कच्छवाह वंश की वंशवली

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कच्छवाह वंश की वंशवली

आमेर के कच्छवाह स्वयं को श्रीराम के पुत्र कुश की सन्तान मानते है आमेर से प्राप्त शिलालेख में भी इन्हें ‘रघुकुल तिलक‘ के नाम से जाना गया है दूल्हेराय नामक व्यक्ति ने सर्वप्रथम कच्छवाह वंश की स्थापना की थी। 1137 ई. में बड़गूजरों को हराकर दूल्हेराय ने ढूंढाड राज्य को बसाया था दूल्हेराय ने सर्वप्रथम दौसा को अपनी राजधानी बनाया, जो इस राज्य की सबसे प्राचीन राजधानी थी दूल्हेराय ने इस राजधानी को मीणाओं से प्राप्त किया था दूल्हेराय ने रामगढ़ नामक स्थान पर जमुवामाता के मंदिर का निर्माण कराया तथा जमूवा माता को कच्छवाह वंश की कुलदेवी के रूप में स्थापित भी किया था ढूंढाड़ में प्राचीन रामगढ़ गुलाब की खेती के लि प्रसिद्ध था जिसके कारण “रामगढ़ को ढूंढास” का पुष्कर कहा गया दूल्हेराय ने बाद में रामगढ़ को जीतकर इसे राजधानी बनाया इस प्रकार दूल्हेराय के शासन की दो राजधानियां अस्तित्व में आयी दूल्हेराय के पश्चात् कोकिलदेव ने आमेर के मीणाओं को पराजित कर इस सम्पन्न भू-भाग को कच्छवाह वंश का एक अंग बनाया बाद में कोकिलदेव ने आमेर राज्य को राजधानी के रूप में सथापित किया राजा कोकिलदेव पश्चात् राजदेव नामक व्यक्ति ने आमेर के महलों का निर्माण कराया जिन्हें कदमीमहल कहा जाता था ये महल आमेर राज्य का कच्छवाह वंश के प्राचीन महल माने जाते थे इन महलों में कच्छवाह वंश के नवीन शासकों का राज्याभिषेक सम्पन्न होता था।

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कच्छवाह वंश इतिहास >
जनवरी 1562 ई. मे भारमल अकबर से मिला और अकबर की अधीनता स्वीकार की अकबर ने इस समय सुलहकुल की नीति अपनाई इस नीति के तहत् राजपूतों के साथ मित्रता स्थापित कर उन्हें अधीन करना व उनके प्रतिरोध करने पर उन्हे समाप्त कर देना था भारमल ने 6फरवरी 1562 को अपनी पुत्री हरखाबाई रूक्का बाई का विवाह सांभर में अकबर के साथ कर दिया हरखा बाई ने सलीम (जहांगीर) को जन्म दिया सलीम ने हरखाबाई को मरियम-उज्जयमानी की उपाधी प्रदान की मूगलों से वैवाहिक संबंध स्थापित करने वाला प्रथम राजपूत शासक था भारमल के पश्चात् उसके पुत्र भगवानदास व पौत्र मानसिं ने मूगलों की सेवा की अकबर ने भारमल को अमीर उल उमारा की उपाधि पदान की भगवानदास को 5000 का मनसब पद प्रदान किया।

कच्छवाह वंशसूर्यवंशी शाखा >
कछवाहा वंश सूर्यवंशी राजपूतों की एक शाखा है कुल मिलाकर बासठ वंशों के प्रमाण ग्रन्थों में मिलते हैं ग्रन्थों के अनुसार: अर्थात दस सूर्य वंशीय क्षत्रिय दस चन्द्र वंशीय बारह ऋषि वंशी एवं चार अग्नि वंशीय कुल छत्तिस क्षत्रिय वंशों का प्रमाण है बाद में भौमवंश नागवंश क्षत्रियों को सामने करने के बाद जब चौहान वंश चौबीस अलग अलग वंशों में जाने लगा तब क्षत्रियों के बासठ अंशों का प्रमाण मिलता है इन्हीं में से एक क्षत्रिय शाखा कछवाहा (कुशवाहा) निकली यह उत्तर भारत के बहुत से क्षेत्रों में फ़ैली।

कछवाहों की उत्पति कहाँ से और कैसे हुई >
मान्यता की यह कुल राम के पुत्र कुश से उत्पन्न हुवा है कछवाह वंश अयोध्या राज्य के सूर्यवंशी राजाओ की एक शाखा है भगवान श्री रामचन्द्र जी के ज्येष्ठ पुत्र कुश से इस वंश शाखा का विस्तार हुआ है अयोध्या राज्य पर कछवाहा वंश का शासन रहा है।
अयोध्या राज्य वंश में इक्ष्वाकु दानी हरिशचन्द्र सगर इनके नाम से सगर द्वीप जहाँ गंगासागर तीर्थ स्थल है पितृ भक्त भागीरथ गौ भक्त दिलीप रघु सम्राट दशरथ मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान रामचंद्र एवं उनके ज्येष्ठ पुत्र महाराज ”कुश” के वंशधर कछवाहा कहलाये।

नोट > कछवाहा वंश की ऐतिहासिक जानकारी काफी विस्तृत है हमने अपने इस पोस्ट में मुख्य पहलुओं पर ही जानकारी दी है फिर भी कोई महत्वपूर्ण जानकारी छूट गयी है तो हम उसके लिए क्षमाप्रार्थी हैं।

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