ममता बनर्जी कौन है

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ममता बनर्जी कौन है

ममता बनर्जी का जन्म एवं परिचय –

पूरा नाम ममता बनर्जी
अन्य नाम दीदी
पेशा भारतीय राजनेता
राजनीतिक पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस एवं ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस
राजनीतिक पार्टी का चिन्ह पंजा, एवं जोरा घास फूल
जन्म दिवस  5 जनवरी 1955
जन्म स्थान कोलकाता, पश्चिम बंगाल, भारत
गृहनगर कोलकाता, पश्चिम बंगाल, भारत
धर्म हिन्दू
जाति ब्राह्मण
पसंद वाकिंग एवं पेंटिंग करना
पसंदीदा पास टाइम पढ़ना, लिखना और संगीत सुनना आदि
वैवाहिक स्थिति अविवाहित
नेट वर्थ 30 लाख रूपये
राशि मकर राशि

व्यक्तिगत जीवन –

ममता बनर्जी एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार में पली-बढ़ी और जब वह छोटी थीं, तभी उनके पिता प्रोमिलेश्वर बनर्जी की मृत्यु हो गई थी ममता बनर्जी की माँ गायत्री देवी एक स्कूल में शिक्षिका थीं ममता बनर्जी पूरी जिंदगी अविवाहित रहना चाहती थीं ममता बनर्जी ने जोगमाया देवी कॉलेज से इतिहास में एक सम्मानजनक स्नातक की डिग्री प्राप्त की और कोलकाता विश्वविद्यालय से इस्लामी इतिहास में मास्टर की डिग्री हासिल की तथा साथ ही श्री शिक्षायतन कॉलेज से शिक्षा की डिग्री और जोगेश चंद्र चौधरी लॉ कॉलेज कोलकाता से कानून की डिग्री प्राप्त की। ममता बनर्जी ने अपने राजनैतिक जीवन में एक सुगम जीवन शैली को बनाए रखा है और वह ज्यादातर साधारण पारंपरिक बंगाली सूती साड़ी में दिखाई देती हैं और एक सूती बैग उनके कंधे पर लटका रहता है तथा उनको और कोई सौंदर्य प्रसाधन या गहनों का शौक नहीं है।

जानिए ममता बनर्जी की शिक्षा –

इनकी प्राम्भिक शिक्षा कोलकाता के देश बंधू शिशु विद्यालय में संपन्न हुई इसके पश्चात कोलकाता में जोगमाया देवी कालेज से इतिहास में स्नातक की पढाई पूरी करने के बाद शिक्षा की डिग्री हासिल किये इतना ही नहीं इसके पश्चात इन्होने ने कानून की पढाई के लिए कोलकाता के जोगेस चंद्र चौधरी लॉ कालेज में दाखिला लिया और वही से वकालत की डिग्री हासिल की बता दे की जब वकालत की पढाई कर रही थी तभी उन्होंने उस समय राजनीती में शामिल होकर छात्र परिसद यूनियन की स्थापना की इस प्रकार अपनी पढाई पूरी करने के पश्चात कोलकाता में रहकर ही राजनितिक करियर में प्रवेश की

ममता बनर्जी का राजनीतिक करियर –

ममता बनर्जी ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत बहुत कम उम्र में की थी और वह शुरू से ही कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गई थीं 1976 से 1980 तक ममता जी पश्चिम बंगाल की महिला कांग्रेस (i) की महासचिव थीं इसके बाद, 1984 के लोकसभा चुनावों में, ममता जी ने पश्चिम बंगाल के जादवपुर संसदीय क्षेत्र से जीत हासिल की,
एक दिग्गज नेता सोमनाथ चटर्जी को पीछे छोड़ दिया और वह वहां सबसे कम उम्र की सांसद बन गईं 1980 के दशक में, ममता बनर्जी भारतीय युवा कांग्रेस की महासचिव बनीं 1989 में हुए लोकसभा चुनावों में, उन्होंने अपना जादवपुर संसदीय क्षेत्र खो दिया हालाँकि, 1991 में, ममता बनर्जी जी ने चुनाव लड़कर दक्षिण कोलकाता संसदीय क्षेत्र से जीत हासिल की। और इस पद पर ममता जी बहुत लंबे समय तक यानि 2009 तक रहीं।
1991 में, जब हमारे देश के प्रधान मंत्री, पी.वी. नरसिम्हा राव थे उस दौरान ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल राज्य में मानव संसाधन विकास, युवा और खेल और महिला और बाल विकास मंत्रालय में कार्यरत थीं और उस दौरान वह पहली महिला थीं जिन्हें इन सभी पदों पर बैठाया गया था जब वह खेल मंत्री के रूप में सेवारत थीं, उन्होंने देश में खेल प्रणाली में सुधार करने के लिए एक प्रस्ताव रखा, जिसके कारण उन्होंने सरकार की उदासीनता के खिलाफ भी विरोध किया।

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ममता बनर्जी के विवाद और आलोचनाएँ –

दिसंबर 1998 में, ममता जी ने लोकसभा में एक कॉलर पकड़कर डोगरा प्रसाद सरोज जी को घसीटते हुए, समाजवादी पार्टी की सांसद, महिलाओं के लिए आरक्षण बिल के विरोध में प्रदर्शन किया, जिसके कारण वह एक संगठन से घिरी हुई थीं बहुत सारे विवाद। था।
ममता बनर्जी ने एक बार भारत में अपराधों की बढ़ती संख्या पर टिप्पणी की थी जिसके कारण उनकी काफी आलोचना हुई थी वास्तव में, ममता बनर्जी ने 2012 में कहा था कि ‘जब लड़के और लड़कियां एक साथ घूमते थे, तो उन्हें पकड़ा जाता था और उस समय उनके माता-पिता द्वारा उन्हें फटकार लगाई जाती थी, लेकिन अब सब कुछ खुले तौर पर होता है, ऐसा माना जाता है कि यह एक खुले बाजार की तरह है विकल्प ‘इस टिप्पणी को बहुत आलोचना का सामना करना पड़ा।
अक्टूबर 2016 में, पश्चिम बंगाल में ममता सरकार ने 25,000 परिवारों द्वारा दुर्गा पूजा की प्रथा के खिलाफ आपत्तियों के कारण दुर्गा पूजा पर प्रतिबंध लगा दिया था उन्होंने कहा कि मुहर्रम के त्योहार के दौरान दुर्गा पूजा से मुसलमानों की भावनाएं आहत हो सकती हैं हालांकि, इस फैसले को उच्च न्यायालय ने बदल दिया और इसे ‘अल्पसंख्यकों को खुश करने के लिए बोली’ के रूप में चिह्नित किया गया।
बंगाली पाठ्यपुस्तक में ‘इंद्रधनुष’ शब्द को ‘रामधोनु’ शब्द के रूप में जाना जाता था, जिसका अर्थ है ‘राम का धनुष’। लेकिन 2017 में, रामधोनू शब्द को रोंग्धोनू शब्द में बदल दिया गया, जिसका अर्थ है धनुष का रंग इसके कारण देश के कट्टरपंथियों के बीच काफी विवाद हुआ था
ममता बनर्जी ने हाल के आम चुनाव शुरू होने से पहले अपने कार्यकाल के दौरान भारत की संघीय प्रणाली को चुनौती दी, जब उन्होंने सारदा समूह के वित्तीय घोटाले की जांच के लिए कोलकाता पहुंचे सीबीआई अधिकारियों को गिरफ्तार करने का आदेश दिया उस दौरान ममता ने काफी ड्रामा किया, जिसके कारण वह आम चुनाव में भी सुर्खियों में दिखाई देती हैं। कुछ दिन पहले ही बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह पश्चिम बंगाल में रैली करने के लिए पहुंचे थे, उस दौरान बंगाल में काफी विवाद फैला था और उसमें भी ममता बनर्जी का नाम सामने आया था
इस तरह ममता बनर्जी को अब तक बहुत सारे विवादों से घिरा हुआ देखा गया है आगे देखना बेहद दिलचस्प होगा कि चुनाव नतीजों के बाद ममता बनर्जी की राजनीति क्या रुख लेती है।

ममता बनर्जी जी मुख्यमंत्री के रूप में –

फिर सन 2011 में पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव हुए उस समय ममता जी की पार्टी ने भारत की कम्युनिस्ट पार्टी के शासन को ख़त्म कर दिया, जोकि 34 साल से उस राज्य में शासन कर रहा था. उसी वर्ष ममता बनर्जी जी पश्चिम बंगाल राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी. सितंबर सन 2012 में ममता जी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के साथ अपना समर्थन पूरी तरह से छोड़ दिया. और इस पद पर आसीन रहकर इन्होंने कई सारे ऐसे कार्य किये जिसके चलते पश्चिम बंगाल के लोग इन्हें ‘दीदी’ के नाम से जानने लगे. अगले विधानसभा चुनाव जोकि साल 2016 में हुए थे, उसमें भी ममता जी ने फिर से जीत हासिल की और वे एक बार फिर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बन गई. और इस तरह से वे अब तक इस पद पर बनी हुई हैं.

राजनैतिक जीवन –

ममता बनर्जी ने अपने राजनैतिक सफ़र की शुरुआत कांग्रेस पार्टी के सदस्य के रूप में की थी युवा आयु में ही वे राज्य महिला कांग्रेस की महासचिव चुन ली गयीं (1976-1980) सन 1984 में कोलकाता के जादवपुर लोक सभा क्षेत्र से उन्होंने अनुभवी साम्यवादी नेता सोमनाथ चटर्जी के खिलाफ चुनाव लड़ा और ये चुनाव जीत कर वे सबसे युवा भारतीय सांसद बन गई उन्होंने अखिल भारतीय युवा कांग्रेस के महासचिव पद पर भी काम किया 1991 में नरसिम्हाराव की सरकार में वे मानव संसाधन, युवा कल्याण – खेलकूद और महिला-बाल विकास विभाग की राज्यमंत्री भी रहीं उनके द्वारा प्रस्तावित खेल–कूद विकास योजना को सरकार की बहाली न मिलने पर उन्होंने विरोध के तौर पर अपना इस्तीफ़ा दे दिया ममता बनर्जी ने काफी स्पष्ट शब्दों में कहा की उन्हें स्वच्छ कांग्रेस चाहिए सन 1996 में केन्द्रीय मंत्री रहते हुए उन्होंने अपनी ही सरकार द्वारा पेट्रोल की कीमत बढ़ाये जाने पर विरोध व्यक्त किया था कांग्रेस से मतभेद के चलते उन्होंने कांग्रेस पार्टी छोड़कर अपना अलग दल बनाने का निश्चय किया और आल इंडिया तृणमूल कांग्रेस की स्थापना की उनकी पार्टी ने काफी कम समय में बंगाल की साम्यवादी सरकार के खिलाफ कड़ी चुनौती खड़ी कर दी।
सन 1999 में ममता बनर्जी एन.डी.ए. गठबंधन सरकार में शामिल हो गयीं और उन्हें केन्द्रीय रेल मंत्री के पद पर नियुक्त किया गया इसके साथ ही उन्होंने पश्चिम बंगाल की जनता से किए हुए ज्यादातर वादे भी पूरे किए वित्तीय वर्ष 2000-2001 के दौरान उन्होंने 19 नई ट्रेनों की घोषणा की। उन पर लगे कुछ आरोपों के चलते 2001 में उन्होंने एन.डी.ए. सरकार से भी गठबंधन तोड़ दिया लेकिन 2004 में वे फिर से एन.डी.ए. से जुड़ीं और कोयला और खदान मंत्री का पद संभाला 2006 के विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। ये उनके पार्टी की सबसे बड़ी असफलता थी इस के पश्यात तृणमूल कांग्रेस ने यूपीए सरकार से गठबंधन किया और ममता बनर्जी फिर एक बार रेल मंत्री बनाई गई सन 2011 के विधानसभा चुनाव उनके राजनैतिक सफ़र में एक नया मोड़ ले कर आए चुनाव में तृणमूल कोंग्रेस की जीत के साथ ही 20 मई 2011 को ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल की पहली महिला मुख्य मंत्री बन गई।

कांग्रेस से शुरू की राजनीति –

ममता का राजनीतिक सफ़र 21 साल की उम्र में साल 1976 में महिला कांग्रेस महासचिव पद से शुरू हुआ था और वर्ष 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए लोकसभा चुनाव में पहली बार मैदान में उतरीं ममता ने माकपा के दिग्गज नेता सोमनाथ चटर्जी को पटखनी देते हुए धमाके के साथ अपनी संसदीय पारी शुरू की थी |
राजीव गांधी के प्रधानमंत्री रहने के दौरान उनको युवा कांग्रेस का राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया कांग्रेस-विरोधी लहर में वर्ष 1989 में वे लोकसभा चुनाव हार गई थीं |
लेकिन ममता ने हताश होने की बजाय अपना पूरा ध्यान बंगाल की राजनीति पर केंद्रित कर लिया. वर्ष 1991 के चुनाव में वे लोकसभा के लिए दोबारा चुनी गईं उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा उस साल चुनाव जीतने के बाद पीवी नरसिंह राव मंत्रिमंडल में उन्होंने युवा कल्याण और खेल मंत्रालय का जिम्मा संभाला |

राजस्थान के सम्राट

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