जैसलमेर के प्रमुख मंदिर

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जैसलमेर के प्रमुख मंदिर

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बाबा रामदेव जी मंदिर जैसलमेर :-
रामदेवरा मंदिर जैसलमेर का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है जो भारी संख्या में भक्तों को अपनी तरफ आकर्षित करता है। ऐसा माना जाता है कि 1459 ई में इस स्थान पर बाबा रामदेवजी ने समाधि थी। जिसके बाद बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह ने यहां समाधि के चारों ओर मंदिर का निर्माण कराया। यह मंदिर राजस्थान के लोक देवता बाबा रामदेवजी को समर्पित है जिसे बेहद पवित्र माना जाता है। यह मंदिर जोधपुर से जैसलमेर मार्ग पर पोखरण से 12 किलोमीटर दूर स्थित है। जैसलमेर में प्रसिद्ध मन्दिर|
बता दें कि रामदेवजी को हिंदुओं द्वारा भगवान कृष्ण का अवतार माना जाता है तथा मुसलमानों द्वारा उन्हें रामशाह पीर के रूप में जाना जाता है और माना जाता है कि उनके पास कई चमत्कारी शक्तियां हैं। अगर आप रामदेवरा मंदिर के इतिहास, वास्तुकला और जाने के बारे में जानकारी चाहते हैं तो इस लेख को जरुर पढ़ें, यहां हम आपको बाबा रामदेव जी मंदिर जाने के बारे में पूरी जानकारी देने जा रहें हैं।

बाबा रामदेव जी मंदिर का धार्मिक महत्व :-
रामदेवजी एक ऐसे संत थे जिन्होंने अपना जीवन समाज के दलित लोगों के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया। उनके भक्त राजस्थान, पंजाब, मध्य प्रदेश, हरियाणा और गुजरात में फैले हुए हैं जो हिंदुओं और मुसलमानों के बीच जाति बाधाओं को खत्म करते हैं। बाबा रामदेव जी मंदिर परिसर में मुख्य आकर्षण रामदेव द्वारा निर्मित टैंक है जिसे रामसागर तालाब के नाम से जाना जाता है। यहां पर साल अगस्त और सितंबर के दौरान रामदेवरा मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें भारी संख्या में भक्त शामिल होते हैं। मेले में रात भर भजन और कीर्तन के साथ बाबा रामदेव को श्रद्धांजलि दी जाती है। जैसलमेर में प्रसिद्ध मन्दिर |

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रामदेवरा मंदिर का इतिहास :-
रामदेवरा मंदिर रामदेवजी बाबा को समर्पित है, जो एक राजपूत थे और जो 14 वीं शताब्दी के अंत में तोमर राजपूत परिवार में पैदा हुए थे। रामदेवजी ने अपने भौतिकवादी जीवन को त्याग दिया और मानव जाति की सेवा के लिए अपने जीवन में बहुत पहले से ही साधुवाद स्वीकार कर लिया। एक पौराणिक कथा में उन्होंने कई चमत्कार किये थे। लेकिन 33 वर्ष की आयु में, बाबा रामदेवजी ने समाधि लेकर को अपने नश्वर शरीर को त्याग किया था। रामदेवरा मंदिर जोधपुर और बीकानेर के महाराजा महाराजा गंगा सिंह द्वारा 1900 की शुरुआत में बनाया गया था जिस जगह पर उन्होंने समाधि ली थी। जैसलमेर में प्रसिद्ध मन्दिर |
ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने एक राक्षस को मार दिया था और उन्होंने कई चमत्कार किये थे। रामदेवजी ने अपना जीवन अपने लोगों के कल्याण के लिए समर्पित किया, इसलिए यह माना जाता था कि वे भगवान कृष्ण के अवतार थे और मुस्लिम समुदाय के भी बेहद खास थे।

बाबा रामदेव मंदिर की वास्तुकला :-
रामदेवरा मंदिर में एक वास्तुकला है जो पारंपरिक आधुनिक हिंदू मंदिर प्रभावों से भरपूर है। यह मंदिर पूरी तरह से ईंट और मोर्टार से बना है और इसमें बड़े पैमाने पर प्रवेश द्वार है जो रंगीन चित्रों से सजा हुआ है। एक लंबी सीढ़ी मंदिर तक लेके जाती है, जिसमें रामदेवजी बाबा की मूर्ति और गर्भगृह है। मुख्य मंदिर चांदी के जटिल नक्काशीदार, रामदेवजी के रंगीन चित्रों, ऐतिहासिक चित्रों और कई घोड़े प्रतिकृतियों से सजा हुआ है। जैसलमेर में प्रसिद्ध मन्दिर |

रामदेवरा मंदिर का टाइमिंग :-
भक्त सुबह 4:00 बजे – रात 9:00 बजे तक मंदिर में दर्शन करने के लिए जा सकते हैं।

बाबा रामदेव मंदिर घूमने जाने का सबसे अच्छा समय :-
रामदेवरा मंदिर की यात्रा के लिए सर्दियों का मौसम सबसे अच्छा मौसम है। अक्टूबर – मार्च के महीनों के दौरान रामदेवरा मंदिर यात्रा के लिए आदर्श समय होता है। मानसून भी यहां की यात्रा के लिए अच्छा समय है। गर्मियों का मासूम मौसम यहां की यात्रा के लिए बिलकुल भी उचित नहीं है, राजस्थान में स्थित होने की वजह से यहां असहनीय गर्मी पड़ती है। यहां पर साल अगस्त और सितंबर के दौरान रामदेवरा मिला लगता है इस दौरान यात्रा करके अप एक खास अनुभव प्राप्त कर सकते हैं। जैसलमेर में प्रसिद्ध मन्दिर |

रामदेवरा मंदिर के पास घूमने लायक जगह :-
रामदेवरा मंदिर जैसलमेर का एक बहुत प्रमुख मंदिर है, अगर आप बाबा रामदेव मन्दिर की यात्रा करने की सोच रहे है तो, जैसलमेर के कुछ मशहूर पर्यटन स्थल के बारे में जरुर जन ले।

तनोट माता का मंदिर :-
तनोट माँ (तन्नोट माँ) का मन्दिर जैसलमेर जिले से लगभग एक सौ तीस कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित हैं। तनोट राय को हिंगलाज माँ का ही एक रूप कहा कहा जाता है। हिंगलाज माता जो वर्तमान में बलूचिस्तान जो पाकिस्तान में है , वहाँ स्थापित है। भाटी राजपूत नरेश तणुराव ने वि॰सं॰ 828 में तनोट का मंदिर बनवाकर मूर्ति को स्थापित किया था। इसी बीच भाटी तथा जैसलमेर के पड़ौसी इलाकों के लोग आज भी इस माता को पूजते आ रहे हैं।

भारत-पाक युद्ध के समय तनोट माता का अद्भुत चमत्कार :-
माना गया है कि भारत और पाकिस्तान के मध्य जो सितम्बर 1965 को लड़ाई हुई थी , उसमें पाकिस्तान के सैनिकों ने मंदिर पर कई बम गिराए थे लेकिन माँ की कृपा से एक भी बम नहीं फट सका था। तभी से सीमा सुरक्षा बल के जवान इस मन्दिर के प्रति काफी श्रद्धा भाव रखते हैं।

तनोट माता के मंदिर का इतिहास :-
मंदिर के एक पुजारी ने मंदिर के इतिहास के बारे में उल्लेख किया कि बहुत समय पहले एक मामड़िया चारण नाम का एक चारण था, जिनके कोई ‘बेटा-बेटी’ अर्थात कोई संतान नहीं थी, वह संतान प्राप्ति के लिए लगभग सात बार हिंगलाज माता की पूरी तरह से पैदल यात्रा की। एक रात को जब उस चारण (गढवी ) को स्वप्न में आकर माता ने पूछा कि तुम्हें बेटा चाहिए या बेटी , तो चारण ने कहा कि आप ही मेरे घर पर जन्म ले लो।
हिंगलाज माता की कृपा से उस चारण के घर पर सात पुत्रियों और एक पुत्र ने जन्म लिया। इनमें से एक आवड मा थी जिनको तनोट माता के नाम से जाना जाता है।

देवचन्द्रेश्वर महादेव मंदिर :-
जैसलमेर रियासतकाल से जैसलमेर नगर का देवचन्द्रेश्वर महादेव मंदिर शिवभक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है और इसी मंदिर पर सावन मास के प्रत्येक सोमवार और महाशिवरात्रि को सबसे पहले मेले भरते रहे हैं। जिनमें हजारों की तादाद में लोग शामिल होते हैं। वैसे इस मंदिर में प्रतिदिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शनार्थ पहुंचते हैं और भोले बाबा का जलाभिषेक करते हैं। इनमें महिलाओं की संख्या उल्लेखनीय होती है। वैसे तो प्रत्येक सोमवार को देवचंद्रेश्वर मंदिर में दर्शनार्थियों की अच्छी भीड़ उमड़ती है, लेकिन सावन मास के दौरान उनकी संख्या कई गुना तक बढ़ जाती हैं। सावन के प्रत्येक सोमवार को देवचन्द्रेश्वर महादेव मंदिर पर विशाल मेला भरता है। यह मेला रियासतकाल से भर रहा है। सावन के सोमवार को शहर भर से शिवभक्त इस मंदिर में भगवान शिवशंकर के दर्शन लाभ लेने के लिए पहुंचते हैं। मंदिर को आकर्षक लाइटिंग से सजाया जाता है। सावन और महाशिवरात्रि सहित अन्य विशेष धार्मिक महत्व की तिथियों को मंदिर में भंडारा होता है, जिसमें बड़ी तादाद में भक्तजन श्रद्धा-भावना के साथ प्रसादी ग्रहण करते हैं। गोपा चौक से दुर्ग के परकोटे के सहारे जाने वाले मार्ग का नामकरण शिव मार्ग इसी मंदिर के कारण पड़ा हुआ है। देवचन्द्रेश्वर महादेव मंदिर का सर्वांगीण विकास पिछले दो दशकों के दौरान हुआ है। इसके तहत मंदिर का विशाल परिसर बनाया गया और मस्तक पर चंद्रमा को संजोये शिव मंदिर के साथ परिसर के भीतर अन्य छोटे मंदिरों का भी जीर्णोद्धार हुआ। मंदिर के बाहर जैसलमेर के प्रसिद्ध खुदाई वाले पत्थरों से मुख्य द्वार बनाये जाने से यह आकर्षक बना और श्रद्धालुओं की सुविधा का भी पूरा ख्याल रखा गया। मंदिर के बाहरी हिस्से में स्थापित की गई सार्वजनिक प्याऊ से रोजाना हजारों लोग अपनी प्यास बुझाते हैं। मंदिर विकास कमेटी का गठन किया हुआ है। जानकारी के अनुसार मंदिर में आने वाले चढ़ावे, परिसर के बाहर बनाई गई दुकानों और जनसहयोग से धन संग्रह किया जाकर मंदिर का विकास करवाया गया है। मंदिर का विकास लगातार जारी है।
रियासतकाल से जैसलमेर नगर का देवचन्द्रेश्वर महादेव मंदिर शिवभक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है और इसी मंदिर पर सावन मास के प्रत्येक सोमवार और महाशिवरात्रि को सबसे पहले मेले भरते रहे हैं। जिनमें हजारों की तादाद में लोग शामिल होते हैं। वैसे इस मंदिर में प्रतिदिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शनार्थ पहुंचते हैं और भोले बाबा का जलाभिषेक करते हैं।

माता रानी भटियानी का मन्दिर :-
राणी भटियाणी जब अपनी सहेलियों के साथ तीज का झूला झूल कर वापस आयी तो लालसिंह को मृत पाया। राणी भटियाणी इस कुटिल चाल को समझ गयी और पुत्र वियोग में व्याकुल हो गयी। उसका मन कहीं भी नहीं लगता। अब वह अस्वस्थ रहने लगी उधर बड़ी रानी कुंवर लालसिंह को मरवा कर ही संतुष्ट नहीं हुई उसने राणी भटियाणी को भी मरवाने की सोच ली। उसने भटियाणी को जहर दिलवा दिया इस कारण वि.सं. 1775 माघ सुदी द्वितीया को उनका स्वर्गवास हो गया। राणी भटियाणी की मृत्यु का समाचार सुन कर जसोल ठिकाने में शोक छा गया। एक दिन राणी भटियाणी के गांव से दो ढोली शंकर व ताजिया रावल कल्याणमल के यहां कुछ मांगने के लिए चले आये। देवड़ी ने उन्हें भटियाणी के चबूतरे के आगे जाकर मांगने को कहा। दु:खी होकर ढोली अपने गाँव के ‘बाईसा के चबूतरे के आगे जाकर सच्चे मन से विनती करने लगे और आप बीती सुनायी।
राणी भटियाणी ने प्रसन्न होकर उन दोनों को साक्षात दर्शन दिए और ‘परचे के प्रमाण स्वरूप रावल कल्याणमल के नाम एक पत्र दिया जिसमें रावल की मृत्यु उसी दिन से बारहवें दिन होना लिखा और ऐसा ही हुआ। रावल कल्याणमल का स्वर्गवास ठीक बारहवें दिन हो गया। यह बात आस पास के गांवों में फैल गयी। इसके बाद तो राणी भटियाणी ने जनहित में अनेक परचे दिए। जसोल के ठाकुरों ने राणी भटियाणी के चबूतरे पर एक मंदिर बनवा दिया और उनकी विधिवत पूजा करने लगे। प्रतिवर्ष चैत्र और आश्विन माह के नवरात्र में वैशाख, भाद्रपद और “माघ महीनों की शुक्ल पक्ष की तेरस व चवदस को यहाँ श्रद्धालु आते हैं। मनौती पूरी होने पर जात देते है ‘कांचळी’, ‘लूगड़ी’, ‘बिंदिया और चूड़ियां राणी भटियाणी के भक्त जन चढ़ाते हैं।
राजस्थान ही नहीं भारतवर्ष के हर कोने से यहाँ पर श्रद्धालु आते हैं। राणी भटियाणी के नाम से एक पशु मेला भी आयोजित किया जाता है जिसमें ऊंट, घोड़े, बैल आदि खरीदने और बेचने के लिए व्यापारी आते हैं। जैसलमेर में प्रसिद्ध मन्दिर |

माता रानी भटियाणी की जीवनी :-
जैसलमेर जिले के गाँव जोगीदास में ठाकुर जोगराज सिंह भाटी के यहां वि.सं. 1725 में पुत्री का जन्म हुआ जिसका नाम स्वरूप कंवर रखा गया। बालिका बचपन से ही बड़ी रूपवती और गुणवान थी। विवाह योग्य होने पर स्वरूप कंवर का विवाह जसोल। रावल कल्याणमल से होना तय हुआ। कल्याणमल ने अपना पहला विवाह तो देवड़ी से किया था जब उनसे कोई संतान न हुई तो दूसरा विवाह स्वरूप कंवर भटियाणी से किया।
स्त्रियों में सोतिया डाह की भावना जन्म जात ही होती है। बड़ी रानी देवड़ी तो स्वरूप कंवर से प्रारम्भ से ही ईष्र्या करने लगी परन्तु राणी स्वरूप कंवर उसे अपनी बड़ी बहिन के समान समझती थी। जसोल ठिकाने में रानी स्वरूप कवर राणी भटियाणी के नाम से जानी जाने लगी। विवाह के दो वर्ष पश्चात् भटियाणी के पुत्र हुआ जिसका नाम लालसिंह रखा गया। रावल के दो विवाह करने के पश्चात् यह पहला पुत्र होने पर जसोल में खुशी मनाई गयी। रानी देवड़ी मन ही मन कुंठित रहने लगी और राणी भटियाणी के आंखों का तारा देवड़ी की आँखों में खटकने लगा।
कुछ समय पश्चात् देवड़ी के भी एक पुत्र हुआ परन्तु लालसिंह ही जसोल ठिकाने का उत्तराधिकारी बन सकता था क्योंकि देवड़ी का पुत्र तो उससे उम्र में छोटा था। इसी कुटिलता को लिए हुए देवड़ी ने लालसिंह की हत्या का षड़यंत्र रचा और वह उपयुक्त अवसर की तलाश में रहने लगी।
श्रावण की तीज के अवसर पर राणी भटियाणी अपनी सहेलियों के साथ बगीचे में झूला झूलने गयी परन्तु कुंवर लालसिंह को महल में अकेला ही सोया हुआ छोड़ गयी। देवड़ी ऐसे ही मौके की तलाश में थी। उसने कुंवर लाल को दूध में जहर मिलवा कर पिला दिया। एक मान्यता यह भी प्रचलित है कि कुंवर लालसिंह को महल की सीढियों से लुढ़का दिया गया और उसकी तत्काल मृत्यु हो गई। देवड़ी लालसिंह की मृत्यु के समाचार पाकर बड़ी प्रसन्न हुई। आखिर रास्ते का कांटा दूर हो गया अब मेरा पुत्र ही यहाँ का शासक बनेगा।

लक्ष्मीनाथ मंदिर :-
जैसलमेर के मंदिर की श्रृंखला में आप लक्ष्मीनाथ मंदिर के दर्शन का भी सौभाग्य प्राप्त कर सकते हैं। यह मंदिर प्रसिद्ध जैसलमेर के किले के अंदर स्थित है। लक्ष्मीनाथ मंदिर, देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु को समर्पित है। यह मंदिर श्रद्धालुओं के साथ-साथ भारी संख्या में जैसलमेर भ्रमण पर निकले पर्यटकों को भी अपनी ओर आकर्षित करता है। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण राव लुंकारन ने 1494 में किया था। यह एक आकर्षक मंदिर है, जो जैसलमेर किले परिसर को दिव्य बनाने का काम करता है। कला और इतिहास के प्रेमी यहां आ सकते हैं।

जैसलमेर का जैन मंदिर :-
हिन्दू मंदिर के अलावा आप जैसलमेर में जैन मंदिरों को भी देख सकते हैं। आप यहां के लोधुरवा जैन मंदिर के दर्शन कर सकते हैं। यह मंदिर जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर को समर्पित है। इतिहास के पन्ने बताते हैं कि इस 900 साल पुराने मंदिर को मुहम्मद गौरी ने 1152 ईस्वी में बर्बाद कर दिया था। बाद में स्थानीय लोगों द्वारा इस मंदिर का पुननिर्माण करवाया गया । कुछ नया जानने के लिए आप यहां यहां आ सकते हैं।

जैसलमेर का रामदेव मंदिर :-
हिन्दू देवी देवताओं से अलग आप यहां के स्थानीय देवता रामदेव जी के मंदिर के दर्शन भी कर सकते हैं। यह मंदिर यहां के प्रसिद्ध राजपूत राजा को समर्पित है, जिन्होंने समाज के गरीब लोगों के लिए बहुत कुछ किया। रामदेव जी, 14 वीं शताब्दी से संबंध रखते हैं, माना जाता है कि उनमें चमत्कारी शक्ति थी, उन्होंने अपनी संपूर्ण जीवन दीन-हीनों की सेवा में लगा दिया। रामदेव मंदिर जैसलमेर के रामदेवरा गांव में स्थित है, यहां के लोग उन्हें इष्ट देव की तरह मानते हैं। अगस्त और सितंबर के दौरान यहां बड़े मेले का भी आयोजन किया जाता है, जिसमें हिस्सा लेने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं।

जैसलमेर का चंद्रप्रभु मंदिर :-
उपरोक्त मंदिरों के अलावा आप यहां के प्रसिद्ध चंद्रप्रभु मंदिर के दर्शन भी कर सकते हैं। यह एक प्राचीन मंदिर है, जिसका निर्माण 15वीं-16वीं शताब्दी के मध्य किया गया था। यह एक जैन मंदिर है, जो जैन धर्म के आठवें तीर्थंकर चंद्रप्रभु को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण लाल बालू पत्थर से किया गया है, जो राजपूत वास्तुकला को प्रदर्शित करने का काम करता है। यह मंदिर गोल्डन फोर्ट के अंदर मौजूद है, और हर साल भारी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करने का काम करता है।

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