चित्तौड़गढ़ का इतिहास

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चित्तौड़गढ़ का इतिहास

नमस्कार दोस्तों आज हम चित्तौड़गढ़ जिला का इतिहास, भूगोल, जनसंख्या, क्षेत्रफल, साक्षरता आदि के बारें में जानकारी प्राप्त करेंगे, चित्तौड़गढ़ दुर्ग को राजस्थान का गौरव कहा जाता है वर्तमान काली माता का मंदिर मूल रूप से प्राचीन कालीन सूर्य मंदिर है इस दुर्ग का अधिकांश भाग का निर्माण महाराणा कुंभा द्वारा करवाया गया चित्तौड़ में विजय स्तम्भ, कीर्ति स्तम्भ, मीरा मंदिर पद्मिनी महल, शस्त्रागार प्रमुख है चित्तौड़ दुर्ग में कुल सात द्वार हैं, जिसमें सबसे अच्छा द्वार महाराणा प्रताप की स्मृति बनवाया गया।

इस दुर्ग में अब में तक सर्वाधिक जौहर हुए हैं 1303 में पहला जौहर हुआ 1534 ई. में दूसरा जौहर हुआ, इस समय शासक विक्रमादित्य था, इसकी माँ कर्मावती थी गुजरात के शासक बहादुर शाह ने इन पर आक्रमण किया था 1568 ई. में तीसरा जौहर हुआ जयमल व पत्ता लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए तथा रानियों ने जौहर किया।
राजस्थान का यह प्रथम लीविंग फोर्ट है।
अरावली पर्वतमाला पर यह दुर्ग बना हुआ है।
खिलजी ने दुर्ग का नाम ख्रिजाबाद रखा था।
गोरा-बादल, नवलखा बुर्ज, भीमलत कुंड इस दुर्ग में स्थित है।
राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में बेराच नदी के किनारे स्थित चित्तौड़गढ़ दुर्ग को न सिर्फ राजस्थान का गौरव माना जाता है, बल्कि यह भारत के सबसे विशालकाय किलों में से भी एक है

चित्तौड़ी राजपूत के सूर्यवंशी वंश ने 7 वी शताब्दी से 1568 तक परित्याग करने तक शासन किया और 1567 में अकबर ने इस किले की घेराबंदी की थी यह किला 180 मीटर पहाड़ी की उचाई पर बना हुआ है और 691.9 एकर के क्षेत्र में फैला हुआ है इस किले से जुडी बहुत सी इतिहासिक घटनाये है आज यह स्मारक पर्यटको के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।

चित्तौड़गढ़ दुर्ग का इतिहास –
15 से 16 वी शताब्दी के बाद किले को तीन बार लुटा गया था 1303 में अल्लाउद्दीन खिलजी ने राना रतन सिंह को पराजित किया था 1535 में गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने बिक्रमजीत सिंह को पराजित किया था और 1567 में अकबर ने महाराणा उड़ाई सिंह द्वितीय को पराजित किया था।

जिन्होंने इस किले को छोड़कर उदयपुर की स्थापना की थी लेकिन तीनो समय राजपूत सैनिको ने जी-जान से लढाई की थी उन्होंने महल को एवं राज्य को बचाने की हर संभव कोशिश की थी लेकिन हर बार उन्हें हार का ही सामना करना पड़ रहा था।
चित्तोड़गढ़ किले के युद्ध में सैनिको के पराजित होने के बाद राजपूत सैनिको की तकरीबन 16,000 से भी ज्यादा महिलाओ और बच्चो ने जौहर करा लिया था और अपने प्राणों का बलिदान दे दिया था।

सबसे पहले जौहर राना रतन सिंह की पत्नी रानी पद्मिनी ने किया था उनके पति 1303 के युद्ध में मारे गये थे और बाद में 1537 में रानी कर्णावती ने भी जौहर किया था इसीलिये यह किला राष्ट्रप्रेम, हिम्मत, मध्यकालीन वीरता और 7 और 16 वी शताब्दी में मेवाड़ के सिसोदिया और उनकी महिलाओ और बच्चो का राज्य के प्रति बलिदान देने का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है।

चित्तौड़गढ़ किले की वास्तुकला –
चित्तौड़गढ़ का किला अपने परिसर में भूतपूर्व में 84 जल जलाशयों का दावा करता है, जिसमें से केवल 22 बाकी शेष आज शेष हैं यह कहा जाता है कि इन 84 जल निकायों में इतना पानी है कि यह लगातार 4 वर्षों तक राज्य के 50,000 सैनिकों की जरूरतों को पूरा कर सकता है अब आप बस इस जगह के राजसी की कल्पना कर सकते हैं।

चित्तौड़गढ़ किले में कई पवित्र मंदिर, पवित्र स्तम्भ (टावर्स) और 7 द्वार हैं, जो इतनी ऊंची हैं कि दुश्मनों को हाथी या ऊंट पर खड़े होने से भी किले के अंदर नहीं देखा जा सकता है पिछले समय में करीब 100,000 निवासियों ने किले के भीतर रहते थे आज भी गिनती 25,000 के आसपास है इस जगह के विशाल खंडहर ने कई देशों के पर्यटकों और लेखकों को प्रेरित किया है भारत का सबसे बड़ा किला अपनी सुंदरता और रॉयल्टी का भ्रमण करने और उसका पता लगाने के लिए आपको आमंत्रित करता है और आपका स्वागत करता है।

चित्तौड़गढ़ किले के बारे में दिलचस्प तथ्य –
यह महान हिंदू शास्त्र महाभारत में भी उल्लेख किया गया है कि पांडवों के दूसरे भाई भिम ने एक बार जमीन पर इतना ताकतवर मुक्का मारा की जमीन से पानी निकलने लगा जो आज यहां एक जल भंडार है, जिसे भिमला के नाम से जाना जाता है।
यह जगह ऐतिहासिक समय में जौहर प्रदर्शन करने वाले महिलाओं के लिए भी प्रसिद्ध है जौहर एक प्रथा थी जिसमे महिलाये अपने पत्ती के मरने के बाद जलती चित्ता म कूद जाती है, वह बस अपने सम्मान को विरोधी सैनिकों और राजा से बचाने के लिए ऐसा करती थी ।
चित्तौड़गढ़ किले का दौरा करने से पहले विचार करने वाली चीजें किले के विशाल परिसर के कारण, चित्तौड़गढ़ किले के अंदर घुमाए जाने के लिए टैक्सी या पर्यटक कैब को किराए पर लेने की सलाह दी जाती है, क्यूंकी किला बहुत बड़ा है।
किले का दौरा करने का सबसे अच्छा समय सर्दियों में है, क्योंकि राजस्थान में मई और अप्रैल के महीनों में गर्म है।
आपको खाने हेतु खुद से सामान लेजाना पड़ेगा क्योंकि किले के परिसर में कोई खाने का प्रभंध नहीं है।
शाम में विजय स्तम्भ को प्रकाशित किया गया जाता है जो की बड़ा ही खूबसूरत नजारा होता है , इसलिए इसे देखना ना भूले।

चित्तौड़गढ़ किले की कहानी –
प्राचीन गाथाओं में कहा जाता है कि इस किले का निर्माण 5000 वर्ष पूर्व पांडवों के दूसरे भाई भीम ने करवाया था। एक बार भीम धन की खोज में निकला था। रास्ते में भीम को एक योगी जी मिले।
भीम ने योगी जी से पारस मणि माँगी योगी ने भीम की मांग स्वीकार कर ली लेकिन साथ में एक शर्त रखी कि भीम रातों-रात इस पहाड़ी पर एक दुर्ग का निर्माण कर दे।
भीम ने अपने शौर्य व देवरूप भाइयों की मदद से करीब-करीब यह कार्य समाप्त कर ही दिया था। सिर्फ दक्षिण के हिस्से में थोड़ा कार्य शेष बचा था।
भीम का कार्य देखकर योगी के ह्रदय में कपट ने स्थान ले लिया और उसने अपनी दिव्यशक्ति से मुर्ग़े की आवाज में वाग दिया जिससे भीम सवेरा समझकर निर्माण-कार्य समाप्त कर दे तथा उसे पारस मणि न देना पड़े।
मुर्ग़े की वाग जैसे ही भीम ने सुनी तो भीम को क्रोध आ गया और उसने क्रोध में अपनी एक लात ज़मीन पर दे मारी इससे उस जगह एक गड्ढा बन गया।
जिसे लोग भीमलत तालाब के नाम से भी जानते है जिस स्थान पर भीम ने विश्राम किया वह स्थान भीमताल कहलाता है जिस तालाब पर योगी ने मुर्ग़े की आवाज निकली थी। वह स्थान कुकड़ेश्वर कहलाता है।
इतिहासकारों के अनुसार इस किले का निर्माण मौर्य वंश के राजा चित्रांगदा ने 7वीं शताब्दी में किया था तथा इसे अपने नाम पर चित्रकूट रखा था मेवाड़ के प्राचीन सिक्कों पर एक तरफ चित्रकूट का नाम अंकित मिलता है।
बाद में यह चित्तौर कहा जाने लगा चित्तौरगढ़ युद्ध में सैनिकों के पराजित होने के बाद राजपूत सैनिकों की लगभग 16,000 महिलाओं व बच्चों ने जौहर कर लिया था तथा अपने प्राणों की आहुति दी थी।

चित्तौरगढ़ किले की संरचना व बनावट –
80 मीटर ऊँची पहाड़ी पर स्थित चित्तौरगढ़ का यह किला 700 एकड़ भूमि में फैला हुआ है इस किले के अंदर बनी पट्टियां व छतरियां राजपूती वीरता को प्रदर्शित करती है इसके बादल पोल, भैरव पोल, हनुमान पोल व राम पोल मुख्य द्वार है।
इस किले के भीतर कईं स्मारक व राजपूती वास्तुकला के उत्कृष्ट नमूने है ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार चित्तौरगढ़ का किला 834 वर्षों तक मेवाड़ की राजधानी रह चुका है।
इस किले को 8वीं शताब्दी में सौलंकी रानी ने बप्पा रावल को दहेज़ के रूप में दिया था सन 1567 में अकबर के शासनकाल में इस किले को लूट कर इसे नष्ट किया गया था।
लेकिन लंबे समय बाद सन 1905 में इस किले की मरम्मत की गयी थी चित्तौरगढ़ किले में बहुत से देखने योग्य दर्शनीय स्थल है सन 2013 में चित्तौरगढ़ किले को यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल किया गया था।

विजय स्तंम्भ –
मालवा व गुजरात के मुसलमान शासकों पर अपनी विजय का जश्न मनाने के लिए मेवाड़ के शक्तिशाली शासक महाराणा कुंभा ने सन 1440 ईस्वी में इस ईमारत का निर्माण करवाया था
विजय स्तंम्भ 9 मंजिला ईमारत है और यह 37 मीटर (122 फ़ीट) ऊंची है विजय स्तंम्भ में हिन्दू देवी-देवताओं की उत्कृष्ठ मूर्तियां बनी हुई है। जो आज भी रामायण तथा महाभारत की घटनाओं का चित्रण करती है।

कीर्ति स्तंम्भ –
22 मीटर ऊंचे इस स्तंम्भ का निर्माण 12वीं शताब्दी में जैन व्यापारी ने करवाया था यह स्तंम्भ जैनियों के तीर्थकर आदिनाथ जी का है यहाँ पर जैन देव गुणों की आकृतियां सुसज्जित है

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