भील जाति का गोत्र क्या है

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भीलों के गोत्र –
भील समाज में अनेक गोत्र हैं । भीलों के गोत्र को अटक कहा जाता है । समगोत्र में विवाह करना वर्जित होता है । इनकी गोत्र व्यवस्था हिन्दुओं के समान होती है । अगर कोई गोत्र छुट गया हो तो कमेंट में जरुर बताये और साथ में ये भी बताये की इनमे से आपकी गोत्र कोनसी है आप कोन से राज्य से हो और पोस्ट की जानकारिया पाने के लिए इस ब्लॉग को subscraibe भी कर लेना

भील जनजाति एक परिचय –
भील शब्द का आविर्भाव द्रविड़ भाषा के ‘बोल’ शब्द से हुआ है, जिसका अर्थ“कमान’ से है। भारत में दक्षिणी-पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दक्षिणी राजस्थान पश्चिमी मध्य प्रदेश में एक मानव समूह रहता है जिसका प्राचीन काल से अब तक का प्रधान लक्षण तक कमान रखना रहा है, उन्हें ही भील कहते हैं। धनुर्विद्या में यह जाति सदा से ही बहुत ही कुशल रही है। इस जाति के मनुष्य ही नही वरन् स्त्रियाँ भी धनुर्विद्या में बहुत ही कुशल होती हैं। यदि हम अपने देश के प्राचीन साहित्य पर दृष्टि डालें तो इस जाति के सम्बन्ध में बहुत वर्णन मिलता है। रामायण में शबरी और निषाद तथा महाभारत में एकलव्य और घटोत्कच भील ही थे। मेवाड़ के साथ तो इस जाति का गहरा सम्बन्ध रहा है। बहुत समय तक मेवाड़ में राजपूत राजाओं को राजतिलक करने का अधिकार केवल भीलों को ही था।यही नहीं एक समय था जब इस जाति की अपनी एक स्वतन्त्र सत्ता थी एवं मध्य में भील सरदारों के कई छोटे-छोटे राज्य थे जिनमें कोटा, डूंगरपुर, बांसवाड़ा एवं भीलवाड़ा आदि राज्य प्रमुख थे। धीरे-धीरे यह जाति सभ्यता के पथ पर अग्रसर हो रही थी। काश इस जाति को मरीठों एवं “सर जॉन मैल्कम’ ने तंग नहीं किया होता तो ये भील आज असभ्ध नहीं होते वरन् हमारी तरह सभ्य होते, लेकिन मराठों के अत्याचारों से घबड़ा कर ये दुबारा अपने निवास स्थान घने जंगल एवं पहाड़ियों पर निवास करने लग गये।

लोग मराठों के अत्याचारों को न भूले और असर पाते ही गाँवों का जलाने लगे और यात्रियों को लूटने लगे। इस तरह एक भयंकर जाति के रूप में भारत में प्रसिद्ध हो गये। “सर जॉन मैल्कम” के काल में इस जाति का दमन किया जाने लगा। “सर जान मैल्कम” ने खानदेश और मालवा को जीत कर इनकी रीढ़ तोड़ दी। अंग्रेजों ने भी भीलों को मैदानी भाग से जाने वाली रसद रोक दील तथा लूटमार करने वालों को गिरफ्तार करना प्रारम्भ कर दिया, लेकिन इस समस्या का स्थाई हल निकालने के लिए अंग्रेजी सरकार ने कुछ नम्र उपायों को अपनाया जिनमें आत्मसमर्पण युग करने वाले लोगों को माफ कर दिया जाता था एवं मैदानी भाग में उन्हें बसने के लिये भूमि दी जाती थी। तथी से इसका जीवन-क्रम बदल गया और ये शान्तिपूर्वक रहने लगे।

निवास स्थान –
यदि हम भारत के मानचित्र पर 22° उत्तरी अक्षांश से 28° उ. अक्षांश तकएवं 74° पूर्वी देशान्तर से 80° पूर्वी देशान्तर तक दृष्टि डालें तो यह क्षेत्र भीलों का निवास-स्थान है। इसमें दक्षिणी पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दक्षिणी राजस्थान, उत्तरी गुजरात, पश्चिमी मध्य प्रदेश सम्मिलित हैं। भीलों के प्रमुख क्षेत्रों के नाम भीलवाड़ा, भीलपुर, भीलगाँव, भीलना, भीलसी, बड़ी सपरी, बरन, बीना, भोपाल, विलाश, इन्दौर एवं बाँसवाड़ा हैं।

भीलों का रंग सांवला, कद छोटा, चेहरा चौड़ा, नथुने बड़े, नाक चपटी और बड़ी, शरीर गठा हुआ, बाल लम्बे आर धुंघराले होते हैं।

प्रजाति, उपजाति एवं गोत्र –
सी. एस. वेंकटाचर ने भीलो की प्रजाति के सम्बन्ध में कहा है “भील लोग आर्यन तथा द्राविड़ियन से भी पहले भारत में निवास करते थें सम्भवतः ये लोग सहारा के जलवायु सम्बन्धी संकट के समय इधर-उधर फैलते हुए भारत में पहुंचे थे। भील मुंडा जाति का एक उपविभाग है जो आदि द्राविड़ियन भारत में फैला हुआ था।”

भील जाति कई उप-जातियों में भी बंटी हुई है। इनकी मुख्य उप-जातियाँ निम्न हैं-नहाल, पॉगी, मोची, मटवारी, खोतील, कोतवाल, दांगची, नौरा, करीट, बरिया, पर्वी, पोवेरा, उल्वी उसांव, बुर्दा। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि भीलों में अनेक जातियाँ पाई जाती हैं जो यह प्रमाणित करती हैं कि जाति-पाँति के बन्धनों में भील भी विश्वास करते हैं। इन जातियों में अनेक गोत्र भी है जिनमें मुख्य रोहनिया, सोनगर, ऑवलिया, मरवाल, मोरी, पंवार, मेरा, मासरया, मेंहदा, सिसोदिया, राठौर, परमार, सोलंकी, अवाशा, जवास, भूमिया, कचेरा, जावरा और चौमड आदि हैं। भीलों के उपर्युक्त गोत्रों से स्पष्ट मालूम होता है कि इनका मिश्रण राजपूतों के साथ अधिक हुआ है। सोलंकी, राठौर, सिसोदिया, पवार गोत्र भीलों में भी हैं और राजपूतों में भी।

स्वभाव तथा रहन-सहन –
भील स्वभाव से वीर, साहसी और स्वामिभक्त होते होते हैं। इतिहास में हमें भीलों की वीरता, साहस एवं स्वामिभक्त का वर्णन मिलता है। भील अपने वचन के पक्के एवं मनमौजी स्वभाव के होते हैं। स्वाभाव से ये इतने सीधे होते हैं कि कोई भी इनकी ठग सकता है। भारतीय किसान के लिए कही गई कहावत कि “भारतीय कियान ऋण में जन्म लेता है, ऋण में पलता है एवं ऋण में ही मरता है’, भीलों की सरलता एवं निर्धनता के कारण इन पर भी लागू होती है कि “एक भील ऋण में जनम लेता है, ऋण में ही पलता है और ऋण में ही मरता है।” क्योंकि महाजन इनसे इतना अधिक ब्याज लेते हैंकि एक भील अपने जीवनकाल में 100 रुपये का कर्ज नहीं चुका पाता है, क्योंकि भील एक तो स्वभाव से सीधे होते हैं, दूसरे ये धर्मभीहरु भी होते हैं। ये अन्याय सह सकते हैं, परन्तु लिये हुए कर्ज को मय ब्याज के चुकाने से इंकार नहीं कर सकतें यही नहीं, ये दिल के धनी भी होते हैं। इनके दरवाजे से कोई भी अतिथि बिना भोजन पाये वापस नही जाता है।

भील, परिश्रमी भी होते हैं भूखा टूटा भील यद्यपि शरीर से दुबला व कमजोर होता है, परन्तु मजदूती एवं साहस में कम नहीं होता जब हमें साधारण बुखार होता है तो चारपाई का सहारा लेते हैं, लेकिन भील बुखार के पूरे जोश में अपने सिर 5-10 सेर गीली मिट्टी थोपे हुए दिन पर हल चलाता है। कड़कडाती ठंडी रातों को केवल एक लंगोटी में ही काट देते हैं। कई दिन भूखे परिश्रम करके मक्का का दलिया, खाकर सारे परिश्रम एवं भूख की पीड़ा को भूल जाता है।

भीलों का पहनावा तथा साज-सज्जा –
चूँकि भील निर्धन और पिछड़े हुए हैं, इसलिए इनकी वेशभूषा तथा साज-सज्जा दनके वातावरण एवं सामाजिक व्यवस्था के अनुकूल ही है। भीलों पुरुष एवं स्त्रियों के पहनावे में बहुत अन्तर पाया जाता है।

भील पुरुष शरीर पर वस्त्र नहीं पहनते हैं। जंगलों में निवास करने वाले भील पुरुष प्रायः एक लंगोटी में ही अपना जीवन बिताते हैं, परन्तु जो भील परिवार खेती करते हैं और बस्तियों के समीप आकर रहने लगे हैं, वे मोटा कपड़ा पहनते हैं जिसे ये लोग अंगरखा कहते हैं।

ऊंची कसी हुई धोती तथा मोटा साफा बांधते हैं। भ्रमण के समय तीर-कमान प्रत्येक भील के साथ रहती है जो इस प्रकार बनी होती है कि कमान बाँस की होती है तथा तीर भी बाँस का होता है, लेकिन इनकी नाम बहुत सीधी तथा तेज धार वाली लोहे की बनी होती है। भील. पुरुष तथा बालक हाथ पाँवों में लोहे या पीतल के कड़े पहनते हैं। सामाजिक अवसरों तथा उत्सवों पर चमकदार रंगों वाले कपड़े पहनते हैं। स्त्रियाँ अधिकतर लाल रंग के लहंगे एवं ओढ़नी ओढ़ती हैं। कुर्ते के स्थान पर एक प्रकार की अंगिया पहनती हैं जिसे ये अंगरखी कहती हैं। स्त्रियों के शरीर पर पिग्मी स्त्रियों की भाँति अनेक प्रकार के गुदने गुदे हुए होते हैं। स्त्रियाँ विभिन्न प्रकार के आभूषण भी पहनती हैं जिसके हाथों में हाथी दाँत के मोटे कड़े, गले में चाँदी की मोटी हँसली, कानों में लम्बी-लम्बी बालियाँ, माथे पर लाख या चाँदी का झालर, हाथ और पाँवों की उंगलियों में पीतल या कगलट के छल्ले, नाक में नथ गले में मूंगों की माला पहनती हैं।

आवास –
भील जिन बस्तियों में रहते हैं, उन्हें “पाल” कहते हैं। हर एक “पाल” में भीलों का एक नेता होता है जिसे मध्य भारत में “तरबी” कहा जाता है एवं राजस्थान में उसे “गमेती’ के नाम से पुकारते हैं। जो भू-भाग पहाड़ी एवं ऊँचा होता है उसे ये लोग डौंगर (डूंगर) कहते हैं। भीलों के घर बांस, टट्ठरों या बेजोड़ पत्थरों के बने होते हैं। जो भील गाँवों में निवास करते हैं वे झोपड़ियों में रहते हैं और जो शहरों में रहते हैं वे मिट्टी या पत्थरों के मकानों में रहते हैं। मकान बनाने के लिए लोग ढालू स्थान चुनते हैं। प्रत्येक घर से मिले हुए ये एक या दो झोपड़े भी बनाते हैं। इन झोपड़ों में ये अपने मवेशी रखते हैं। वर्षा की कमी तथा उद्योगों के अभाव में ये इधर-उधर हटते-बढ़ते रहते हैं। जो भील परिवार गाँव के बन्धनों में बंधना नहीं चाहते, वे जंगलों में ही घूमते हैं।

जीवन-निर्वाह के साधन –
भील, जिनका भारतीय जनजातियों में महत्त्वपूर्ण स्थान है, इनका मुख्य धन्धा एवं व्यवसाय कृषि करना है। वह भी एक फसली, क्योंकि इनके निवास-क्षेत्र में वर्षा कम होती है। शेष समय में इनका धन्धा जंगली जानवरों का शिकार करना, जंगल में शहद इकट्ठा करना, लाख एवं लकड़ी का संग्रह करना, पशु चराना और दूध की वस्तुएँ तैशर करना, मछली पकड़ना, मजदूरी करना और डलिया तथा टोकरे आदि बनाकर कस्बों में बेचना होता है।

भोजन-सामग्री –
भीलों की भोजन-सामग्री में मुख्य मक्का और प्याज है। ज्वार, जौ, लावा, कूरा और सांवा भी प्रयोग में लाते हैं। संकअकालीन समय में जंगली कन्द-मूल खाकर और यहाँ तक कि मरे हुए जानवरों का माँस खाकर निर्वाह करते हैं। इनमें जो सबसे बड़ा अवगुण है वह शराब पीना है। ये महुए, जौ और मकई की शराब बनाते है। देवी देवताओं की पूजा में भी ये शराब चढ़ाते हैं। शराब के मोह में ये अपनी प्यारी से प्यारी वस्तु को भी छोड़ देते है। एक नहीं बीसियों उदाहरण ऐसे हैं जब इन्होंने अपने शराब के नशे छोटे-छोटे नन्हें-नन्हें बच्चे को भी चन्द रुपयों में और शराब के लालच में विधर्मियों को बेच दिया, किन्तु अब यह प्रथा नष्ट होती जा रही है।

भीलों के प्रमुख गोत्र इस प्रकार है –
अंगारो ,अमरात , अहारी , उठेड़ , उदावत , कटार , कपाया , कलउवा , कालासुआ , कसौटा , कूरिया , कोटेड , खखड़ , खराड़ी , खेतात , खेर , खोखरिया , गमार , गमेती , गरासिया , गोगरा , गोरणा , घुघरा , घोड़ा , चदाणा , चवणा , चरपोटा , जोगात , जोसियाल , झड़पा , डगासा , डागर , डाणा , डाबी , डामर , डामरल , डामोर , डीडोर , डूंगरी , डोडीयाट , तंवर , ताबियार , तावड़ , ताबेड़ , तेजोत , दमणात , दरांगी , दाणा , दामा , दायणा , दायमा , धलोवियो , धांगी , धोरणा , नगामा , ननोत , ननोमा , नीनामा , नीबो , नीयवात , पड़ियार , पटेला , पटेल , परमार , पांडेर , पांडोट , पारगी , बंडोडा , बड़ , बरड़ा , बरगट , बरोड़ा , बाणिया , बामणा , बूझ , बूमड़िया , बोड , भगोरा , भदावत , भणांत , भाकलिया , मंडोत , मईड़ा , ममता , मनात , मसार , माणसा , माल , मालर , मीरी , रंगोत , रतनाल , राठोड़ , राणा , रावत , रेडोत , रेलावत , रेवाल , रोत , लउर , लट्ट , लट्ठा , वगाणा , वडेरा , वेणोत , वरहात , वराड़ा , वाहिया , सदाणा , सांगिया , सीवणा , सुरात , सोलंकी , हड़ात , हड़ाल , हरभर , हीराता , हीरोत , होंता , खांट , मचार , भूरिया , पाणियार , मकवाना आदि है ।

भीलात , तोडा , घोरपाडे , गोहिल , बोटू , बुटिया , बाछल , भोगूले , आहरी , भागौरा , बुरडा , हूल , डाहलिया , गोडियाला , घेघलिया , अहेडी आहरी , मांगलिया , वसापा , अडिया , सीसोदा , थोरात , धोरण , असायच , तिबडकिया , बलला , डाहल , पारगी , पारधि , भागलिया , भोटला , गोहभार , गोरखा कोटेचा , आलीका , गरासिया , केलावा , आल , आलका , तेडवा , पीपाडा , धौरा , खेती , मोटासर , राणा , मलूसरे , परधे , आंगरिये , खकरकोटे , ओजकरे , मांगलिके कर कोटे , खांट , बेगा , आलियातर , ऊहड़ , पाहां , अताहातर , माहले मालवी , बसुणिया , मिलियाणा , मेर , टीबाणा , गोचरा , मेघा , लखडिया , मोडातर , माछला , गोधा , भाख्ला , चौधा , परोदा , माहीला , महीडां

राठौड़ ( सूर्यवंशी ) कुरियोत काठडोत , टोकरिया , भरल , भण्यांवत , चोरात , पीलोत , कलाहवा , रांधा , ब्यौचा , डांगी , टोकरिया , सिंधल , डगला , सोनवाल , होवाणा , गांधी , बोगिया , गवारडिया , धुजला , हढवाल , पारगे , खोखर , हुलवाणे , धूडला , धान्धल , बावरिये , हूलकर , दहिया , कोटेडा , चाडदे , टोरिया , कटैचा , भूरिया , कामालिया , कबरिया , छाजडिया , माहेचा , मुरसिया , गोबासिया , जौश , खोखरियां भाटी – राजड , कललर , मंगा , लध्दउ , मांगलिया , डग्गा , लवेरा , चरडिया , चिराणिया , मोकल , आमडिया , आमलिया , घावली , लोट , आदीवाल , सरवाण गुहाला , मारड , रबूडियाख पटेल , सारसर , केलियाणा , हडगा , भांड , घाड , डूबला , जस्सा , टंडल , खगडा , जेदिया , धूडिया , लीडिया , फलके , ढेकले , गोहले . बालट , संगेलिया , गूगण , बागरी , मांगलिया , घेघरे , राजेड , आभीर , पोड़ , गोडल भिया , ठक्कर , रावत , नाग , टाक , सिंघणियांख बलला , लाडख गड्डा , सूडासमा , सीहड़ नेमाल , भातर , बध्दा , सोत , सूद , रोज , मेर , लावा , डूल्गचं पंवार परमार , अग्रिवंशी , कलात , सोढा , बोयात , सिलाण , कूकात , काठा , राईका , सोलंकी , कांग , टाटिया , आकोडिया , सोखला , धोधीगा , बोखडा , कलालत , देलात , मालवी , निसाहरे , बिछियातर , हुण , बादी , बोरवट , मलगट , बोयत , बडवा , कालमा , हुरड , भील , लूछ , लोहदा , ताविड . , खांट , बोकडा , हीरोत , तेजात , बरकडा बलवे , धुणा , बसवि , सांगला , झांकरिया , डाबी , छापरवाला , नीमोत डामोर , पंराह , खरड , बिडला , चिरगा , माकोल , पाबरां , डिंडोर , कोली , गिडगापियां दायमा , बुवारडिया , चिरगा , भूरटिया , पुम्बर , ढीकिया , धोड़ , खेतात , रतनोत , रोज , फरण्ड , पोटाणा , अडिया , धोडिया , सोढा , मोरी , भतात , निकीयात , लोट , डाबल , गोहयार , महार , मालवी , डेढिया , रंगात , माकोल , पाबरां , डिंडोर , भायल , ऊमल , तामलोत , तरिल , रहलोत , गरेचा , खेटील , बलवी , पावरा , खट्टा , कोली , गिडगापियां दायमा , खुडियाल , गांगडा , डियात , बडगुजर , काबा , कोटियां , राठी , बारड , पांडोर , कुकणा , दडवारे , घोडाडामोर , रोत , बारेला , मलगट , बरगढ , हरेड , कुकडा , पिंगले , जोहिया , खैर , बारासा , बोमला , नवले , खटील , गेचंड , बोरड , तेरवा सांखलाप्रतिहार – पडियार ( अग्रिवंशी ) मंजात , गोरमात , चोरात , तावड , बालोत , भीलात , डाडरवाल , दुतिया , धून्ता , लूगरिया , लुलरिया , अगियातर , राबडिया , चरगोट , अहवा , अवा , बबला , कूटिया , खेचंड , डाबी , सोनाणा , धोरण , सूमडा , कालमो , ताडवी , बारवला , काडया , सानवाल , लूता , डाडिया , सिघपिया , शिन्दे , सावनिया सापनिया , डोड , डोडिया , सूंधिया , तकाडिया , मसानियां , धाधडा , लावां , कालडा , लावतिया , खोखर , रवारडा , धारिया , घोवाणा , धीमण , धीमोतर , खडिया , मूडिया , धणिता , धारवा , खुडा , करला , खरवड , जोरिया , कुगोरा , कापासिया , पुणी , पोणीबेट , ईन्दा , सिन्धेला , बाकला , तारवं चालुक्य सोंलकी , ( अग्रिवंशी ) मालात , बहल , सोनाणा , वेडयातर , बाघेला , बारवासिया , खारडू , जैदिया , धूसर , घटेडा , डंगा , डगला , धोरण , जागटिया , कटारिया , बहल , गोडियाला , बभेरवाल , द सांवत , गोग , नाहर , सटबहिया , गोंड , राणकिया , टाटी , टाटात , तांतिया , मलयावत , हलवाण , कालेर , मोडिया , ढाई , खराडी , खार , खण्डार , भरतड , कट्टा , वालणका , डाहल , तवज्या , तेजोत , एला , भूरिया , संदावत , कोटेड , भूणियां , धोडिमारिया , खण्डोर , कंडारे , खोटणा , चुडके , घांटगे , बाघमारे हद्दा चौहान ( अग्रिवंशी ) संरवांनी , वेद , चीता , मेरात , काठात , गौड़ , बरड , रावत , टोकरिया , बेगडात , अमरात . बरांडा , नाणा , बागडिया , भांड , धूनी , कुरड बग , खैराड , धौला , मौठिया , गूगा , डिडुरा , बामणिया , खारड , देवडा , देसाड , बलांडया , राजोरा , मुंडात , झोटाङ , खीची , सांवरिया , चूडी , चारण , गेचंड , टाक , कोटेड , झझोटड , बोचिया , बारेचा , धोधलिया , डेडरिया , सोनगारा , हाडा , देवडा , गुंदी , गूदरात , बोगिया , मेणा , चारण , बलोचा , चिंडारिया , डूमरवाल , लूगरिया , लीख , चिरजिया , ताहिड , गेटार , गागडिया , बरवासा , मोहिल , मेह , पांडेर , पेव , रावत , बोबडिया , कोहते , पशारे , चिड़फाल , मोहर , कोकातर , चाहड़ , पांसरे , फणसा , माल , बधराच , चांडया , धूणा , सांभरख हतावत , सररूपा , ढालरडा , हवासी , पावचा , निनाता , बाधोरा , भगौरा , हिरण , रोसिया , पबिया , नाहल , चीता , कापले , भीले , नाडोला , बांडर , चाबगर , दावरा , मावली , बसलिया , भुजलिया , बज , बडेहरा , चरपोटा , आहरी , बसावा , हरमौर , आमलिया , कटारा , समकाल , दाणा , बडबोरिया , रामा , महीडा , मदिडया , सरेल बूटोल , निनामा , पलात , डोकी , तेजोत , मांडिया , बीयोत , खार , डिंडोर , राणां बोयल , बोयत , लॅणवाल ( हेंढोदा ) बियागस , डोबल , बीवाल , कटिहार , घंटियाल , बोलान , गवालेरा ( गवारडिया ) जोहिया , ऊंटालिया , चौधे , बियावट , झाझोटा , इंदलिया , हढवाल , बाजपडा , तोमर , बारवाल , केलियाणा , धावडे , दढवाल , घोघरे , डाजला , कायथ , जाट , आलसीका , थूरी , दूसेना , बोडाणा , खोखर , भैइया , तन्तु , बोदरं पीटलया सरदार, |

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