जैसलमेर की वेश-भूष

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जैसलमेर की वेश-भूष

जैसलमेर की वेश भूष :-
राजस्थानी भाषाएँ समाज का राजस्थानी प्रतिनिधित्व करती है। राजस्थानी रीति, व्यवहार, वेशभूषा एवं सांस्कृतिक परम्पराएँ इनमें सुरक्षित है। प्रस्तुत लेख में राजस्थानी गाथाओं में वर्णित वेशभूषा एवं लेख विश्वासों पर विचार किया गया है।
गाथाएँ राजस्थानी संस्कृति की प्रतिनिधि है। राजस्थानी रीति-व्यवहार, वेश-भूषा एवं परम्पराओं का वर्णन मिलता है। प्रस्तुत लेख में राजस्थानी वेशभूषा वर्णन एवं लोक निश्वासों पर विचार किया गया है। गाथाओं में राजस्थानी वेशभूषा का सुन्दर वर्णन मिलता है। स्री व पुरुष दोनों ही सुन्दर वेश धारण करते हैं। लगभग सभी गाथाओं में यह वर्णन मिलता है। स्रियाँ कटि से नीचे घाघरा धारण करती है, शरीर पर दक्षिणी चीर ओढ़ती है, वक्ष पर आँगी, जिसे राजस्थान में कांचली कहते हैं, यह आगे कुचों पर आ जाती है और पीछे पीठ पर डोरी से कसी जाती है। जैसलमेर जिला की वेश -भूष केसी है |

राजस्थानी वेशभूषा :-
राजस्थानी वेशभूषा (राजस्थानी पहनावा) बहुत अनोखा है क्योंकि राजस्थान में अनेक जातियाँ निवास करती हैं इनके कारण वस्त्र भी जातियों के हिसाब से पहने जाते है। राजस्थान के लोग ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में ही रहते हैं। इसलिए औरतें-घाघरा कुर्ती तथा पुरुष- धोती,कुर्ता पेंट पहनते हैं।जैसलमेर जिला की वेश -भूष केसी है |

जैसलमेर में पुरुषों के पहनावे :-
आज पश्चिमी संस्कृति के कारण ज्यादातर पुरुष -जीन्स-पेंट तथा टीशर्ट पहने नजर आते है। बुजुर्ग धोती , पायजामा और साफा(पगड़ी) पहनते है।

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जैसलमेर में भाटी वंश की वेश भूष :-
जैसलमेर भारत के राजस्थान प्रांत का एक शहर है। भारत के सुदूर पश्चिम में स्थित धार के मरुस्थल में जैसलमेर की स्थापना भारतीय इतिहास के मध्यकाल के प्रारंभ में 1178 ई. के लगभग यदुवंशी भाटी के वंशज रावल-जैसल द्वारा की गई थी। रावल जैसल के वंशजों ने यहाँ भारत के गणतंत्र में परिवर्तन होने तक बिना वंश क्रम को भंग किए हुए 770 वर्ष सतत शासन किया, जो अपने आप में एक महत्वपूर्ण घटना है। जैसलमेर राज्य ने भारत के इतिहास के कई कालों को देखा व सहा है। सल्तनत काल के लगभग 300 वर्ष के इतिहास में गुजरता हुआ यह राज्य मुगल साम्राज्य में भी लगभग 300 वर्षों तक अपने अस्तित्व को बनाए रखने में सक्षम रहा। भारत में अंग्रेज़ी राज्य की स्थापना से लेकर समाप्ति तक भी इस राज्य ने अपने वंश गौरव व महत्व को यथावत रखा। भारत की स्वतंत्रता के पश्चात यह भारतीय गणतंत्र में विलीन हो गया। भारतीय गणतंत्र के विलीनकरण के समय इसका भौगोलिक क्षेत्रफल 16,062वर्ग मील के विस्तृत भू-भाग पर फैला हुआ था। रेगिस्तान की विषम परिस्थितियों में स्थित होने के कारण यहाँ की जनसंख्या बींसवीं सदी के प्रारंभ में मात्र 76,255 थी।जैसलमेर जिला की वेश -भूष केसी है |

जैसलमेर का रहन सहन और वेशभुषा :-
अपनी संस्कृति तथा प्राकृतिक विविधता के लिए जाना जाता है। राजस्थान के रीति-रिवाज, यहां के लोगों का पहनावा तथा भाषा सादगी के साथ-साथ अपनेपन का भी अहसास कराती है। राजस्थान में लोगों को अपनी एकता के लिए जाना जाता है। राजस्थान के रीति-रिवाज, वेशभूषा तथा भाषा में सादगी के साथ अपनापन भी है। राजस्थान के लोगों का रहन-सहन सादा और सहज है। राजस्थान के लोग जीवटवाले तथा ऊर्जावन होते हैं साथ ही जीवन के हर पल का आनंद उठाते हैं। राजस्थानी महिलाएं अपनी सुंदरता के लिए मशहूर हैं। राजस्थान के लोग रंगीन कपड़े और आभूषणों के शौकीन हैं। रहन-सहन, खान-पान और वेशभूषा में समय के साथ थोड़ा-बहुत परिवर्तन तो आया है, लेकिन राजस्थान अभी अन्य प्रदेशों की तुलना में अपनी संस्कृति, रीति-रिवाजों और परंपराओं को सहेजे हुए है। राजस्थान में भोजन वहां की जलवायु के आधार पर अलग-अलग प्रकार से बनता है। पानी और हरी सब्जियों की कमी होने की वजह से राजस्थानी व्यंजनों की अपनी एक अलग ही शैली है। राजस्थानी व्यंजनों को इस तरह से पकाते हैं कि वो लंबे समय तक खराब नहीं होते तथा इन्हें गरम करने की आवश्यकता भी नहीं होती। रेगिस्तानी जगहों जैसे – जैसलमेर, बाड़मेर और बीकानेर में दूध, छाछ और मक्खन पानी के स्थान पर प्रयोग किया जाता है। राजस्थान में अधिकतर खाना शुद़्ध घी से तैयार किया जाता है। यहां पर दाल-बाटी-चूरमा बेहद मशहूर है। जोधपुर की मावा कचौड़ी, जयपुर का घेवर, अलवर की कलाकंद और पुष्कर का मालपुआ, बीकानेर के
रसगुल्ले, नमकीन भुजिया, दाल का हलवा, गाजर का हलवा, जलेबी और रबड़ी विशेष रूप से प्रसिद्ध है। भोजन के बाद पान खाना भी यहां की परंपरा में शुमार है।
राजस्थानी वेशभूषा राजस्थान के लोगों का पहनावा रंग-रगीला है। रेत और पहाड़ियों के सुस्त रंगों के बीच चमकीले रंगों की पोशाक राजस्थान के लोगों को जीवंत बनाती है। सिर से लेकर पांव तक, पगड़ी, कपड़े, गहने और यहां तक कि जूते भी राजस्थान की आर्थिक और सामाजिक स्थिति को दर्शाते हैं। सदियों बीत जाने के बाद भी यहां की वेशभूषा अपनी पहचान बनाये हुए है। राजस्थान की जीवन शैली के आधार पर अलग- अलग वर्ग के लोगों के लिए अलग-अलग परिधान के
अंतर्गत पगड़ी यहां के लोगों की शान और मान का प्रतीक है। यहां के लोग 1000 से भी अधिक प्रकार से पगड़ी बांधते हैं। कहा जाता है कि यहां हर 1 किमी. से पगड़ी बांधने का तरीका बदल जाता है। पुरुष पोशाक में पगड़ी, अंगरखा, धोती या पजामा, कमरबंद या पटका शामिल है और महिलाओं की पोशाक में घाघरा, जिसे लंबी स्कर्ट भी कहते हैं, कुर्ती या चोली और ओढ़नी शामिल हैं। घाघरे की लंबाई थोड़ी छोटी होती है ताकि पांव में पहने गहने दिखायी दे सकें और ओढ़नी घूंघट करने के काम आती है। ऊंट बकरी और भेड़ की खाल से बने जूते पुरुष और महिलाओं के जरिये पहने जाते हैं। मखमल या जरी के ऊपर कढ़ाई कर के जूते के बाहरी भाग पर चिपकाया जाता है। जैसलमेर जोधपुर रामजीपुरा और जयपुर की जूतियां पूरी दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं।जैसलमेर जिला की वेश -भूष केसी है |

जैसलमेर की वेशभूषा :-
1) पगड़ी – पुरुषों की पोशाक में पगड़ी राजस्थानी परिधान का महत्वपूर्ण अंग थी। पगड़ी प्रतिष्ठा का प्रतीक है जयपुर में पंचरंग पगड़ी का अधिक प्रचलन राजघराने में अधिक था विवाह के अवसर पर “मोठड़े की पगड़ी”पहनी जाती थी श्रावण माह में लहरिये की पगड़ी,दशहरे पर मदील और होली पर फूलपत्ती की पगड़ी पहनी जाती है सर्वाधिक प्रसिद्ध मेवाड़ी पगड़ी है।मेवाड़ में महाराणा को पगड़ी बांधने वाले को “छाषदर”कहा जाता था पगड़ियों के प्रकार अमरशाही,उदयशाही, खंजरशाही, शिवशाही,विजयशाई, अरजीशही, चूड़ावतशाही,खरमा,मण्डपशाही,हम्मीरशाही आदि।
2) घुघी – एक प्रकार का ऊनी वस्त्र।
3) अजरक – यह एक मुस्लिम वस्त्र है इसे मुस्लिम लोग कंधे पर डाले रहते है।
4) खोयतु – यह भील लोगो की लंगोटी है
5) अंगोछा – यह पुरुषो का वस्त्र है इसे सिर पर बांधते है।अंगोछा में केरी भात का अंगोछा बहुत लोकप्रिय है”फालु” यह भीलो का अंगोछा है।
6) नांदना – यह आदिवशियों द्वारा प्रयुक्त होने वाला प्राचीन वस्त्र है।
7) तिलका – यह मुस्लिम स्त्रियों का पहनावा है।
8) कछावु – लंगोटिया भील की स्त्रियों द्वारा घुटनो से नीचे तक पहना जाने वाला घाघरा है।यह घाघरा मुख्यतया लाल व काला रंग का होता है।
9) कापड़ी – दो टुकड़ियों को जोड़कर बनाई जाने वाली चोली है जो भीलवाड़ा क्षेत्र में प्रसिद्ध है।
10) पवरी – पश्चिम राजस्थान में महिलाओं द्वारा ओढा जाने वाला वस्त्र है
11) जरदोजी – यह महिलाओं का सुनहरे धागे से कढाई किया वस्त्र।
12) फागण्या – होली पर महिलाओं द्वारा पहना जाने वाला वस्त्र है।
13) पिरिया – विवाह के अवसर पर भील दुल्हन पिले रंग का वस्त्र धारण करती है जिसे पिरिया कहते है।
भौशाला भांत – विवाह पर मामा अपनी भांजी के लिए विशेष प्रकार की चुनरी लाता है उसे भौशाला भांत कहते है।
दुल्हन की ओढ़नी को पंवरी कहते है।
सूती या रेशमी कपड़े पर बादले से छोटी-छोटी बिंदी की कढ़ाई “मुकेश” कहलाती है।
लाडनूं का साफा और चुनरी प्रसिद्ध है यहां का बना माल कलकत्ता और असोम तक जाता है।
बंधेज की सबसे बड़ी मंडी जोधपुर में है जबकि बंधेज का सर्वाधिक काम सुजानगढ़ में होता है।
अलवर की “दोरुखी ओढ़नी” प्रसिद्ध है।
13) नमदा – ऊन कूटकर उसे जमाकर जो वस्त्र बनाते है उसे नमदा कहते है ।टोंक अपने खूबसूरत नामदों के लिए प्रसिद्ध है।
भील दुल्हन विवाह के अवसर पर जो वस्त्र धारण करती है उसे “प्रिया” कहते है।जैसलमेर जिला की वेश -भूष केसी है |

घाघरे के घेर का एक रुप देखिए :-
घम्म घम्मंतइ – घाघरे, उल्ट्यों जाण गमंद,मारु चाली मन्दिरे, झीणे बादल चंद।माना गूजरी की वेशभूषा का वर्णन राजस्थानी नारी की वेशभूषा का प्रतिनिधित्व करता है -नीचे पहरयो घूम घाघरों, ऊपर दिखणी चीर। हरे पाट की आंगी पहरी, भई दिल्ली ने भीर।। राजस्थानी वेशभूषा में लहरिये का महत्त्वपूर्ण स्थान है। श्रावण के मास में विशेष रुप से लहरिये का रंग निखरात है, स्रियाँ इसे बहुत चाव से धारण करती हैं – गोरे कंचन गात पर अंगिया रंग अनार। लैंगो सोहे लचकतो, लहरियो लफादार अंग्रेजी में जिसे “स्यूट’ (suit) कहते है, राजस्थानी में उसे “बेस’ कहा जाता है। उसमें “लहंगा’ और “लूगड़ी’ का रंग एक-सा होता है। इस पर जरी और मोतियों का काम होता है, यह जरी का बेस कहलाता है। कोई आंगी तो पहरोजी बाई जी रेशम पाट की परहोजी पहरोजी बेस थे जरी को भोला बाइजी ओढो जी ओढ़ो दिखढ़ी चीर म्हारा बाइजीओ निहालदे सुल्तान गाथा में भी स्री वेशभूषा का वर्णन अनेक स्थानों पर आता है। उदाहरण – सिर पर लाल रंग का स्यालू धारण किया, तथा गुजराती लहंगा पहना। इस प्रकार सज-धज कर मारु डोले में बैठी और साथ में उसने दासियों को ले लिया” पुरुष वेशभूषा भी राजस्थान में बहुत रंगीली है। शीश पर “साफा’ इसका रंग कसूमली गुलाबी, केसरिया अथवा लहरिया रंग का होता है। कटि में धोती और शरीर पर कसा हुआ वस्र। तेजाजी गाथा में इस वेशभूषा का वर्णन है – कड़िया जी कड़ियां कसियो कम्मर बंध कवंर तेजै जी, कोई कांधे तो डारयों है रे वो लाल किनारी धोतियों। कमरयां लाल लपेटो बांधो दुपटो बूँटीदार | जैसलमेर जिला की वेश -भूष केसी है| हमारी सफलता में एक सशक्त व्यक्तित्व का बड़ा योगदान होता है। सवाल यह है कि व्यक्तित्व कैसा हो कि दूसरों पर सकारात्मक प्रभाव डाले। व्यक्तित्व का एक बड़ा हिस्सा आपका पहनावा, वेशभूषा और हाव भाव हैं। किसी अनौपचारिक समारोह या पार्टी में आप 3-पीस सूट पहन कर जायेंगे तो नमूने लगेंगे और नमूने के साथ कोई भी सहज महसूस नहीं करेगा। इसी प्रकार किसी आधिकारिक मीटिंग में रंग-बिरंगी टी-शर्ट और शॉर्ट्स पहनकर जायेंगे तो भी नमूने लगेंगे।

व्यक्तित्व का आईना है आपकी वेशभूषा :-
आप कहेंगे कि इतना तो सभी को ध्यान रहता है। बात काफी हद तक सही भी है। असल जिंदगी में ऐसे नाटकीय उदहारण कम ही मिलते हैं कि आफिस की मीटिंग में कोई लाल पीली कमीज में आए, लेकिन ऐसे उदाहरण जरूर मिलते हैं, जहां मौके की मांग और वेशभूषा के चयन में अच्छा खासा गैप रहता है। मई-जून की भयानक गर्मी में भी इंटरव्यू के लिए टाई लगाये, पसीने में तर-बतर लोग आपको मिल जायेंगे। सही वेशभूषा क्या है, इसका कोई परम सत्य जैसा उत्तर नहीं हो सकता। किस उद्देश्य से जा रहे हैं, किससे मिलने जा रहे हैं, सन्दर्भ क्या है इत्यादि ऐसे अनेक कारक हैं, जो यह तय करते हैं कि अमुक ड्रेस ठीक है या नहीं। अब सवाल यह कि कैसे पता लगे कि सही ड्रेस क्या है। कल्पना करने की कोशिश करें कि जहां आप जा रहे हैं, वहां लोगों की वेशभूषा क्या होगी। जिससे मिलने जा रहे हैं, वह कैसी ड्रेस में होगा। यदि वह व्यक्ति पदवी में बड़ा है तो आपकी वेशभूषा उसके बराबर या उससे अधिक फॉर्मल होनी चाहिए। यदि आप पदवी में छोटे लोगों से मिलने जा रहे हैं, तब आप थोड़ा सा कैजुअल भी हो सकते हैं। दूसरी बड़ी जरूरी चीज यह है कि कपड़े साफ हों, भली-भांति प्रेस किये हुए हों। बहुत ढीले या बहुत कसे कपड़ों में आप एक सफल, सकारात्मक और दमदार व्यक्ति नहीं लगेंगे।जैसलमेर जिला की वेश -भूष केसी है |

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