दीपावली क्यों मनाना जरुरी है / लक्ष्मी पूजन का सबसे अच्छा मुहूर्त

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दीपावली क्यों मनाना जरुरी है

दोस्तों आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि दीपावली का त्यौहार क्यों मनाया जाता है। आपको बता दें कि इस त्योहार के पीछे कई मान्यताएं और पौराणिक कथाएं हैं, जिसके कारण इसे अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। तो चलिए अब जानते हैं दीपावली का त्यौहार आखिर क्यों मनाया जाता है। यदि आप जानते हैं कि दीपावली का त्यौहार क्यों मनाया जाता है तो यह एक अच्छी बात है, अन्यथा, आप हमारे इस लेख को आखिरी तक पढ़ सकते हैं।

दिवाली का त्योहार हमारे देश के लोगों के जीवन में काफी महत्व रखता है और ये त्योहार हर साल अक्टूबर या नवंबर के महीने में आता है इस दिन लोग अपने घरों को रोशन करतें हैं और धन कि देवी माता लक्ष्मी और गौरी पुत्र भगवान गणेश की पूजा करते हैं इस त्योहार का अवकाश भारत के अलावा भी कई राष्ट्रों में घोषित किया गया है | दिवाली 2020 में कब है विस्तार से आने दिवाली कैसे मानते है, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि

लक्ष्मी पूजन का सबसे अच्छा मुहूर्त – 
4 नवंबर 2021, गुरुवार, शाम 06 बजकर 09 मिनट से रात्रि 08 बजकर 20 मिनट
अवधि: 1 घंटे 55 मिनट
प्रदोष काल: 05:34:09 से 08:10:27 तक
वृषभ काल: 06:10:29 से 08:06:20 तक

दीपावली या दिवाली क्यों मनाई जाती है, इसके क्या कारण है –
ये त्योहार हर वर्ष कार्तिक माह की अमावस्या के दिन आने वाला हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध धर्म के लोगों का त्योहार है और हर धर्म का इस दिन के साथ खास महत्व जुड़ा हुआ है. साथ में ही दीपावली को मनाने के पीछे कई सारी कथाएं भी हैं:

लक्ष्मी मां का जन्मदिन- इस दिन मां लक्ष्मी का जन्म हुआ था और उनका विवाह भी भगवान विष्णु से इसी दिन हुआ था. कहाँ जाता है कि हर साल इन दोनों की शादी का जश्न हर कोई अपने घरों को रोशन करके मनाता है |
लक्ष्मी मां को करवाया था रिहा- भगवान विष्णु के पांचवें अवतार ने कार्तिक अमावस्या के दिन मां लक्ष्मी को राजा बाली की जेल से छुड़वाया था और इसके चलते ही इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है |
जैन धर्म के लोगों के लिए विशेष दिन- जैन धर्म में पूजनीय और आधुनिक जैन धर्म के संस्थापक जिन्होने दीपावली के दिवस पर ही निर्वाण प्राप्त किया था और अपने धर्म के लिए इस दिन को महत्वपूर्ण बनाया |
सिक्खों के लिए विशेष दिन- इस दिन को सिक्ख धर्म के गुरु अमर दास ने रेड-लेटर डे के रूप में संस्थागत किया था, जिसके बाद से सभी सिख्क, अपने गुरु का आशीर्वाद इस दिन प्राप्त करते हैं. सन् 1577 में दीपावली के दिन ही अमृतसर के स्वर्ण मंदिर की आधारशिला भी रखी गई थी |
पांडवों का वनवास हुआ था पूरा – महाभारत के अनुसार कार्तिक अमावस्या के दिन ही पांडवों का वनवास पूरा हुआ था और इनका बाराह साल का वनवास पूरा होने की खुशी में इनसे प्रेम करने वाले लोगों ने अपने घरों में दीये जलाए थे |
विक्रमादित्य का राज तिलक हुआ था- हमारे देश के महाराजा विक्रमादित्य जिन्होंने दुनिया के सबसे बड़े साम्राज्य पर राज किया था, उनका राज तिलक भी इसी दिन किया गया था.
कृष्ण जी ने नरकासुर को मारा था- देवकी नंदन श्री कृष्ण ने नरकासूर राक्षस का वध भी दीपावली से एक दिन पूर्व किया था. जिसके बाद इस त्योहार को धूमधाम से मनाया गया था.
राम भगवान की घर वापसी की खुशी में – इस दिन भगवान राम जी अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अपना 14 साल का वनवास सफलता पूर्वक करके, अपने जन्म स्थान अयोध्या में लौटे थे. और इनके आने की खुशी में अयोध्या के निवासियों ने दीपावली अपने राज्य में मनाई थी. वहीं जब से लेकर अब तक हमारे देश में इस त्योहार को हर वर्ष मनाया जाता है.
फसलों का त्योहार – खरीफ फसल के समय ही ये त्योहार आता है और किसानों के लिए ये त्योहार समृद्धी का संकेत होता है और इस त्योहार को किसान उत्साह के साथ मनाते हैं.
हिंदू नव वर्ष का दिन – दीपावली के साथ ही हिंदू व्यवसायी का नया साल शुरू हो जाता है और व्यवसायी इस दिन अपने खातों की नई किताबें शुरू करते हैं, और नए साल को शुरू करने के पहले अपने सभी ऋणों का भुगतान करते हैं |

दीपावली का महत्व –
दीपावली त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. और ये दिन लोगों को याद दिलाता है कि सच्चाई और भलाई की हमेशा ही जीत होती है |
धारणाओं के मुताबिक, इस दिन पटाखे फोड़ना शुभ होता है और इनकी आवाज पृथ्वी पर रहने वाले लोगों की खुशी को दर्शाती है, जिससे की देवताओं को उनकी भरपूर स्थिति के बारे में पता चलता है |
इस दिन लक्ष्मी मां की पूजा करना बहुत महत्वपूर्ण होता है और ऐसा माना जाता है कि अगर सच्चे मन से इस दिन मां की पूजा की जाए तो घर में पैसों की कमी नहीं होती है.
इस अवसर पर लोग उपहारों का आदान प्रदान करते हैं और मिठाई से एक दूसरे का मुंह मीठा करवाते हैं और ऐसा करने से उनके बीच में प्यार बना रहता है. ये त्योहार लोगों को आपस में जोड़कर रखने का भी कार्य करता है |

दीप पर्व अथवा दिवाली क्यों मनाई जाती है? इसके पीछे अलग-अलग कहानियां हैं, अलग-अलग परंपराएं हैं। इसी अनुसार देश के अलग-अलग हिस्सों में इसे मनाने के तरीकों में भी विभिन्नता पाई जाती हैं। आइए जानते हैं आखिर दिवाली क्यों मनाई जाती है-

1.) श्री राम जी के वनवास से अयोध्या लौटने पर –
सनातन धर्म की मान्यता के अनुसार दिवाली के दिन ही श्री राम जी वनवास से अयोध्या लौटे थे। मान्यता है अयोध्या वापस लौटने की खुशी में दीपावली मनाई गई थी। मंथरा की गलत विचारों से भ्रमित होकर भरत की माता कैकई ने श्री राम को उनके पिता दशरथ से वनवास भेजने के लिए वचनबद्ध कर देती है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम अपने पिता के आदेश को मानते हुए अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्ष के लिए वनवास में निकल गए। अपनी 14 साल की वनवास पूरा करने के बाद श्री राम जी दिवाली के दिन अयोध्या वापस लौटे थे। राम जी के वापस आने की खुशी में पूरे राज्य के लोग रात में दीप जलाए थे और खुशियां मनाए थे। उसी समय से दिवाली मनाई जाती है।

2.) दीपावली के दिन जन्मी थीं माता लक्ष्मी –
ब देवताओं और राक्षसोंं द्वारा समुद्र मंथन चल रहा था तब कार्तिक अमावस्या पर देवी लक्ष्मी क्षीर सागर (दूध का लौकिक सागर) से ब्रह्माण्ड मे आई थी। माता लक्ष्मी धन की देवी हैं, हिंदू धर्म और शास्त्रों के अनुसार यह कहा जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान कार्तिक मास की अमावस्या के दिन समुद्र मंथन करते समय मां लक्ष्मी की उत्पत्ति हुई थी। इसीलिए दीपावली के दिन माता लक्ष्मी का जन्मदिन मनाया जाता है और उनकी पूजा की जाती है।

3. हिरण्यकश्यप का वध –
एक पौराणिक कथा के अनुसार विष्णु ने नरसिंह रूप धारणकर हिरण्यकश्यप का वध किया था। दैत्यराज की मृत्यु पर प्रजा ने घी के दीये जलाकर दिवाली मनाई थी।

4.) कृष्ण ने नरकासुर का वध किया –
जब राक्षस राजा नरकासुर ने तीनों लोकों पर आक्रमण कर दिया था और वहां रहने वाले देवी-देवताओं पर अत्याचार कर रहा था तब श्री कृष्ण ने नरकासुर का वध किया था। कृष्ण ने अत्याचारी नरकासुर का वध दीपावली के एक दिन पहले चतुर्दशी को किया था। इसी खुशी में अगले दिन अमावस्या को गोकुलवासियों ने दीप जलाकर खुशियां मनाई थीं। उसका वध करके श्री कृष्ण ने 16,000 महिलाओं को उसके कैद से आजाद किया था। इस जीत की खुशी को 2 दिन तक मनाया गया था जिसमें दीपावली का दिन मुख्य है।

5.) पांडवों का अपने राज्य में वापस लौटना –
आप सभी ने महाभारत की कहानी तो सुनी ही होगी। कौरवों ने, शकुनी मामा के चाल की मदद से शतरंज के खेल में पांडवों का सब कुछ छीन लिया था। यहां तक की उन्हें राज्य छोड़ कर 13 वर्ष के लिए वनवास भी जाना पड़ा। इसी कार्तिक अमावस्या को वो 5 पांडव (युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव) 13 वर्ष के वनवास से अपने राज्य लौटे थे। उनके लौटने के खुशी में उनके राज्य के लोगों नें दीप जला कर खुशियां मनाई थी।

6. सिक्खों के 6वें गुरु को मिली थी आजादी –
मुगल बादशाह जहांगीर ने सिखों के 6वें गुरु गोविंद सिंह सहित 52 राजाओं को ग्वालियर के किले में बंदी बनाया था। गुरू को कैद करने के बाद जहांगीर मानसिक रूप से परेशान रहने लगा। जहांगीर को स्वप्न में किसी फकीर से गुरू जी को आजाद करने का हुक्म मिला था। जब गुरु को कैद से आजाद किया जाने लगा तो वे अपने साथ कैद हुए राजाओं को भी रिहा करने की मांग करने लगे। गुरू हरगोविंद सिंह के कहने पर राजाओं को भी कैद से रिहाई मिली थी। इसलिए इस त्यौहार को सिख समुदाय के लोग भी मनाते हैं।

7.) जैन के लिए है एक विशेष दिन –
दीपावली के दिन ही जैन धर्म के संस्थापक महावीर तीर्थंकर ने निर्वाण प्राप्त किया था। एक तपस्वी बनने के लिए उन्होंने अपने शाही जिंदगी और परिवार का त्याग किया था। व्रत और तप को अपनाकर उन्होंने निर्वाण को प्राप्त किया था। यह कहा जाता है कि 43 की उम्र में उन्होंने ज्ञान प्राप्त कर लिया था और जैन धर्म को विस्तार दिया था।

दिवाली कब है –
इस त्योहार की तारीख हिंदू चंद्र कैलेंडर द्वारा गणना की जाती है। इसलिए दिवाली की तारीख हर साल बदलती रहती है।
जैसे 2021 में दिवाली 14 नवंबर को मनाई गई थी और इस साल दिवाली 2021 में 4 नवंबर को मनाई जाएगी।

प्रतीक –
दीपक, आतिशबाजी और अलाव इस अवकाश को रोशन करते हैं, क्योंकि “दीपावली” शब्द का अर्थ है “रोशनी की एक पंक्ति या समूह” या “दीयों (मिट्टी के दीपक)”। त्योहार धार्मिकता की जीत और आध्यात्मिक अंधकार को उठाने का प्रतीक है। दीपावली, या दीपावली के दौरान, धन, सुख और समृद्धि का प्रतीक देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती हैदिवाली सबसे शुभ और महत्वपूर्ण हिंदू त्योहारों में से एक है। दीपावली की रात दीपावली की रात को आतिशबाजी और फैंसी दीयों का एक चमकदार प्रदर्शन दिखाई देता है। लेकिन दिवाली क्यों मनाई जाती है? इस त्यौहार को मनाने के पीछे कई कारण हैं। यहां हम आपको 12 कारण बताते हैं कि हम दिवाली क्यों मनाते हैं।

भगवान राम की विजय –
दीवाली मनाने का एक कारण रावण पर भगवान राम की विजय है। रावण का वध करने के बाद, लंका के राजा और अपने 14 साल के वनवास को पूरा करने के बाद, भगवान राम अपनी पत्नी, सीता और भाई, लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौट आए। जिस दिन भगवान राम ने अयोध्या में प्रवेश किया वह कार्तिक की अमावस्या थी। अयोध्या की जनता ने पटाखे फोड़कर और दीप और दीप जलाकर भगवान राम का स्वागत किया। तब से, त्योहार के प्रतीक के लिए आतिशबाजी और दीये आए हैं।

नरकासुर का वध –
नरकासुर एक दुष्ट दानव राजा था जो धरती के साथ-साथ स्वर्ग में भी तबाही मचा रहा था। एक अत्याचारी राजा, उसने 16,000 महिलाओं को बंदी बना लिया था। दिवाली से एक दिन पहले, भगवान विष्णु के एक अवतार, भगवान कृष्ण ने नरकासुर को मार डाला और महिलाओं को मुक्त कर दिया। इस प्रकार, इस दिन को बहुत भक्ति के साथ मनाया जाने लगा।

दिवाली क्यों मनाई जाती है –
दिवाली मनाने के पीछे कई सारी और अलग-अलग कहानियां और परंपराएं है।
सबसे पहली तो यह है कि जब भगवान राम 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे तो लोगों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया था। इसलिए लोग 14 साल बाद वनवास से राम के लौटने की खुशी में दीपों की रौशनी करके दीपावली मनाते हैं

दूसरी कहानी के अनुसार, दिवाली का त्योहार राक्षस नरकासुर पर भगवान कृष्ण की विजय के रूप में मनाया जाता है। इस त्यौहार पर धन की देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है।

राक्षस राजा रावण को भगवान राम ने मार दिया था। इसलिए बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाने के लिए और अयोध्या में भगवान राम की वापसी का जश्न मनाने के लिए पूरे शहर को रोशन किया गया था। उस दिन से भगवान राम के नाम पर दीपावली मनाई जाती है।

कहानियां चाहें जो भी हो, दीपावली का त्योहार बुराई पर अच्छाई की विजय, अँधेरे पर उजाले की जीत और अज्ञान पर ज्ञान की विजय के लिए मनाया जाता है। अब आप जान गए होंगे कि दिवाली कब और क्यों मनाई जाती है।

आखरी लाइनें –
आशा है कि रोशनी का यह पवित्र त्यौहार दुनिया के हर कोने में शांति और सम्रद्धि का उजाला भर देगा। हमारी शुभकामना है कि यह दिवाली नए सपने, नई उम्मीदें लेकर आएगी और सबकुछ चमकदार और सुंदर बना देगी।

सभी के साथ मिलजुल कर खुशी से दिवाली मनाए, पूरे जोश और उल्लास के साथ लेकिन सावधानी से। पटाखों का कम से कम इस्तेमाल करें। बच्चों को बड़े पटाखे मत दे।

यदि आपको दिवाली पर शायरी क्या कविताएं चाहिए तो नीचे वाला आर्टिकल स्पेशल आपके लिए हैं।

अब कुछ और अद्भुत दीपक कथाएं सुनो –
1804 में, इटली के सिसिली के एक गाँव में एक किसान के खेत में एक मकबरा मिला। मकबरे की छत और गेट सीसा और अन्य धातुओं के मिश्रण से बंद थे। जब छत टूटी हुई थी, तो हर कोई यह देखकर दंग रह गया कि यह मकबरा रोशन था। एक जार में रखा एक दीपक लाश के सिर पर जल रहा था। कई लोग इसे भूतों का कैरिकेचर मानते हैं और भाग जाते हैं। किसी ने हिम्मत करके जार को तोड़ दिया। जार के टूटते ही दीपक बुझ गया। मकबरे से मिले कागजात के एक अध्ययन से पता चला है कि दीपक सैकड़ों वर्षों से जल रहा था।

इतिहासकार विलियम कामडेल ने मेसोपोटोमिया के एक मकबरे में प्रज्वलित दीपक के बारे में जानकारी देते हुए लिखा – ‘वह दीपक तेल के स्थान पर पिघले हुए सोने से भरा था।’

इससे यह निष्कर्ष निकला कि प्राचीन रसायनज्ञ सोने को एक मिश्रण में परिवर्तित करने की कला से परिचित थे जो वर्षों तक दीपक को जलाए रख सकता था।

इतिहासकार लायंस बैन ने अपनी पुस्तक में मेक्सिको की संस्कृति में देवी के एक मंदिर में पाए जाने वाले दीपक के बारे में लिखा है – वह दीपक मिट्टी से बना था, जो दो परस्पर बर्तनों में बंद था। एक बर्तन पर सोना और दूसरे पर चांदी की परत चढ़ी थी। तेल के स्थान पर एक अपरिचित मिश्रण भरा गया था। उन बर्तनों पर लिखी जानकारी से यह ज्ञात हुआ कि एक राजा ने श्रद्धा से देवी अगस्त्य को वह दीपक भेंट किया था और वह वर्षो से प्रकाशमान था। सेंट आगस्टाइन ने सौंदर्य की देवी वीनस के मंदिर में जलने वाले दीपक का उल्लेख किया है, जो न जाने कितने हजार वर्षों से जल रहा था।

दीपावली की तैयारी –
हम दिवाली की तैयारी ( Diwali Ki Taiyari) एक महीने पहले ही शुरू कर देते हैं, इसके लिए हम पूरे घर की सफाई करते हैं और घर में पेंट का काम किया जाता है, ताकि घर सुंदर और साफ दिखे। दिवाली पर हम सभी नए वस्त्र पहनते है। दिवाली के समय सभी दुकान मॉल आदि अपने ग्राहकों को उचित छूट देते हैं। साथ ही छोटी दिवाली से एक दिन पहले धनतेरस का त्यौहार मनाया जाता है। धनतेरस के दिन नया वर्तन खरीदने की परंपरा है। धनतेरस के दिन सभी वर्तनों की दुकान पर दिवाली ऑफर में भारी डिस्काउंट (छूट) दी जाती है।

दीपावली का त्यौहार मनाना –
दीपावली प्रकाश का त्योहार (Diwali Ka Tyauhar) है, जो अंधेरे में प्रकाश के रूप में जीत का प्रतीक है, यह भारत का एकमात्र त्योहार है, जो लगातार पांच दिनों तक चलता है, इस त्योहार का हिन्दू हिन्दू धर्म में बहुत महत्व है, दिवाली के नजदीक आने पर लोग कोई भी नया सामान खरीदने के लिए धनतेरस का इन्तजार करते हैं। दीपावली वास्तव में एक अद्भुत त्योहार है, जिसमें सभी लोग एक साथ इकट्ठा होते हैं और खुशी मनाते हैं। भारत में कई लोग अपने घर से दूर रहकर काम करते हैं, इस दिवाली के शुभ अवसर पर, वे सभी घर आते हैं और पूरे परिवार के साथ इस दिवाली के त्योहार को मनाते हैं। इसलिए इस त्योहार को एकता का प्रतीक भी कहा जाता है।

दीपावली पर शाम को लक्ष्मी-गणेश की पूजा की जाती है, इस पूजा के बाद परिवार के सभी लोग मिठाई और उपहार का आदान-प्रदान करते हैं, सभी लोग अपने बड़ों का आशीर्वाद लेते हैं, बच्चे आतिशबाजी करते हैं, पूरा आकाश आतिशबाजी से भरा हुआ प्रतीत होता है। सभी लोग पूजा करके पकवान का आनंद लेते हैं। सभी लोग एक-दूसरे को दीपावली की शुभकामनाएं और उपहार देते हैं। घर पर माता जी घर पर रंगोली बनाती हैं, इसके अलावा वह नए और आकर्षक मिठाइयाँ, नए व्यंजन जैसे गुंजिया, लड्डू, गुलाब जामुन, जलेबी, पेड़ा और अन्य प्रकार के व्यंजन बनाती हैं, जिनका पूरा परिवार आनंद उठाता है।

देवी लक्ष्मी का जन्मदिन –
लक्ष्मी धन और समृद्धि की देवी हैं। उसकी उत्पत्ति समुद्रमंथन में हुई है। पौराणिक कथा के अनुसार, देवता और असुर दोनों अमृत मांग रहे थे, जो अमरता का अमृत है, और इसलिए उन्होंने समुद्रमंथन किया, जो समुद्र का मंथन है। इस प्रक्रिया में, कई खगोलीय पिंड समुद्र की गहराई से निकले और इनमें से एक देवी लक्ष्मी थीं। वह अमावस्या के दिन पैदा हुई। वर्ष की सबसे अंधेरी रात में, विष्णु के साथ उसकी शादी के दौरान, लैंप के साथ माहौल को रोशन किया गया था। इसलिए, देवी लक्ष्मी दीपावली से जुड़ी हुई हैं और लोग धन और समृद्धि की प्राप्ति के लिए त्योहार पर लक्ष्मी पूजा करते हैं।

महाबली –
महाबली, जो भगवान विष्णु के एक भक्त थे, बहुत बुद्धिमान और न्यायप्रिय राजा थे। हालाँकि, समय के साथ वह थोड़ा अहंकारी हो गया था। भगवान विष्णु चाहते थे कि वह अपने अहंकार से मुक्त हो जाए और एक दिन एक गरीब ब्राह्मण वामन (बौना) के रूप में महाबली के पास गया। जब वामन ने जमीन का एक टुकड़ा मांगा, तो राजा ने उसे वरदान दिया कि उसके पास बहुत कुछ है और वामन को जितना चाहिए उतना मिल सकता है। वामा ने केवल भूमि के तीन चरणों के लिए कहा और लौकिक अनुपात में वृद्धि हुई। वामन के एक कदम ने पृथ्वी को ढक दिया, और दूसरे ने आकाश को तीसरे स्थान के लिए नहीं रखा। यह जानते हुए कि वामन भगवान थे, महाबली ने तीसरे चरण के लिए अपना सिर अर्पित किया। महाबली को अंडरवर्ल्ड में धकेल दिया गया और जीवन और मृत्यु के चक्र से मुक्त कर दिया गया।

हिंदू नव वर्ष –
दीवाली को हिंदू समुदाय द्वारा नव वर्ष दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन, व्यवसाय समुदाय समृद्धि की शुरूआत करने के लिए अपने कार्यालयों में पूजा करते हैं, अपने सभी ऋणों का भुगतान करते हैं और नई खाता बही भी शुरू करते हैं।

पांडवों की वापसी – 
पांडवों, पासा के एक खेल में कौरवों के हाथों हार के बाद, 12 साल की अवधि के लिए निर्वासित कर दिए गए थे। 12 वर्ष पूरे होने के बाद, पांडव हस्तिनापुर लौट आए। जिस दिन वे लौटे was कार्तिक अमावस्या ’थी और इसलिए, पांडवों के स्वागत के लिए लोगों ने मिट्टी के दीपक जलाकर शहर को रोशन किया।

विक्रमादित्य का राज्याभिषेक –
विक्रमादित्य भारत के महानतम राजाओं में से एक हैं। वह बहुत बुद्धिमान और न्यायप्रिय राजा और योग्य प्रशासक था। 56 ईसा पूर्व में उन्होंने शक को हराया। उनकी जीत के बाद, एक भव्य उत्सव का आयोजन किया गया था। उनका राज्याभिषेक दिवस दिवाली पर पड़ा, और इस दिन तक उत्सव मनाया जाता है।

स्वामी दयानंद सरस्वती –
यह स्वामी दयानंद सरस्वती के अनुयायियों के लिए एक बहुत ही खास दिन है जो एक महान हिंदू सुधारक थे। यह दिवाली के दिन था कि आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती ने निर्वाण प्राप्त किया था।

देवी काली –
दिवाली पर, देवी काली की पूजा बंगाल और उड़ीसा में की जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार, देवताओं और दानवों के बीच युद्ध हुआ था। युद्ध में राक्षस विजयी हुए। हालाँकि, देवी काली ने सभी गुस्से को मार दिया। लेकिन, उसने सारा नियंत्रण खो दिया और उसके रास्ते में आने वाले किसी भी व्यक्ति को मारना शुरू कर दिया। भगवान शिव के हस्तक्षेप के बाद ही उसने हत्या बंद कर दी थी। इसलिए, इस दिन को काली पूजा के रूप में मनाया जाता है।

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