राव जोधा कौन थे: जोधपुर राज्य का इतिहास , राव जोधा की माता का नाम , राव चुंडा का इतिहास , राव रणमल का इतिहास , जोधपुर का इतिहास , राव जोधा के पिता का नाम, राव सूजा , राव जोधा की पुत्री , राव जोधा कौन थे राव जोधा मारवाड़ राज्य के संस्थापक राव सीहा के वंशज थे उनका जन्म 1416 ईं. में हुआ था उनके पिता राव रणमल को मारवाड़ का उत्तराधिकारी नहीं बनाये जाने के कारण वह मेवाड़ नरेश राणा लाखा के पास चले गये और मेवाड़-सेना की सहायता से 1426 ईं. में मारवाड़ दुर्ग पर आक्रमण कर उस पर अधिकार कर लिया उस समय मारवाड़ की राजधानी मंडोर थी |
राव जोधा ने मंडोर जितना
- जोधा प्रतिभावान ओर एक महतवाकांक्षी व्यक्ति था
- काहुनी में रहते हुवे उसने कई बार मंडोर जितने का प्रयास किया परन्तु सफल नहीं हुआ क्यों की राणा कुम्भा ने मारवाड़ में कई जगह अपने थाने बिठा रखे थे
- तब जोधा ने सीधा मंडोर पर आक्रमण करने की बजाए आस पास के क्षेत्र को जितने के बारे में रणनीति बनाई इस कार्य में हरबू सांखला ने जोधा की सबसे ज्यादा मदद की इसके अलावा अन्य राजपूतों को भी भी जोधा ने अपनी ओर मिला लिया
- इससे जोधा की स्थिति कुछ सुधरी उसके बाद उसने चोकड़ी के थाने पर कब्जा कर लिया इसके बाद जोधा ने रावल दूदा, राणा बिसलदेव बनबिर भाटी आदि राणा कुम्भा के सहयोगियों को हरा दिया जोधा ने बहुत जल्दी चौहानों ओर भाटी सरदारों के साथ मिलकर
- राणा कुम्भा से टक्कर लेने के लिए एक सेना तैयार कर ली और जिस समय कुम्भा मालवा और गुजरात के सुलतानों से संघर्ष कर रहा था
- तब जोधा मौके का फ़ायदा उठा कर मारवाड़ के विभिन्न क्षेत्रों पर कब्जा जमाने लगा
- फिर कुछ दिनों बाद 1453-54 ई. में जोधा ने अपनी पूर्वजों की राजधानी मंडोर पर आक्रमण कर उसे जीत लिया मंडोर में स्थित सिसोदिया सरदारों को मौत के घाट उतार कर जोधा ने अपना पुराना हिसाब भी पूरा कर लिया था।
राव जोधा का इतिहास
- कुछ वर्षों के पश्चात् मेवाड़ के सरदारों ने तत्कालीन नरेश राणा कुम्भा को रणमल के विरुद्ध बहका दिया
- इस कारण 1438 ईं. में सोते हुए राव रणमल की हत्या कर दी गयी मंडोर–दुर्ग पर मेवाड़ का अधिकार हो गया
- 22 वर्षीय राव जोधा अपने भाइयों सहित मेवाड़ से मारवाड़ की सुरक्षित सीमा में आ गये
- लेकिन अपना राज्य पुनः पाने के लिए मेवाड़ की सेना से उनका युद्ध 15 वर्षों तक चलता रहा
- आखिर 1553 ईं. में मंडोर पर विजय प्राप्त करने में वे सफल हुए
- धीरे-धीरे अपने राज्य का विस्तार करने हेतु राव जोधा ने आस-पास के क्षेत्रों पर भी अधिकार कर लिया तब राणा कुम्भा ने एक संधि प्रस्ताव रखा
- जिससे मेवाड़ और मारवाड़ की सीमा का स्थायी निर्धारण हो सके तथा दोनों राज्यों में शांति बनी रहे जिसे आवल-बावल की संधि कहते है
- जहाँ तक आम-आंवला के पेड़ होंगे वह भूमि मेवाड़ की होगी और जहाँ तक बबूल के पेड़ होंगे वहाँ तक मारवाड़ की सीमा होगी |
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राव जोधा के उतराधिकारी
- जोधा के बाद उसके पुत्र सातल मारवाड़ का शासक बना। राव सातल ने अजमेर के मुस्लिम शासकों से निरन्तर संघर्ष किया उसने ही अजमेर के सूबेदार घुड़ले खा को मारा था उ
- सके याद में मारवाड़ में एक त्यौहार मनाया जाता है
- उसकी मृत्यु के बाद उसका छोटा भाई राव सुजा मारवाड़ का शासक बना
- उसने पोकरण जैतारण और बाड़मेर को जीत कर अपने राज्य में मिलाया।
राव जोधा द्वारा मारवाड़ का विकास
- राव जोधा ने अपने साहस और बुद्धि से मारवाड़ का उद्धार करने में लगा गये मंडोर किले को असुरक्षित जानकर उन्होंने एक नया किला बनाने का निर्णय लिया
- विभिन्न बुध्दिजीवियों से विचार-विमर्श करके मंडोर से 8 किलोमीटर दूर चिड़ियाटूंक की पहाडियों पर दुर्ग बनाने का निश्चय किया
- 1459 ईं. में राव जोधा ने दुर्ग की नींव रखी धरातल से करीब 125 मीटर की ऊंचाई पर मयूर की आकृति में बहुत ही सुन्दर, कलात्मक और अजेय किले का निर्माण हुआ
- जिसे मेहरानगढ़ किला कहा गया दुर्ग निमार्ण के साथ ही राव जोधा ने एक नगर का भी निर्माण करवाया
- जो उनके नाम पर जोधपुर कहलाया जो तत्कालीन मारवाड़ की राजधानी के रूप में जाना गया नगर की सुरक्षा के लिए उन्होंने परकोटे चार-दीवारी का निर्माण भी करवाया |
राव जोधा का अंतिम शासक
- राव जोधा ने शौर्य, साहस, कला, विनम्रता, राज्य और प्रजा की सुरक्षा के लिए समर्पण का भाव निहित था
- अपने भाईयों और पुत्रों के साथ विभिन्न राज्यों का बंटवारा कर मारवाड़ को अजेय और अमर बनये रखा
- सन् 1489 में जोधपुर के संस्थापक राव जोधा का निधन हुआ |
राव जोधा के वंशजों ने 490 वर्षों तक जोधपुर पर विकासशील और सफलतापूर्वक शासन किया - इसकी सुरक्षा और विकास के लिए हमेशा तत्पर रहे और समय के साथ-साथ नवीन और आधुनिक विकास में योगदान देते रहे है |
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