गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है – गुरु पूर्णिमा का क्या महत्व होता है, गुरु पूर्णिमा पर क्या किया जाता है, गुरु पूर्णिमा का पर्व क्यों मनाया जाता है, जुलाई में गुरु पूर्णिमा कब की है, गुरु पूर्णिमा शुभकामना संदेश, गुरु पूर्णिमा व्रत कब है, आरएसएस गुरु पूर्णिमा उत्सव बौद्धिक, गुरु पूर्णिमा के दिन क्या करना चाहिए, गुरु अर्थ, गुरु पूर्णिमा 2021, गुरु पूर्णिमा की कथा,
गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है
पंचांग के अनुसार, हर वर्ष आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाए जाने का विधान है यही वो विशेष दिन होता है जब भारत में ही नहीं बल्कि दुनियाभर में लोग श्रद्धाभाव से अपने गुरुओं का सम्मान करते हुए, उनका आशीर्वाद लेते हैं स्वयं शास्त्रों में भी गुरु का स्थान ईश्वर के समान बताया गया है, क्योंकि वो गुरु ही होता है जो व्यक्ति के ज्ञान में वृद्धि करता है. गुरु द्वारा दिखाए गए मार्ग और ज्ञान से ही व्यक्ति समय-समय पर अपने जीवन में आ रहे हर अंधकार को दूर कर सफलता की सीढ़ी चढ़ता है इसलिए भी गुरु पूर्णिमा का महत्व (Guru Purnima Importance) बढ़ जाता है हर साल गुरु पूर्णिमा बड़े धूमधाम के साथ स्नान और मंदिर में ख़ास पूजा के साथ मनाई जाती है लेकिन इस बार कोरोना (Corona Time) के चलते इसे शांति के साथ नियमों का पालन करते हुए मनाया जाएगा |
गुरु पूर्णिमा का महत्व –
ग्रीष्म संक्रांति के बाद आषाढ़ मास (जुलाई-अगस्त) में आने वाली पहली पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। इस पवित्र दिन पर शिव ने – जिन्हें आदियोगी या पहला योगी कहते हैं – अपने पहले सात शिष्यों, सप्तऋषियों को सबसे पहले योग का विज्ञान प्रदान किया था। इस प्रकार, आदियोगी इस दिन आदिगुरु यानी पहले गुरु बने। सप्तऋषि इस ज्ञान को लेकर पूरी दुनिया में गए, और आज भी, धरती की हर आध्यात्मिक प्रक्रिया के मूल में आदियोगी द्वारा दिया गया ज्ञान है।
संस्कृत में ‘गुरु’ शब्द का अर्थ है ‘अंधकार को मिटाने वाला।’ गुरु साधक के अज्ञान को मिटाता है, ताकि वह अपने भीतर ही सृष्टि के स्रोत का अनुभव कर सके। पारंपरिक रूप से गुरु पूर्णिमा का दिन वह समय है जब साधक गुरु को अपना आभार अर्पित करते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। योग साधना और ध्यान का अभ्यास करने के लिए गुरु पूर्णिमा को विशेष लाभ देने वाला दिन माना जाता है।
गुरु पूर्णिमा 2021 क्यों मनाई जाती है –
गुरु पूर्णिमा वह दिन है जब पहले गुरु का जन्म हुआ था। यौगिक संस्कृति में शिव को भगवान नहीं माना जाता, उन्हें आदि योगी, अर्थात पहले योगी की तरह देखा जाता है। गुरु पूर्णिमा, वो पूर्णिमा का दिन है, जिस दिन पहले योगी ने खुद को आदि गुरु, अर्थात पहले गुरु के रूप में बदल लिया था। यह वर्ष का वो समय है, जब 15000 वर्षों से भी पहले, उनका ध्यान उन महान सप्तऋषियों की ओर गया जो उनके पहले शिष्य बने। उन्होंने 84 वर्षों तक कुछ सरल तैयारियाँ की थीं। फिर जब संक्रांति, गर्मियों की संक्रांति से सर्दियों की संक्रांति में बदली, यानि जब पृथ्वी के संबंध में सूर्य की गति उत्तरी गति से दक्षिणी गति में बदली, जिसे इस परंपरा में उत्तरायण और दक्षिणायन कहते हैं, उस दिन आदियोगी ने सप्तऋषियों की ओर देखा और उन्होंने यह महसूस किया कि वे जानने की अवस्था के पात्र बन गये थे, और वे उन्हें और ज़्यादा अनदेखा नहीं कर पाए। आदियोगी उन्हें ध्यान से देखते रहे, और जब अगली पूर्णिमा आई तो उन्होंने गुरु बनने का फैसला किया। उसी पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। उन्होंने अपना मुख दक्षिण की ओर कर लिया और सात शिष्यों को यौगिक विज्ञान प्रदान करने की प्रक्रिया शुरू हो गई।
1. आषाढ़ माह की पूर्णिमा को आषाढ़ी पूर्णिमा और गुरु पूर्णिमा कहा जाता है। आषाढ़ पूर्णिमा के दिन पवित्र नदी में स्नान और गरीबों में दान-पुण्य करने का महत्व रहता है।
2. ‘गु’ शब्द का अर्थ है अंधकार (अज्ञान) और ‘रु’ शब्द का अर्थ है प्रकाश ज्ञान। अज्ञान को नष्ट करने वाला जो ब्रह्म रूप प्रकाश है, वह गुरु है। इस दिन गुरु पूजा का महत्व है। गुरु की कृपा से ही विद्यार्थी को विद्या आती है। उसके हृद्य का अज्ञान व अन्धकार दूर होता है। इस दिन केवल गुरु की ही नहीं बल्कि परिवार में जो भी बड़ा है उसे गुरु तुल्य समझना चाहिए।
3. मान्यता है कि महाभारत काल के महान ऋषि ब्रह्मसूत्र, महाभारत, श्रीमद्भागवत और अट्ठारह पुराणों के रचनाकार और वेदों का विभाग करने वाले महर्षि वेदव्यास जी का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा के दिन हुआ था। इसीलिए उनके पूजना का भी महत्व है। वेद व्यास का मूल नाम श्रीकृष्ण द्वैपायन था। कहते हैं कि श्रीकृष्ण द्वैपायन 28वें वेद व्यास थे। श्रीमद्भागवत पुराण में भगवान विष्णु के जिन 24 अवतारों का वर्णन है, उनमें महर्षि वेद व्यास का भी नाम है। वेद व्यासजी चिरंजीवी हैं।
4. गुरु से मन्त्र प्राप्त करने के लिए भी यह दिन श्रेष्ठ है। जनेऊ धारण करने या बदलने का भी यह श्रेष्ठ दिन माना जाता है।
5. मान्यता है कि आषाढ़ पूर्णिमा से अगले चार माह अध्ययन के लिए उत्तम माने गए है।
6. साधु-संत इस दौरान एकांत में रखकर ध्यान और स्वाध्याय सहित अध्ययन क्रिया करते हैं।
गुरु पूर्णिमा की पूजा विधि –
गुरु पूर्णिमा के दिन सुबह उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर मंदिर जाकर देवी-देवता का नमन करें. इसके बाद इस मंत्र का उच्चारण करें- ‘गुरु परंपरा सिद्धयर्थं व्यास पूजां करिष्ये’ |
इसके बाद ब्रह्मा, विष्णु और महेश की पूजा अर्चना करें इसके लिए फल, फूल, रोली लगाएं. इसके साथ ही अपनी इच्छानुसार भोग लगाएं. फिर धूप, दीपक जलाकर आरती करें |
कैसे करें गुरु का पूजन –
गुरु पूर्णिमा के दिन प्रात:काल स्नान-ध्यान करके सबसे पहले अपने गुरु की पूजन सामग्री तैयार करें. जिसमें फूल-माला, तांबूल, श्रीफल, रोली-मोली, जनेउ, सामथ्र्य के अनुसार दक्षिणा और पंचवस्त्र लेकर अपने गुरु के स्थान पर जाएं उसके बाद अपने गुरु के चरणों को धुलकर उसकी पूजा करें और उन्हें अपने सामथ्र्य के अनुसार फल-फूल, मेवा, मिष्ठान और धन आदि देकर सम्मानित करें |
पूर्णिमा के चमत्कारी उपाय –
पूर्णिमा के दिन पीपल के वृक्ष पर की जड़ों में मीठा जल डालने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होकर अपने साधक पर पूरी कृपा बरसाती है
पूर्णिमा की शाम को पति-पत्नी यदि साथ मिलकर चंद्रमा का दर्शन और उन्हें गाय के दूध का अघ्र्य देते हैं तो उनके दांपत्य जीवन में मधुरता आती है
पूर्णिमा की शाम को तुलसी जी के सामने शुद्ध देशी घी का दिया जलाने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है
पूर्णिमा की शाम को चंद्र दर्शन करने के बाद दूध, गंगाजल और अक्षत मिलाकर चंद्रमा को अघ्र्य देने से चंद्र दोष दूर होता है. अघ्र्य देने के बाद चंद्रदेव के मंत्र ‘ॐ सों सोमाय नमः’का जप करना न भूलें.
पूर्णिमा के दिन कभी न करें ये काम
पूर्णिमा के दिन अपने घर को गंदा करके न रखें
पूर्णिमा के दिन किसी से लड़ाई-झगड़ा नहीं करना चाहिए
पूर्णिमा के दिन किसी बुजुर्ग या स्त्री का अपमान भूलकर भी नहीं करना चाहिए
पूर्णिमा के दिन भूलकर भी मांस-मदिरा जैसी तामसिक चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए
गुरु पूर्णिमा का पौराणिक महत्व –
कई पौराणिक शास्त्रों व वेदों में गुरु को हर देवता से ऊपर बताया गया है, क्योंकि गुरु का हाथ पकड़कर ही शिष्य जीवन में ज्ञान के सागर को प्राप्त करता है प्राचीन काल में जब गुरुकुल परंपरा का चलन था, तब सभी छात्र इसी दिन श्रद्धा व भक्ति के साथ अपने गुरु की सच्चे दिल से पूजा-अर्चना कर, उनका धन्यवाद करते थे और शिष्यों की यही श्रद्धा असल में उनकी गुरु दक्षिणा होती थी |
गुरु पूर्णिमा के शुभ पर्व पर देशभर की पवित्र नदियों व कुण्डों में स्नान और दान-दक्षिणा देने का भी विधान होता है साथ ही इस दिन मंदिरों में भी विशेष पूजा-अर्चना होती है और जगह-जगह पर भव्य मेलों का आयोजन भी होता हैं हालांकि इस वर्ष कोरोना काल के कारण ये पर्व सूक्ष्म रूप से मनाया जाएगा
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