गजानन माधव मुक्तिबोध कौन थे 

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गजानन माधव मुक्तिबोध कौन थे 

नाम गजानन माधव मुक्तिबोध
जन्म 13 नवंबर 1917 ई.
मृत्यु 11 सितंबर 1964 ई. (भोपाल )
जन्म स्थान मध्य प्रदेश
पिता  माधवराव गोपालराव मुक्तिबोध ग्वालियर स्टेट में सब इंस्पेक्टर थे
माताजी पार्वतीबाई( घरेलू और धर्म परायण महिला

गजानन माधव मुक्तिबोध का जीवन परिचय –

गजानन माधव मुक्तिबोध का जन्म मध्य प्रदेश के मुरैना जनपद के श्योपुर नामक कस्बे में 13 नवंबर 1917 को हुआ उनके किसी और पूर्वज को मुक्तिबोध की उपाधि प्राप्त हुई थी इसलिए कुलकर्णी के स्थान पर मुक्तिबोध है कहलाने लगे।
उनके पिता का नाम माधव मुक्तिबोध था , जो कि पुलिस इंस्पेक्टर थे वे एक न्यायप्रिय अधिकारी होने के साथ साथ है धर्म तथा दर्शन में अत्यधिक रुचि रखते थे गजानन माधव का पालन-पोषण बड़े लाड प्यार से हुआ।

गजानन माधव मुक्तिबोध शिक्षा –

मुक्तिबोध के पिता पुलिस विभाग के इंस्पेक्टर थे अक्सर उनका तबादला होता रहता था। इसीलिए मुक्तिबोध की पढाई में बाधा पड़ती रहती थी 1930 ई. में मुक्तिबोध ने मिडिल की परीक्षा, उज्जैन से दी और फेल हो गए कवि ने इस असफलता को अपने जीवन की महत्त्वपूर्ण घटना के रूप में स्वीकार किया है मुक्तिबोध ने 1938 ई. में बीए की परीक्षा पास की 1954 ई. में उन्होंने एम.ए. की परीक्षा पास कर दिग्विजय कॉलेज में प्राध्यापक के पद पर नियुक्त हुए और 1939 में इन्होंने शांता जी से प्रेम विवाह किया 1942 के आस-पास वे वामपंथी विचारधारा की ओर झुके तथा शुजालपुर में रहते हुए उनकी वामपंथी चेतना मजबूत हुई उन्होंने 1953 में साहित्य रचना का कार्य प्रारम्भ किया मुक्तिबोध अस्तित्ववादी विचारधारा के समर्थक थे।

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गजानन माधव मुक्तिबोध साहित्यिक जीवन —

मुक्तिबोध तारसप्तक के पहले कवि थे मनुष्य की अस्मिता, आत्मसंघर्ष और प्रखर राजनैतिक चेतना से समृद्ध उनकी कविता पहली बार ‘तार सप्तक’ के माध्यम से सामने आई, लेकिन उनका कोई स्वतंत्र काव्य-संग्रह उनके जीवनकाल में प्रकाशित नहीं हो पाया मृत्यु के पहले श्रीकांत वर्मा ने उनकी केवल ‘एक साहित्यिक की डायरी’ प्रकाशि‍त की थी, जिसका दूसरा संस्करण भारतीय ज्ञानपीठ से उनकी मृत्यु के दो महीने बाद प्रकाशि‍त हुआ ज्ञानपीठ ने ही ‘चाँद का मुँह टेढ़ा है’ प्रकाशि‍त किया था इसी वर्ष नवंबर 1964 में नागपुर के विश्‍वभारती प्रकाशन ने मुक्तिबोध द्वारा 1963 में ही तैयार कर दिये गये निबंधों के संकलन नयी कविता का आत्मसंघर्ष तथा अन्य निबंध’ को प्रकाशि‍त किया था। परवर्ती वर्षो में भारतीय ज्ञानपीठ से मुक्तिबोध के अन्य संकलन ‘काठ का सपना’, तथा ‘विपात्र’ (लघु उपन्यास) प्रकाशि‍त हुए। पहले कविता संकलन के 15 वर्ष बाद, 1980 में उनकी कविताओं का दूसरा संकलन ‘भूरी भूर खाक धूल’ प्रकाशि‍त हुआ और 1985 में ‘राजकमल’ से पेपरबैक में छ: खंडों में ‘मुक्तिबोध रचनावली’ प्रकाशि‍त हुई, वह हिंदी के इधर के लेखकों की सबसे तेजी से बिकने वाली रचनावली मानी जाती है कविता के साथ-साथ, कविता विषयक चिंतन और आलोचना पद्धति को विकसित और समृद्ध करने में भी मुक्तिबोध का योगदान अन्यतम है उनके चिंतन परक ग्रंथ हैं- एक साहित्यिक की डायरी, नयी कविता का आत्मसंघर्ष और नये साहित्य का सौंदर्य शास्त्र भारत का इतिहास और संस्कृति इतिहास लिखी गई उनकी पुस्तक है काठ का सपना तथा सतह से उठता आदमी उनके कहानी संग्रह हैं तथा विपात्रा उपन्यास है। उन्होंने ‘वसुधा’, ‘नया खून’ आदि पत्रों में संपादन-सहयोग भी किया।

गजानन माधव मुक्तिबोध भाषा-शैली –

मुक्तिबोध जी भावो के अनुरूप शब्द को गढ़ना और उसको साफ भाषा में प्रोयोग करना यह उनकी भाषा-सौन्दर्य की अदभुत् विशेषता हैं वे तत्सम शब्दों के साथ-साथ उर्दू,अरबी और फारसी सब्दोंका भी प्रोयोग किया हैं।

गजानन माधव मुक्तिबोध कविता-संग्रह – –

कविता-संग्रह –
1) चाँदका मुह टेढ़ा हैं
2) भूरी-भूरी खाक धुल ।

कथा-साहित्य –
1) काठ का सपना
2) विपात्र,सतह से उठता आदमी ।

आलोचना –
1) नई कविता का आत्मसंघर्ष
2) समीक्षा की समस्याएँ
3) कामायनी एक
4) पुनर्विचार
5) एक साहित्यिक की डायरी ।

मृत्यु- 

सन 1945 में ” हंस ” पत्रिका के संपादकीय विभाग में स्थान पाया सन 1946 – 47 मे वे जबलपुर में रहे सन 948 में नागपुर चले गए 1958 में मुक्तिबोध राजनांदगांव के दिग्विजय कॉलेज में अध्यापक के रूप में कार्य करने लगे 11 सितंबर 1964 को प्रगतिशील कवि का निधन ” मेनिनजाइटिस ” रोग के कारण दिल्ली में हुआ ।

उपसंहार –

जनसाधारण की जो छवि मुक्तिबोध की कविताओं में उभरकर सामने आई है वह यह व्यक्त करने के लिए पर्याप्त है कि वह गरीबों के पक्षधर रहे हैं वेदना मुक्तिबोध की शक्ति रही है यह उन्हें समाज से जोड़ती है अतः मुक्तिबोध की कविताएं समसामयिक जीवन एवं परिवेश की विसंगतियों को पूर्णता अभिव्यक्ति देने में सफल कही जा सकती है।

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