हिन्दू नव वर्ष क्यों मनाया जाता है

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हिन्दू नव वर्ष क्यों मनाया जाता है

भारत में हिन्दू नव वर्ष का त्यौहार श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता हैं। हिंदू नव वर्ष की शुरुआत चैत्र नवरात्र से शुरू होती है। चैत्र नवरात्र का पहला दिन 13 अप्रैल को है और इसी दिन से हिंदू नववर्ष की शुरुआत होती है। इस बार हिंदू नववर्ष नवसंवत्सर 2078, 13 अप्रैल 2021 को आरंभ हो रहा है। हिंदू नववर्ष 2021 का आरंभ चैत्र माह शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा यानी पहली तिथि से होता है।

नए पंचांग की शुरुआत –
भारतीय कालगणना में सबसे अधिक महत्व विक्रम संवत पंचाग को ही दिया जाता है। इसी तिथि से नए पंचांग की भी शुरुआत हो जाती है। विक्रम संवत पंचाग के अनुसार ही वर्षभर के विवाह, नामकरण, गृहप्रवेश इत्यादि शुभकार्यों के शुभ मुहूर्त तय किए जाते हैं।
इस बार बन रहा है विचित्र संयोग

हिंदू ग्रंथों में कुल 60 संवत्सर का उल्लेख मिलता है। इसकी के हिसाब से नवसंवत्सर का नाम निर्धारित किया जाता है। इस समय ननवसंवत्सर 2077 चल रहा है, जिसका नाम “प्रमादी” है। इसके हिसाब से आने वाले नवसंवत्सर यानी नवसंवत्सर 2078 का नाम “आनंद” होना चाहिए। लेकिन इस बार विचित्र संयोग बना रहा है जिसकी वजह से नवसंवत्सर 2078 का नाम “राक्षस” होगा।

भारतीयशिक्षण मण्डल की ओर से भारतीय नव वर्ष विक्रम संवत 2074 और नव दुर्गा महोत्सव के उपलक्ष्य में संतर रोड पर आने जाने वाले लोगों के वाहनों पर ओम अंकित पताकाएं लगाकर तिलक मिष्ठान के माध्यम से नागरिकों को शुभकामनाएं दी। मण्डल के जिलाध्यक्ष मुकेश सूतैल जिला मंत्री संजीव झा के नेतृत्व में नया विक्रमी संवत मनाया गया तथा इस अवसर पर उन्होंने नागरिकों को बताया कि यही संवत पूर्णतः वैज्ञानिक धार्मिक है। संदीप तोमर ने नागरिकों को बताया कि ईस्वी कैलेंडर की अपेक्षा विक्रमी कैलेंडर को सभी शुभ कामों के लिए प्रयोग में लाया जाता है। इस मौके पर गौतम सिंह, विवेक झां, यदुनाथ शर्मा, नितिन अग्रवाल, अभिषेक छाणी, सुनील झा , बॉबी जैन, सुधीर त्रिपाठी, हरिओम भारद्वाज, विश्वनाथ, पार्थसारथी आदि नागरिकों को नए वर्ष की शुभकामनाएं दीं।(हिन्दू नव वर्ष क्यों मनाया जाता है)

राजस्थान विवि एवं महाविद्यालय शिक्षक संघ (राष्ट्रीय) की स्थानीय इकाई राजकीय महाविद्यालय में नव-संवत्सर उत्सव मनाया गया जिसमें सभी महाविद्यालय के अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने आपस में एक-दूसरे को भारतीय नववर्ष की शुभकामना दी तथा तुलसी के पत्ते एवं मिश्री के दाने प्रसाद के रूप में वितरित किए। रूक्टा राष्ट्रीय के कार्यकर्ता डॉ गिर्राज सिंह मीणा ने इस दिवस के महत्व को बताते हुए कहा कि इस तिथि से ब्रम्हाजी ने सृष्टि का प्रारंभ किया तथा यह दिवस चैत्र नवरात्रों का प्रारंभ दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। इस अवसर पर डॉ शमा सक्सैना, डॉ एमके सिंह, डॉ अशोक वर्मा, डॉ अमजद फातमी, डॉ श्याम कुमार मीना, डॉ हरिओम शर्मा, डॉ मनीषा, डॉ अंजुल, डॉ विजय लक्ष्मी शर्मा, एसएस चारण आदि उपस्थित रहे।

एबीवीपी ने भारत माता की आरती करके भारतीय नव वर्ष का स्वागत किया। परिषद ने भारतीय नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा विक्रम संवत 2074 और नव दुर्गा स्थापना के उपलक्ष्य में हनुमान तिराहे स्थित हनुमान मंदिर पर 101 दीपक जलाकर भारत माता की महाआरती की। विभाग संगठन मंत्री धर्मेंद्र ने नागरिकों को बताया कि ईस्वी कैलेंडर की अपेक्षा विक्रमी कैलेंडर को सभी शुभ कार्यों के लिए श्रेष्ठ होता है।

आर्य समाज वेद मंदिर पर मंगलवार को आर्य समाज का स्थापना दिवस पूर्ण श्रद्धा के साथ देवयज्ञ से मनाया गया। मंत्री राजू भगत ने बताया कि इस पर शाम देवयज्ञ किया गया जिसमें नव संवतसर की विशेष आहुतियां दी गई। इसके बाद संत्सग का आयोजन किया गया। जिसकी अध्यक्षता मधु आैर डॉ आरएस गर्ग ने की। संचालन शारदा आर्य ने किया। इसके बाद समाज के प्रधान डॉ लाजपति शर्मा ने नवसवत्सर प्रतिपदा के महत्व की जानकारी दी। रघुवीर मुनि, रामप्रसाद, झम्मन तिवारी, देवप्रकाश, वेद मुनि, भेषज राजपूत आदि सहित समाज के लोग मौजूद रहे।

अखिलभारतीय विद्यार्थी परिषद की ईकाई मनिया की ओर से मंगलवार को हिन्दू नव वर्ष मनाया गया। नगर मंत्री राहुल त्यागी ने कहा कि हिन्दू नववर्ष हिंदुओं का पावन पर्व है हमें इसे धूमधाम से मनाना चाहिए। फोजी गुर्जर ने कहा कि हिन्दू नववर्ष हिंदुओं का प्राचीन त्योहार है। इस मौके पर भोलाराम पोसवाल, शिवम सोनी, पिन्टू पोसवाल , पंकज मित्तल, रिंकू जैन, रविंद्र सेन आदि पदाधिकारी मौजूद रहे। वहीं मांगरोल में बजरंग दल की ओर से छात्रों की रैली निकाली गई। जिसमें जय श्रीराम एवं वंदे मातरम के नारे लगाए गए। वाद में छात्रों को हिंदू नव वर्ष के बारे में बताया गया। बाद में नववर्ष के उपलक्ष्य में हिंदू भाइयों ने ध्वजारोहण किया। इस मौके पर मनोज सोनी, राजेंद्र राठौड़, रमाकांत कटारा, धीरु जैन, मंगल सिंह कुशवाहा सहित बजरंग दल के कार्यकर्ता एवं ग्रामीण मौजूद रहे।

राष्ट्रीय स्वाभिमान और सांस्कृतिक धरोहर को बचाने वाला पुण्य दिवस हिंदू नव वर्ष चैत्र मास की प्रतिपदा के दिन मनाया जाता है| इस दिन से चैत्र नवरात्रि की शुरूआत होती है। महाराष्ट्र में इस दिन को गुड़ी पड़वा कहा जाता है और दक्षिण भारत में इसे उगादि (Ugadi) कहा जाता है। विक्रम संवत को नव संवत्सर भी कहा जाता है। संवत्सर 5 प्रकार का होता है जिसमें सौर, चंद्र, नक्षत्र, सावन और अधिमास आते हैं। हालांकि कई विद्वानों का मत है कि भारत में विक्रमी संवत से भी पहले लगभग 700 ई.पू. हिंदुओं का प्राचीन सप्तर्षि संवत अस्तित्व में आ चुका था। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नव वर्ष प्रारंभ होता है। इसी दिन सूर्योदय के साथ सृष्टि का प्रारंभ परमात्मा ने किया था। अर्थात् इस दिन सृष्टि प्रारंभ हुई थी तब से यह गणना चली आ रही है।(हिन्दू नव वर्ष क्यों मनाया जाता है)

‎यह नववर्ष किसी जाति, वर्ग, देश, संप्रदाय का नहीं है अपितु यह मानव मात्र का नववर्ष है। यह पर्व विशुद्ध रूप से भौगोलिक पर्व है क्योंकि प्राकृतिक दृष्टि से भी वृक्ष वनस्पति फूल पत्तियों में भी नयापन दिखाई देता है। वृक्षों में नई-नई कोपलें आती हैं। वसंत ऋतु का वर्चस्व चारों ओर दिखाई देता है। मनुष्य के शरीर में नया रक्त बनता है। हर जगह परिवर्तन एवं नयापन दिखाई पडता है। रवि की नई फसल घर में आने से कृषक के साथ संपूर्ण समाज प्रसन्नचित होता है। वैश्य व्यापारी वर्ग का भी इकोनॉमिक दृष्टि से मार्च महीना इण्डिंग (समापन) माना जाता है। इससे यह पता चलता है कि जनवरी साल का पहला महीना नहीं है पहला महीना तो चैत्र है जो लगभग मार्च-अप्रैल में पड़ता है। 1 जनवरी में नया जैसा कुछ नहीं होता किंतु अभी चैत्र माह में देखिए नई ऋतु, नई फसल, नई पवन, नई खुशबू, नई चेतना, नया रक्त, नई उमंग, नया खाता, नया संवत्सर, नया माह, नया दिन हर जगह नवीनता है। यह नवीनता हमें नई उर्जा प्रदान करती है।

‎नव वर्ष को शास्त्रीय भाषा में नवसंवत्सर (संवत्सरेष्टि) कहते हैं। इस समय सूर्य मेष राशि से गुजरता है इसलिए इसे मेष संक्रांति भी कहते हैं। ‎प्राचीन काल में नव-वर्ष को वर्ष के सबसे बड़े उत्सव के रूप में मनाते थे। यह रीत आजकल भी दिखाई देती है। जैसे महाराष्ट्र में गुडी पाडवा के रूप में मनाया जाता है तथा बंगाल में पइला पहला वैशाख और गुजरात आदि अनेक प्रांतों में इसके विभिन्न रूप हैं।

नववर्ष का प्राचीन एवं ऐतिहासिक महत्व –
आज चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन ही परम पिता परमात्मा ने 1960853120 वर्ष पूर्व यौवनावस्था प्राप्त मानव की प्रथम पीढ़ी को इस पृथ्वी माता के गर्भ से जन्म दिया था। इस कारण यह मानव सृष्टि संवत् है।

1.) इसी दिन परमात्मा ने अग्नि वायु आदित्य अंगिरा चार ऋषियों को समस्त ज्ञान विज्ञान का मूल रूप में संदेश क्रमशः ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद के रूप में दिया था। इस कारण इस वर्ष को ही वेद संवत् भी कहते हैं।

2.) आज के दिन ही मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने लंका पर विजय प्राप्त कर वैदिक धर्म की ध्वजा फहराई थी।

3.) आज ही से कली संवत् तथा भारतीय विक्रम संवत् युधिष्ठिर संवत् प्रारंभ होता है।

4.) आज ही के शुभ दिन विश्व वंद्य अद्वितीय वेद द्रष्टा महर्षि दयानन्द सरस्वती ने संसार में वेद धर्म के माध्यम से सब के कल्याणार्थ आर्य समाज की स्थापना की थी। इसी भावना को ऋषि ने आर्य समाज के छठे नियम में अभिव्यक्त करते हुए लिखा- ”संसार का उपकार करना इस समाज का मुख्य उद्देश्य है अर्थात् शारीरिक आत्मिक और सामाजिक उन्नति करना”।(हिन्दू नव वर्ष क्यों मनाया जाता है)

5.) आज ही के शुभ दिन संसार के समस्त सनातन धर्म अनुयायियों का दैविक बल जगाने के लिए धर्मराज्यम् की स्थापना की गयी थी।

महानुभावों इन सब कारणों से यह संवत् केवल भारतीय या किसी पंथ विशेष के मानने वालों का नहीं अपितु संपूर्ण विश्व मानवों के लिए है। आइए! हम सार्वभौम संवत् को निम्न प्रकार से उत्साह पूर्वक मनाएं-

1.) यह संवत् मानव संवत् है इस कारण हम सब स्वयं को एक परमात्मा की संतान समझकर मानव मात्र से प्रेम करना सीखें। जन्मना ऊंच-नीच की भावना, सांप्रदायिकता, भाषावाद, क्षेत्रीयता, संकीर्णता आदि भेदभाव को पाप मानकर विश्वबंधुत्व एवं प्राणी मात्र के प्रति मैत्री भाव जगाएं। अमानवीयता व दानवता का नाश तथा मानवता की रक्षा का व्रत लें।

2.)आज वेद संवत् भी प्रारंभ है। इस कारण हम सब अनेक मत पंथों के जाल से निकल कर संपूर्ण भूमंडल पर एक वेद धर्म को अपनाकर प्रभु कार्य के ही पथिक बनें। हम भिन्न-भिन्न समयों पर मानवों से चलाए पंथों के जाल में न फसकर मानव को मानव से दूर न करें। जिस वेद धर्म का लगभग 2 अरब वर्ष से सुराज्य इस भूमंडल पर रहा उस समय (महाभारत से पूर्व तक) संपूर्ण विश्व त्रिविध तापों से मुक्त होकर मानव सुखी, समृद्धि व आनंदित था। किसी मजहब का नाम मात्र तक ना था। इसलिए उस वैदिक युग को वापस लाने हेतु सर्वात्मना समर्पण का व्रत लें। स्मरण रहे धर्म मानव मात्र का एक ही है, वह है वैदिक धर्म।

3) वैदिक धर्म के प्रतिपालक मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की विजय दिवस पर हम आज उस महापुरुष की स्मृति में उनके आदर्शों को अपनाकर ईश्वर भक्त, आर्य संस्कृति के रक्षक, वेद भक्त, सच्चे वेदज्ञ गुरु भक्त, मित्र व भातृवत्सल, दुष्ट संहारक, वीर, साहसी, आर्य पुरुष व प्राणी मात्र के प्रिय बने। रावण की भोगवादी सभ्यता के पोषक ना बनें।(हिन्दू नव वर्ष क्यों मनाया जाता है)

4.) आज राष्ट्रीय संवत् पर महाराज युधिष्ठिर विक्रमादित्य आदि की स्मृति में अपने प्यारे आर्यावर्त भारत देश की एकता अखंडता एवं समृद्धि की रक्षा का व्रत लें। राष्ट्रीय स्वाभिमान का संचार करते हुए देश की संपत्ति की सुरक्षा संरक्षा के व्रति बनें। जर्जरीभूत होते एवं जलते उजड़ते देश में इमानदारी, प्राचीन सांस्कृतिक गौरव, सत्यनिष्ठा, देशभक्ति, कर्तव्यपरायणता व वीरता का संचार करें।

5.) आज आर्य समाज स्थापना दिवस होने के कारण ‘कृण्वन्तो विश्वमार्यम्’ वेद के आदेशानुसार सच्चे अर्थों में आर्य बनें एवं संसार को आर्य बनाएं न की नामधारी आर्य। आर्य शब्द का अर्थ है- सत्य विज्ञान न्याय से युक्त वैदिक अर्थात् ईश्वरीय मर्यादाओं का पूर्ण पालक, सत्याग्रही, न्यायकारी, दयालु, निश्छल, परोपकारी, मानवतावादी व्यक्ति। इस दिवस पर हम ऐसा ही बनने का व्रत लें तभी सच्चे अर्थों में आर्य (श्रेष्ठ मानव) कहलाने योग्य होंगे। आर्यत्व आत्मा व अंतःकरण का विषय है। न कि कथन मात्र का।

आधुनिक सभ्यता की अन्धी दौड़ में समाज का एक वर्ग इस पुण्य दिवस को विस्मृत कर चुका है। आवश्यकता है इस दिन के इतिहास के बारे में जानकारी लेकर प्रेरणा लेने का कार्य करें। भारतीय संस्कृति की पहचान विक्रमी संवत्सर में है, न कि अंग्रेजी नववर्ष से। हमारा स्वाभिमान विक्रमी संवत्सर को मनाने से ही जाग्रत हो सकता है, न कि रात भर झूमकर एक जनवरी की सुबह सो जाने से। इसका सशक्त उदाहरण पूर्व प्रधानमन्त्री मोरारजी देसाई का यह कथन है, जिसे उन्होंने 1 जनवरी को मिले शुभकामना सन्देश के जवाब में कहा था कि मेरे देश का सम्मान वीर विक्रमी नव संवत्सर से है। 1 जनवरी ग़ुलामी की दास्तान है।

वर्ष प्रतिपदा /भारतीय नववर्ष का प्राकृतिक महत्व –

1.) वसन्त ऋतु का आरम्भ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है जो उल्लास, उमंग, खुशी तथा चारों तरफ पुष्पों की सुगन्ध से भरी होती है।

2.) फसल पकने का प्रारम्भ यानि किसान की मेहनत का फल मिलने का भी यही समय होता है।

3.) नक्षत्र शुभ स्थिति में होते हैं अर्थात् किसी भी कार्य को प्रारम्भ करने के लिये यह शुभ मुहूर्त होता है। अत: हमारा नव वर्ष कई कारणों को समेटे हुए है। अंग्रेजी नववर्ष न मना कर भारतीय नववर्ष हर्षोउल्लास के साथ मनायें और दूसरों को भी मनाने के लिए प्रेरित करें।(हिन्दू नव वर्ष क्यों मनाया जाता है)

राष्ट्रीय संवत-

भारतवर्ष में इस समय देशी-विदेशी मूल के अनेक सम्वतों का प्रचलन है। किन्तु भारत के सांस्कृतिक इतिहास की दृष्टि से सर्वाधिक लोकप्रिय राष्ट्रीय सम्वत यदि कोई है तो वह विक्रम सम्वत ही है। आज से 2072 वर्ष यानी 57 ईसा पूर्व में भारतवर्ष के प्रतापी राजा विक्रमादित्य ने देशवासियों को शकों के अत्याचारी शासन से मुक्त किया था। उसी विजय की स्मृति में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि से विक्रम सम्वत का भी आरम्भ हुआ था।

प्राचीनकाल में नया संवत चलाने से पहले विजयी राजा को अपने राज्य में रहने वाले सभी लोगों को ऋण-मुक्त करना आवश्यक होता था। राजा विक्रमादित्य ने भी इसी परम्परा का पालन करते हुए अपने राज्य में रहने वाले सभी नागरिकों का राज्यकोष से कर्ज़ चुकाया और उसके बाद चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से मालवगण के नाम से नया सम्वत चलाया। भारतीय कालगणना के अनुसार वसन्त ऋतु और चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि अति प्राचीनकाल से सृष्टि प्रक्रिया की भी पुण्य तिथि रही है। वसन्त ऋतु में आने वाले वासन्तिक नवरात्र का प्रारम्भ भी सदा इसी पुण्यतिथि से होता है। विक्रमादित्य ने भारत राष्ट्र की इन तमाम कालगणनापरक सांस्कृतिक परम्पराओं को ध्यान में रखते हुए ही चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि से ही अपने नवसंवत्सर सम्वत को चलाने की परम्परा शुरू की थी और तभी से समूचा भारत राष्ट्र इस पुण्य तिथि का प्रतिवर्ष अभिवन्दन करता है।

नौ दिनों तक ही क्यों मनाया जाता है नवरात्रि का पर्व? जानिए इस त्यौहार के महत्व
दरअसल भारतीय परम्परा में चक्रवर्ती राजा विक्रमादित्य शौर्य, पराक्रम तथा प्रजाहितैषी कार्यों के लिए प्रसिद्ध माने जाते हैं। उन्होंने 95 शक राजाओं को पराजित करके भारत को विदेशी राजाओं की दासता से मुक्त किया था। राजा विक्रमादित्य के पास एक ऐसी शक्तिशाली विशाल सेना थी जिससे विदेशी आक्रमणकारी सदा भयभीत रहते थे। ज्ञान-विज्ञान, साहित्य, कला संस्कृति को विक्रमादित्य ने विशेष प्रोत्साहन दिया था। धन्वन्तरि जैसे महान वैद्य, वराहमिहिर जैसे महान ज्योतिषी और कालिदास जैसे महान साहित्यकार विक्रमादित्य की राज्यसभा के नवरत्नों में शोभा पाते थे। प्रजावत्सल नीतियों के फलस्वरूप ही विक्रमादित्य ने

अपने राज्यकोष से धन देकर दीन दु:खियों को साहूकारों के कर्ज़ से मुक्त किया था। एक चक्रवर्ती सम्राट होने के बाद भी विक्रमादित्य राजसी ऐश्‍वर्य भोग को त्यागकर भूमि पर शयन करते थे। वे अपने सुख के लिए राज्यकोष से धन नहीं लेते थे।

नव संवत्सर का इतिहास और महत्व: आज की हमारी जीवन शैली पर पश्चिम दुनियां का गहरा असर हैं. हम वजन, मुद्रा और गणना से लेकर तिथि और काल गणना भी पाश्चात्य परिपाटी के मुताबिक़ करते हैं. हम में से अधिकतर लोग 1 जनवरी को ही नववर्ष मनाते हैं. जबकि भारतीय अथवा हिन्दू कलैंडर के मुताबिक़ चैत्र शुक्ला प्रतिपदा से नव संवत्सर यानि नवरोज की शुरु आत होती हैं जो अंग्रेजी माह के मुताबिक़ मार्च के तीसरे सप्ताह में होता हैं.

विक्रम संवत समेत सभी भारतीय पंचाग की काल गणना सूर्य एवं चन्द्रमा के आधार पर होती हैं. किसी न किसी रूप में विश्व के लगभग सभी कैलेंडर भारतीय पंचाग का अनुगमन करते नजर आते हैं.भारत का सबसे प्राचीन पंचाग सप्तर्षि संवत माना जाता हैं जो सड़सठ सौ ई.पू. में निर्मित था. मगर सर्वाधिक लोकप्रिय एवं वर्तमान चलन में विक्रम संवत् ही है जो हिन्दू कलैंडर के रूप में जाना जाता हैं |

हिन्दू नव वर्ष भी विक्रम संवत् के मुताबिक़ ही मनाया जाता हैं हिन्दू कलैंडर की शुरुआत महान शासक वीर विक्रमादित्य द्वारा की गई थी जिसमें एक वर्ष में बारह माह तथा एक सप्ताह में सात दिनों का विधान किया गया था विक्रम संवत को नवसंवत्सर के नाम से भी जाना जाता हैं संवत्सर पांच तरह का होता है जिसमें सौर, चंद्र, नक्षत्र, सावन और अधिमास सम्मिलित होते हैं |

हिन्दू पंचाग में सौर वर्ष में बारह राशियों पर ही बारह महीने रखे गये हैं जिसमें एक वर्ष 365 दिन का होता हैं चंद्र वर्ष के मास चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़ महीने है जिनके नाम सौर नक्षत्रों के आधार पर ही रखा गया हैं वही चद्र वर्ष को 354 दिन की अवधि का माना जाता हैं सौर वर्ष की तुलना में इसमें दस दिनों की वृद्धि हो जाती हैं तथा इन बढ़े हुए दिनों को अधिमास के नाम से जाना जाता हैं |

आज भले ही हम अपने कलैंडर एवं काल गणना को छोड़कर ग्रेगोरियन कलैंडर अपनाते जा रहे हैं मगर इसका महत्व कतई कम नहीं हुआ हैं हमारे समस्त शुभ कार्य चाहे वह पर्व त्यौहार, विवाह, आदि कोई भी कर्म या मुहूर्त हो वह हिन्दू कलैंडर के मुताबिक़ ही होता हैं हिन्दू नववर्ष अर्थात कलैंडर का पहला दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा होती हैं इस दिन बासन्तीय नवरात्र भी शुरू होते हैं जिसमें देवी दुर्गा का पूजन किया जाता हैं इसके अतिरिक्त देश के अन्य भागों यथा महाराष्ट्र में यह गुडी पड़वा तथा आंध्र प्रदेश में यह उगादी के रूप में मनाया जाता हैं |

हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार जब ब्रह्माजी ने हमारी सृष्टि के निर्माण की शुरुआत कि तो उसी दिन से हमारे जगत का प्रथम दिन माना जाता हैं पुराणों के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन ही देवी देवताओं के कार्यों का विभाजन हुआ था तथा सभी ने शक्ति से सृष्टि संचालन के लिए आशीर्वाद माँगा था यही वजह है कि हिन्दू धर्म में इस दिन का बड़ा महत्व है तथा इसी दिन से हिन्दू वर्ष की शुरुआत मानी गई |

भारतीय नवसंवत्सर विक्रम संवत 2077 की शुरुआत 25 मार्च 2020 से हो रही हैं. इस नयें वर्ष की शुरुआत बुधवार के दिन हो रही है इसी कारण बुध को इसका स्वामी माना गया हैं गोवा और केरल में कोंकणी समुदाय इसे संवत्सर पड़वो के रूप में मनाते हैं कर्नाटक में यह पर्व युगाड़ी, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में गुड़ी पड़वा को उगाड़ी, कश्मीरी हिंदू इस दिन को नवरेह तथा मणिपुर में यह दिन सजिबु नोंगमा पानबा या मेइतेई चेइराओबा के रूप में मनाया जाता हैं |

हिन्दू नव वर्ष का इतिहास विक्रमादित्य के साथ जुड़ा हुआ हैं आज से तकरीबन दो हजार वर्ष पूर्व विक्रमादित्य ने शको के भारत पर निरंतर हमलों को रोकने के लिए सभी राज्यों को एकता के सूत्र में बांधा और सन 57 ई पू में शकों को उनके ही घर अरब में मात देकर अभूतपूर्व विजय प्राप्त की थी. इन्ही वीर विक्रमादित्य की विजय की याद में यह पंचाग चला जो कालान्तर में दिल्ली सम्राट पृथ्वीराज चौहान के समय तक चलता रहा, मुगलों और अंग्रेजों ने अपने अपने कलैंडर भारत पर थोपे आजादी के बाद तत्कालीन सरकार ने भी धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हजारों वर्ष प्राचीन वैज्ञानिक एवं सटीक कलैंडर की अवहेलना कर शक संवत् को राष्ट्रीय पंचाग घोषित किया सरकार की जो भी मंशा रही हो, भारतीय जनमानस और उनकी परम्परा एवं इतिहास आज भी विक्रम संवत् के साथ जुड़ी हुई हैं |

त्यौहारों की धरती भारत में हिन्दू नववर्ष में खास महत्त्व है. चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को वर्ष प्रतिपदा या युगादि भी कहा जाता है. इस दिन हिन्दु नववर्ष का आरम्भ होता है. किवदंतियों के अनुसार इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण किया था, तो इसी दिन से नया संवत्सर (नवसंवत्सर) भी शुरू होता है शुक्ल प्रतिपदा का दिन चंद्रमा की कला का प्रथम दिवस माना जाता है. जीवन का मुख्य आधार ‘वनस्पतियों को सोमरस’ चंद्रमा ही प्रदान करता है और इसे ही औषधियों और वनस्पतियों का राजा कहा गया है संभवतः इसीलिए इस दिन को वर्षारंभ माना जाता है. नववर्ष की प्रणाली ब्रह्माण्ड पर आधारित होती है, यह तब शुरु होता है जब सूर्य या चंद्रमा मेष के पहले बिंदु में प्रवेश करते हैं।

चैत्र ही एक ऐसा माह है जिसमें वृक्ष तथा लताएं पल्लवित व पुष्पित होती हैं। इसी मास में उन्हें वास्तविक मधुरस पर्याप्त मात्रा में मिलता है। वैशाख मास, जिसे माधव कहा गया है, में मधुरस का परिणाम मात्र मिलता है। इसी कारण प्रथम श्रेय चैत्र को ही मिला और वर्षारंभ के लिए यही उचित समझा गया। जितने भी धर्म कार्य होते हैं, उनमें सूर्य के अलावा चंद्रमा का भी महत्वपूर्ण स्थान है।

हिन्दू नववर्ष को अगर प्रकृति के लिहाज से देखें, तो चैत्र शुक्ल पक्ष आरंभ होने के पूर्व ही प्रकृति नववर्ष आगमन का संदेश देने लगती है प्रकृति की पुकार, दस्तक, गंध, दर्शन आदि को देखने, सुनने, समझने का प्रयास करें, तो हमें लगेगा कि प्रकृति पुकार-पुकार कर कह रही है कि नवीन बदलाव आ रहा है, नववर्ष दस्तक दे रहा है. वृक्ष अपने जीर्ण वस्त्रों (पुराने पत्तों) को त्याग रहे हैं, तो वायु (तेज हवाओं) के द्वारा सफाई अभियान भी चल रहा है फिर वृक्ष पुष्पित होते हैं, आम बौराते हैं, यह सब मिलाकर वायु में सुगंध और मादकता की मस्ती घुल सी जाती है

अर्थव्यवस्था की रीढ़ कृषि का सम्बन्ध भी चैत्र (अप्रैल) महीने से ही जुड़ा हुआ है. चैत्र में फसलों की कटाई होने के बाद किसानों के पास धन आता है और जब उनके पास धन आएगा तो निश्चित रूप से खुशहाली उनके कदम चूमेगी

प्राचीन काल में एक समय था जब पूरी दुनिया में हर व्यक्ति एक ही कैलेंडर मानता था; चंद्र कैलेंडर, आज भी, तुर्की और ईरान में, लोग चंद्र कैलेंडर ही मानते हैं; इसके अनुसार मार्च से नए वर्ष की शुरुआत होती है परंतु लंदन के राजा किंग जॉर्ज, जनवरी से नव वर्ष शुरू करना चाहते थे क्योंकि वह उस माह में पैदा हुए थे। यह उनका नव वर्ष था, इसमें कोई संदेह नहीं है, लेकिन उन्होंने पूरे ब्रिटिश साम्राज्य पर यह नव वर्ष लागू कर दिया !
भले ही आज अंग्रेजी कैलेंडर का प्रचलन बहुत अधिक हो गया हो लेकिन उससे भारतीय कलैंडर की महता कम नहीं हुई है। आज भी हम अपने व्रत-त्यौहार, महापुरुषों की जयंती-पुण्यतिथि, विवाह व अन्य शुभ कार्यों को करने के मुहूर्त आदि भारतीय कलैंडर के अनुसार ही देखते हैं।(हिन्दू नव वर्ष क्यों मनाया जाता है)

ऐतिहासिक रूप से इसकी पृष्ठभूमि में अनेक कथाएं सुनने को मिलती हैं, किन्तु यह एक अजीब बिडम्बना है कि आज के आधुनिक समय में हमारी स्वस्थ भारतीय परम्पराओं को एक तरह से तिलांजलि ही दे दी गयी है. पाश्चात्य सभ्यता के ‘न्यू ईयर’ को हैपी बनाया जाने लगा है, किन्तु वैज्ञानिक रूप से तथ्यपरक होने के बावजूद हिन्दू नववर्ष को लोग महत्वहीन करने की कोशिशों में जुटे रहते हैं. 31 दिसंबर की आधी रात को नव वर्ष के नाम पर नाचने गाने वाले आम-ओ-ख़ास को देखकर आखिर क्या तर्क दिया जा सकता है!

भारतीय त्यौहारों के सन्दर्भ में बात कही जाय तो न सिर्फ हिन्दू नव वर्ष, बल्कि प्रत्येक भारतीय त्यौहार हमारी सभ्यता से गहरे जुड़े हुए हैं और हमारे भूत, यानि हमारे बुजुर्ग, वर्तमान यानि युवा पीढ़ी और भविष्य यानि बच्चों के बीच में गहरा सामंजस्य स्थापित करते हैं भारतीय त्यौहारों में एक संतुलन तो पाश्चात्य त्यौहारों में असंतुलन, एकाकीपन और यदि थोड़ा आगे बढ़कर कहा जाय तो शराब, ऐसे कृत्य आदि इत्यादि के प्रयोगों से भारतीय शास्त्रों में वर्णित ‘राक्षसी-प्रवृत्ति’ तक का दर्शन होता है इसके अतिरिक्त हमारे हिन्दुस्थान में सभी वित्तीय संस्थानों का नववर्ष भी 1 अप्रैल से प्रारम्भ होता है, इस प्रकार के समृद्ध नववर्ष को छोड़कर यदि हम किसी और तरफ भागते हैं तो इसे हमारी अज्ञानता के अतिरिक्त और कुछ नहीं कहा जा सकता है जरूरत है इस अज्ञानता से हर एक को प्रकाश की ओर बढने की शायद तभी हिन्दू नववर्ष यानी भारतीय नववर्ष की सार्थकता पुनः स्थापित होगी और इस सार्थकता के साथ समृद्धि, खुशहाली और विकास अपने पूर्ण रूप में प्रकाशमान होगा।

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