मेघवाल समाज की कितनी जातियां हैं

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मेघवाल (Meghwal) भारत और पाकिस्तान में पाया जाने वाला एक जातीय समुदाय है इन्हें मेघ, मेघवार (Megh or Meghwar) और बलाई के नाम से भी जाना जाता है. कुछ स्थानों पर इन्हें गणेशिया, मेघबंसी, मिहाग, राखेसर, राखिया और रशिया आदि नामों से भी जाना जाता है जीवन यापन के लिए यह अपने पारंपरिक व्यवसाय खेती, पशुपालन और बुनाई पर निर्भर हैं मेघवाल समुदाय कढ़ाई और कपड़ा उद्योग में अपने योगदान के लिए जाना जाता है.आइये जानते हैं, मेघवाल जाति का इतिहास, मेघवाल शब्द की उत्पति कैसे हुई |

मेघवाल किस कैटिगरी में आते हैं –
आरक्षण प्रणाली के अंतर्गत इन्हें राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर में अनुसूचित जाति (Scheduled Caste, SC) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है |

मेघवाल कहां पाए जाते हैं –
यह मुख्य रूप से उत्तर-पश्चिम भारत में निवास करते हैं. पाकिस्तान में भी इनकी छोटी आबादी है. भारत में यह मुख्य रूप से राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर में पाए जाते हैं |

मेघवाल धर्म और उप-विभाजन –
अधिकांश मेघवाल हिंदू धर्म का पालन करते हैं मेघ ऋषि, कबीर, रामदेव जी और बंकर माताजी इनके प्रमुख देवी देवता हैं, जिनकी यह पूजा करते हैं. एक सिद्धांत के मुताबिक, भारत पर मुस्लिम आक्रमण के दौरान, राजपूत, चरण, ब्राह्मण और जाट सहित कई उच्च जातियों के लोग भांभी जाति में शामिल हो गए. इसके कारण, मेघवाल समुदाय पांच उप समूहों में विभाजित हो गया- अडू या मिश्रित भांबी, राजपूतों संयुक्त मारू भांबी, चरणों से युक्त चरणिया भांबी, पालीवाल ब्राह्मणों से युक्त बामणिया भांबी, जाटों से युक्त जटा भांबी. मेघवालों के इन उप जातियों में सांस्कृतिक विभिन्नता पाई जाती है. उदाहरण के तौर पर; जटा भांबी, बामणिया भांबी और चरणिया भांबी जैसे मेघवाल समुदाय की उपजातियां आपस में विवाह नहीं करते हैं.
वहीं, अडू भांबी और मारू भांबी एक दूसरे से निकटता से जुड़े हुए हैं और आपस में अंतर्विवाह करते हैं. हालांकि, अपनी पिछली पहचान के बारे में जागरूक होने के कारण, यह अपने पुराने रीति-रिवाजों, परंपराओं और प्रथाओं को बनाए रखे हैं. कच्छ गुजरात में निवास करने वाले मेघवाल चार उप समूहों में विभाजित हैं-महेश्वरी, चरणिया, मरमारा और गुजर राजस्थान में मेघवालों को प्रभावशाली पिछड़ी जातियों में से एक माना जाता है. इस कारण बलाली और बुनकर समुदायों ने भी मेघवाल नाम का उपयोग करना शुरू कर दिया है |

मेघवाल की उत्पत्ति कैसे हुई –
मेघवार शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के शब्द “मेघ” और हिंदी के शब्द “वार” से हुई है. मेघ का अर्थ होता है-“बादल और बारिश”. वार का अर्थ होता है-“समूह, पुत्र और बच्चा” इस तरह से, मेघवार का शाब्दिक अर्थ है-“बारिश और बादल का बच्चा या पुत्र”. मेघवाल या मेघवाल शब्द मेघ वंश से संबंधित लोगों को दर्शाता है. इनकी मान्यता के अनुसार, यह मेघ ऋषि के वंशज होने का दावा करते हैं ऋषि मेघ एक सिद्ध संत थे जो प्रार्थना के माध्यम से बादलों से बारिश लाने की शक्ति रखते थे |

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