राजपूत और ठाकुर में क्या अंतर है – ठाकुर कौन सी जाति में आते हैं, ठाकुरों में कितनी जातियां होती हैं, असली क्षत्रिय कौन सी जाती है, सबसे ज्यादा राजपूत कौन से राज्य में है, ठाकुर किस जाति में आते हैं, ठाकुर किसे कहते हैं, यादव और राजपूत में क्या अंतर है, असली क्षत्रिय कौन है, गुर्जर और राजपूत में अंतर, राजपूत में कौन-कौन सी जाति आती है, भारत में ठाकुर जाति की जनसंख्या, क्षत्रिय कौन सी जाति होती है,
क्षत्रिय कौन हैं
- प्राचीन भारतीय समाज चार वर्णों ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र में बंटा हुआ
- थाइन वर्णों के कार्य और जिम्मेदारियां निश्चित थीं। इनमे से ब्राह्मण यज्ञ और पुरोहित का कार्य करते थे
- क्षत्रिय समाज की सुरक्षा के लिए जाने जाते थें
- वैश्यों का व्यापार और शूद्रों के लिए सेवा कार्य निश्चित थे
- इन वर्णों में क्षत्रिय अपनी वीरता और साहस के लिए जाने जाते थे
- जो सैन्य कुशलता में प्रवीण और शासक प्रवृति के होते थे
- अतः युद्ध और सुरक्षा की जिम्मेदारी का निर्वाहन करने वाला वर्ण क्षत्रिय कहलाता था
- इतिहास और साहित्य में कई क्षत्रिय राजाओं का वर्णन हुआ है
- जिनमे अयोध्या के राजा श्री राम, कृष्ण, पृथ्वीराज चौहान, महाराणा प्रताप आदि प्रमुख हैं
- क्षत्रियों के वंशज वर्तमान में राजपूत के रूप में जाने जाते हैं
राजपूत कौन हैं
- राजपूत अपने स्वाभिमान, वीरता, त्याग और बलिदान के लिए जाने जाते थे
- अदम्य साहस और देशभक्ति उनमे कूट कूट कर भरी होती थी
- राजपूत राजपुत्र का ही अपभ्रंश माना जाता है
- इनमे राजाओं के पुत्र, सगे सम्बन्धी और अन्य राज्य परिवार के लोग होते थे।
- राजपूत शासक वर्ग से सम्बन्ध रखते थे अतः इनमे मुख्य रूप से क्षत्रिय जाति के लोग होते थे
- शासक वर्ग की कई जातियां शासन और शक्ति की बदौलत राजपूत जाति में शामिल होती गयी
- हर्षवर्धन के उपरांत 12 वीं शताब्दी तक का समय राजपूत काल के रूप में जाना जाता है
- इस समय तक उत्तर भारत में राजपूतों के 36 कुल प्रसिद्ध हो चुके थे
- इनमे चौहान, प्रतिहार, परमार, चालुक्य, सोलंकी, राठौर, गहलौत, सिसोदिया, कछवाहा, तोमर आदि प्रमुख थे
राजपूतों का इतिहास एवं उत्पत्ति
- राजपूतों की उत्पत्ति के विषय में इतिहास विशेषज्ञों का मत एक नहीं रहा है
- इतिहासकारों का मानना कि प्राचीन क्षत्रिय वर्ण के वंशज राजपूत जाति के रूप में परिणत हो गयी
- कुछ विद्वान खासकर औपनिवेशिक काल में यह मानते थे
- क्षत्रिय विदेशी आक्रमणकारियों जैसे सीथियन और हूणों के वंशज हैं
- जो भारतीय समाज में आकर रच बस गए और इसी समाज का हिस्सा बन गए
- कर्नल जेम्स टाड और विलियम क्रूक क्षत्रियों के सीथियन मूल को मानते थे
- वी ए स्मिथ क्षत्रियों का सम्बन्ध शक और कुषाण जैसी जातियों से भी जोड़ते हैं
- ईश्वरी प्रसाद और डी आर भंडारकर ने भी इन सिद्धांतों का समर्थन किया है
- राजपूतों को इनका वंशज मानते हैं
- कुछ अन्य विद्वान राजपूतों को वैसे ब्राह्मण मानते थे जो शासन करते थे
- आधुनिक शोधों से पता चलता है कि राजपूत विभिन्न जातीय और भौगोलिक क्षेत्रों से आये और भारतभूमि में रच बस गए
- राजपुत्र पहली बार 11 वीं शताब्दी के संस्कृत शिलालेखों में शाही पदनामों के लिए प्रयुक्त दिखाई देता है
- यह राजा के पुत्रों, रिश्तेदारों आदि के लिए प्रयुक्त होता था
- मध्ययुगीन साहित्य के अनुसार विभिन्न जातियों के लोग शासक वर्ग में होने की वजह से इस श्रेणी में आ गए
- धीरे धीरे राजपूत एक सामाजिक वर्ग के रूप में सामने आया जो कालांतर में वंशानुगत हो गया
क्षत्रिय और राजपूत में क्या अंतर है
- क्षत्रिय भारतीय समाज की वर्ण व्यवस्था का एक अंग है जबकि राजपूत एक जाति है।
- क्षत्रिय वैदिक संस्कृति से निकला शब्द है वहीँ राजपूत शब्द छठी शताब्दी से लेकर बारहवीं शताब्दी में विकसित हुआ।
- सभी क्षत्रिय राजपूत नहीं हैं पर सभी राजपूत क्षत्रिय हैं।
राजपूत और ठाकुर में क्या अंतर है
- ३ ठाकुर उपथी हुआ करते थे जिसका अर्थ है
- जो व्यक्ति किसी के साथ व्यवहार करता है उसे ठाकुर कहा जा सकता है
- जिसका अधिकांश भाग जागीरदारों द्वारा उपयोग किया गया है, इसलिए वे जिन पदों पर जागीरदार बने, उनमें से हर एक ने ठाकुर को लागू करना शुरू कर दिया है
- क्षत्रिय: वर्ण ढांचे का दूसरा भाग, जिसमें सनातन धर्म में दुनिया में लाए गए एक युवा को वास्तविक शक्ति से सुरक्षित करने का लाभ मिलता है
- गाय, ब्राह्मण, स्त्री और प्रजा की रक्षा करने वाला व्यक्ति क्षत्रिय कहलाता है
- पहले व्यक्ति वर्णों को बदल सकते थे फिर भी लंबी अवधि में वर्ण स्थिर हो गए फिर, उस समय क्षत्रियों की परंपरा को क्षत्रिय प्रशासन कहा जाता था
- वे अपनी नौकरी हासिल करने के लिए कितना भी काम करें
- जो भी हो, क्षत्रियों का बड़ा हिस्सा सैन्य कार्य और karshikarya जैसा वह था वैसा ही करते थे
- राजपूत: क्षत्रिय परम्परा के सम्बन्धियों को राजपूत कहा जाता था
- जो राजपूत हो गए। अरबी घुसपैठियों ने सोचा कि क्षत्रिय बोलना कठिन है
- राजपूत शब्द के साथ क्षत्रियों की ओर रुख किया और उन्हें क्षत्रिय राजपूत कहा जाने लगा।
- ठाकुर: क्षत्रिय राजपूतों की उपाधि
- राजपूत प्रशासन में, महाराजा के निधन के बाद, महाराजकुमार (सबसे पुराना ताज शासक) को उच्च पद प्राप्त होता था
- जो व्यक्ति भगवान के विभिन्न संप्रभु थे, उन्हें किसी शहर के स्थान की जागीर या पट्टा दिया जाता था
- ठाकुर, महाराज, राव, राजा आदि की उपाधि दी गई
- अंत: क्षत्रिय और राजपूत दोनों एक दूसरे के समकक्ष हैं और ठाकुर उन्हें दी गई उपाधि है
क्षत्रिय की उत्पत्ति
- प्राचीन सिद्धांतों और मान्यताओं के अनुसार क्षत्रिय की उत्पत्ति ब्रह्मा की भुजाओं से हुई मानी जाती है
- एक और कथा के अनुसार क्षत्रियों की उत्पत्ति अग्नि से हुई थी
- कुछ लोग अग्निकुला के इस सिद्धांत विदेशियों को भारतीय समाज में शामिल होने के लिए किये गए शुद्धिकरण की प्रक्रिया के रूप में देखते हैं
- अग्निकुला सिद्धांत का वर्णन चन्दवरदाई रचित पृथ्वीराज रासो में आता है
- जिसके अनुसार वशिष्ठ मुनि ने आबू पर्वत पर चार क्षत्रिय जातियों को उत्पन्न किया था जिसमे प्रतिहार, परमार, चौहान और चालुक्य या सोलंकी थे
ऋग्वैदिक शासन प्रणाली में शासक के लिए राजन और राजन्य शब्दों का प्रयोग किया गया है - उस समय राजन वंशानुगत नहीं माना जाता था
- वैदिक काल के अंतिम अवस्था में राजन्य की जगह क्षत्रिय शब्द ने ले ली जो किसी विशेष क्षेत्र पर शक्ति या प्रभाव या नियंत्रण को इंगित करता था
- संभवतः विशेष क्षेत्र पर प्रभुत्व रखने वाले क्षत्रिय कहलाये। महाभारत के आदि पर्व के अंशअवतारन पर्व के अध्याय 64 के अनुसार क्षत्रिय वंश की उत्पत्ति ब्राह्मणो द्वारा हुई है
- प्राचीन साहित्यों से पता चलता है कि क्षत्रिय वर्ण आनुवंशिक नहीं था
- यह किसी जाति विशेष से सम्बंधित नहीं था। जातकों, रामायण और महाभारत ग्रंथों में क्षत्रिय शब्द से सामंत वर्ग और युद्धरत अनेक जातियां जैसे अहीर, गड़डिया, गुर्जर, मद्र, शक आदि का भी वर्णन हुआ है
- वास्तव में क्षत्रिय समस्त राजवर्ग और सैन्य वर्ग का प्रतिनिधित्व करता था
- क्षत्रिय वर्ग का मुख्य कर्तव्य युद्ध काल में समाज की रक्षा के लिए युद्ध करना तथा शांति काल में सुशासन प्रदान करना होता था
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