंभू माना जाता है। बेणेश्वर मंदिर डूंगरपुर के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है जो स्थानीय लोगो के साथ-साथ पर्यटकों के लिए आस्था केंद्र बना हुआ है। बेणेश्वर मंदिर के समीप ही 1793 ई में निर्मित विशु मंदिर है जो जनकुंवरी की बेटी हैं। जनकुंवरी एक अत्यंत पूजनीय संत हैं जो भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। बेणेश्वर मंदिर एक ऐसा स्थान है जिसे आदिवासी संस्कृति से जुड़े इतिहास के कारण दुनिया भर में मान्यता प्राप्त है।

अगर आप डूंगरपुर की यात्रा करने जा रहें हैं तो आपको भगवान शिव के दर्शन करने के लिए बेणेश्वर मंदिर की यात्रा अवश्य करनी चाहिए। लेकिन उससे पहले इस लेख को पूरा जरूर पढ़े जिसमे हम आपको बेणेश्वर मंदिर मंदिर घूमने की पूरी जानकारी बताने वाले है |

बेणेश्वर मेला 2022 –
बेणेश्वर मेला, डुंगरपुर जिले में आयोजित होने वाला लोकप्रिय मेला है फरवरी मार्च माह में आयोजित आदिवासी बड़ी संख्या में लोग शामिल होते हैं बेणेश्वर का यह मेला माघ शुक्ल पूर्णिमा के अवसर पर सोम, माही व जाखम नदियों के पवित्र संगम पर डूंगरपुर से करीब 65 किमी बेणेश्वर नामक स्थान पर भरता हैं |

तीनों नदियों के संगम पर स्थित इस स्थान पर डुबकी लगाने के पश्चात भगवान भोलेनाथ के दर्शन के लिए बेणेश्वर मंदिर जाने की तमन्ना हर किसी की रहती है बेणेश्वर के मंदिर के परिसर में लगने वाला यह मेला भगवान शिव को समर्पित होता है |

बेणेश्वर में भगवान शिव के साथ साथ विष्णु जी का मंदिर भी हैं. इस मंदिर के बारे में कहा जाता हैं कि विष्णु जी के अवतार मावजी महाराज ने यहाँ कठोर तपस्या की थी, यहाँ मावजी का भी एक विशाल मंदिर बना हुआ हैं |

संत मावजी –
बेणेश्वर धाम तीन नदियों के बीच 250 एकड़ में बसा छोटा सा टापू हैं, जहाँ कई हिन्दूओं की आदिवासी संस्कृति से जुड़े कई मंदिर हैं डूंगरपुर महारावल आसकरण ने 1500 ई के आसपास शिव मंदिर का निर्माण करवाया था |

18 वीं सदी में साबला में संत मावजी का जन्म साबला डूंगरपुर में हुआ था. मावजी ने शिव मन्दिर में बैठकर ही तपस्या की तथा चौपडा लिखा था मावजी महाराज ने सोमसागर, प्रेमसागर, मेघसागर, रत्नसागर एवं अंनतसागर इन पांच पुस्तकों की रचना की थी |

बेणेश्वर मंदिर खुलने और बंद होने का समय –
बेणेश्वर मंदिर श्रद्धालुओं के घूमने और भगवान के दर्शन के लिए सूर्योदय से लेकर रात 8.00 बजे तक खुला रहता है। आपको बता दे मंदिर की पूर्ण और सुखद यात्रा के लिए 1-2 घंटे का समय मंदिर में अवश्य व्यतीत करें।

जानिए क्या है मान्यताएं और परम्पराएं –
लोगों का मानना है कि बेणेश्वर त्रिवेणी संगम से जुड़ी नदी सोम यदि पहले पूर्ण प्रवाह के साथ बहे तो उस वर्ष चावल की फसल अच्छी होती है वहीं माही में जल प्रवाह पहले होने पर समय ठीक नहीं माना जाता है |
बेणेश्वर महामेले के सभी दिनों में भगवान को अलग-अलग भोग लगता है माघ शुक्ल पूर्णिमा को शीरा, माघ कृष्ण प्रतिपदा को दाल-बाटी, द्वितीया को दाल-बाटी, तृतीया को पूड़ी-शीरा, चतुर्थी को दाल-रोटी, पंचमी को मोदक, दाल-बाटी आदि |

बेणेश्वर धाम घूमने जाने का सबसे अच्छा समय –
वैसे तो आप बेणेश्वर मंदिर डूंगरपुर की यात्रा साल के किसी भी समय कर सकते हैं, लेकिन डूंगरपुर घूमने का सबसे अच्छा समय सर्दियों (अक्टूबर से फरवरी) के दौरान होता है क्योंकि इस समय डूंगरपुर का मौसम खुशनुमा रहता है जिससे यहाँ के दर्शनीय स्थलों की यात्रा का पूरा मजा उठाया जा सकता है। और इसके अलावा आप यहाँ जनबरी और फरवरी के बीच आयोजित होने वाले बाणेश्वर मेला में भी शामिल हो सकते है। आपको बता दे मार्च से शुरू होने वाली ग्रीष्मकाल के दौरान डूंगरपुर की यात्रा से बचें क्योंकि इस समय डूंगरपुर राजस्थान का तापमान 45 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच जाता है जो आपकी डूंगरपुर की यात्रा को हतोत्साहित कर सकता है।

बेणेश्वर धाम का इतिहास –
अंग्रेजी महीनों के अनुसार फरवरी माह में बेणेश्वर का मेला भरता हैं मेले के दौरान कई धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता हैं |

राजस्थान, मध्यप्रदेश तथा गुजरात राज्यों से बड़ी संख्या में भील व आदिवासी समुदाय के लोग आते हैं आदिवासियों के मुख्य संत मावजी हैं जिन्हें इस दिन विशेष रूप से याद किया जाता हैं

मेले के दौरान बाणेश्वर महादेव का मंदिर सुबह पांच बजे से रात के 11 बजे तक खुला रहता है सुबह के समय शिवलिंग को स्नान कराने के बाद केसर का भोग लगाया जाता है और उसके आगे जलती अगरबत्ती की आरती की जाती है |

शाम को लिंग पर ‘भभुत’ (राख) लगाया जाता है और महीन बाती वाला दीपक जलाकर आरती की जाती है। भक्त गेहूं का आटा, दाल, चावल, गुड़, घी, नमक, मिर्च, नारियल और नकदी चढ़ाते हैं |

बाणेश्वर मेले में भाग लेने वाले भील हर रात अलाव के आसपास बैठकर ऊंची आवाज में पारंपरिक लोक गीत गाते हैं. कल्चरल शो का आयोजन कबीले के युवाओं द्वारा किया जाता है। कार्यक्रम में भाग लेने के लिए ग्रामीणों के समूहों को भी आमंत्रित किया जाता है |

दुनियाभर में आदिवासी संस्कृति की पहचान का यह सबसे बड़ा धाम हैं इसलिए इसे आदिवासियों का कुम्भ भी कहा जाता हैं प्राकृतिक मनोरम स्थली के बीच बने बेणेश्वर धाम में विभिन्न संस्कृतियों का नजारा देखते ही बनता हैं बताया जाता हैं कि पिछले तीन सौ वर्षों से लगातार यहाँ पर मेला भरता हैं |

इस धाम पर भारत के विभिन्न क्षेत्र मुख्यतः उतरी भारत से अलग-अलग संप्रदाय ,पंथो, महाजन ,भक्तगण एवं श्रद्धालु इस मेले के शुभारंभ के मौके पर यहाँ पहुचते हैं |

रात में यहाँ लोक नृत्य में भक्त शामिल होते हैं दूर दराज से भक्त गण यहाँ अपनी मनोकामनाओं को लेकर आते हैं भक्ति समागम में मावजी, कबीर और मीरा के भजन रातभर गूंजते हैं |

सालभर एकादशी, पूर्णिमा, अमावस्या, संक्रांतियों और कई पर्व व त्यौहारों पर बेणेश्वर के पवित्र संगम तीर्थ में स्नान का यह रिवाज कई सदियों से चला आ रहा है, लेकिन माघ माह में बेणेश्वर धाम की स्नान परंपरा का विशेष महत्व रहा है

फरवरी-मार्च में आयोजित होता है बेणेश्वर मेला –
आमतौर पर यह मेला फरवरी-मार्च में आयोजित होता है। माघ में शुक्ल पक्ष की एकादशी को मेले का आगाज होता है। पूर्णिमा को मुख्य मेला होता है। माघ पूर्णिमा के दिन इस संगम पर स्नान करने से कई गुणा पुण्य मिलता है। इस वजह से पूर्णिमा के दिन यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु जुटते है और पवित्र नदियों के संगम में स्नान करते है।

पर्यटक के लिये खास है राजस्थान का यह मेला –
मेले का मुख्य आकर्षण आदिवासी है। इस दौरान आदिवासियों की संस्कृति यहां नजर आती है। इसे देखने के लिये बड़ी संख्या में ट्यूरिस्ट यहां आते है। ट्रेवल और ट्यूर एजेंसियों ने इस मेले को ट्यूर पैकेज में शामिल करना शुरू कर दिया है। इसे आदिवासियों को कुंभ, वागड़ प्रयाग या वागड़ वृन्दावन भी कहा जाता है।

यहां प्राचीनतम बेणेश्वर शिवालय, राधा-कृष्ण मंदिर, वेदमाता, गायत्री, जगत पिता ब्रह्मा, वाल्मीकी के प्रसिद्ध मंदिर है। मेले में परंपरागत भजन गायकी प्रसिद्ध है। तानपूरे, तम्बूरे, कौण्डियों, ढ़ोल, मंजीरे, हारमोनियम आदि की संगत पर स्वर लहरियां मेले में जगह—जगह सुनाई देती है।

बेणेश्वर धाम पर व्यवस्थाओं के लिए दिए आवश्यक निर्देश –
आस्था के धाम बेणेश्वर पर दर्शनों के लिए श्रद्धालुओं के अधिक संख्या में पहुंचने की संभावना को देखते हुए आवश्यक व्यवस्थाओं का समुचित प्रबंधन किया। उन्होंने धाम पर बिजली एवं पेयजल की व्यवस्था को लेकर उपखण्ड अधिकारी एवं विकास अधिकारी को निर्देश दिए। साथ ही सम्पूर्ण स्थल पर सफाई करवाने, डस्टबिन लगवाने, मेडिकल व्यवस्था करने, पार्किग व्यवस्था के लिए संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिए। चिकित्सा अधिकारी को अस्थाई मेडिकल केम्प लगाने, एम्बुलेंस की व्यवस्था रखने, कोरोना संक्रमण बचाव को लेकर जागरूकता फ्लेक्स लगाने के निर्देश दिए। उन्होंने नगरपरिषद एवं नगरपालिका आयुक्त से चल शौचालय व्यवस्था सुनिश्चित कराने एवं अग्निशमन की उपलब्धता कराने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने मंदिर परिसर में दर्शनार्थियों के मध्य सोशल डिस्टेंस की पालना के लिए गोले बनवाने, मास्क के अनिवार्य उपयोग के लिए नो मास्क नो एंट्री के बोर्ड लगवाने के निर्देश दिए। एसपी सुधीर जोशी ने मेला स्थल पर कोविड गाइडलाइन का पालन करने, ट्राॅफिक व्यवस्था एवं शांति व्यवस्था बनाये रखने को लेकर अस्थाई पुलिस चौकी लगाने की जानकारी दी। एडीएम कृष्ण्पाल सिंह चौहान ने धाम स्थल पर बिजली के ढीले तार ठीक करवाने एवं टॉर्च, बल्लियां, ट्यूब, नाव एवं गोताखोर की व्यवस्था कराने के संबंधित विभागीय अधिकारियों को निर्देश दिए।

बेणेश्वर धाम डूंगरपुर कैसे जाये –
अगर आप बेणेश्वर मंदिर डूंगरपुर घूमने जाने की योजना बना रहें हैं तो आपको बता दें आप सड़क, रेल और हवाई मार्ग से यात्रा करके बेणेश्वर मंदिर डूंगरपुर पहुंच सकते है।

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