करौली का इतिहास

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करौली उत्तर भारत के राजस्थान राज्य का प्रमुख नगर और करौली ज़िले का मुख्यालय है, जो पूर्व में करौली राज्य की राजधानी था। करौली कस्बे की स्थापना 1348 ई. में यादव वंश के राजा अर्जुनपाल ने की थी। इसका मूलत: नाम कल्याणपुरी था, जो कल्याणजी के मन्दिर के कारण प्रसिद्ध था। इसको भद्रावती नदी के किनारे होने के कारण ‘भद्रावती नगरी’ भी कहा जाता था।

निर्माण : किंवदंतियों के अनुसार इस राज्य का निर्माण 995 ई. में भगवान कृष्ण के 88वें वंशज राजा बिजाई पाल जादोन द्वारा करवाया गया था। हालांकि आधिकारिक तौर पर करौली यदुवंशी, राजपूत राजा अर्जुनपाल द्वारा 1348 ई. में स्थापित किया गया।

महाराजा करौली सुप्रख्यात यदुवंश के है करौली राज्य की स्थापना यादववंश के महाराजा जिन्द्र्पाल यादव ने की है इसलिए कहा जा सकता है की करौली का अति प्राचीन इतिहास है पौराणिक कथानक से पता चलता है कि मथुरा के राजा यदु के पुत्र जिन्द्र्पाल के द्वारा अपनी राजधानी बियाना जो अभी भरतपुर में है को परिवर्तित कर करौली राज्य किया महाराज जिन्द्र्पाल यादव प्रपौत्र सन 995 में राजगद्दी पर बैठे तब बियाना का किला बनवाया गया वर्ष 1327 में महाराजा अर्जुनदेव ने राजगद्दी संभाली तब 21 वर्ष बाद नीन्दार पर अधिकार करने के बाद उन्होने मथुरा जिले कि 24 परगनों पर यदुवंश का ध्वज फहराया महाराज जिन्द्र्पाल का करौली राज्य का सपना 1348 में पूर्ण हुआ ओर करौली पर इस राजवंश की कई पुश्तों ने राज्य किया जिसमें महाराज गोपालसिंह यादव ने सन 1533 से 1569 तक राज्य किया ओर दिल्ली के सम्राट अकबर की अधीनता स्वीकार करके उनके कहने पर दौलताबाद में दाऊदखाँ से युद्ध कर उसे पराजित किया जिसपर सम्राट अकबर ने प्रसन्न होकर रणजीत नगारा भेंट किया जो अभी तक करौली में मौजूद होना बताया गया है।

दौलताबाद फतह होने पर अकबर ने महाराज गोपालसिंह यादव को अजमेर का किलेदार बना दिया तथा आगरा किले की नीव आपके द्वारा ही रखी गई थी ओर बहादुरपुर का किला आपने बनवाया था आपकी पीढ़ी में 6 पीढ़ी बाद महाराज धर्मपाल यादव हुये जो बड़े ही बहादुर थे ओर आए दिन मीणा समाज के लोगों द्वारा करौली राज्य को हथियाने का प्रयास होता तो आपकी तलवार उन्हे रोके रखती ओर करौली को राजधानी बनाए रखा हिण्डौन नगर करौली जिले की सबसे बडी नगरी है सम्भवतः यह भूमि हिरण्यकश्यप व भक्त प्रहलाद की कर्म भूमि रही है यहां पर आज भी नृसिंह मन्दिर, प्रहलाद कुण्ड, हिरण्यकश्यप के महल, बावड़ियों के अवशेष हैं यहां से कुछ दूरी पर कुण्डेवा, जगर, दानघाटी पौराणिक स्थान है जनश्रुतियो के अनुसार महाभारत कालीन हिडिम्बा नामक राक्षसी की कर्मस्थली भी यही क्षेत्र रहा था।

पुरानी देशी रियासत करौली से 23 किलोमीटर दक्षिण में अरावली पर्वत श्रृंखला के त्रिकूट पर्वत की चोटी पर बने कैलादेवी मंदिर का इतिहास भी पुराना है गोस्वामी केदारगिरी द्वारा 1114 ई0 में कैलादेवी की प्रतिमा की स्थापना किए जाने के बाद इस क्षेत्र के तत्कालीन यादवकुल के राजा ने कैलादेवी के साथ इसी मंदिर में प्रति स्थापित किया 1348 ई0 में करौली की स्थापना के बाद मंदिर की सार-संभाल करौली के यादवराजकुल द्वारा की जाने लगी अकबर के दौलतवाद विजय अभियान पर करौली नरेश गोपालदास के साथ जाने से पूर्व कैलादेवी की मनौती मानने पर विजयी होने का प्रसंग मॉ पर अटूट श्रद्वा से जुडा हुआ है कैलादेवी जहाँ शक्तिस्वरूपा है, वहीं उसका गण लांगुरिया भैरव स्वरूप है इसकी प्रतिभा देवी मंदिर के सामने बनी हुई है। मेले के अवसर पर गाये जाने वाले लोक गीत लांगुरिया को ही सम्बोधित करके गाये जाते है।

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