महाराणा प्रताप का जीवन परिचय, अकबर से लड़ाई, एक चेतक घोड़ा था महान, महाराणा प्रताप: एक महान व्यक्तित्व, हल्दीघाटी का युद्ध, महाराणा प्रताप: विद्वान तथा कवि, महाराणा प्रताप के बारे में कुछ रोचक जानकारी, महाराणा प्रताप के हाथी की कहानी, महाराणा प्रताप कौन थे,
महाराणा प्रताप कौन थे
राणा प्रताप का सामान्य परिचय –
जन्म तथा परिचय राजस्थान के कुम्भलगढ़ में राणा प्रताप का जन्म सिसोदिया राजवंश के महाराणा उदयसिंह एवं माता रानी जीवत कँवर के घर 9 मई, 1540 ई. को हुआ था रानी जीवत कँवर का नाम कहीं-कहीं जैवन्ताबाई भी उल्लेखित किया गया है वे पाली के सोनगरा राजपूत अखैराज की पुत्री थीं प्रताप का बचपन का नाम ‘कीका’ था। मेवाड़ के राणा उदयसिंह द्वितीय की 33 संतानें थीं उनमें प्रताप सिंह सबसे बड़े थे स्वाभिमान तथा धार्मिक आचरण उनकी विशेषता थी प्रताप बचपन से ही ढीठ तथा बहादुर थे बड़ा होने पर वे एक महापराक्रमी पुरुष बनेंगे, यह सभी जानते थे सर्वसाधारण शिक्षा लेने से खेलकूद एवं हथियार बनाने की कला सीखने में उनकी रुचि अधिक थी।
महाराणा प्रताप व चेतक का इतिहास –
क्र जीवन परिचय बिंदु – प्रताप जीवन परिचय
1. पिता – राणा उदय सिंह
2. माता – जयवंता बाई जी
3. पत्नी – अजबदे
4. जन्म – 9 मई 1540
5. मृत्यु – 29 जनवरी 1597
6. पुत्र – अमर सिंह
7. घोड़ा – चेतक
राज्याभिषेक –
महाराणा प्रताप के पिता उदय सिंह अपनी मृत्यु से पहले बेटे जगमल को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था जो उनकी सबसे छोटी पत्नी से थे। वह प्रताप सिंह से छोटे थे जब पिता ने छोटे भाई को राजा बना दिया तो अपने छोटे भाई के लिए प्रताप सिंह मेवाड़ से निकल जाने को तैयार थे लेकिन सरदारों के आग्रह पर रुक गए मेवाड़ के सभी सरदार राजा उदय सिंह के फैसले से सहमत नहीं थे सरदार और आम लोगों की इच्छा का सम्मान करते हुए प्रताप सिंह मेवाड़ का शासन संभालने के लिए तैयार हो गए 1 मार्च, 1573 को वह सिंहासन पर बैठे।
अकबर से लड़ाई –
उन दिनों दिल्ली में सम्राट अकबर का राज था, जो भारत के सभी राजा-महाराजाओं को अपने अधीन कर मुगल साम्राज्य का ध्वज फहराना चाहता था लेकिन महाराणा प्रताप ने मुगलों की बात ना मानते हुए खुद को राजसी वैभव से दूर रखा और अपने राज्य की स्वतंत्रता के लिए निरंतर लड़ाई करते रहे 1576 में हल्दीघाटी में महाराणा प्रताप और अकबर के बीच ऐसा युद्ध हुआ जो पूरे विश्व के लिए आज भी एक मिसाल है अभूतपूर्व वीरता और मेवाड़ी साहस के चलते मुगल सेना के दांत खट्टे कर दिए और सैकड़ों अकबर के सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया गया।
हल्दीघाटी का युद्ध –
हल्दीघाटी का युद्ध भारत के इतिहास की एक मुख्य कड़ी है यह युद्ध 18 जून 1576 को लगभग 4 घंटों के लिए हुआ जिसमे मेवाड और मुगलों में घमासान युद्ध हुआ था महाराणा प्रताप की सेना का नेतृत्व एक मात्र मुस्लिम सरदार हाकिम खान सूरी ने किया और मुग़ल सेना का नेतृत्व मानसिंह तथा आसफ खाँ ने किया था इस युद्ध में कुल 20000 महारण प्रताप के राजपूतों का सामना अकबर की कुल 80000 मुग़ल सेना के साथ हुआ था जो की एक अद्वितीय बात है।
कई मुश्किलों/संकटों का सामना करने के बाद भी महारण प्रताप ने हार नहीं माना और अपने पराक्रम को दर्शाया इसी कारण वश आज उनका नाम इतहास के पन्नो पर चमक रहा है कुछ इतिहासकार कुछ ऐसा मानते हैं कि हल्दीघाटी के युद्ध में कोई विजय नहीं हुआ परन्तु अगर देखें तो महाराणा प्रताप की ही विजय हुए है अपनी छोटी सेना को छोटा ना समझ कर अपने परिश्रम और दृढ़ संकल्प से महाराणा प्रताप की सेना नें अकबर की विशाल सेना के छक्के छुटा दिए और उनको पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया।
घोड़ा चेतक –
महाराणा प्रताप की वीरता के साथ साथ उनके घोड़े चेतक की वीरता भी विश्व विख्यात है चेतक बहुत ही समझदार और वीर घोड़ा था जिसने अपनी जान दांव पर लगाकर 26 फुट गहरे दरिया से कूदकर महाराणा प्रताप की रक्षा की थी हल्दीघाटी में आज भी चेतक का मंदिर बना हुआ है|
राजस्थान के कई परिवार अकबर की शक्ति के आगे घुटने टेक चुके थे, किन्तु महाराणा प्रताप अपने वंश को कायम रखने के लिये संघर्ष करते रहे और अकबर के सामने आत्मसर्मपण नही किये जंगल-जंगल भटकते हुए तृण-मूल व घास-पात की रोटियों में गुजर-बसर कर पत्नी व बच्चे को विकराल परिस्थितियों में अपने साथ रखते हुए भी उन्होंने कभी धैर्य नहीं खोया पैसे के अभाव में सेना के टूटते हुए मनोबल को पुनर्जीवित करने के लिए दानवीर भामाशाह ने अपना पूरा खजाना समर्पित कर दिया तो भी, महाराणा प्रताप ने कहा कि सैन्य आवश्यकताओं के अलावा मुझे आपके खजाने की एक पाई भी नहीं चाहिए अकबर के अनुसारः- महाराणा प्रताप के पास साधन सीमित थे, किन्तु फिर भी वो झुका नही, डरा नही।
महाराणा प्रताप के बारे में कुछ रोचक जानकारी –
महाराणा प्रताप एक ही झटके में घोड़े समेत दुश्मन सैनिक को काट डालते थे जब इब्राहिम लिंकन भारत दौरे पर आ रहे थे तब उन्होने अपनी माँ से पूछा कि- हिंदुस्तान से आपके लिए क्या लेकर आए तब माँ का जवाब मिला- ”उस महान देश की वीर भूमि हल्दी घाटी से एक मुट्ठी धूल लेकर आना, जहाँ का राजा अपनी प्रजा के प्रति इतना वफ़ादार था कि उसने आधे हिंदुस्तान के बदले अपनी मातृभूमि को चुना ” लेकिन बदकिस्मती से उनका वो दौरा रद्द हो गया था “बुक ऑफ़ प्रेसिडेंट यु एस ए ‘ किताब में आप यह बात पढ़ सकते हैं
महाराणा प्रताप के भाले का वजन 80 किलोग्राम था और कवच का वजन भी 80 किलोग्राम ही था|कवच, भाला, ढाल, और हाथ में तलवार का वजन मिलाएं तो कुल वजन 207 किलो था।
महाराणा प्रताप की मृत्यु –
प्रताप एक जंगली दुर्घटना के कारण घायल हो जाते हैं 29 जनवरी 1597 में प्रताप अपने प्राण त्याग देते हैं इस वक्त तक इनकी उम्र केवल 57 वर्ष थी आज भी उनकी स्मृति में राजस्थान में महोत्सव होते हैं उनकी समाधी पर लोग श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं
प्रताप के शौर्यता से अकबर भी प्रभावित था प्रताप और उनकी प्रजा को अकबर सम्मान की दृष्टि से देखते थे इसलिये हल्दीघाटी के युद्ध के दौरान उनकी सेना में वीरगति को प्राप्त होने वाले सैनिकों एवम सामंतों को हिन्दू रीती अनुसार श्रद्धा के साथ अंतिम विदा दी जाती थी
राजस्थान के सम्राट |
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