गणेश चतुर्थी क्यों मनाई जाती है

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गणेश चतुर्थी क्यों मनाई जाती है

हिंदू कैलेंडर के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से लेकर अनंत चतुर्दशी तक गणेश चतुर्थी का उत्सव मनाया जाता है इस दौरान भगवान श्रीगणेश जी के भक्त गण अपने घरों में गणपति बप्पा की मूर्ति स्थापित कर उनकी विधि पूर्वक पूजा -अर्चना करते हैं तथा उन्हें उनकी बेहद प्रिय चीज मोदक का भोग लगाते हैं इस साल गणेशोत्सव का पर्व 10 सितंबर से 19 सितंबर 2021 तक चलेगा इस दौरान भगवान गणेश जी को मोदक क्यों चढ़ाया जाता है

आज से गणेशोत्सव की शुरुआत हो गई है। वैसे तो ये पर्व पूरे भारत में मनाया जाता है लेकिन इसकी खास रौनक महाराष्ट्र में देखने को मिलती है। गणेश चतुर्थी के दिन घर पर गणपति जी की स्थापना की जाती है और उनकी विधि विधान पूजा की जाती है। फिर एक निश्चित समय पर गणेश विसर्जन कर दिया जाता है। अगर आप घर पर गणपति बप्पा की स्थापना करना चाहते हैं तो जानिए मूर्ति स्थापना, गणेश पूजन का शुभ मुहूर्त और विधि।

गणेश चतुर्थी पूजा विधि –
गणेश चतुर्थी के दिन प्रातरू काल स्नान-ध्यान करके गणपति के व्रत का संकल्प लें। इसके बाद दोपहर के समय गणपति की मूर्ति या फिर उनका चित्र लाल कपड़े के ऊपर रखें। फिर गंगाजल छिड़कने के बाद भगवान गणेश का आह्वान करें। भगवान गणेश को पुष्प, सिंदूर, जनेऊ और दूर्वा (घास) चढ़ाए। इसके बाद गणपति को मोदक लड्डू चढ़ाएं, मंत्रोच्चार से उनका पूजन करें। गणेश जी की कथा पढ़ें या सुनें, गणेश चालीसा का पाठ करें और अंत में आरती करें।

भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से दस दिवसीय गणेश उत्सव की शुरुआत हो गई है। आज से लेकर 19 सितंबर तक यह उत्सव मनाया जायेगा। गणेश उत्सव के पहले दिन श्री गणेश जी की घर में स्थापना की जाती है और पूरे दस दिनों तक उनकी विधि-विधान से पूजा करके आखिरी दिन गणेश विसर्जन किया जाता है। आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार भले ही ये गणेश उत्सव दस दिनों तक मनाया जाता है, लेकिन ये लोगों की श्रद्धा पर निर्भर करता है कि वो गणपति जी को कितने दिनों के लिए अपने घर लाते हैं। कई लोग एक दिन, तीन दिन, पांच दिन या सात दिनों के लिये भी गणपति जी को घर पर लाते हैं।

गणेश चतुर्थी पूजा मुहूर्त –
1. चतुर्थी तिथि की शुरुआत 10 सितंबर को रात 12.18 बजे से हो चुकी है जो 10 सितंबर को रात 9.57 बजे तक रहेगी।
2. गणेश जी की मूर्ति स्थापना सूर्योदय से लेकर पूरे दिन की जा सकती है।
3. गणेश पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 11.03 से दोपहर 01.32 बजे तक रहेगा।
4. गणेश महोत्सव 10 सितंबर से लेकर 19 सितंबर तक चलेगा।
5. गणेश विसर्जन 19 सितंबर 2021 को है।

पौराणिक कथा –
श्रीगणेश जी को मोदक अर्पित करने के पीछे कई तरह की बातें प्रचलित हैं. एक कथा के अनुसार, भगवान शिव शयन कर रहे थे तथा गणेश जी द्वार पर पहरा दे रहे थे. वहां पर परशुराम जी का आगमन हुआ. वे भगवान शिव के पास जाने के लिए तत्पर हुए, तो गणेश भगवान ने उन्हें रोक दिया. इस बात को लेकर परशुराम बहुत नाराज हुए. दोनों में बीच युद्ध होने लगा. जब परशुराम पराजित होने लगे तो उन्होंने शिव द्वारा दिए गए परशु से प्रहार कर दिया. जिसके कारण गणेश जी का एक दांत टूट गया. उन्हें असहनीय दर्द होने लगा. खाने पीने में परेशानी होने लगी. तब उनके लिए मोदक तैयार किया गया |

अब भगवान श्रीगणेश जी को खाने के लिए मोदक दिया गया. इसे खाकर उनका पेट भर गया और वे बहुत प्रसन्न हुए. तब से मोदक गणपति का प्रिय व्यंजन बन गया मान्यता है कि जो भी उन्हें मोदक का भोग लगाता है, गणपति उससे अत्यंत ​प्रसन्न होते हैं और उनकी मनोकामना पूरी करते हैं |

गणेश जी की पूजा के दौरान इन मंत्रों का करें जाप –
1. ओम गं गणपतये नमः
2. ओम एकदन्ताय विहे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्।
3. गणपतिर्विघ्नराजो लम्बतुण्डो गजाननः।
4. ओम श्रीं गं सौभ्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।
5. ओम वक्रतुण्डैक दंष्ट्राय क्लीं ह्रीं श्रीं गं गणपते वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा
6. ओम हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा

गणेश जी चालीसा –
जय गणपति सद्गुण सदन कविवर बदन कृपाल।
विघ्न हरण मंगल करण जय जय गिरिजालाल॥

जय जय जय गणपति राजू। मंगल भरण करण शुभ काजू॥
जय गजबदन सदन सुखदाता। विश्व विनायक बुद्धि विधाता॥

वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन। तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥
राजित मणि मुक्तन उर माला। स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥

पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं। मोदक भोग सुगन्धित फूलं॥
सुन्दर पीताम्बर तन साजित। चरण पादुका मुनि मन राजित॥

धनि शिवसुवन षडानन भ्राता। गौरी ललन विश्व-विधाता॥
ऋद्धि सिद्धि तव चँवर डुलावे। मूषक वाहन सोहत द्वारे॥

कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी। अति शुचि पावन मंगल कारी॥
एक समय गिरिराज कुमारी। पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी॥

भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा। तब पहुंच्यो तुम धरि द्विज रूपा।
अतिथि जानि कै गौरी सुखारी। बहु विधि सेवा करी तुम्हारी॥

अति प्रसन्न ह्वै तुम वर दीन्हा। मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा॥
मिलहि पुत्र तुहि बुद्धि विशाला। बिना गर्भ धारण यहि काला॥

गणनायक गुण ज्ञान निधाना। पूजित प्रथम रूप भगवाना॥

अस कहि अन्तर्धान रूप ह्वै। पलना पर बालक स्वरूप ह्वै॥
बनि शिशु रुदन जबहि तुम ठाना। लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना॥

सकल मगन सुख मंगल गावहिं। नभ ते सुरन सुमन वर्षावहिं॥
शम्भु उमा बहुदान लुटावहिं। सुर मुनि जन सुत देखन आवहिं॥

लखि अति आनन्द मंगल साजा। देखन भी आए शनि राजा॥
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं। बालक देखन चाहत नाहीं॥

गिरजा कछु मन भेद बढ़ायो। उत्सव मोर न शनि तुहि भायो॥
कहन लगे शनि मन सकुचाई। का करिहौ शिशु मोहि दिखाई॥

नहिं विश्वास उमा कर भयऊ। शनि सों बालक देखन कह्यऊ॥
पड़तहिं शनि दृग कोण प्रकाशा। बालक शिर उड़ि गयो आकाशा॥

गिरजा गिरीं विकल ह्वै धरणी। सो दुख दशा गयो नहिं वरणी॥
हाहाकार मच्यो कैलाशा। शनि कीन्ह्यों लखि सुत को नाशा॥

तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधाए। काटि चक्र सो गज शिर लाए॥

बालक के धड़ ऊपर धारयो। प्राण मन्त्र पढ़ शंकर डारयो॥
नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे। प्रथम पूज्य बुद्धि निधि वर दीन्हे॥

बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा। पृथ्वी की प्रदक्षिणा लीन्हा॥
चले षडानन भरमि भुलाई। रची बैठ तुम बुद्धि उपाई॥

चरण मातु-पितु के धर लीन्हें। तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें॥
धनि गणेश कहि शिव हिय हरषे। नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे॥

तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई। शेष सहस मुख सकै न गाई॥
मैं मति हीन मलीन दुखारी। करहुँ कौन बिधि विनय तुम्हारी॥

भजत रामसुन्दर प्रभुदासा। लख प्रयाग ककरा दुर्वासा॥
अब प्रभु दया दीन पर कीजै। अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै॥

गणेश जी दोहा –
श्री गणेश यह चालीसा पाठ करें धर ध्यान।
नित नव मंगल गृह बसै लहे जगत सन्मान॥
सम्वत् अपन सहस्र दश ऋषि पंचमी दिनेश।
पूरण चालीसा भयो मंगल मूर्ति गणेश॥

गणेश चतुर्थी व्रत की दूसरी कथा –
एक समय की बात है राजा हरिश्चंद्र के राज्य में एक कुम्हार था। वह मिट्टी के बर्तन बनाता, लेकिन वे कच्चे रह जाते थे। एक पुजारी की सलाह पर उसने इस समस्या को दूर करने के लिए एक छोटे बालक को मिट्टी के बर्तनों के साथ आंवा में डाल दिया।

उस दिन संकष्टी चतुर्थी का दिन था। उस बच्चे की मां अपने बेटे के लिए परेशान थी। उसने गणेशजी से बेटे की कुशलता की प्रार्थना की।

दूसरे दिन जब कुम्हार ने सुबह उठकर देखा तो आंवा में उसके बर्तन तो पक गए थे, लेकिन बच्चे का बाल बांका भी नहीं हुआ था। वह डर गया और राजा के दरबार में जाकर सारी घटना बताई।

इसके बाद राजा ने उस बच्चे और उसकी मां को बुलवाया तो मां ने सभी तरह के विघ्न को दूर करने वाली संकष्टी चतुर्थी का वर्णन किया। इस घटना के बाद से महिलाएं संतान और परिवार के सौभाग्य के लिए संकट चौथ का व्रत करने लगीं।

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