पृथ्वीराज चौहान कौन थे

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पृथ्वीराज चौहान कौन थे

भारत में कई साहसी राजा हुए हैं, इसलिए वीरों की धरती कहा जाता है कई शासक ऐसे भी हुए जिन्होंने अपनी जान दे दी लेकिन किसी की गुलामी स्वीकार नहीं की ऐसे ही राजाओं में एक नाम है हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान का नाम आता है कि वह अंतिम स्वतंत्र हिंदू राजा थे

पृथ्वीराज चौहान भारतीय इतिहास मे एक बहुत ही अविस्मरणीय नाम है चौहान वंश मे जन्मे पृथ्वीराज आखिरी हिन्दू शासक भी थे महज 11 वर्ष की उम्र मे, उन्होने अपने पिता की मृत्यु के पश्चात दिल्ली और अजमेर का शासन संभाला और उसे कई सीमाओ तक फैलाया भी था, परंतु अंत मे वे राजनीति का शिकार हुये और अपनी रियासत हार बैठे, परंतु उनकी हार के बाद कोई हिन्दू शासक उनकी कमी पूरी नहीं कर पाया पृथ्वीराज को राय पिथोरा भी कहा जाता था . पृथ्वीराज चौहान बचपन से ही एक कुशल योध्दा थे, उन्होने युध्द के अनेक गुण सीखे थे उन्होने अपने बाल्य काल से ही शब्ध्भेदी बाण विद्या का अभ्यास किया था |

पृथ्वीराज की विशाल सेना :
पृथ्वीराज की सेना बहुत ही विशालकाय थी, जिसमे 3 लाख सैनिक और 300 हाथी थे कहा जाता है कि उनकी सेना बहुत ही अच्छी तरह से संगठित थी, इसी कारण इस सेना के बूते उन्होने कई युध्द जीते और अपने राज्य का विस्तार करते चले गए. परंतु अंत मे कुशल घुड़ सवारों की कमी और जयचंद्र की गद्दारी और अन्य राजपूत राजाओ के सहयोग के अभाव मे वे मुहम्मद गौरी से द्वितीय युध्द हार गए |

पृथ्वीराज चौहान को 12वीं शताब्दी का सबसे ताकतवर योद्धा माना जाता था कुछ समय बाद पृथ्वीराज चौहान के दादा ने उन्हें दिल्ली का उत्तराधिकारी घोषित किया। उसके बाद उन्होंने दिल्ली पर भी राज किया।
इतिहासकार बताते हैं कि पृथ्वीराज चौहान हर चीज में माहिर थे चाहे वह अस्त्र विद्या हो या शस्त्र विद्या वह मागधी, अपभ्रंश, पैशाची, शौरसेनी, प्राकृत और संस्कृत समेत 6 भाषाओं के जानकार थे।
बताया जाता है कि उनकी तरह उनकी सेना भी काफी शक्तिशाली थी उनमें इतनी ताकत थी कि एक बार उन्होंने बिना किसी हथियार के शेर का शिकार किया था।

पृथ्वीराज और गौरी का प्रथम युध्द :
अपने राज्य के विस्तार को लेकर पृथ्वीराज चौहान हमेशा सजग रहते थे और इस बार अपने विस्तार के लिए उन्होने पंजाब को चुना था इस समय संपूर्ण पंजाब पर मुहम्मद शाबुद्दीन गौरी का शासन था, वह पंजाब के ही भटिंडा से अपने राज्य पर शासन करता था. गौरी से युध्द किए बिना पंजाब पर शासन नामुमकिन था, तो इसी उद्देश्य से पृथ्वीराज ने अपनी विशाल सेना को लेकर गौरी पर आक्रमण कर दिया अपने इस युध्द मे पृथ्वीराज ने सर्वप्रथम हांसी, सरस्वती और सरहिंद पर अपना अधिकार किया परंतु इसी बीच अनहिलवाड़ा मे विद्रोह हुआ और पृथ्वीराज को वहां जाना पड़ा और उनकी सेना ने अपनी कमांड खो दी और सरहिंद का किला फिर खो दिया अब जब पृथ्वीराज अनहिलवाड़ा से वापस लौटे, उन्होने दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिये. युध्द मे केवल वही सैनिक बचे, जो मैदान से भाग खड़े हुये इस युध्द मे मुहम्मद गौरी भी अधमरे हो गए, परंतु उनके एक सैनिक ने उनकी हालत का अंदाजा लगते हुये, उन्हे घोड़े पर डालकर अपने महल ले गया और उनका उपचार कराया इस तरह यह युध्द परिणामहीन रहा यह युध्द सरहिंद किले के पास तराइन नामक स्थान पर हुआ, इसलिए इसे तराइन का युध्द भी कहते है इस युध्द मे पृथ्वीराज ने लगभग 7 करोड़ रूपय की संपदा अर्जित की, जिसे उसने अपने सैनिको मे बाट दिया |

पृथ्वीराज चौहान की मुश्किलें :
साम्राज्य-विस्तार करने की प्रक्रिया में सबसे पहले पृथ्वीराज चौहान को अपने चाचा नागार्जुन से लङना पङा नागार्जुन, विग्रहराज चतुर्थ का पुत्र तथा गांगेय का कनिष्ठ भाई था, जो पृथ्वीराज की अल्पायु का फायदा उठाकर राजगद्दी पर अधिकार करना चाहता था।

पृथ्वीराजविजय के अनुसार उसने गुडपुर नगर पर अधिकार कर लिया कई स्रोतों के अनुसार वह अजमेर का शासक था इस स्थान की पहचान हरियाणा के गुङगांव से की गयी है, जो पहले तोमरों के अधिकार में था पृथ्वीराज अत्यंत क्रुद्ध हुआ तथा उसने एक बङी सेना लेकर गुडपुर के दुर्ग का घेरा डाला नागार्जुन जान बचाकर कायरों की तरह भाग खङा हुआ किन्तु उसके सेनापति देवभट तथा अन्य अधिकारियों ने युद्ध जारी रखा पृथ्वीराज चौहान ने उन सबको न केवल परास्त ही किया, अपितु उसके सभी सहयोगियों को मौत के घाट उतार दिया शत्रुओं के सिर काट कर अजमेर के दुर्ग के बाहर लटका दिये गये।

अगर चंद दिनों के लिए दिल्ली की गद्दी पर बैठने वाले हेमू को छोड़ दें तो पृथ्वीराज चौहान दिल्ली पर राज करने वाले अंतिम हिन्दू सम्राट थे उनके काल में ही मोईनुद्दीन चिश्ती नामक एक ‘सूफी संत’ भारत आया था, जिसे ‘गरीब नवाज’ कहा गया आज के राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली के अधिकतर हिस्सों के अलावा उत्तर प्रदेश, पंजाब और मध्य प्रदेश के कई इलाकों में भी तब चौहान का ही शासन था उन्होंने 1178 से लेकर 1192 ईश्वी तक राज किया। उन्हें ‘पृथ्वीराज रासो’ के कारण ज्यादा जाना जाता है।

पृथ्वीराज चौहान के काल में ही अजमेर में एक फकीर आकर बसे थे, जिसे लोग सूफी संत भी कहते हैं। उसका नाम था – ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती जी हाँ, वही मोईनुद्दीन चिश्ती, जिसकी दरगाह अजमेर में आज भी मौजूद है और हर साल लाखों मुस्लिमों के साथ-साथ हिन्दू भी वहाँ चादर चढ़ाने जाते हैं प्रधानमंत्री तक की तरफ से वहाँ चादर जाता है लेकिन, क्या आपको पता है कि दिल्ली से हिन्दू शासन को उखाड़ फेंकने में उसका भी हाथ था

12वीं शताब्दी का खत्म होने वाला समय वो काल था, जब भारत में चीजें तेजी से बदल रही थीं मोहम्मद गोरी सीमा पर आ बैठा था, जिसे तराइन के प्रथम युद्ध में पृथ्वीराज चौहान ने हरा दिया था अपमानित गोरी को पृथ्वीराज ने जीवनदान दिया, लेकिन उनकी इस एक गलती ने भारत की सदियों की गुलामी की पटकथा लिख दी और दिल्ली श्रीहीन हो गई मोहम्मद गोरी वापस गजनी जाकर एक बड़ी फौज तैयार करने लगा।

राजस्थान के सम्राट

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