भीलवाड़ा का इतिहास:- नमस्कार मित्रों आज हम बात करेंगे भीलवाड़ा का इतिहास के बारे में राजस्थान का महत्वपूर्ण जिला जिसे वस्त्र नगरी या राजस्थान के मैंचेस्टर उपनाम से भी जाना जाता हैं भीलवाड़ा जिले का इतिहास 300 से 400 साल पुराना हैं पर्यटन की दृष्टि से समृद्ध शहर भीलवाड़ा के दर्शनीय स्थलों, इतिहास, भूगोल, जनसंख्या, साक्षरता, क्षेत्रफल के बारें में बात करेगें तो आए हम जानते हैं इस आर्टिकल में विस्तार से.
- नाम – भीलवाड़ा
- राज्य – राजस्थान
- क्षेत्र – 10,455 किमी²,
- भीलवाड़ा की जनसंख्या – 370,009
- अक्षांश और देशांतर – 25.3214 डिग्री न, 74.5870 डिग्री ई
- भीलवाड़ा का एसटीडी कोड – 1482
- भीलवाड़ा की पिन कोड – 311001
- जिला मजिस्ट्रेट (डीएम कलेक्टर) – डॉ। टीना कुमार
- पुलिस अधीक्षक (एसपी / एसएसपी) – सरीता सिंह
- तहसील की संख्या – 12
- गांवों की संख्या – 1663
- रेलवे स्टेशन – भीलवाड़ा रेलवे स्टेशन
- बस स्टेशन – बाग़ेरा बस स्टॉप
- भीलवाड़ा में एयर पोर्ट – महाराणा प्रताप हवाई अड्डे
- भीलवाड़ा में होटल की संख्या – 100
- डिग्री कॉलेजों की संख्या – 2
- अंतर कॉलेजों की संख्या – 48
- मेडिकल कॉलेजों की संख्या – 2
- इंजीनियरिंग कॉलेजों की संख्या – 10
- भीलवाड़ा में कंप्यूटर केंद्र – 10
- भीलवाड़ा में मॉल – 3
- भीलवाड़ा में अस्पताल – 10
- भीलवाड़ा में विवाह हॉल – 27
- नदी (ओं) भीलवाड़ा नदियों
- उच्च मार्ग राष्ट्रीय राजमार्ग -79
- ऊंचाई – 421 मीटर (1,381 फीट)
- घनत्व – 230 व्यक्ति / वर्ग किलोमीटर
- साक्षरता दर – 62.71%
- राजनीतिक दलों – बीजेएस, सीपीआई, कांग्रेस, सपा, भाजपा
- आरटीओ कोड आरजे – 06
- आधार कार्ड केंद्र – 3
- स्थानीय परिवहन – कार, ट्रेन, बस और टैक्सी
- मीडिया – समाचार पत्र, ग्रामीण / शहरी होने के रेडियो, ट्रांजिस्टर, मीडिया, टेलीविजन
विकास – 35% - यात्रा स्थलों – हरनी महादेव, कारा के बालाजी, मेजा बांध, उड़ेश्वर मंदिर, गणेश मंदिर, बदनोर का किला, पुर उदना चत्री, जटाुन का मंदिर मंदिर
भीलवाड़ा जिला का इतिहास
- 10508.85 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला यह राज्य के बड़े जिलों में गिना जाता हैं
- उद्योग तथा पर्यटन के लिए भीलवाड़ा की अपनी विशिष्ट पहचान हैं
- 421 मीटर ऊँचाई पर स्थित भीलवाड़ा शहर 25.35 ° उत्तरी एवं 74.63 ° पूर्वी अक्षांश के मध्य स्थित हैं
- इसके उत्तर में अजमेर, दक्षिण में चित्तौड़गढ़, उदयपुर पूर्व में बूंदी तथा पश्चिम में राजसमंद जिले सीमा बनाते हैं
- भीलवाड़ा में बहने वाली नदियाँ बनास, बेडच, खारी, मानसी, मेनाली, चन्द्रभागा एवं नागदी हैं
- भीलवाड़ा जिले के इतिहास के सम्बन्ध में कोई ठोस प्रमाण नहीं है
- स्वतंत्रता से पूर्व यह मेवाड़ राज्य का हिस्सा था
- उदयपुर के शासन के अधीन आता था
- कई ऐतिहासिक स्थलों के कारण यह पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित हुआ हैं
- विशेषकर यहाँ हिन्दू धर्म से जुड़े कई धार्मिक स्थल हैं
भीलवाड़ा के त्योहार
- शीतला शप्तमी
- शीतला सप्तमी भीलवाड़ा जिले का सबसे लोकप्रिय त्योहार है
- देवी शीतला को समर्पित है
- यह त्योहार स्थानीय लोगों द्वारा मनाया जाता है
- देवी शीतला की पूजा जिले में स्थित शीतला माता मंदिर में की जाती है
- त्योहार हिंदू कैलेंडर के अनुसार चैत्र और श्रावण के महीनों में अंधेरे पखवाड़े के 7 वें दिन मनाया जाता है
- शीतला माता को बच्चों की देवी माना जाता है
- यह त्योहार माताओं द्वारा मनाया जाता है
- जो अपने बच्चों की भलाई के लिए देवी से प्रार्थना करते हैं
रंग तेरस (नाहर नृत्य)
- भीलवाड़ा जिले का एक और प्रसिद्ध त्योहार रंग तेरस है
- यह त्यौहार चैत्र महीने में अंधेरे पखवाड़े के 13 वें दिन मनाया जाता है
- इस त्योहार को ‘रंग त्रयोदशी’ के नाम से भी जाना जाता है
- यह “होली” के त्योहार की तरह मनाया जाता है और लोगों में भाईचारे की भावना को समर्पित है
- रंग तेरस देश के अन्य राज्यों जैसे गुजरात, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार में भी मनाया जाता है
- इस त्यौहार पर, किसान धरती माता का धन्यवाद करते हैं
लट्ठ मार होली
- लोग रंगों के साथ इस त्योहार का आनंद लेते हैं
नवरात्र
- नवरात्रि भारत के सभी राज्यों में लोकप्रिय है
- यह भीलवाड़ा में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है
- नवरात्रि एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है ‘नौ रातें’। नौ रातों की
- इस अवधि के दौरान, देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है
- चैत्र नवरात्रि मार्च-अप्रैल के महीने में आती है
- जबकि शरद नवरात्रि सितंबर-अक्टूबर के महीनों में
- शरद नवरात्रि के दसवें दिन को दशहरा के रूप में मनाया जाता है
गणगौर
- गणगौर राजस्थान के सबसे पुराने और सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है
- यह राज्य के सभी जिलों में समान उत्साह के साथ मनाया जाता है
- गणगौर का शाब्दिक अर्थ है भगवान शिव और देवी पार्वती का मिलन
- विवाहित महिलाएं देवी पार्वती से अपने पति और परिवार की समृद्धि के लिए प्रार्थना करती हैं
- अविवाहित महिलाएं भविष्य में एक अच्छा पति पाने के लिए प्रार्थना करती हैं
- प्रति वर्ष चैत्र मास (मार्च) में गणगौर का त्यौहार मनाया जाता है
- हिंदू कैलेंडर के अनुसार, यह महीना हिंदुओं के लिए नए साल की शुरुआत करता है
- महीना सर्दियों के मौसम के अंत और ग्रीष्मकाल की शुरुआत का भी प्रतीक है
- गणगौर अठारह दिन का त्योहार है और स्थानीय लोगों द्वारा पूरे जोश और उत्साह के साथ मनाया जाता है
- गणगौर का एक जुलूस (जुलूस) सिटी पैलेस के ज़नानी-देवड़ी से शुरू होता है
- शहर के विभिन्न हिस्सों में जाकर तालकटोरा के पास एक स्थान पर समाप्त होता है
- जूलूस में बैलगाड़ी, रथ, पुराने पालकी आदि शामिल होते हैं
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फूलडोल महोत्सव
- भीलवाड़ा में एक और त्योहार जो पवित्र महत्व रखता है
- फूलडोल महोत्सव। भीलवाड़ा में हर साल एक मेला आयोजित किया जाता है
- जो पांच दिनों तक चलता है
- यह त्योहार प्रसिद्ध रामद्वारा मंदिर में होली के बाद मनाया जाता है
- यह मंदिर जिले के शाहपुरा क्षेत्र में स्थित है
भीलवाड़ा के दर्शनीय स्थान
- राजस्थान के महत्व पूर्ण शहरों में भीलवाड़ा की गिनती जाती हैं
- 11 वीं सदी के ऐतिहासिक शहर भीलवाड़ा धार्मिक लिहाज से भी अहम केंद्र हैं
- हिंदू धर्म से जुड़े कई अहम स्थान यहाँ स्थित हैं
- भीलवाड़ा जिले का नामकरण यहाँ की बहुसंख्यक भील जनजाति के नाम पर पड़ा हैं
- जिले का शाब्दिक अर्थ हैं भीलों का स्थान या जमीनं
- भीलों ने हल्दीघाटी के युद्ध में राणा प्रताप की ओर से लड़े थे
- भीलवाड़ा को राजस्थान की टेक्सटाइल सिटी तथा राजस्थान का मेनचेस्टर भी कहा जाता हैं
- सिक्के निर्माण की टकसाल हुआ करती थी
- भिलाई नामक सिक्कों के निर्माण के कारण यह भीलवाड़ा कहलाया
- प्राकृतिक सुन्दरता के सम्पूर्ण शहर से जुड़े कई रहस्य भी हैं
Bhilwara Tourist Place
- शाहपुरा का रामद्वारा– शाहपुरा, भीलवाड़ा में रामस्नेही संप्रदाय का मठ
- सवाई भोज मंदिर– यह आसीन्द भीलवाड़ा में खारी नदी के तट स्थित लगभग 11 सौ वर्ष पुराना देवनारायण मंदिर हैं यह गुर्जर जाति के लोगों के लिए विशेष श्रद्धा का केंद्र हैं
- बाईसा महारानी का मंदिर– यह प्रसिद्ध देवालय गंगापुर भीलवाड़ा में स्थित हैं यह मन्दिर ग्वालियर के महाराजा महादजी सिंधियां की पत्नी महारानी गंगाबाई की स्मृति में बनाया गया
- मांडल- इस कस्बे में प्रसिद्ध प्राचीन स्तम्भ मिंदारा, जगन्नाथ कच्छवाहा की बतीस खम्भों की छतरी एवं मेजा बाँध प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं
- बिजोलिया– स्वतंत्रता पूर्व के देश के पहले संगठित किसान आंदोलन के लिए प्रसिद्ध बिजौलिया कस्बे में प्राचीन मंदाकिनी मन्दिर एवं बावड़ियाँ हैं
- शाहपुरा- यहाँ प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी केसरीसिंह बारहठ और प्रतापसिंह बारहठ की हवेली एक स्मारक के रूप में संरक्षित हैं. यह कस्बा फड़ चित्रण के लिए प्रसिद्ध हैं
- मेनाल– चित्तौड़गढ़ बूंदी मार्ग पर मांडलगढ़ कस्बे के निकट स्थित यह स्थान नीलकंठेश्वर महादेव के लिए प्रसिद्ध हैं. यहाँ तीन नदियाँ बनास, बेडच व मेनाल का त्रिवेणी संगम हैं
- बागोर– कोठारी नदी के तट पर स्थित बागोर एक पुरातात्विक स्थल हैं. बस्ती से एक किमी पूर्व में महासतियों का टीला नाम का स्थल पाषाणकालीन अवशेषों के लिए विश्व विख्यात हैं
- चमना बावड़ी– शाहपुरा भीलवाड़ा में स्थित भव्य और विशाल तिमंजिली बावड़ी जिसका निर्माण विक्रम सम्वत 1800 में चमना नाम की एक गणिका के लिए महाराजा उम्मेदसिंह प्रथम ने करवाया था
- सीताराम जी की बावड़ी– भीलवाड़ा में स्थित इस बावड़ी में एक गुफा बनी हुई हैं. जिसमें बैठकर रामस्नेही संप्रदाय के प्रवर्तक स्वामी रामचरण जी ने 36 हजार पदों की रचना की तथा रामस्नेही संप्रदाय की स्थापना की
- मांडलगढ़ गिरिदुर्ग– बनास, बेडच और मेनाल नदियों के संगम पर बीजासण पहाड़ी व नकटिया की चौड़ के निकट स्थित मंडलाकृति वाला दुर्ग. यह किला ईसा पूर्व से मानव का आवास स्थल रहा हैं अकबर ने मांडलगढ़ को केंद्र बनाकर महाराणा प्रताप के विरुद्ध सैनिक अभियान किये थे
- बतीस खम्भों वाली छतरी-यह छतरी आमेर के जगन्नाथ कच्छवाहा की स्मृति में शाहजहाँ द्वारा निर्मित हैं जगन्नाथ कछवाहा का मांडल में मेवाड सेना के विरुद्ध युद्ध में निधन हो गया था
Conclusion:- मित्रों आज के इस आर्टिकल में हमने भीलवाड़ा का इतिहास के बारे में कभी विस्तार से बताया है। तो हमें ऐसा लग रहा है की हमारे द्वारा दी गये जानकारी आप को अच्छी लगी होगी तो इस आर्टिकल के बारे में आपकी कोई भी राय है, तो आप हमें नीचे कमेंट करके जरूर बताएं। ऐसे ही इंटरेस्टिंग पोस्ट पढ़ने के लिए बने रहे हमारी साइट TripFunda.in के साथ (धन्यवाद)