राव समाज की वंशावली

आल्हा ऊदल का गोत्र क्या था – राव साहब कौन सी जाति को कहते हैं, भट्ट कौन सी जाति के होते हैं, जाति कितनी होती है, भाट और भट्ट में क्या अंतर है, राव गोत्र, राव समाज की वंशावली, राव साहब किसे कहते हैं, राव समाज की कुलदेवी, राय किस जाति में आते हैं, राव समाज की उत्पत्ति, रेड्डी किस जाति में आते हैं, नायडू किस जाति में आते हैं,

प्राचीन काल से ही हिंदू समाज के स्त्री पुरुषों का परिचय माता-पिता के नाम से होने की प्रथा रही है। राम दशरथ का पुत्र है इस नाते ‘दशराथी राम’ यह उसका पहचान है, इसी तरह कर्ण की पहचान भी ‘राधेय’ नाम से की जात है। राम के परिचय के साथ इक्ष्वाकु वंश यह नाम भी पड़ गया है। कुल और वंश का परिचय अपनी धरोहर ही है। इसी साख को पक्का करने का काम डा. सुखदेव राव ने चंडिसा राव समाज की ‘ओळख’ (पहचान) नामक स्मारिका के माध्यम से किया है। उनके कुशल संपादन में बनी यह स्मारिका राव समाज का पुरातन इतिहास सामने रखती है। पवन प्रकाशन, जोधपुर द्वारा राजस्थानी भाषा में इस स्मारिका का प्रकाशन किया गया है।

राजस्थानी समाज के जतीय ढांचे में प्रत्येक जाति की अपनी-अपनी विशेषताएं रही हैं और परंपरागत रूप से हर समाज समग्र विकास के साथ राजस्थान का गौरव बढ़ाने में अपना-अपना योगदान करते रहे हैं। राव समाज की भी इस दृष्टि से महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यह राव समाज अनादिकाल से जनता का मार्गदर्शक रहा है। यह समाज प्रदेश एवं देश के इतिहास और संस्कृति का महत्वपूर्ण संवाहक रहा है। अपनी परंपराओं के माध्यम से यह समुदाय हमारी विरासत एवं विभिन्न समाज की पीढ़ियों के संबंधों को पीढ़ी दर पीढ़ी संजोए हुए है और वे संदर्भ ऐतिहासिक संदर्भोंं में बहुत सहायक रहे हैं। राव समाज के कारण ही अपनी भारतीय संस्कृतिक धारा अक्षुण्ण बनी हुई है। राव समाज के लोगों ने घर-घर घूमकर लोगों को सुशिक्षा, संस्कार, सभ्यता, जीवन जीने की कला दी है। साथ ही उनकी वंश परंपरा का इतिहास भी सुरक्षित रखा है, परंतु स्वयं राव समाज का इतिहास लुप्त होने का संकट आन पड़ा था। मगर डा. सुखदेव राव के महाप्रयास के कारण अब इस संकट का डर नहीं रहा है।

इस स्मारिका में राव समाज की उत्पत्ति, ऐतिहासिक, पौराणिक एवं रोचक जानकारियां तथा समाज के त्याग एवं बलिदान से संबंधित सामग्री का समावेश किया गया है। यह समाज की धरोहर के रूप में महत्वपूर्ण दस्तावेज साबित होगा।

अनादिकाल से तमाम जातियों की वंश परंपरा को सुरक्षित रखने वाले राव समाज के बारे में ‘ओळख’ में डा. सुखदेव राव और सहयोगी संपादक चंद्रवीरसिंह राव ने जानकारी एकत्रित कर पेश करने का जो प्रयास किया है वह सचमुच सराहनीय है। यह कार्य आसान नहीं होता है॥ पुराने इतिहास की जांच पड़ताल करना और ग्रंथ के रूप में लाना यह अपने आप में बहुत बड़ा कार्य है। राव समाज का इतिहास जो आजतक अपरिचित बना था और कही किन्हीं अलमारियों में बंद बड़ा था आज डा. राव के परिश्रमस्वरूप हमारे सामने उपस्थित हुआ है। यह केवल स्मारिका न होकर एक इतिहास ग्रंथ है जिसमें राव समाज के बारे में तमाम ऐतिहासिक जानकारियों के साथ साहित्यक सामग्री भी दी गयी है। राव समाज की बहियों में भारतीय सभ्यता और संस्कृतिक का लेखा-जोखा मिलता है जिससे हमारी पहचान अभी तक बनी हुई है। राव समाज की बहियों में जो ऐतिहासिक जानकारी हमें मिल सकती है वह इतिहास को सही जानने में हमारा मार्गदर्शन कर सकती है। ‘ओळख’ द्वारा प्राप्त सामग्री राव समाज के गौरवशाली अतीत तथा वर्तमान एवं भविष्य की दशा एवं दिशा का ज्ञान कराने में सहायक होगी, यह आशा हम कर सकते हैं।

अखिलभारतीय वंशावली संरक्षण संवर्धन संस्थान की ओर से सूचना केंद्र के मिनी ऑडिटोरियम में रविवार को डॉ. सुखदेव राव द्वारा संपादित राव समाज का इतिहास ग्रंथ ‘पिछाण’ का विमोचन किया गया। राव ने ‘पिछाण’ ग्रंथ में समावेशित रचनाओं की संक्षिप्त जानकारी दी। इस दौरान पूर्व नरेश गजसिंह ने वर्तमान युग को देखते हुए वंशावली लेखन में आधुनिक तकनीक का समावेश करने पर बल दिया। संस्थान के संरक्षक रामप्रसाद ने कहा कि रावों की बहियों में हमारा स्वर्णिम इतिहास सुरक्षित है। अध्यक्ष राव महेंद्रसिंह बोराज ने बताया कि अगर किसी को पुरखों की जानकारी चाहिए तो वो केवल रावों की बहियों में ही दर्ज है। प्रो. जहूर खां मेहर ने पौराणिक बहियों में प्रयोग होने वाली स्याही पेपर की गुणवत्ता के बारे में बताया। कार्यक्रम का संचालन गौतम अरोड़ा ने किया अखिल भारतीय राव समाज महासंघ के अध्यक्ष जगदीश राव ने आभार व्यक्त किया।

राव सिरदारॊ की गोत्र –
* एमलिया (ईडर के राजा, राव एमलजी के वंशज)
* ओपावत (भिनमाल के जागिरदार ओपाजी के वंशज)
* ईराणी (भीनमाल के जागीरदार ईराजी के वंशज)
* भोजानी (सेवाडसा की शाखा )
* बुटरेचा (बुटडी के जागीरदार)
* असोलिया (पूर्व आसोली गढ के राजा, सोलंकी वंश से )
* बोरलिया (बोरली के जागीरदार, जालौर के चहुआण वंश से)
* सोनिगरा (जालोर राजा विरमदेव से वंशज)
* लाखनोत/मरोठिया (गौड राजा लाखाजी के वंशज)
* लोल/लोलेसा/लोलावत( सेवाडा(जालौर) सहित 12 गावो के शाशक)
* घंटियाला(यदुवंशी गज राजा के वंशज, घंटियाली(बनासकांठा,गुजरात) के जागीरदार)
* बगसडीया/बघेडीया/जल्सार(बगसडी के जागीरदार, राव जल्हन के वंशज)
* सेवाडसा(सेवाडी के शाशक)
* दत्ताणसा (पाटण के सोलंकी वंश के जैसिंह सिद्धराज के वंशज )
* खरोडिया (चौहानवंशी हाडा सिरदार कांकलजी के वंशज),
* बडंग (राव बैताल के वंशज)
* पीतलिया (चौहाणो के वंशज)
* टांक (कच्छवाह वंश की शाखा)
* आमेरा (कच्छवाह वंश की शाखा)
* सिरोहिया (जादौन वंश की शाखा)
* दरजावत (बडंग की शाखा)
* राजावत (बडंग की शाखा)
* पेमावत ( बडंग की शाखा)
* हरियाणसा ( यदुवंश से सम्बन्ध)

वंशवली से संबंधित लिस्ट

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