गणगौर पूजा क्यों की जाती है – बेणेश्वर धाम मेला कब लगता है, डूंगरपुर में कौन कौन से मेले लगते हैं, बेणेश्वर धाम किस जिले में है, बेणेश्वर धाम मंदिर, बेणेश्वर मेला कहां भरता है, बेणेश्वर धाम की स्थापना किसने की, बेणेश्वर धाम का मेला कब भरता है, बेणेश्वर धाम कहां स्थित है, राजस्थान के आदिवासी समाज का सबसे बड़ा मेला कौन सा है, बेणेश्वर धाम का भजन, बेणेश्वर धाम कौन से जिले में, मावजी महाराज का जन्म कब हुआ, गणगौर पूजा क्यों की जाती है,
गणगौर पूजा क्यों की जाती है
गणगौर विशेष रूप से राजस्थान और कुछ मध्यप्रदेश के भागों में मनाया जाता है। कुँवारी लड़कियां अपने भावी पति और विवाहित स्त्रियां अपने पतियों के लिए ये पूजा अर्चना करती हैं।
होलिका दहन के दुसरे दिन से प्रारम्भ होने वाला ये त्यौहार पूरे 16 दिनों तक है। महिलाएं मंगल गीत गाते हुए अपने पीहर और ससुराल के अच्छे भविष्य की कामना करती हैं। अपने पति के दीर्घायु होने की कामना करते हुए कई गीत गाती हैं जिसमे अपने परिजनों का नाम लिया जाता है।
गणगोर पर कई गीत बने है उन्ही गीतों में से कुछ लाइनें हम आपको यहाँ रूबरू करवा रहें है। इन गीतों में महिलाएं गणगोर के अंतिम दिन चैत्र शुक्ल पक्ष तृतीया को पूजा करते हुए अपने पति का नाम लिए बिना इनके माध्यम से अपना प्रेम प्रकट करती हैं।गणगौर पूजा क्यों की जाती है,
महत्व –
निमाड़ मे अगर त्योहारों का शुभारंभ लोकपर्व जीरोती से होता है तो समापन भी लोकपर्व गणगौर पर ही होता है। दोनों पर्व देवी पूजा के और बहू-बेटियों के विशेष त्योहार है। गणगौर महापर्व चैत्र ग्यारस से प्रारम्भ हो जाता है। निमाड़ लोकमाताओं की माता ‘गणगौर’ माता का पर्व पर्व मनाया जाता है।
वह देवियों की भी देवी महादेवी है। वह समग्र लोक की भक्ति को आलोकित करने वाली परम शक्ति है। गणगौर माता लौकिक के साथ साथ अलौकिक देवी भी है। उनका महापर्व यहाँ की आत्मा है। तभी तो उनके निमाड़ी लोकगीत, रीति-रिवाज, प्रथा-परम्पराएँ, पूजा आराधना, संस्कार संस्कृति आदि लगभग ज्यों के त्यों है। सम्पूर्ण निमाड़ में गणगौर माता को सर्वोच्च सम्मान और प्रतिष्ठा प्राप्त है। निमाड़ में माता का अनुष्ठान पर्व नौ-दस दिनों तक उमंग और हर्सौल्लास से मनाया जाता है I निमाड़ में जिन घरों में माता की “पावणी” लाया जाता है I उन घरों की बहू-बेटियां आठ-दस दिन पूर्व से ही तैयारी करने लग जाती है I घर के कोने कोने को साफ स्वच्छता करती है I पूर्ण पवित्रता व उमंगता से पूरे घर की लिपाई-छबाई व पुताई करती है I चौक-माणडनों से घर को संजाती-संवारती है I यहाँ तक की घर के कपड़े-लत्ते और ओड़ाने-बिछाने की गोदड़ी-पाथरनियो को भी नदी-तालाब पर धोकर लाया जाता है I कहने तात्पर्य घर की सम्पूर्ण स्वच्छता की जाती है I
गणगौर माता का अनुष्ठान चैत्रवदी ग्यारस से चैत्र सुदी पंचमी तक चलता है I जिसमे चैत्रवदी को माता की मूठ रखी जाती है I मूठ रखना याने माता के प्रतीक स्वरुप गेहूं के जवारे उगाने हेतु बांस की नन्हीं-नन्हीं टोकनियों में पारम्परिक तरीके से गेहूं बोकर माता की प्राण-प्रतिष्ठा करना I चैत्रवदी एकादशी को सुबह घर की सुहागिने स्नान करके नये वस्त्र पहनकर तैयार होती है I तब तक घर के बड़े बूढ़े बांस के कारीगर झमराल दाजी के यहाँ से नगद नेक देकर बांस की चार चार टोकनिया ले आते है |गणगौर पूजा क्यों की जाती है,
आरती –
पयला पयेर की वो रणुबाई आरती I
हो आरती सरसो उग्यो गरबो I
बाण तो गढ़पर्वत को राजवाई I
हो राजवडा नS राल्यो ओ I
तमोल तो भींजS रणुबाई की I
चुन्दड़ी भींज तो भींजणS देवो I
म्हारी सय्यर और रंगावा I
दूसरी पयेर की वो रणुबाई आरती I
हो आरती सरसो
चैत्र महीने की प्रतिपदा तिथि से शुरू होता है त्योहार –
पौराणिक कथा के अनुसार, होली के अगले दिन माता पार्वती अपने मायके चली आती है और भगवान शिव 8 दिन बाद उन्हें वापस लेने आए थे इसलिए होली के आठ दिन बाद यानी प्रतिपदा तिथि को इस त्योहार की शुरुआत होती है इस दिन कुंवारी लड़कियां और सुहागिन महिलाएं शिव और पार्वती की मिट्टी की मूर्तियां बनाती हैं और उनकी पूजा- अर्चना करती है ये त्योहार 17 दिनों तक मनाया जाता है. महिलाएं 17 दिन तक सुबह- सुबह दूब और फूल से पूजा करती हैं चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को गणगौर की विधि विधान से पूजा कर नदी या तालाब में विसर्जन कर देती हैं
क्यों रखा जाता है पतियों से गुप्त –
कथा के अनुसार भगवान शिव माता पार्वती और नारद जी एक गांव में जाते है. जैसे ही वहां के लोगों को ये बात पता चलती है वहा के लोग महादेव और माता पार्वती के स्वागत में पकवान बनाना शुरू कर देते हैं वहीं गरीब घर की महिलाएं भगवान शिव और माता पार्वती का स्वागत श्रद्धा सुमन अर्पित करके करती हैं सच्ची आस्था देख माता पार्वती महिलाओं को सौभाग्यवती रहने का आशीर्वाद देती है जब कुलीन घर की महिलाएं मिष्ठान लेकर आती हैं तो भगवान शिव कहते पार्वती अब आप इन्हें क्या आशीर्वाद देंगी माता पार्वती ने कहा जिसने भी सचे दिल से मेरी आरधना की है उस पर सुहागिन रस की छिटे पड़ेगी तब पार्वती ने अपने रक्त के छिंटे बिखेरे जो उचित्र पात्र पड़ें वो सौभाग्यशाली हुईं लोभ और लालच की मनसा से आई महिलाओं को वापस लौटना पड़ा |गणगौर पूजा क्यों की जाती है,
माता पार्वती ने भगवान शिव से छिपाया था –
इसके बाद माता पार्वती भगवान शिव से अनुमति लेकर नदी किनारे स्नान करने जाती है. माता पार्वती नदी के किनारे बालू की मिट्टी से भगवान शिव की प्रतिमा बनाकर पूजा की और प्रसाद में बालू से बनी चीजों का भोग लगाती है जब माता पार्वती पहुंचती है तो शिव जी पूछते हैं कि आपको इतनी देर कहा हो गई इस पर माता पार्वती कहती है कि रास्ते में मायके वाले मिल गए थे और भाभी ने दूध भात बनाया था वही खाने लगी तो समय लग गया भगवान शिव पहले से ही सब जानते थे उन्होंने कहा चलो मैं भी चलता हूं आप तो खाकर आ गई मैं भी दूध भात का स्वाद ले लेता हूं |
अपनी बात को सच साबित करने के लिए अपनी माया से एक महल का निर्माण करती हैं और भगवान शिव का उसमें स्वागत स्तकार होता है फिर वापस लौटते समय भगवान शिव कहते हैं मैं अपनी रूदाक्ष की माला भूल आया हूं माता पार्वती ने कहा कि मैं ले आती हूं भगवान शिव ने कहा नारदजी लेकर आ जाएंगे जब वहां नारद जी पहुंचे तो देखा कोई महल नहीं है और उनकी माला एक पेड़ पर लटकी थी नारद ने महादेव को सभी बात बताई उन्होंने कहा ये देवी पार्वती की माया की रचना थी उन्होंने अपनी पूजा को गुप्त रखने के लिए ये सब किया था मैंने तुम्हें यही दिखाने के लिए वापस भेजा था
गणगौर उपवास पति से गुप्त क्यों रखा जाता है? गणगौर व्रत की प्रचलित कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव और माता पार्वती भ्रमण के लिये निकले थे, उनके साथ नारद मुनि भी थे। चलते-चलते वह एक गांव में पंहुच गये जहां उनके आने की बात सुनकर सभी लोग आवभगत की तैयारियों में जुट गये। कुलीन घरों में स्वादिष्ट भोजन पकने लगे। लेकिन कुलीन स्त्रियां जैसे ही स्वादिष्ट भोजन लेकर पहुंचती उससे पहले ही निर्धन परिवार की महिलाएं माता गौरी और भगवान शिव के समक्ष श्रद्धा सुमन लेकर पंहुच गयीं होती हैं। माता पार्वती उनकी श्रद्धा से प्रसन्न होकर निर्धन महिलाओं पर सुहाग रस छिड़क देती हैं।
जब उच्च घरों स्त्रियां कई तरह के पकवान लेकर हाजिर होती हैं तो माता पार्वती के पास उन्हें देने के लिये कुछ नहीं बचता है तब भगवान शंकर पार्वती जी से कहते हैं कि अपना सारा आशीर्वाद तो गरीब स्त्रियों को दे दिया अब इन्हें आप क्या देंगी इस पर माता कहती हैं कि इनमें से जो भी सच्ची श्रद्धा से आयी हैं उस पर ही इस विशेष सुहागरस के छींटे पड़ेंगे और जिससे उनका सौभाग्य बढ़ेगा। तब माता पार्वती ने अपने रक्त के छींटे बिखेरे जो उचित पात्रों पर ही पड़े और महिलाएं धन्य हो गईं। मान्यता है कि यह दिन चैत्र मास की शुक्ल तृतीया का था तब से ही स्त्रियों द्वारा इस दिन गण यानि भगवान शिव और गौर यानि माता पार्वती की पूजा की जाती है।
जब माता पार्वती से आशीर्वाद पाकर महिलाएं अपने घरों को लौट गई तब माता पार्वती ने भी भगवान शिव से आज्ञा लेकर एक नदी के तट पर स्नान किया और बालू से महादेव की मूर्ति बनाकर उनका पूजन किया। पूजा के बाद बालू के पकवान बनाकर ही भगवान शिव को भोग लगाया। उसके बाद प्रदक्षिणा कर तट पर मौजूद मिट्टी का टीका अपने माथे पर लगाया और बालू के दो कण प्रसाद रूप में ग्रहण करके भगवान शिव के पास वापस लौट आईं। अब शिव तो सर्वज्ञ हैं जो सब जानते हैं पर माता पार्वती को छेड़ने के लिये उन्होंने पूछा कि बहुत देर हो गई तुम्हें आने में? माता ने कहा कि उन्हें मायके वाले मिल गये थे इसलिए इतनी देर लग गई।
शिव ने फिर थोड़ा और छेड़ते हुए पूछा कि आपके पास तो कुछ था भी नहीं फिर स्नान के बाद प्रसाद में क्या लिया? माता ने कहा कि भाई व भावज ने दूध-भात बना रखा था उसे ही ग्रहण करके आपके पास आ गई। फिर भगवान शिव ने कहा कि चलो उन्हीं के पास चलते हैं क्योंकि मेरा भी मन कर गया है कि आपके भाई भावज के यहां बने दूध-भात का स्वाद लिया जाए। इस पर माता ने मन ही मन भगवान शिव को याद किया और लाज रखने की कही। इसके बाद भगवान शिव, माता पार्वती और नारद जी तीनों नदी के तरफ चल दिये। नदी के तट पर पहुंच क्या देखते हैं कि एक आलीशान महल बना हुआ है। वहां उनकी बड़ी आवभगत होती है।
इसके बाद जब वे तीनों वहां से प्रस्थान करते हैं तो कुछ दूर जाकर भगवान शिव बोले कि मैं अपनी माला आपके मायके में भूल आया हूं। माता कहती हैं कि मैं आपकी माला अभी ले आती हूं तब शिव जी भगवान बोले कि आप रहने दें नारद जी ले आयेंगें। जब नारद जी उस स्थान पर पंहुचे तो देखकर हैरान रह गये कि उस स्थान पर महल का नामों निशान तक नहीं था। फिर एक पेड़ पर उन्हें भगवान शिव की माला दिखाई दी उसे लेकर वे वापस लौट आये और आकर प्रभु को इस बारे में बताया। तब भगवान शिव ने कहा कि यह सब पार्वती की माया थी। क्योंकि वे अपने पूजन को गुप्त रखना चाहती थीं इसलिये उन्होंने झूठ कहा और अपने सत के बल पर यह माया रचा डाली।
तब नारद ने माता के समक्ष नतमस्तक होकर कहा कि हे मां आप सौभाग्यवती आदिशक्ति हैं। गुप्त रूप से की गई पूजा ही अधिक शक्तिशाली होती है। हे मां मेरा आशीर्वचन है कि जो स्त्रियां इस दिन गुप्त रूप से पूजन कर मंगल कामना करेंगी उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी। ऐसी मान्यता है कि तभी से गणगौर के इस गोपनीय पूजन की परंपरा चली आ रही है।
गणगौर पूजन कब और क्यों नवरात्र के तीसरे दिन यानि कि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तीज को गणगौर माता (माँ पार्वती) की पूजा की जाती है। पार्वती के अवतार के रूप में गणगौर माता व भगवान शंकर के अवतार के रूप में ईशर जी की पूजा की जाती है। प्राचीन समय में पार्वती ने शंकर भगवान को पति (वर) रूप में पाने के लिए व्रत और तपस्या की। शंकर भगवान तपस्या से प्रसन्न हो गए और वरदान माँगने के लिए कहा। पार्वती ने उन्हें ही वर के रूप में पाने की अभिलाषा की। पार्वती की मनोकामना पूरी हुई और पार्वती जी की शिव जी से शादी हो गयी। तभी से कुंवारी लड़कियां इच्छित वर पाने के लिए ईशर और गणगौर की पूजा करती है। सुहागिन स्त्री पति की लम्बी आयु के लिए यह पूजा करती है। गणगौर पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि से आरम्भ की जाती है। सोलह दिन तक सुबह जल्दी उठ कर बगीचे में जाती हैं, दूब व फूल चुन कर लाती है। दूब लेकर घर आती है उस दूब से दूध के छींटे मिट्टी की बनी हुई गणगौर माता को देती है। थाली में दही पानी सुपारी और चांदी का छल्ला आदि सामग्री से गणगौर माता की पूजा की जाती है। आठवें दिन ईशर जी पत्नी (गणगौर) के साथ अपनी ससुराल आते हैं। उस दिन सभी लड़कियां कुम्हार के यहाँ जाती हैं और वहाँ से मिट्टी के बर्तन और गणगौर की मूर्ति बनाने के लिए मिट्टी लेकर आती है। उस मिट्टी से ईशर जी, गणगौर माता, मालिन आदि की छोटी छोटी मूर्तियाँ बनाती हैं। जहाँ पूजा की जाती है उस स्थान को गणगौर का पीहर और जहाँ विसर्जन किया जाता है वह स्थान ससुराल माना जाता है।
गणगौर पूजन कब और क्यों नवरात्र के तीसरे दिन यानि कि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तीज को गणगौर माता (माँ पार्वती) की पूजा की जाती है। पार्वती के अवतार के रूप में गणगौर माता व भगवान शंकर के अवतार के रूप में ईशर जी की पूजा की जाती है। प्राचीन समय में पार्वती ने शंकर भगवान को पति (वर) रूप में पाने के लिए व्रत और तपस्या की। शंकर भगवान तपस्या से प्रसन्न हो गए और वरदान माँगने के लिए कहा। पार्वती ने उन्हें ही वर के रूप में पाने की अभिलाषा की। पार्वती की मनोकामना पूरी हुई और पार्वती जी की शिव जी से शादी हो गयी। तभी से कुंवारी लड़कियां इच्छित वर पाने के लिए ईशर और गणगौर की पूजा करती है। सुहागिन स्त्री पति की लम्बी आयु के लिए यह पूजा करती है। गणगौर पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि से आरम्भ की जाती है। सोलह दिन तक सुबह जल्दी उठ कर बगीचे में जाती हैं, दूब व फूल चुन कर लाती है। दूब लेकर घर आती है उस दूब से दूध के छींटे मिट्टी की बनी हुई गणगौर माता को देती है। थाली में दही पानी सुपारी और चांदी का छल्ला आदि सामग्री से गणगौर माता की पूजा की जाती है। आठवें दिन ईशर जी पत्नी (गणगौर) के साथ अपनी ससुराल आते हैं। उस दिन सभी लड़कियां कुम्हार के यहाँ जाती हैं और वहाँ से मिट्टी के बर्तन और गणगौर की मूर्ति बनाने के लिए मिट्टी लेकर आती है। उस मिट्टी से ईशर जी, गणगौर माता, मालिन आदि की छोटी छोटी मूर्तियाँ बनाती हैं। जहाँ पूजा की जाती है उस स्थान को गणगौर का पीहर और जहाँ विसर्जन किया जाता है वह स्थान ससुराल माना जाता है।
गण अर्थात् शिवजी और गौर यानि पार्वती जी हैं गणगौर त्योहार प्रेम और विश्वास की पूजा है. यह व्रत लड़कियां भी प्रियवर पाने के लिए करती हैं चैत्र शुक्ल पक्ष तृतीया, गुरुवार को गणगौर व्रत त्योहार मनाया जाएगा |
एक बार की बात है शिव और पार्वती भ्रमण के दौरान एक गांव में रुके गांव की महिलाओं को पता चला तो वे थाली सजाकर उनकी पूजा करने पहुंच गईं इससे प्रसन्न होकर पार्वती ने उन पर सारा सुहाग रस छिड़क दियां |
बाद में गांव की अच्छे परिवारों की महिलाएं सजधजकर और पूरी तैयारी से गणगौर की पूजा करने पहुंचीं उन्होंने पूजा की तो शिवजी ने पार्वती से पूछा कि सारा सुहाग रस पहले आईं स्त्रियों पर छिड़क दिया अब इन्हें क्या आशीर्वाद दोगी इस पर पार्वती ने अपनी सबसे छोटी अंगुली से रक्त छिड़क कर उन्हें सुहाग का आशीर्वाद दिया इस छिड़कने में जिस को जितना मिला उसे उतने लंबे सुहाग का वरदान प्राप्त हुआ |
गणगौर की पूजा में सुहागिनें सुहाग की सभी वस्तुओं को सजाकर विशेषतः महावर सिंदूर और चूढ़ी चढ़ाकर श्रद्धाभाव से गणगौर की पूजा करती हैं यह त्यौहार मुख्यतः राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश में मनाया जाता है |
गणगौर की पूजा उदया तिथि के अनुसार गुरुवार 15 अप्रैल 2021 को मनाई जाएगी चैत्र शुक्ल प़़क्ष तृतीया 14 अप्रैल को दोपहर 12 बजकर 46 मिनट से 15 अप्रैल को 3 बजकर 26 मिनट तक रहेगी
गणगौर पूजा का प्रसाद पुरुषों को नहीं दिया जाता है मां पार्वती पर चढ़ाए सिंदूर से बाद में सुहागिनें स्वयं मांग भरती हैं. एक दूसरे पर सुहाग जल छिड़कती हैं पूजा में चूरमे का भोग लगाया जाता है
त्यौहार से संबंधित लिस्ट |
Contact With us | ||||||||
Join Our Telegram Channel | ||||||||
Latest Google Web Stories | ||||||||
Home Page |