दुर्गादास राठौर कौन थे

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दुर्गादास राठौर कौन थे

भारतीय इतिहास में वीर शिरोमणि दुर्गादास के नाम को कभी परिचय की आवश्यकता नहीं रही मारवाड़ के इस वीरपुत्र और मातृभूमि पर अपने सम्पूर्ण जीवन को न्यौछावर कर देने वाले जुझारू यौद्धा को केवल मारवाड़ की धरती और सम्पूर्ण देश में फैले राठौर बंधू ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण हिंदू समाज और इस राष्ट्र का कण कण उन्हें याद करके धन्य हो उठता है आज उनके जन्मदिवस पर पूरा देश और विशेषतः मारवाड़ की धरती इस महान यौद्धा को कृतज्ञतापूर्वक याद करके उसे नमन करती है आज भी मारवाड़ के गाँवों में बड़े-बूढ़े लोग बहू-बेटी को आशीर्वाद स्वरूप यही दो शब्द कहते हैं और वीर दुर्गादास को याद करते है कि “माई ऐहा पूत जण जेहा दुर्गादास, बांध मरुधरा राखियो बिन खंभा आकाश” अर्थात् हे माता तू वीर दुर्गादास जैसे पुत्र को जन्म दे जिसने मरुधरा (मारवाड़) को बिना किसी आधार के संगठन सूत्र में बांध कर रखा था दुर्गादास को वीर दुर्गादास बनाने का श्रेय उसकी माँ मंगलावती को ही जाता है जिसने जन्मघुट्टी देते समय ही दुर्गादास को यह सीख दी थी कि बेटा मेरे धवल उज्ज्वल सफेद दूध पर कभी कायरता का काला दाग मत लगाना |

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दुर्गादास राठौर का इतिहास :-
दुर्गादास मारवाड़ का प्रसिद्ध राठौर सरदार था वह जोधपुर के राजा जसवंत सिंह के मंत्री असिकर्ण का पुत्र था मुग़ल सम्राट की ओर से जब राजा जसवंत सिंह क़ाबुल अभियान पर गया था उसी बीच वहाँ 10 दिसम्बर 1678 ई. को उसकी मृत्यु हो गई उस समय उसका कोई भी पुत्र नहीं था लेकिन दो माह के पश्चात् उसकी विधवा रानियों के दो पुत्र हुए एक पुत्र तो तत्काल ही मर गया, लेकिन दूसरा अजीत सिंह के नाम से विख्यात हुआ यही अजीत सिंह मारवाड़ का वैध उत्तराधिकारी था स्वर्गीय राजा के सरदारों के संरक्षण में शिशु अजीतसिंह तथा उसकी माँ को दिल्ली लाया गया इन सरदारों में दुर्गादास प्रमुख था।
वीर शिरोमणि दुर्गादास कहीं के राजा या महाराजा नहीं थे परंतु उनके चरित्र की महानता इतनी ऊंची उठ गई थी कि वह अनेक पृथ्वीपालों,प्रजापतियों,राजों,महाराजोंऔर सम्राटों से भी ऊंचे हो गये और उनका यश तो स्वयं उनसे भी ऊंचा होकर अजर अमर गाथा बन गया है आज उनकी जयंती के अवसर पर उन्हें सादर नमन,प्रणाम और कृतज्ञ राष्ट्र की ओर से पुण्य स्मर |

दुर्गादास की छतरीयो :-
दुर्गादास की छतरी उज्जैन के मंदिरों के शहर में स्थित एक विशिष्ट स्मारक है यह स्मारक छतरी के रूप में वीर दुर्गादास की याद में बनवाया गया था जो कि राजपूताना इतिहास में एक महान शख्सियत है वीर दुर्गादास ने महाराज जसवंत सिंह की मृत्यु के बाद मुग़लों से लड़ाई की और औरंगज़ेब की इच्छा के विरुद्ध जोधपुर पर चढ़ाई करने में अजीत सिंह की सहायता की इस बहादुर आदमी की 1718 में मृत्यु हो गई और इसकी इच्छा थी कि इसका दाह संस्कार शिप्रा नदी के किनारे किया जाए इस स्मारक की वास्तुकला राजपूत शैली में है तथा एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है यह छतरी वीर दुर्गादास की मृत्यु के बाद जोधपुर के शासकों द्वारा उसकी याद में बनवायी गई थी।

वीर दुर्गादास राठौड़ की वीरगाथा :-
वीर दुर्गादास राठौड़ का जन्म 13 अगस्त 1638 विक्रम सम्वत 1695 श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन हुआ था इनके पिता का नाम श्री आसकरण था माता नेतकँवर थीं इनके पिता जोधपुर के महाराजा जसवंत सिंह की सेना में सेनापति थे वीर दुर्गादास राठौड़ अपने पिताजी की तरह ही पराक्रमी और वीर योद्धा थे आसकरण की अन्य पत्नियां भी थी दुर्गादास राठौड़ का लालन-पालन उनकी मां नेतकँवर ने ही किया और उनमें देश भक्ति और धार्मिक संस्कार डाले |

वीर दुर्गादास राठौड़ मारवाड़ की पंक्तियाँ :-
वीर दुर्गादास राठौड़ भारतभूमि के महान वीर योद्धाओं में से एक हैं वीर दुर्गादास राठौड़ को आज भी उनके साहस, वीरता और पराक्रम को राठौर समाज द्वारा याद किया जाता हैं उन्होंने मारवाड़ की धरती को मुगलों की दासता से छुड़वाने में अहम् भूमिका निभाई थी तब दिल्ली की गद्दी पर औरंगजेब का शासन था उन्हें महाराजा जसवन्त सिंह द्वारा “मारवाड़ का भावी रक्षक” की उपाधि से सम्मानित किया गया था उनकी प्रशंसा में आज भी मारवाड़ में निम्न पंक्तियाँ प्रचलित हैं –
माई ऐहड़ौ पूत जण, जेहड़ौ दुर्गादास
मार गण्डासे थामियो, बिन थाम्बा आकास

राजस्थान के सम्राट

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