नागपंचमी क्यों मनाई जाती है

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नागपंचमी क्यों मनाई जाती है

हिंदू पंचांग अनुसार उत्तर भारत में नाग पंचमी का त्योहार सावन शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। मान्यतानुसार इस दिन सांपों के 12 स्वरूपों की पूजा की जाती है और नाग देवता को दूध चढ़ाया जाता है। सांप भोलेनाथ के प्रिय माने जाते हैं। इसलिए इस दिन भगवान शिव के साथ नाग देवता की पूजा करना अत्यंत ही फलदायी माना गया है। इस दिन कई लोग व्रत भी रखते हैं और खासतौर से ये दिन रुद्राभिषेक के लिए विशेष माना जाता है। यहां आप जानेंगे किस चीज से रुद्राभिषेक कराने से क्या लाभ प्राप्त होता है।

सावन मास में नाग पंचमी का त्योहार मनाया जाता है। हिंदू धर्म में नाग पंचमी का विशेष महत्व होता है। इस साल नाग पंचमी 13 अगस्त, दिन शुक्रवार को है। इस दिन लोग भगवान शंकर के साथ नाग देवता की पूजा-अर्चना करते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन जो व्यक्ति नाग देवता की पूजा करने के साथ ही रुद्राभिषेक करता है उसे सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। जानिए नाग पंचमी के दिन क्यों की जाती है नागों की पूजा और इसका महत्व

नागपंचमी का इतिहास –
सर्पयज्ञ करने वाले जनमेजय राजा को आस्तिक नामक ऋषि ने प्रसन्न किया। जब जनमेजय ने कहा, ‘वर मांगो’, तो उन्होंने सर्पयज्ञ रोकने के लिए कहा। जनमेजय ने सर्प यज्ञ को रोका, उस दिन पंचमी थी।

शेषनाग ने पृथ्वी को अपने माथे पर धारण किया है। वह रसातल में रहता है। उसके पास हजार नुकीले फन हैं। प्रत्येक फन पर एक हीरा है। इसकी उत्पत्ति भगवान विष्णु के तमोगुण से हुई है। प्रत्येक कल्प के अंत में भगवान विष्णु महासागर में शेषासन पर शयन करते हैं। त्रेतायुग में भगवान विष्णु ने राम के रूप में अवतार लिया था। तब शेष ने लक्ष्मण का अवतार लिया। द्वापर और कलि‍युग के संधिकाल में कृष्ण ने अवतार लिया। उस समय शेष बलराम थे। यमुना में भगवान कृष्ण ने कालिया नाग को हराया था। उस दिन श्रावण शुद्ध पंचमी थी।

पांच युग पहले सत्येश्वरी नाम की एक कनिष्ठ देवी थी। सत्येश्वर उनके भाई थे। नागपंचमी के एक दिन पहले सत्येश्वर की मृत्यु हो गई। सत्येश्वरी ने अपने भाई को नाग रूप में देखा। तब उसने नागरूप को अपना भाई माना। उस समय नाग देवता ने वचन दिया था कि जो बहन मुझे भाई मानकर पूजा करेगी, उसकी मैं रक्षा करूंगा। इसलिए हर महिला उस दिन नाग की पूजा कर नागपंचमी मनाती है।

नागपूजन का महत्व –
नाग में जो श्रेष्ठ अनंत वो मैं हूं, ऐसे गीता (10.29) में भगवान कृष्ण ने बताया है।
अनंत वासुकिं शेषं पद्मनाभम च कंबलम।
शंखपालं धृतराष्ट्र तक्षक, कलियं तथा।

अर्थात्अ – नंत, वासुकी, शेष, पद्मनाभ, कंबल, शंखपाल, धृतराष्ट्र, तक्षक और कालिया ऐसे नागों की नौ प्रजातियों की पूजा की जाती है। इसलिए न तो सांपों का भय रहता है और न ही विषबाधा का।’

नागपंचमी के दिन व्रत का महत्व – नागपंचमी के एक दिन पहले सत्येश्वर की मृत्यु हो गई। इसलिए भाई के शोक में सत्येश्वरी ने अन्न ग्रहण नहीं किया । इसलिए उस दिन महिलाएं भाई के नाम पर व्रत रखती हैं। ‘भाई दीर्घायु और उसके पास कई हथियार/शस्त्र हों और वह हर दुःख और संकट से बच जाए’, उपवास के पीछे का एक कारण यह भी है। नागपंचमी के एक दिन पहले, यदि हर बहन अपने भाई के लिए देवताओं से प्रार्थना करती है, तो इससे उसके भाई को लाभ होता है और उसकी रक्षा होती है।

निषेध – नागपंचमी के दिन कुछ भी न काटें, न चीरें, न तलें, चुल्हे पर तवा न रखें आदि। इस दिन खुदाई न करें।

आपात स्थिति में नाग देवता की पूजा कैसे करें –

नाग देवता का चित्र – दीवार या थाली पर हल्दी चंदन (या नौ नागों के चित्र) से नाग का चित्र बनाएं और उस स्थान पर नाग देवता की पूजा करें।

अनंतदिनागदेवताभ्यो नम – इस नाम मंत्र का उच्चारण करते हुए गंध फूल आदि सभी उपचारों को समर्पित करना चाहिए।

षोडशोपचार पूजन – जो लोग नाग देवता की षोडशोपचार पूजा कर सकते हैं, उन्हें षोडशोपचार पूजा करनी चाहिए।

पंचोपचार पूजन – जो लोग नागदेवता की षोडशोपचार पूजा नहीं कर सकते हैं, उन्हें परिवार की परंपरा के अनुसार दूध, चीनी, लहिया, साथ ही खीर आदि का भोग लगाकर ‘पंचोपचार पूजा’ करनी चाहिए। (पंचोपचार पूजा: गंध, हल्दी-कुंकू, फूल (दूर्वा, तुलसी, बेल यदि उपलब्ध हो) धूप, दीप और नैवेद्य।

पूजा के बाद नाग देवता से प्रार्थना करें –
‘हे नागदेवता, मैंने यह नाग पूजन श्रावण शुक्ल पक्ष पंचमी को किया है। इस पूजन से नागदेवता प्रसन्न हो कर मुझे निरंतर सुख मिले । हे नाग देवताओं, इस पूजन में जाने या अनजाने में मुझ से कुछ कम ज्यादा हुआ हो तो क्षमा करें। आपकी कृपा से मेरी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हों। मैं प्रार्थना करती हूं कि मेरे परिवार में कभी भी नाग के विष का डर न रहे।’

नाग पंचमी महत्व –
नाग पंचमी के दिन अनंत, वासुकि, शेष, पद्म, कंबल, अश्वतर, शंखपाल, धृतराष्ट्र, तक्षक, कालिया और पिंगल इन 12 देव नागों का स्मरण करना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से भय तत्काल खत्म होता है। ‘ऊं कुरुकुल्ये हुं फट् स्वाहा’ मंत्र का जाप लाभदायक माना जाता है। कहते हैं कि नाम स्मरण करने से धन लाभ होता है। साल के बारह महीनों, इनमें से एक-एक नाग की पूजा करनी चाहिए। अगर राहु और केतु आपकी कुंडली में अपनी नीच राशियों- वृश्चिक, वृष, धनु और मिथुन में हैं तो आपको अवश्य ही नाग पंचमी की पूजा करनी चाहिए। कहा जाता है कि दत्तात्रेय जी के 24 गुरु थे, जिनमें एक नाग देवता भी थे।

नाग पंचमी पूजा विधि –
नागों को अपने जटाजूट तथा गले में धारण करने के कारण ही भगवान शिव को काल का देवता कहा गया है। इस दिन गृह-द्वार के दोनों तरफ गाय के गोबर से सर्पाकृति बनाकर अथवा सर्प का चित्र लगाकर सुबह उन्हें जल चढ़ाया जाता है। इसके साथ ही उन पर घी -गुड़ चढ़ाया जाता है। शाम को सूर्यास्त होते ही नाग देवता के नाम पर मंदिरों और घर के कोनों में मिट्टी के कच्चे दिए में गाय का दूध रखा जाता है। शाम को भी उनकी आरती और पूजा की जाती है। इस दिन शिवजी की आराधना करने से कालसर्प दोष, पितृदोष का आसानी से निवारण होता है। भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण को शेषनाग का अवतार माना गया है।

नागपंचमी की कथा –
किसी नगर में एक किसान अपने परिवार के साथ रहता था। एक दिन वह किसान अपने खेत में हल चलाने गया। हल जोतते समय नागिन के बच्चे हल से कुचल कर मर गए। नागिन बच्चों को मरा देखकर दु:खी हुई। उसने क्रोध में आकर किसान, उसकी पत्नी और लड़कों को डस लिया। जब वह किसान की कन्या को डसने गई। तब उसने देखा किसान की कन्या दूध का कटोरा रखकर नागपंचमी का व्रत कर रही है। यह देख नागिन प्रसन्न हो गई। उसने कन्या से वर मांगने को कहा। किसान कन्या ने अपने माता-पिता और भाइयों को जीवित करने का वर मांगा। नागिन ने प्रसन्न होकर किसान परिवार को जीवित कर दिया। तभी से ऐसी मान्यता है कि श्रावण शुक्ल पंचमी को नागदेवता की पूजा करने से नागों द्वारा किसी प्रकार का कष्ट और भय नहीं रहता।

नागों की हजारों मूर्तियां –
नाग देवता की पूजा के लिए यह मंदिर दुनिया भर में प्रसिद्ध है क्योंकि इस मंदिर में सर्पों की हजारों प्रतिमाएं मौजूद हैं. लोग इसे स्नेक टेम्पल के नाम से भी जानते हैं. केरल के अलेप्पी जिले से तकरीबन 40 किलोमीटर दूर स्थित यह मंदिर हरे–भरे जंगलों से घिरा हुआ है. नागों के इस महातीर्थ स्थान के बारे में मान्यता है कि यदि यहां पर पूजा करने से लोगों की सूनी गोद भर जाती है और स्वस्थ सुंदर संतान की प्राप्ति होती है

भारत के प्रमुख नाग मंदिर –
सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा के साथ उनके गले में हार की तरह सुशोभित नाग देवता की पूजा का भी अत्यंत महत्व है श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी का महापर्व मनाया जाता है इस दिन नाग देवता की पूजा का न सिर्फ धार्मिक बल्कि ज्योतिषीय महत्व भी है नाग पंचमी के दिन शिव भक्त तमाम तरह की मंगलकामनाओं के साथ कुंडली से जुड़े कालसर्प दोष को दूर करने के लिए विधि–विधान से नाग देवता का पूजन और दर्शन करते हैं इस साल नाग पंचमी तिथि 12 अगस्त 2021 को दोपहर 03:24 मिनट से प्रारंभ हो कर 13 अगस्त 2021 की दोपहर 01:42 बजे तक रहेगी ऐसे में देश के उन सभी नाग मंदिरों में भक्तों की भीड़ पहुंचेगी, जहां पर जाकर दर्शन मात्र करने से ही सारे दोष दूर होते हैं और सुख–समृद्धि की प्राप्ति होती है |

जहां मौजूद हैं नागों की हजारों मूर्तियां –
नाग देवता की पूजा के लिए यह मंदिर दुनिया भर में प्रसिद्ध है क्योंकि इस मंदिर में सर्पों की हजारों प्रतिमाएं मौजूद हैं लोग इसे स्नेक टेम्पल के नाम से भी जानते हैं केरल के अलेप्पी जिले से तकरीबन 40 किलोमीटर दूर स्थित यह मंदिर हरे–भरे जंगलों से घिरा हुआ है नागों के इस महातीर्थ स्थान के बारे में मान्यता है कि यदि यहां पर पूजा करने से लोगों की सूनी गोद भर जाती है और स्वस्थ सुंदर संतान की प्राप्ति होती है |

साल में सिर्फ एक बार खुलता है यह मंदिर –
नागचंद्रेश्वर का मंदिर मध्य प्रदेश के उज्जैन स्थित महाकाल मंदिर परिसर में स्थित है. यह मंदिर ​साल में सिर्फ एक बार नागपंचमी के दिन ही भक्तों के दर्शन के लिए खोला जाता है. मान्यता है कि इस मंदिर में भगवान नागचंद्रेश्वर का दर्शन करने के बाद व्यक्ति किसी भविष्य में सर्प से कोई भय नहीं रहता है वह सर्पदोष से मुक्त हो जाता है इस दिन यहां पर कालसर्प दोष दूर करने के लिए लोग विशेष पूजा करते हैं |

यहां दर्शन से दूर होता है कालसर्प दोष –
तीर्थों के राजा प्रयागराज में स्थित है यह पावन धाम गंगा नदी के किनारे नागपंचमी के दिन भक्तों की बड़ी भीड़ लगती है लोग यहां पर कालसर्प दोष की विशेष पूजा कराने के लिए दूर–दूर से पहुंचते हैं |

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