चंद्रशेखर आज़ाद कौन थे

चंद्रशेखर आज़ाद की जीवनी, चंद्रशेखर आज़ाद का सामान्य परिचय, चंद्रशेखर का क्रांतिकारी जीवन, चंद्रशेखर आजाद का आत्म-बलिदान, चन्द्रशेखर आज़ाद की शिक्षा, आजाद का प्रराम्भिक, चंद्रशेखर आज़ाद मृत्यु अदि चंद्रशेखर आज़ाद कौन थे,

चंद्रशेखर आज़ाद कौन थे

चंद्रशेखर आज़ाद का सामान्य परिचय –

चंद्रशेखर आज़ाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव ज़िले के बदर गाँव में हुआ था। उनके पिता पंडित सीताराम तिवारी और माता जगरानी थीं। पंडित सीताराम तिवारी तत्कालीन अलीराजपुर की रियासत में सेवारत थे (वर्तमान में मध्य प्रदेश में स्थित है) और चंद्रशेखर आज़ाद का बचपन भावरा गाँव में बीता। उनकी माता जगरानी देवी की जिद के कारण चंद्रशेखर आज़ाद को काशी विद्यापीठमें संस्कृत अध्यन हेतु बनारस जाना पड़ा।

चंद्रशेखर का क्रांतिकारी जीवन –

चंद्रशेखर का क्रांतिकारी जीवन 1922 में गांधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन को स्थगित कर दिया गया इससे चंद्रशेखर आजाद बहुत आहत हुए उन्होंने देश का माता करवाने की मन में ठान ली एक सखा क्रांतिकारी ने उन्हें हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन कतिकारी दल के संस्थापक राम प्रसाद बिमिल से परिचित करवाया आजाद बिस्मिल से बहुत प्रभावित हाए चंद्रशेखर आजाद के समर्मण और निष्ठा की पहचान करने के बाद बिस्मिल ने चंद्रशेखर आजाद को अपनी संस्था का सक्रिय सदस्य बना लिया चंद्रशेखर आजाद अपने साथियों के साथ सस्था के लिए धज एकत्रित करते थे अधिकतर सह धज अगोजी सरकार से लूट कर एकत्रित किया |

चंद्रशेखर आजाद का आत्म-बलिदान –

चंद्रशेखर आजाद का आत्म-बलिदान फरवरी 1937 में जब चंद्रशेखर आजाद गणेश शंकर विद्यार्थी से मिलने सीतापुर जेल गए तो विद्यार्थी ने उन्हें इलाहाबाद जाकर जवाहर लाल नेहरू से मिलने को कहा चंद्रशेखर आजाद जब नेहरू से मिलने आनंद भवन गए तो उन्होंने चंद्रशेखर की बात सुनने से भी इनकार कर दिया गुस्से में वहाँ से निकलकर चंद्रशेखर आजाद अपने साथी सुखदेव राज के साथ एल्फ्रेड पार्क चले गए वे सुखदेव के साथ आगामी योजनाओं के विषय पर विचार-विमर्श कर ही रहे थे कि पुलिस ने उन्हें घेर लिया आजाद ने अपनी जेब से पिस्तौल निकालकर गोलियां दागजी शुरू कर दी आजाद ने सखदेव को तो भगा दिया पर स्वयं अंग्रेजों का अकेले ही सामना करते रहे दोजों ओर से गोलीबारी हुई लेकिन जब चंद्रशेखर के पास मात्र एक ही गोली शेष रह जाई तो उन्हें पलिस का सामना करना मुश्किल लगा चद्रशेखर आजाद ने यह प्रण लिया हुआ था कि वह कभी भी जीवित पलिस के हाथ नही आएगो इसी प्रण को निभाते हुए एकेड पार्क में 27 फरवरी 1931 को उन्होंने वह बची हुई गोल स्वयं पर दाग के आला बलिदान कर लिया पुलिस के अंदर चदशेखर आजाद का भय इतना था कि किसी को भी उनके मृत शरीर के के पास जाने तक की हिम्मत नही थी उनके मृत शरीर पर गोलियां चलाकर पूरी तरह आश्चरस्त होने के बाद ही चटशेखर की मुत्र की पुष्टि की गई

चन्द्रशेखर आज़ाद की शिक्षा –

गरीबी के कारण चंद्रशेखर की अच्छी शिक्षा-दीक्षा नहीं हो पाई, लेकिन पढ़ना-लिखना उन्होंने गाँव के ही एक बुजुर्ग मनोहरलाल त्रिवेदी से सीख लिया था, जो उन्हें घर पर निःशुल्क पढ़ाते थे
वह इन्हें और इनके भाई (सुखदेव) को अध्यापन का कार्य कराते थे और गलती करने पर बेंत का भी प्रयोग करते थे चन्द्रशेखर के माता पिता उन्हें संस्कृत का विद्वान बनाना चाहते थे चंद्रशेखर आजाद 14 वर्ष की आयु में अपनी मां जगरानी देवी के आग्रह पर संस्कृत का अध्ययन करने के लिए काशी विद्यापीठ, बनारस गए थे।

आजाद का प्रराम्भिक –

आजाद का प्रराम्भिक जीवन चुनौती पूर्ण था इनकी पारिवारिक स्थिति अच्छी नहीं थी पारिवारिक रुप से सम्पन्न न होने के कारण इन्हें दो-दो दिन तक भूखा रहना पड़ता था चन्द्र शेखर बचपन में बहुत दुर्बल लेकिन बहुत सुन्दर थे इनका बचपन भीलो के साथ व्यतीत हुआ यही कारण है कि ये छोटी सी आयु में ही कुशल निशानची बन गये आजाद बचपन से ही बहुत साहसी और निर्भीक थे उनका पढ़ने लिखने में ज्यादा मन नहीं था वे अपने साथियों के साथ जंगलों में निकल जाते और डाकू और पुलिस का खेल खेला करते थे।
आजाद अपनी माँ के बहुत लाड़ले थे वही वे अपने पिता से बहुत डरते भी थे एक बार आजाद ने बाग से कुछ फल चुराकर बेच दिये, जिस बाग की इनके पिता रखवाली करते थे पं. सीताराम बहुत आदर्शवादी थे, जब उन्हें इस बात का पता चला तो उन्होंने आजाद को जितना पीट सकते थे उतना पीटा और जब चन्द्रशेखर की माँ ने इन्हें बचाने की कोशिश की तो उन्हें भी धक्का देकर एक तरफ हटा दिया और चन्द्रशेखर को पीटते-पीटते अधमरा कर दिया यही कारण था कि आजाद अपने पिता से बहुत अधिक कतराते थे।

चंद्रशेखर आज़ाद मृत्यु –

ब्रिटिश पुलिस के लिए चंद्रशेखर आजाद एक भय का कारण बन चुके थे ब्रिटिश सरकार उनको ज़िंदा या मरा हुआ पकड़ना चाहती थी 27 फरवरी, 1931 को अपने दो साथियों द्वारा चन्द्रशेखर आज़ाद को धोखा दिया गया चन्द्रशेखर आज़ाद के अल्फ्रेड पार्क अल्लाह पार्क में होने की ख़बर ब्रिटिश पुलिस को दी गयी।
जिस कारण पुलिस ने पार्क को चारों तरफ से घेर लिया और चंद्रशेखर आजाद को आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया स्वयं चन्द्रशेखर आज़ाद ने अकेले ही बहादुरी से इनका सामना किया और तीन ब्रिटिश पुलिस कर्मियों को मार गिराया।
परन्तु स्वयं को पुलिस द्वारा घेरे जाने के कारण और बचने का कोई रास्ता न होने पर चंद्रशेखर आजाद ने खुद को गोली मार दी इस तरह उन्होंने ज़िंदा नहीं पकड़े जाने की प्रतिज्ञा को पूरा किया। चंद्रशेखर आजाद की वह पिस्तौल हमें आज भी इलाहबाद म्यूजियम में देख सकते है।

राजस्थान के सम्राट

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