खेजड़ली आन्दोलन कब हुआ

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 खेजड़ली दिवस क्यों मनाया जाता है

विश्व प्रसिद्ध खेजड़ली मेले में आई एक महिला ने एक ऐसा काम किया जिसका गुनगान पूरा बिश्नोई समाज कर रहा है जी हां हम बात कर रहे हैं 4 दिन पहले जोधपुर में हुए विश्व प्रसिद्ध खेजड़ली मेले की. जहां पारसी देवी नाम के महिला की करीब डेढ़ लाख रुपए की सोने की कंठी चोरी हो गई थी इस बात का पता जब मेले के आयोजन समिति और मंदिर के पुजारी को लगा तो उन्होंने समाज के लोगों से अपील कर डेढ़ लाख रुपए इकट्ठे किए और पारसी देवी को दे दिए |

लेकिन पारसी देवी ने 2 दिन बाद अपनी ओर से समिति की ओर से मिले पैसों में 5000 मिलाकर वापस आयोजन समिति को दिए इस पर पारसी देवी ने कहा कि ‘क्योंकि बिश्नोई समाज का यह विश्व स्तर का प्रसिद्ध मेला है और यहां आने जाने वाले हर श्रद्धालु की एक अलग ही आस्था है |

पारसी देवी ने कहा ‘ऐसे में मेले में अगर कोई भी घटना होती है तो समाज की बदनामी होती है इसलिए इस मेला स्थल पर सीसीटीवी कैमरे लगाया जाए और मुझे जो आप लोगों ने रकम दी है. वह यहां पर कैमरे लगाने के और दूसरे विकास कार्य के काम में लिया जाए |

गौरतलब है कि खेजड़ली मेले में हर साल हजारों की संख्या में बिश्नोई समाज के लोग इकट्ठा होते हैं और खेजड़ी वृक्ष के लिए शहीद होने वाले 363 लोगों को श्रद्धांजलि देने पहुंचते हैं इन 363 शहीदों की याद में हर वर्ष खेजड़ली गांव में मेला लगता है और भव्य आयोजन होता है पेड़ों की रक्षा 287 साल पहले जोधपुर से करीब 25 किमी दूर खेजड़ली में विश्नोई समाज के 363 लोगों ने अपनी जान दे दी थी |

खेजड़ली मेले में राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश सहित कई इलाकों से विश्नोई समाज के लोग अपने पूर्वजों की याद में इकट्ठे होते है मेले में गहनों से लकदक समाज की महिलाएं मंगल गीत गाती हैं जबकि पुरुष भी अपनी पारंपरिक वेशभूषा सफेद कपड़ों में शांति पाठ करते है |

इस मेले में पुलिस व्यवस्था बनी रहती है लेकिन इन सब के बावजूद भी कोई ना कोई घटना हो जाती है जिससे मेले में आने वाले लोगों पर इसका बुरा असर पड़ता है लेकिन इस बार हुई एक घटना के बाद पीड़िता ने आगे आकर जो पहल की उसने बिश्नोई समाज के साथ सभी लोगों के लिए एक मिशाल पेश की है जिससे समाज के लोगों की सोच बदल सकता है |

पारसी देवी की इस उसके निर्णय को बिश्नोई समाज के लोगों ने भी काफी सराहना की है उन्होंने कहा कि वाकई पारसी देवी की भावना एक अच्छी भावना है और सीसीटीवी कैमरे लगने से असामाजिक तत्वों पर नजर भी बनीं रहेगी. इसलिए वह लोग भी इस दिशा में काम करेंगे ताकि भविष्य में मेले के आयोजन के दौरान कोई अनहोनी भी हो तो कैमरे में रिकॉर्ड हो जाएगी |

‘खेजड़ली’ नामक स्थान जो राजस्थान के जोधपुर जिले में स्थित है वहाँ आज ही के दिन भादवा सुदी दशमी विक्रमी संवत 1787 (21 सितम्बर 1730) को 363 बिश्नोई स्त्री पुरुषो ने खेजड़ी के वृक्षों की रक्षार्थ अपने प्राणों का बलिदान कर दिया जिसमे 69 महिलाएं व 294 पुरुष थे इस बलिदान में बहुत से अल्पव्यस्क बालक बालिकाओं ने भी अपने प्राणों की बाजी लगा दी। विश्व में वृक्षों की खातिर एसी शहादत अन्यत्र देखने को नही मिली है।

1730 ईस्वी में जोधपुर रियासत के तत्कालीन महाराजा अभय सिंह ने नया महल बनाने का विचार किया। निर्माण कार्य हेतु लकड़ी की आवश्यकता थी मंत्री गिरधर दास भंडारी के कहने पर सैनिको श्रमिको को खेजडली गाँव में पेड़ काटने हेतु भेजा गया। गाँव के बिश्नोई लोग खेजड़ी के पेड़ो को जतन से पाल पोस रहे थे वे यह सहन नही कर सके की कोई एक भी खेजड़ी काटे। अमृता देवी बिश्नोई उनके पति रामू जी व उनकी बेटियों के प्रबल विरोध के कारण सैनिक प्रथम बार लोटने विवश हो गये किन्तु दोबारा पूरा लाव-लश्कर लेकर गिरधर दास भंडारी खेजडली गाँव पहुँच गया लेकिन तब तक खेजडली और इसके आस पास के 84 गाँवो के बिश्नोई पेड़ो की रक्षार्थ वहां इकट्ठे हो चुके थे।

भंडारी ने महाराज के हुक्म का हवाला देकर पेड़ काटने शुरू किये तो अमृता देवी पेड़ से लिपट गयी और बोली पेड़ से पहले कुल्हाड़ी मेरी गर्दन पर चलाओ। राजाज्ञा में अंधे सैनिको ने माँ अमृता की गर्दन धड़ से अलग कर दी उसके बाद उनकी तीनों पुत्रियाँ, पति रामुजी सहित 363 स्त्री पुरुष एक एक कर जालिमो के हाथो शहीद होने लगे और अंत में सैनिको ने भी हार मान ली क्यूंकि बहुत से बिश्नोई स्त्री पुरुष अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे।

सैनिको ने जोधपुर पहुँच कर पूरा वृत्तांत महाराजा अभय सिंह को कह सुनाया। अभय सिंह बहुत दुखी हुए और खेजडली पहुँच कर बिश्नोइयो से माफ़ी मांगी और ताम्रपत्र पर राज्यादेश जारी कर बिश्नोई समुदाय को सोंपा जिसमे यह उल्लेख था की बिश्नोई बहुल इलाको में आज से न तो कोई पेड़ काटेगा और न कोई शिकार करेगा।

खेजड़ली गाँव जिला जोधपुर –
खेझरली या खेजड़ली भारत के राजस्थान के जोधपुर जिले का एक गाँव है। कस्बे का नाम खेड़ी (प्रोसोपिस सिनारिया) पेड़ों से लिया गया है, जो गाँव में बहुतायत में थे। इस गाँव में 363 बिश्नोईयों को 1730 ई. में हरे पेड़ों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी थी।

चिपको की शुरुआत – पेड़ बचाओ आंदोलन
यह वह स्थान है जहाँ चिपको आंदोलन की उत्पत्ति भारत में हुई थी। वह मंगलवार का दिन था, काला मंगलवार खेजड़ली गाँव के लिए। 1730 ईसवी में भद्रा महीने (भारतीय चंद्र कैलेंडर) के 10 वें उज्ज्वल पखवाड़े के दिन अमृता देवी अपनी तीन बेटियों आसू, रत्नी और भागू बाई के साथ घर पर थीं। तभी अचानक उन्हें पता चला की मारवाड़ जोधपुर के महाराजा अभय सिंह के सैनिक उनके गांव खेजड़ी के पेड़ों को काटने आयें है।

खेजड़ी के पेड़ों की लकड़ियों का इस्तेमाल महाराजा अभय सिंह अपने नए महल के निर्माण में करना चाहते थे। थार रेगिस्तान में होने के बाद भी बिश्नोई गांवों में बहुत हरियाली थी और खेजड़ी के पेेेड़ बहुतायत में थे। इसलिए महाराजा अभय सिंह ने अपने आदमियों को खेजड़ी के पेड़ों से लकड़ियाँ प्राप्त करने का आदेश दिया था।

पेड़ों को बचाने के लिए अमृता देवी ने बलिदान दिया –
अमृता देवी ने राजा के सैनिकों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया, क्योंकि बिश्नोई धर्म में हरे पेड़ों को काटना मना है। इसलिए अमृता देवी ने पेड़ों को बचाने के लिए अपनी जान भी देनो को तैयार थीं।

बिश्नोई धर्म के गुरू जाम्भेश्वर भगवान –
गुरू जाम्भेश्वर भगवान (1451-1536) ने बिश्नोई धर्म के लिए 29 नियम का उपदेश दिया था। गुरू जाम्भेश्वर जाम्भोजी महाराज के नाम से प्रसिद्ध हुए। जाम्भोजी महाराज का जन्म पंवार गोत्र के क्षत्रिय कुल में हुआ। लोग उन्हे भगवान विष्णु का अवतार मानते है। उनके 120 शब्द प्रमाणिक रूप से उपलब्ध है, जिन्हें पांचवा वेद कहा जाता है। भगवान जाम्भोजी महाराज ने कहा था |

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