खंडेलवाल ब्राह्मणों की कुलदेवी कौन है – खंडेलवाल ब्राह्मणों की कुलदेवी कौन है, वैश्य में कौन कौन सी जाति आती हैं, ब्राह्मण कुलदेवी कौन है, ब्राह्मण में कौन कौन सी जाति आती है, खण्डेलवाल ब्राह्मण की कुलदेवी, खंडेलवाल ब्राह्मण, वैश्य समाज की उपजातियां, हल्दिया गोत्र जाति, वैश्य समाज के राजा, वैश्य समाज के महापुरुष, कानू जाति का इतिहास,
महर्षि ऋचिक के पौत्र और जगदग्नि के पुत्र परशुराम ने अपने पिता की आज्ञा से अपनी माता और भाइयों का सिर काट डाला था जिसके प्रायश्चित स्वरूप उन्होंने पैदल ही पृथ्वी का पर्यटन किया। समस्त पृथ्वी का परिभ्रमण करने के बाद वे अपने पितामह ऋचिक के आश्रम में गये। कुशल प्रश्न के बाद परशुराम ने अपनी इक्कीस बार की क्षत्रिय विजय की कहानी अपने पितामह को कह सुनाई जिसे सुनकर महर्षि ऋचिक अत्याधिक दुखी हुए। उन्होंने अपने पौत्र परशुराम को समझाया कि तुमने यह काम ठीक नहीं किया क्योंकि ब्राह्मण का कर्तव्य क्षमा करना होता है। क्षमा से ही ब्राह्मण की शोभा होती है। इक्कीस बार क्षत्रियों का वध करने से तुम्हारे जिस ब्राह्मणत्व का ह्रास हुए है उसकी पुन: प्राप्ति के लिए तुम्हें विष्णुयज्ञ करना चाहिए।
अपने पितामह की आज्ञा मानकर परशुराम ने अर्बकदांचल (अरावली पर्वत) की सुरम्य घाटियों में स्थित लोहार्गल तीर्थ में विष्णुयज्ञ का आयोजन किया। परशुराम के उस यज्ञ में कश्यप ने आचार्य और वशिष्ठ ने अध्वर्यु का कार्य सम्पादित किया। लोहार्गलतीर्थ के सन्निकटवर्ती मालवदा (मालावनत अथवा मालखेत) पर्वत शिखर पर आश्रम बनाकर रहने वाले भारद्वाज मानसोत्पन्न मधुच्छन्दादि ऋषिगण ऋत्विक थे।
यज्ञ समाप्ति के बाद परशुराम ने सभी सभ्यों को यथायोग आदर सत्कार पूर्वक यज्ञ की दक्षिणा दी। यज्ञ के ऋत्विक मधुच्छन्दादि ऋषियों ने यज्ञ की दक्षिणा लेने से अस्वीकार कर दिया जिससे यजमान परशुराम का चित्त खिन्न हो गया। परशुराम ने आचार्य कश्यप से कहा- ‘निमंत्रित मधुच्छन्दादि ऋषिगण यज्ञ की दक्षिणा नहीं लेना चाहते। उनके दक्षिणा नहीं लेने से मैं अपने यज्ञ को अपूर्ण मानता हूं, अत: आप उन्हें समझाएं कि वे दक्षिणा लेकर मेरे यज्ञ को सम्पूर्ण करें।‘
आचार्य कश्यप ने मधुच्छन्दादि ऋषियों को अपने पास बुलाकर कहा कि – आप लोगों को यज्ञ की दक्षिणा ले लेनी चाहिए क्योंकि दक्षिणा के बिना यज्ञ अपूर्ण समझा जाता है। कश्यप ऋषि की इस युक्तिसंगत बात को मधुच्छन्दादि ऋषियों ने मान लिया। कयश्प महर्षि ने परशुराम को सूचित किया कि कि – ‘मधुच्छन्दादि ऋषि यज्ञ की दक्षिणा लेने को तैयार हैं।‘ उस समय परशुराम के पास एक सोने की वेदी को छोड़कर कुछ नहीं बचा था। वे अपना सर्वस्व दान कर चुके थे। उन्होंने उसी वेदी के सात खंड (टुकड़े) किये। फिर सातों के साथ खंड कर प्रत्येक ऋषि को एक एक खंड दिया।
इस प्रकार सुवर्ण – वेदी के 49 खंड 49 ऋषियों को मिल गए। किन्तु मानसोपत्र मधुच्छन्दादि ऋषि संख्या में पचास थे। इसलिए एक ऋषि को देने के लिए कुछ न बचा तो सभी चिंतित हुए। उसी समय आकाशवाणी द्वारा उनको आदेश मिला कि – तुम लोग चिंता मत करो। यह ऋषि इन उनचास का पूज्य होगा इन उनचास कुलों में इनका कुल श्रेष्ठ होगा।
इस प्रकार यज्ञ की दक्षिणा में सोने की वेदी के खंड ग्रहण करने से मानसोत्पन्न मधुच्छन्दादि ऋषियों का नाम ‘खंडल अथवा खाण्डल’ पड़ गया। ये ही मधुच्छन्दादि ऋषि खांडल विप्र या खंडेलवाल जाति के प्रवर्तक हुए। इन्हीं की संतान भविष्य में खांड विप्र या खंडेलवाल ब्रह्मण जाति के नाम से प्रसिद्ध हुई। स्कंद पुराण के रेवा खंड भाग के अनुसार खांडल विप्र जाति पचास गोत्रों में आबंटित है।
खण्डेलवाल वैश्य समाज में 72 गौत्र हैं। आज समाज में गौत्र एक सूत्र का काम करता है और आजकल तो यह भी प्रथा प्रचालित हो गई कि व्यक्ति अपने नाम के आगे अपना उपनाम का उल्लेख भी करते है। अपने-अपने गौत्रों की कुल माताऐं अलग-अलग होती है। जिनके पूजन का बच्चे के जन्म से विवाह तक बहुत महत्व होता है। हमारे 72 गौत्रों में 37 भिन्न-भिन्न माताऐं है। जिनमे जीणमाता 13 गौत्रों की सुखण्ड अ भभूरो 7-7 गौत्रों में पूजक है। प्रति वर्ष् अश्रिवन की नवरात्रि मे अष्टमी के दिन इन देवियों का प्रत्येक घर मे पूजन का विद्यान है। इसके अतिरिक्त यद्यति मुण्डन भी कुल देवी के समक्ष ही होने का विधान हैं। लेकिन दुरी तथा बदलती हुई परिस्थितियों के कारण आजकल इसका कठिनता से पालन होना सम्भव नहीं रहा है। फिर भी इन देवियों का पूजन बडी श्रद्वा व पवित्रता के साथ किया जाता है। धार्मिक कार्यो मे इसका सबसे अधिक ध्यान रखा जाता है। विवाह मानव के जीवन का सबसे महत्पूर्ण संस्कार है तथा इस संस्कार के लिये भी गौत्र का बहुत महत्वपूर्ण है। विवाह के समय भी पहले चार गौत्र टालकर विवाह सम्बन्ध होते थे लेकिन आज बदलते हुए जमाने में स्वंय का तथा माता का गो्त्र टालकर विवाह किया जाता है
खण्डेलवाल समाज के गोत्रों की सूची
क्र.सं. – गौत्र – माता (देवी)
1. अटोरिया,(अटोरिया) सुरंड
2. आकड तिली देहड
3. आमेरिया आमिन
4. ओढ नावड.
5. कट्टा आंतन
6. कठोरिया भंवर कंठन
7. काइथवार(कायथवाल) जीन
8. काठ मित्तर
9. कासलीवार जीन
10. किलकिलिया नन्दभगोनो
11. कूलवार(कूलवाल) सुरंड
12. केदावत नावड
13. कोडिया (गोरेवाल) कनकस
14. खारवाल जीन
15. खूंटेटा कुपासल
16. गोंद्राजिया सुरंड
17. घीया बमूरी
18. जसोरिया बमूरी
19. जघींनिया सुरंड
20. झालानी धावड
21. टटार जीन
22. ठाकुरिया बमूरी
23. डंगायच सिकराय
24. डाँस बिनजिल
25. तमोलिया जीन
26. ताम्बी नागिन
27. तेाडकर(टोडवाल) आंतन
28. दुसाद जीन
29. धामानी स्ंतलवास
30. धोकरिया डावरि
31. नारायणवार बमूरी
32. नाटानी जीन
33. नैनामा कुरसंड
34. नैनीवार आंतन
35. पचलौरा स्रुरंड
36. पगूवाल मडेर
37. पाटोदिया जीन
38 पीतलिया बडवासिन
39 फरसोइया बमूरी
40 बटवारा समगरा
41 बडाइया सिरसा
42 बुडवारिया नागिन
43 वूसर सिरसा
44 भंडारिया जीन
45 भांगला(महता) सेतलबांस
46 भुकमारिया अरामिन
47 महरवाल चांवड
48 माठा बतवीर
49 मनिक बोहरा सारंगदे
50 मामोडिया सुरंड
51 माली सिरसा
52 मँगोलिया अमवासन
53 मांचीवाल सार
54 मेठी अभरल
55 राजोरिया सेतलवास
56 रावत औरल
57 लाभी जीन
58 वैद माखद
59 साखोरिया जीन
60 सामरिया चावड
61 साहरिया जीन
62 सिरोहिया समगरा
63 संगोदिया चावड
64 सेठी(सोनी) माखद
65 सौंखिया कुरसड
66 हल्दिया सुरंड
67 बनाउडी सार
68 बम्ब सावरदे
69 बजरगान कौलाइन
70 बावरिया सिरसा
71 बीमवार गीमवासनी
72 बढहरा जमबाघ
Conclusion:- दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हमने खंडेलवाल ब्राह्मणों की कुलदेवी कौन है के बारे में विस्तार से जानकारी दी है। इसलिए हम उम्मीद करते हैं, कि आपको आज का यह आर्टिकल आवश्यक पसंद आया होगा, और आज के इस आर्टिकल से आपको अवश्य कुछ मदद मिली होगी। इस आर्टिकल के बारे में आपकी कोई भी राय है, तो आप हमें नीचे कमेंट करके जरूर बताएं।
यह भी पढ़ें:- खंडेलवाल ब्राह्मणों की कुलदेवी कौन है
अगर हमारे द्वारा बताई गई जानकारी अच्छी लगी हो तो आपने दोस्तों को जरुर शेयर करे tripfunda.in आप सभी का आभार परघट करता है {धन्यवाद}
Contact With us | ||||||||
Join Our Telegram Channel | ||||||||
Latest Google Web Stories | ||||||||
Home Page |