दशहरा क्यों मनाया जाता है

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दशहरा क्यों मनाया जाता है

दशहरा या विजयादशमी के दिन भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया था जिसके बाद से दशहरा को मनाने की परंपरा चली आ रही है इस दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व कहा जाता है आज के दिन ही देशभर में होने वाली रामलीलाओं का समापन होता है

भारतीय त्योहारों की सबसे अच्छी बात यह है कि उनमें से अधिकांश अपने साथ एक नैतिक शिक्षा लेकर आते हैं। ऐसा ही एक प्रसिद्ध त्योहार दशहरा है। दशहरा का पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व है। यह पावन पर्व सभी को संदेश देता है कि चाहे कुछ भी हो, सत्य की हमेशा विजय होती है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, दशहरा का त्योहार दशमी तिथि या अश्विन महीने के शुक्ल पक्ष के 10वें दिन मनाया जाता है, जो आमतौर पर सितंबर और अक्टूबर के ग्रेगोरियन महीनों में आता है। दशहरा का त्योहार दिवाली से ठीक 20 दिन पहले आता है।

दशहरा या विजयदशमी पूरे देश में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। यह माना जाता है कि दशहरा या विजयदशमी का दिन सभी के लिए अविश्वसनीय रूप से शुभ होता है, जिससे यह किसी भी नए कार्य के लिए एकदम सही हो जाता है जिसे आप शुरू करना चाहते हैं। मान्यता है कि इस दिन कोई भी शुभ कार्य किया जाए तो उसका फल मिलता है। ज्योतिषियों के अनुसार इस दिन आप जो भी नया कार्य करते हैं उसमें सफलता मिल सकती है। इसके अलावा, ज्योतिष के अनुसार, यह भी माना जाता है कि यह दिन घर या दुकान के निर्माण के लिए शुभ है, मुंडन, अन्नप्राशन, कर्ण छेदना या कान छिदवाना, भूमि पूजन, आपके बच्चे का नामकरण, गृह प्रवेश (जो एक समारोह है कि किसी व्यक्ति के पहली बार अपने नए घर में प्रवेश करने के अवसर पर किया जाता है), आदि। हालांकि, विजयदशमी के दिन विवाह समारोह आयोजित करना निषिद्ध है। इसके अतिरिक्त, यह भी माना जाता है कि इस शुभ दिन पर रामायण, श्री राम रक्षा स्तोत्र, सुंदरकांड आदि का पाठ करने से आपकी सभी इच्छाओं और प्रार्थनाओं को पूरा करने में मदद मिल सकती है।

दशहरा पूजा मुहूर्त –
विजयादशमी या दशहरा पूजा के लिए शुभ मुहूर्त आज 15 अक्टूबर को दोपहर बाद 01:16 से 03:34 बजे तक रहेगा दशहरा पूजा के लिए सबसे उत्तम शुभ मुहूर्त यानी विजय मुहूर्त आज दोपहर बाद 02:02 बजे से 02:48 बजे तक रहेगा इस मुहूर्त में पूजा करना उत्तम फलदायी होगा |

दशहरा या विजयादशमी 2021 शस्त्र पूजा मुहूर्त –
दशहरा के पावन पर्व पर शस्त्र पूजा करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है शस्त्र पूजा विजय मुहूर्त में करने का विधान है विजयदशमी पर यह मुहूर्त दोपहर बाद 02:02 बजे से 02:48 बजे तक है इस लिए इस शुभ मुहूर्त में आप शस्त्र पूजा कर सकते हैं |

दशहरा पूजा विधि –
दशहरा की पूजा अभिजीत, विजयी या अपराह्न काल में करना उत्तम माना जाता है. इस पूजा के लिए घर के ईशान कोण पर 8 कमल की पंखुडियों से अष्टदल चक्र बनाएं अष्टदल चक्र के बीच में ‘अपराजिताय नमः’ मंत्र लिखें और वहीं पर माता दुर्गा की प्रतिमा स्थापित करें. अब मां जया को दाईं तरफ और मां विजया को बाईं तरफ स्थापित करें ॐ क्रियाशक्त्यै नमः और उमायै नमः मंत्र से आह्वान करें अब मां की विधि पूर्वक पूजा करते हुए पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, आभूषण, गन्ध, पुष्प, धूप, दीप , नैवेद्य आचमन ताम्बूल अर्पित कर तर्पण करें इसके बाद स्तवन पाठ करें और नमस्कार करते हुए आरती करें अंत में पुनः हाथ जोड़कर नमस्कार करते हुए पूजा समाप्त करें |

विजयादशमी और दशहरा का अंतर –
दशहरा हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। अश्विन (क्वार) मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को इसका आयोजन होता है। भगवान राम ने इसी दिन रावण का वध किया था तथा विजयादशमी पर देवी दुर्गा ने नौ रात्रि एवं दस दिन के युद्ध के उपरान्त महिषासुर पर विजय प्राप्त किया था। इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। इसीलिये इस दशमी को ‘विजयादशमी’ के नाम से जाना जाता है। दशहरा वर्ष की तीन अत्यन्त शुभ तिथियों में से एक है, अन्य दो हैं चैत्र शुक्ल की एवं कार्तिक शुक्ल की प्रतिपदा। पौराणिक कथा के अनुसार दशहरा के दिन श्री राम ने रावण का वध किया था। 9 दिनों तक मां दुर्गा (Maa Durga Puja) की अराधना करने के बाद श्री राम ने दशमी के दिन रावण का वध किया था और इस तरह बुराई पर अच्छाई की जीत हुई थी। और इसी लिए नवरात्रि के नौ दिन तक रामलीला का आयोजन किया जाता है और दसवें दिन रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुताले जलाए जाते हैं। वहीं, दूसरी पौराणिक कथा मां दुर्गा और महिषासुर युद्ध की है। जब महिषासुर की सेना ने देवताओं को ज्यादा परेशान कर दिया था, तो मां दुर्गा ने महिषासुर की सेना के साथ 9 दिन तक युद्ध किया और दशमी तिथि के दिन महिषासुर का वध कर दिया था। और इस तरह दशमी के दिन फिर से बुराई पर अच्छाई की जीत का परचम लहराया था। यह विजयादशमी की कथा है।

दोनों ही रूपों में शक्ति की पूजा –
दशहरा अथवा विजयदशमी राम की विजय के रूप में मनाया जाए अथवा दुर्गा पूजा के रूप में, दोनों ही रूपों में यह शक्ति पूजा का पर्व है, शस्त्र पूजन की तिथि है। हर्ष और उल्लास तथा विजय का पर्व है। देश के कोने-कोने में यह विभिन्न रूपों से मनाया जाता है, बल्कि यह उतने ही जोश और उल्लास से दूसरे देशों में भी मनाया जाता जहां प्रवासी भारतीय रहते हैं। हिंदू धर्म में दशहरा का विशेष महत्व माना जाता है, क्योंकि इस दिन मां दुर्गा ने महिषासुर नाम के राक्षस का संहार किया था, तो वहीं प्रभु श्री राम ने रावण का वध करके लंका पर विजय प्राप्त की थी। इस तरह से बुराई पर अच्छाई की विजय का यह पर्व विजयदशमी कहलाया।

शस्त्र पूजन की परंपरा –
दशहरा को विजय का प्रतीक माना गया है। यह विजय तिथि है। पहले के समय में राजाओं के द्वारा विजयप्राप्ति के लिए दशमी तिथि पर शस्त्र पूजन किया जाता था जो परंपरा आज चली आ रही है। माना जाता है कि शहरा पर शस्त्र पूजन अवश्य करना चाहिए। इससे भी शत्रु बाधा से मुक्ति मिलती है। इस कार्य को विजयदशमी से आंरभ करके प्रतिदिन करना चाहिए, यदि प्रतिदिन नहीं कर सकते तो हर रविवार को यह उपाय करना चाहिए। इससे मान-प्रतिष्ठा व पद में बढ़ोत्तरी होती है।

दशहरा पूजन विधि –
विजयादशमी के दिन शुभ मुहूर्त में शमी के पौधे के पास जाकर सरसों के तेल का दीपक जलाएं और शमी पूजन मंत्र पढ़ें। इसके बाद सभी दिशाओं में आप विजय की प्रार्थना करें। यदि आपके घर में अस्त्र शस्त्र की पूजा की जाती है तो एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर सभी शस्त्रों को उसके ऊपर रखें। फिर गंगाजल छिड़क कर पुष्प अर्पित करें। विजयदशमी के दिन भगवान राम, मां दुर्गा, मां सरस्वती, भगवान गणेश और हनुमान जी आराधना करें। इस दिन गाय के गोबर से दस गोले य कंडे बनाएं, इन कंडों में नवरात्रि के दिन बोये गए जौ को लगायें। इसके बाद धूप और दीप जलाकर पूजा करें।

नवरात्रि के बाद दशहरा का अंतिम यानी दसवां दिन है – विजयदशमी, जिसका मतलब है कि आपने इन तीनों ही गुणों को जीत लिया है, उन पर विजय पा ली है। यानी इस दौरान आप किसी भी गुण- तमस, रजस या सत्व, के आगे समर्पित नहीं हुए। आप इन तीनों गुणों से होकर गुजरे, तीनों को देखा, तीनों में भागीदारी की, लेकिन आप इन तीनों में से किसी से भी, किसी भी तरह जुड़े या बंधे नहीं, आपने इन पर विजय पा ली।

यही विजयदशमी है : आपकी विजय का दिन –
इस तरह से नवरात्रि के नौ दिनों के प्रति या जीवन के हर पहलू के प्रति एक उत्सव और उमंग का नजरिया रखना और उसे उत्सव की तरह मनाना सबसे महत्वपूर्ण है। अगर आप जीवन में हर चीज को एक उत्सव के रूप में लेंगे तो आप बिना गंभीर हुए जीवन में पूरी तरह शामिल होना सीख जाएंगे। दरअसल ज्यादातर लोगों के साथ दिक्क्त यह है कि जिस चीज को वो बहुत महत्वपूर्ण समझते हैं उसे लेकर हद से ज्यादा गंभीर हो जाते हैं। अगर उन्हें लगे कि वह चीज महत्वपूर्ण नहीं है तो फिर उसके प्रति बिल्कुल लापरवाह हो जाएंगे- उसमें जरूरी भागीदारी भी नहीं दिखाएंगे। जीवन का रहस्य यही है कि हर चीज को बिना गंभीरता के देखा जाए, लेकिन उसमें पूरी तरह से भाग लिया जाए- बिल्कुल एक खेल की तरह।

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