राव चन्द्रसेन कौन थे

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राव चन्द्रसेन का इतिहास 

  • 1562 ई. में राव मालदेव की मृत्यु के बाद इनके ज्येष्ठ पुत्र को राज्य से निष्कासित कर दिया तथा उदयसिहं (मोटा राजा) को पाटौदी का जागीरदार बना दिया
  • 1562 ई. में ही विधिवत् तरीके से राव चन्द्रसेन का राज्याभिषेक किया गया
  • राठौड़ वंश के अपने अपमान का बदला लेने के लिए मुगल सम्राट अकबर के शिविर में चला गया था |
  • राव चन्द्रसेन के लिए संकटकालिन राजधानी के रूप में सिवाणा बाड़मेर तथा भाद्राजूड़ जालौर को महत्वपूर्ण माना जाता है |
    चन्द्रसेन के जोधपुर की गद्दी पर बैठते ही इनके बड़े भाइयों राम और उदयसिंह ने राजगद्दी के लिए विद्रोह कर दिया राम को चन्द्रसेन ने सैनिक कार्रवाई कर मेवाड़ के पहाड़ों में भगा दिया तथा उदयसिंह जो उसके सहोदर थे को फलौदी की जागीर देकर संतुष्ट किया राम ने अकबर से सहायता ली
  • अकबर की सेना मुग़ल सेनापति हुसैन कुली ख़ाँ के नेतृत्व में राम की सहायतार्थ जोधपुर पहुंची और जोधपुर के क़िले मेहरानगढ़ को घेर लिया आठ माह के संघर्ष के बाद राव चन्द्रसेन ने जोधपुर का क़िला ख़ाली कर दिया और अपने सहयोगियों के साथ भाद्राजूण चले गए
  • यहीं से अपने राज्य मारवाड़ पर नौ वर्ष तक शासन किया भाद्राजूण के बाद वह सिवाना आ गए।

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राव चन्द्रसेन की कुल 

  • रानी कल्याण देवी – चौहान बीका के पुत्र हम्मीर की पुत्री इन रानी के एक पुत्र हुआ जिनका नाम उग्रसेन था।
  • रानी कछवाही सौभाग्यदेवी – फागी के स्वामी नरुका सबलसिंह की पुत्री इन रानी के एक पुत्र हुआ जिनका नाम रायसिंह था
  • रानी भटियाणी सौभाग्यदेवी – इनका पीहर का नाम कनकावती था ये जैसलमेर के रावल हरराज की पुत्री थीं ये राव चन्द्रसेन के साथ सती हुईं
  • रानी सिसोदिनी जी सूरजदेवी – ये मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह की पुत्री व महाराणा प्रताप की बहन थीं इनके पीहर का नाम चंदा था
  • ये रानी तीर्थयात्रा के लिए मथुरा पधारीं जहां इनका देहान्त हुआ इन रानी का एक पुत्र हुआ जिनका नाम आसकरण था।
  • रानी कछवाही कुमकुम देवी – ये जोगसिंह कछवाहा की पुत्री थीं
  • रानी औंकार देवी – ये सिरोही के देवड़ा मानसिंह की पुत्री थीं इनका देहान्त मथुरा में हुआ
  • रानी भटियाणी प्रेमलदेवी – ये बीकमपुर के राव डूंगरसिंह की पुत्री थीं
  • रानी भटियाणी सहोदरा – ये बीकमपुर के रामसिंह की पुत्री थीं इनका देहान्त गोपालवासणी में हुआ।
  • रानी भटियाणी जगीसा – ये ठिकाना देरावर के स्वामी मेहा तेजसिंहोत की पुत्री थीं ये राव चन्द्रसेन के साथ सती हुईं।
  • रानी सोढी मेघां – ये ऊमरकोट के हेमराज सोढा की पुत्री थीं ये राव चन्द्रसेन के साथ सती हुईं
  • रानी चौहान पूंगदेवी – ये देवलिया के इन्द्रसिंह चौहान की पुत्री थीं ये राव चन्द्रसेन के साथ सती हुईं।

मुग़लों से संघर्ष 

  • विक्रम संवत 1627 को बादशाह अकबर जियारत करने अजमेर आया वहां से वह नागौर पहुंचा जहाँ सभी राजपूत राजा उससे मिलने पहुंचे राव चन्द्रसेन भी नागौर पहुंचा
  • वह अकबर की फूट डालो नीति देखकर वापस लौट आया उस वक्त उसका सहोदर उदयसिंह भी वहां उपस्थित था
  • जिसे अकबर ने जोधपुर के शासक के तौर पर मान्यता दे दी कुछ समय पश्चात् मुग़ल सेना ने भाद्राजूण पर आक्रमण कर दिया
  • राव चन्द्रसेन वहां से सिवाना के लिए निकल गए सिवाना से ही राव चन्द्रसेन ने मुग़ल क्षेत्रों अजमेर, जैतारण, जोधपुर आदि पर छापामार हमले शुरू कर दिए
  • राव चन्द्रसेन ने दुर्ग में रहकर रक्षात्मक युद्ध करने के बजाय पहाड़ों में जाकर छापामार युद्ध प्रणाली अपनाई अपने कुछ विश्वस्त साथियों को क़िले में छोड़कर खुद पिपलोद के पहाड़ों में चले गए
  • वहीं से मुग़ल सेना पर आक्रमण करके उनकी रसद सामग्री आदि को लूट लेते बादशाह अकबर ने उनके विरुद्ध कई बार बड़ी सेनाएं भेजीं
  • अपनी छापामार युद्ध नीति के बल पर राव चन्द्रसेन अपने थोड़े से सैनिको के दम पर ही मुग़ल सेना पर भारी रहे
  • संवत 1632 में सिवाना पर मुग़ल सेना के आधिपत्य के बाद राव चन्द्रसेन मेवाड़, सिरोही, डूंगरपुर और बांसवाड़ा आदि स्थानों पर रहने लगे कुछ समय बाद वह फिर शक्ति संचय कर मारवाड़ आए और संवत 1636 श्रावण में सोजत पर अधिकार कर लिया
  • उसके बाद अपने जीवन के अंतिम वर्षों में राव चन्द्रसेन ने सिवाना पर भी फिर से अधिकार कर लिया था
  • अकबर उदयसिंह के पक्ष में था फिर भी उदयसिंह राव चन्द्रसेन के रहते जोधपुर का राजा बनने के बावजूद भी मारवाड़ का एकछत्र शासक नहीं बन सका अकबर ने बहुत कोशिश की कि राव चन्द्रसेन उसकी अधीनता स्वीकार कर ले
  • स्वतंत्र प्रवृत्ति वाला राव चन्द्रसेन अकबर के मुकाबले कम साधन होने के बावजूद अपने जीवन में अकबर के आगे झुके नहीं और विद्रोह जारी रखा।

राव चन्द्रसेन की वीरगति 

  • पुन शक्ति जुटाकर 1579 ईस्वी में राव चन्द्रसेन ने पहाड़ों से निकलकर मुगलों को खदेड़ दिया।
  • पर दुर्भाग्य से इसके कुछ ही समय बाद संन 1580 ईस्वी में सचियाव गाँव में का निधन हो गया
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  • मारवाड़ के शेर का इतिहास तो बहुत बड़ा है किन्तु हमने यहाँ कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर ही प्रकाश डाला है
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