भारतेंदु हरिश्चंद्र कौन थे 

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भारतेंदु हरिश्चंद्र कौन थे 

नाम भारतेन्दु हरिश्चंद्र
जन्म 09 सितम्बर 1850
मृत्यु 06 जनवरी 1885
जन्म स्थान वाराणसी (भारत)
पिता बाबू गोपाल चन्द्र
उपलब्धि 1880 – भारतेन्दु की उपाधि

गजानन माधव मुक्तिबोध का जीवन परिचय –

भारतेन्दु हरिश्चंद्र को आधुनिक हिंदी साहित्य का पितामह कहा जाता हैं। बाबू भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का जन्म काशी नगरी के प्रसिद्ध ‘सेठ अमीचंद” के वंश में 09 सितम्बर सन् 1850 को हुआ था। वे हिन्दी में आधुनिकता के पहले रचनाकार थे। हिंदी पत्रकारिता, नाटक और काव्य के क्षेत्र में उनका बहुमूल्य योगदान रहा है। भारतेन्दु के नाटक लिखने की शुरुआत बंगला के विद्यासुंदर (1867) नाटक के अनुवाद से होती है।

भारतेन्दु हरिश्चंद्र का करियर –

पंद्रह वर्ष की अवस्था से ही भारतेन्दु ने साहित्य सेवा प्रारम्भ कर दी थी। अठारह वर्ष की अवस्था में उन्होंने “कविवचनसुधा” नामक पत्रिका निकाली, जिसमें उस समय के बड़े-बड़े विद्वानों की रचनाएं छपती थीं। वे बीस वर्ष की अवस्था में ऑनरेरी मैजिस्ट्रेट बनाए गए और आधुनिक हिन्दी साहित्य के जनक के रूप मे प्रतिष्ठित हुए। उन्होंने 1868 में “कविवचनसुधा”, 1873 में “हरिश्चन्द्र मैगजीन” और 1874 में स्त्री शिक्षा के लिए “बाला बोधिनी” नामक पत्रिकाएँ निकालीं। साथ ही उनके समांतर साहित्यिक संस्थाएँ भी खड़ी कीं। वैष्णव भक्ति के प्रचार के लिए उन्होंने “तदीय समाज” की स्थापना की थी।उन्होंने ‘हरिश्चंद्र पत्रिका”, ‘कविवचन सुधा” और ‘बाल विबोधिनी” पत्रिकाओं का संपादन भी किया था। भारतेन्दु के वृहत साहित्यिक योगदान के कारण हीं 1857 से 1900 तक के काल को भारतेन्दु युग के नाम से जाना जाता है। इन्होंने दोहा, चौपाई, छन्द, बरवै, हरि गीतिका, कवित्त एवं सवैया आदि पर भी काम किया था। बारबरा और थॉमस आर. मेटकाफ के अनुसार, भारतेंदु हरिश्चंद्र को उत्तर भारत में हिंदू “परंपरावादी” का एक प्रभावशाली उदाहरण माना जाता है। सबसे पहले भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने ही साहित्य में जन भावनाओं और आकांक्षाओं को स्वर दिया था। पहली बार साहित्य में ‘जन” का समावेश भारतेन्दु ने ही किया था। भारतेन्दु हरिश्चंद्र के जीवनकाल में ही कवियों और लेखकों का एक खासा मंडल चारों ओर तैयार हो गया था। हिन्दी साहित्य के इतिहास में इसे भारतेन्दु मंडल के नाम से जाना जाता है। इन सभी ने भारतेंदु हरिश्चंद्र के नेतृत्व में हिन्दी गद्य की सभी विधाओं में अपना योगदान दिया। ये लोग भारतेन्दु की मृत्यु के बाद भी लम्बे समय तक साहित्य साधना करते रहे।

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भारतेन्दु हरिश्चंद्र काव्य विशेषता –

भारतेंदु जी की यह विशेषता रही कि जहां उन्होंने ईश्वर भक्ति आदि प्राचीन विषयों पर कविता लिखी वहां उन्होंने समाज सुधार, राष्ट्र प्रेम आदि नवीन विषयों को भी अपनाया। अतः विषय के अनुसार उनकी कविता श्रृंगार-प्रधान, भक्ति-प्रधान, सामाजिक समस्या प्रधान तथा राष्ट्र प्रेम प्रधान हैं।प्राकृतिक चित्रण प्रकृति चित्रण में भारतेंदु जी को अधिक सफलता नहीं मिली, क्योंकि वे मानव-प्रकृति के शिल्पी थे, बाह्य प्रकृति में उनका मर्मपूर्ण रूपेण नहीं रम पाया। अतः उनके अधिकांश प्रकृति चित्रण में मानव हृदय को आकर्षित करने की शक्ति का अभाव है। भारतेंदु जी के काव्य में राष्ट्र-प्रेम भी भावना स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है।
भारतेंदु जी के काव्य की भाषा प्रधानतः ब्रज भाषा है। उन्होंने ब्रज भाषा के अप्रचलित शब्दों को छोड़ कर उसके परिकृष्ट रूप को अपनाया। उनकी भाषा में जहां-तहां उर्दू और अंग्रेज़ी के प्रचलित शब्द भी जाते हैं। भारतेंदु जी की भाषा में कहीं-कहीं व्याकरण संबंधी अशुध्दियां भी देखने को मिल जाती हैं। मुहावरों का प्रयोग कुशलतापूर्वक हुआ है। भारतेंदु जी की भाषा सरल और व्यवहारिक है।
भारतेंदु जी ने लगभग सभी रसों में कविता की है। श्रृंगार और शांत की प्रधानता है। श्रृंगार के दोनों पक्षों का भारतेंदु जी ने सुंदर वर्णन किया है। उनके काव्य में हास्य रस की भी उत्कृष्ट योजना मिलती है।

प्रमुख रचनाएं-

1. प्रेम सरोवर
2.प्रेम माधुरी
3.प्रेम तरंग,
4.प्रेम फुलवारी (सभी काव्य),
5.वैदिकी हिंसा, हिंसा न भवति,
6.चंद्रावली,
7.भारत दुर्दशा,
8.नीलदेवी,
9.अंधेरनगरी,
10.प्रेमयोगिनी,
11.विषस्य विषमौषधम्

नाटक – ‘अंधेर – नगरी’ , ‘नीलदेवी’ , ‘सत्य हरिश्चन्द्र’ आदि ।
उपन्यास – ‘पूर्ण प्रकाश’ और ‘चन्द्रप्रभा’
यात्रा वृतांत – ‘लखनऊ की यात्रा’ , ‘सरयू पार की यात्रा’ आदि |
जीवनी – ‘सूरदास’ , ‘महात्मा मुहम्मद’ आदि |

भारतेन्दु हरिश्चंद्र का निधन- 

भारतेन्दु हरिश्चंद्र का निधन 6 जनवरी 1885 (आयु 34 वर्ष) को बनारस , बनारस राज्य , ब्रिटिश भारत में हुई थी।

प्रमुख कवि लिस्ट

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