महाराजा राम सिंह कौन थे

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महाराजा राम सिंह कौन थे

महाराज रामसिंह मिर्ज़ा राजा जयसिंह के पुत्र थे इनकी माता का नाम चौहान रानी आनंद कुंवर था रामसिंह की माँ उनको पिता की तरह विद्वान् और पराक्रमी बनाना चाहती थीं इसलिए उन्होंने रामसिंह को शिक्षा के उत्कृष्ट केंद्र वाराणसी में अध्ययन करने के लिए भेज दिया था।

महाराजा राम सिंह :-
यहाँ क्रांतिकारियों ने महाराजा राम सिंह द्वितीय को 6 महीने तक उन्ही के महल में कैद रखा।
1876 में जब वेल्स के राजकुमार यहां आए तो महाराजा राम सिंह के आदेश से पूरे शहर को गुलाबी रंग से रंग दिया |
सिंह जोधपुर, योगिराज अरविन्द, स्वामी करपात्री जी, सदाशिव माधव राव गोलवलकर, महाराजा राम सिंह सीतामऊ, महाराजा राणा भवानी सिंह दांताभावानगढ़, भारत के प्रथम राष्ट्रपति बाबू राजेंद्रप्रसाद आदि से आपका अति-स्नेह सम्बन्ध था।
ब्लू पॉटरी की शुरुआत तब हुई थी जब महाराजा राम सिंह द्वितीय ने आगरा से कुछ कारीगरों को जयपुर बुलवाया था ताकि वे यहां के कारीगरों को ब्लू पॉटरी की कला सिखा सकें।
प्रसिद्ध देश भक्त जमनालाल बजाज, प. हीरालाल शास्त्री, रावल नरेन्द्र सिंह जोबनेर, महाराव उम्मेद सिंह कोटा, महाराजा उम्मेद सिंह जोधपुर,योगिराज अरविन्द, स्वामी करपात्री जी, सदाशिव माधव राव गोलवलकर, महाराजा राम सिंह सीतामऊ, महाराजा राणा भवानी सिंह दांताभावानगढ़, भारत के प्रथम राष्ट्रपति बाबू राजेंद्रप्रसाद आदि से आपका अति-स्नेह सम्बन्ध था।

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महाराजा रामसिंह का इतिहास :-
महाराजा रामसिंह जयपुर स्टेट के एक प्रसिद्ध भूपाल हो गये हैं जो कि एक बार घोड़े पर बैठकर अकेले ही घूमने को निकल पड़े घूमते-घूमते बहुत दूर जंगल में पहुँच गये तो दोपहर की गर्मी से उन्हें प्यास लग आई एक कुटिया के समीप पहुँचे जिसमें बुढ़िया अपनी टूटी सी चारपाई पर लेटी हुयी थी बुढ़िया ने जब उन्हें अपने द्वार पर आया हुआ देखा तो वह उनके स्वागत के लिए उठ बैठी और उन्हें आदर के साथ चारपाई पर बैठाया। राजा बोले कि माताजी मुझे बड़ी जोर से प्यास लग रही है अत: थोड़ा पानी हो तो पिलाइये बुढिया ने अतिथि सत्कार को दृष्टि में रखते हुए उन्हें निरा पानी पिलाना उचित न समझा।
इसलिये अपनी कुटिया के पीछे होने वाले अनार के पेड़ पर से दो अनार तोड़कर लायी और उन्हें निचोड़ कर रस निकाला तो एक डबल गिलास भर गया जिसे पीकर राजा साहब तृप्त हो गये कुछ देर बाद उन्होंने बुढ़िया से पूछा- तुम इस जंगल में क्यों रहती हो तथा तुम्हारे कुटुम्ब में और कौन हैं जवाब मिला कि यहां जंगल में भगवान भजन अच्छी तरह से हो जाता है मैं हूं और मेरे एक लड़का है जो कि जलाने के लिये जंगल में लकड़ियां काट लाने को गया हुआ है यह जमीन जो मेरे पास बहुत दिनों से है पहले ऊसर थी अतः सरकार से दो आने बीघे पर मुझे मिल गई थी जिसको भगवान के भरोसे पर परिश्रम करके हमने उपजाऊ बना ली है अब इसमें खेती कर लेते हैं जिससे हम दोनों मां बेटों का गुजर बसर हो जाता है एवं आए हुए आप सरीखे पाहुणे का अतिथि सत्कार बन जाता है यह सुन राजा का मन बदल गया सोचने लगे ऐसी उपजाऊ जमीन क्यों दो आने बीघे पर छोड़ दी जाये बस फिर क्या था उठकर चल दिये और जाकर दो रुपये बीघे का परवाना लिखकर भेज दिया अब थोड़े ही दिनों में अनार के जो पेड़ उस खेत में लगाये हुए थे वे सब सूखे से हो गये और वहां पर अब खेती की उपज भी बहुत थोड़ी होने लगी। बुढ़िया बेचारी क्या करें लाचार थी।

जिस समय जोधपुर से निष्कासित महाराजा रामसिंह को महाराजाधिराज बखतसिंह के निधन का समाचार मिला, उस समय वह मंदसौर में था उसके भाग्य से उन्हीं दिनों पेशवा बालाजी बाजीराव ने अपने छोटे भाई रघुनाथ राव, जयप्पा सिंधिया तथा मल्हारराव होलकर को उत्तर भारत की रियासतों से चौथ वसूली के लिये भेजा रामसिंह ने इस सुनहरे अवसर को पहचाना और मल्हारराव होलकर से सम्पर्क साधा ताकि होलकर उसे फिर से जोधपुर के तख्त पर बैठा दे। होलकर ने यह कार्य जयप्पा सिंधिया को सौंपा।
जयप्पा अपने छोटे भाई दत्ताजी सिन्धिया के साथ दिल्ली से नारनौल, रेवाड़ी, सांभर होता हुआ अजमेर की ओर बढ़ा अजमेर उन दिनों जोधपुर के राठौड़ों के अधिकार में था।
रामसिंह, जयप्पा सिन्धिया के साथ लगा हुआ था उसने मार्ग में किशनगढ़ तथा आसपास के परगनों को लूट लिया कुछ दिन अजमेर में विश्राम करके ये सेनाएँ पुष्कर आ गईं यहाँ से रामसिंह ने अपने एक दूत को तीव्रगामी अश्व देकर महाराजा विजयसिंह के पास भिजवाया।

राजस्थान के सम्राट

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