पांच पीर कौन कौन से है

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पांच पीर कौन कौन से है

अवतार पाबूजी को लक्ष्मणजी का अवतार माना जाता है। इनकी प्रतिमा में इन्हें भाला लिए हुए एक अश्वरोही के रूप में अंकित किया जाता है। प्रतिवर्ष चैत्र अमावस्या को पाबूजी के मुख्य ‘थान’ (मंदिर गाँव कोलूमण्ड) में विशाल मेला लगता है, जहाँ भक्तगण हज़ारों की संख्या में आकर उन्हें श्रृद्धांजलि अर्पित करते हैं।

पीर राजस्थान के लोक जीवन में कई महान् व्यक्तित्व देवता के रूप में सदा के लिए अमर हो गए। इन लोक देवताओं में कुछ को ‘पीर’ की संज्ञा दी गई है। एक जनश्रुति के अनुसार राजस्थान में पाँच पीर हुए हैं। इन्हें ‘पंच पीर’ भी कहा जाता है, जिनके नाम इस प्रकार हैं- पाबूजी हड़बूजी रामदेवजी मंगलियाजी मेहाजी उपरोक्त जनश्रुति का दोहा इस प्रकार है- पाबू, हड़बू, रामदे, मांगलिया, मेहा। पांचो पीर पधारज्यों, गोगाजी जेहा॥

अलौकिक चमत्कारों से युक्त एवं वीरता पूर्ण कृत्यो वाले महापुरुष राजस्थान के लोक देवता के रूप में प्रसिद्ध हुए लोक देवता से तात्पर्य उन महापुरुषों से हैं जिन्होंने अपने विरोचित कार्य तथा दृढ़ आत्मबल द्वारा समाज में सांस्कृतिक मूल्यों की स्थापना, हिंदू धर्म की रक्षा तथा जनहितार्थ अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया । पाबूजी, हड़बूजी, रामदेव जी, गोगा जी एवं मांगलिया मेहाजी मारवाड़ के अंचल के पंच पीर कहलाते हैं। तो आज हम राजस्थान के लोक देवता के बारे में विस्तार से पढेंगे।

बाबा रामदेवजी –
जन्म – बाबा रामदेव जी का जन्म भाद्रपद शुक्ल द्वितीया संवत 1462( सन् 1405) को बाड़मेर के शिव तहसील के उंडू कासमेर गांव में हुआ था भाद्रपद सुदी एकादशी संवत 1515( सन् 1458) को इन्होंने रुणिचा के राम सरोवर के किनारे जीवित समाधि ली थी।

पिता का नाम – अजमाल जी (तँवर वंशीय )।
माता का नाम – मैणादे (अर्जुन के वंशज मानी जाती है) ।
भाई – वीरमदे
बहन – सुगना (सगी बहन) तथा डाली बाई ( धर्म बहन) ।
पत्नी का नाम – नेतलदे ।

रामदेव जी को कृष्ण का अवतार माना जाता है ।
मुसलमान धर्म के लोग रामदेव जी की रामसापीर के रूप में पूजा करते हैं।
कामडिया पंथ रामदेव जी से प्रारंभ हुआ माना जाता है।
राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में रामदेव जी को रामसापीर, रुणिचा रा धणी एवं बाबा रामदेव के नाम से पुकारते हैं ।
रामदेव जी के गुरु का नाम बालीनाथ था ।
रामदेव जी ने भैरव राक्षस का वध कर जनता को कष्ट से मुक्ति दिलाई, पोकरण कस्बे को पुनः बसाया तथा सरोवर का निर्माण करवाया।
रामदेवरा रुणिचा में रामदेव जी का विशाल मंदिर है जहां पर प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल द्वितीय से एकादशी तक विशाल मेला भरता है जिस की मुख्य विशेषता सांप्रदायिक सद्भाव है, क्योंकि यहां हिंदू मुस्लिम तथा अन्य धर्म की महिलाएं भी बिना किसी भेदभाव के दर्शन के लिए आती है।
रामदेव जी की भक्ति में कामड़ जाति की स्त्रियों द्वारा तेरहताली नृत्य किया जाता है।
छोटा रामदेवरा गुजरात में स्थित है
इनके यात्री जातरु कहलाते हैं।
इनको पीरों के पीर का जाता है।
जातिगत भेदभाव एवं छूआछूत को मिटाने के लिए रामदेव जी ने जम्मा जागरण अभियान चलाया।
रामदेव जी के प्रतीक चिन्ह पगल्ये ‘चरण चिन्ह’ है।
रामदेव जी के भक्त जनों को रिखिया कहते हैं जो मुख्य रूप से मेघवाल जाति के होते हैं।
रामदेव जी के भक्त इन्हें कपड़े का बना घोड़ा चढाते हैं।
रामदेव जी के घोड़े का नाम लीला था ।
भाद्रपद शुक्ला द्वितीया बाबे री बीज (दूज) के नाम से पुकारी जाती है तथा यही तिथि रामदेव जी के अवतार की तिथि के रूप में लोक प्रचलित है ।
रामदेव जी के मंदिरों को देवरा कहा जाता है, जिन पर श्वेत या 5 रंगों की ध्वजा नेजा फहराई जाती है।
रामदेव जी एकमात्र ऐसे देवता हैं जो एक कवि भी थे। जिसकी रचित चौबीस बाणियाँ प्रसिद्ध है ।
डाली बाई रामदेव जी की अनन्य भक्त थी जिन्होंने रामदेव जी से 1 दिन पूर्व जीवित समाधि ली थी।
रामदेव जी की चूरमा, मिठाई, दूध, नारियल और धूप से पूजा होती है ।
रामदेव जी के अन्य प्रसिद्ध मंदिर जोधपुर के पश्चिम में मसूरिया पहाड़ी पर बिराँटिया (अजमेर ) एवं सुरताखेड़ा, चित्तौड़गढ़ में भी स्थित है।

राजस्थान के पंचपीर –
राजस्थान में वो लोकदेवता जिन्हें हिंदू व मुसलमान दोनों पूजते हैं ‌पंच पीर कहलाते हैं। राजस्थान में 5 लोग देवताओं को पंच पीर माना जाता है। जिनके नाम पाबूजी, गोगाजी ,हडबु जी ,रामदेव जी और मेहाजी मांगलिया है।

पाबूजी –
इन के अन्य नाम गायों का मुक्तिदाता , प्लेग रक्षक , लक्ष्मण का अवतार , ऊंटों का देवता , हाडफाड़ के देवता इत्यादि। मेहर जाति के मुसलमान पाबूजी को पीर मान कर पूजा करते हैं। इनका प्रतीक चिन्ह भाला लिए अश्वारोही , बाईं और तिरछी पगड़ी । जोधपुर के कोलू गांव से संबंधित है।

हड़बूजी –
सन्यासी पुरुष , वचन सिद्ध पुरुष एवं शगुन शास्त्र के ज्ञाता । इनकी बैलगाड़ी की पूजा होती है पंगु गायों के लिए बैलगाड़ी से चारा लाते थे। इनका मंदिर बैगटी गांव जोधपुर में है।

गोगाजी –
जाहरपीर ,राजा मंडलीक ,नागराज , सांपों के देवता के नाम से प्रसिद्ध है। गोगा जी के मंदिर में मुस्लिम पुजारी पूजा करते हैं और हिंदू पुजारी सिर्फ भाद्रपद माह में पूजा किया करते हैं। इनके वंशज कायमखानी मुसलमान है गोगाजी की 17 वीं पीढ़ी में उनके वंशजों को जबरन मुस्लमान बनाया गया।

मेहा जी मांगलिया –
अपने धर्म बहन पाना गुजरी की गायों के लिए जैसलमेर के राणगदेव भाटी से लड़ाई में वीरगति को प्राप्त हुए , इन्हें उज्जवल छत्रिय, मांगलिया रो धणी कहते हैं। ये जोधपुर तापु गांव में जन्मे एवं मंदिर बापिणी गांव में हैं ‌।

मारवाड़ के पंचपीरों के नाम क्या हैं –
मारवाड़ के पंचपीर रामदेव जी, गोगाजी, पाबूजी , मेहाजी मांगलिया और हडबु जी है।

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