सवाई राजा सूर सिंह कौन थे: राजकुमार अजीत सिंह कच्छवाहा , राजा सवाई जयसिंह व मेवाड़ महाराणा अमरसिंह द्वितीय , सवाई जयसिंह द्वितीय को सवाई की उपाधि , किस मुगल शासक सवाई जयसिंह को सवाई की उपाधि औरंगजेब मिली थी , इसका अर्थ होता है कि वह अपने समकालीन उसे सवा गुना अधिक भीड़ , मारवाड़ के राजा सूरसिंह को सवाई की जयपुर राजघराने के दस्तावेज सार्वजनिक, कुश की 307 वीं पीढी है , सवाई भवानी सिंह जहॉंगीर ने जोधपुर के महाराजा सूरसिंह को सवाई राजा की उपाधि दी थी, जहॉंगीर के आमेर के महाराजा मानसिंह के साथ व्यक्तिगत सम्बंध अच्छे नही थे, मुगल सम्राट मालदेव को पराजीत कर शेरशाह सूरी यह कहने को मजबूर हुआ, कि खैर हुई वरना मुट्ठी भर बाजरे के लिये , सिटी पैलेस राजपूत राजा महाराजा सवाई जय सिंह द्वारा 1732 में बनवाया , सवाई राजा सूर सिंह कौन थे उदयसिंह की दमे की बीमारी से लाहौर में मृत्यु हो गई अतः वहीं पर सूरसिंह को अकबर ने राजा की पदवी देकर मारवाड़ का उत्तराधिकारी बनाया अकबर ने सूरसिंह की मलिक अंबर की विरूद्ध वीरता पूर्वक लड़ने पर ‘सवाई राजा’ की पदवी दी मेवाड़ अभियान में खुरर्म की सहायता करने पर सूरसिंह को 5000 जात व 3000 सवार का मनसब दिया गया।
- जहां तक बीकानेर नरेश राजा सूर सिंह को मुगलों से प्राप्त जागीरों का प्रश्न है
- इस विषय में हमें यह जानकारी प्राप्त होती है
- कि सूर सिंह को भी अपने वतन जागीर क्षेत्र में वे तमाम इलाके प्राप्त रहे जो राजा राय सिंह एवं तदनंतर दलपत सिंह को हासिल रहे थे
- बीकानेर नरेश राजा सूर सिंह को मुगल बादशाहत से वतन जागीर के पेटे परगना बीकानेर बीकमपुर, पूगल, बरसलपुर, दद्रेवा बीकानेर सरकार, सूबा अजेमर द्रोणपुर सरकार नागौर सूबा अजमेर सीधमुख, भाड़ग सरकार हिसार, सूबा दिल्ली बीकानेर दरो बस्त प्राप्त रहे थे
- हमें इस आशय के उल्लेख देखने को मिलते हैं कि सूरसिंह को मुगलों से प्राप्त सीमावर्ती क्षेत्र की जागीरों में परगना भटनेर, बेणीवाल, सिवराण, तोसोम, सिरसा, हिसार का कुछ भाग सरकार हिसार, सूबा दिल्ली सम्मिलित थे उपर्युक्त वर्णित जागीरों के अतिरिक्त बीकानेर नरेश सूर सिंह को मुगल बादशाहत से कुछ इतर जागीरें भी प्राप्त रही
- जो साधारण श्रेणी की जागीरों में शुमार कर देखी जा सकती है।सवाई राजा सूर सिंह राठौर या सूरज मल 24 अप्रैल 1571 – 7 सितंबर 1619 मारवाड़ साम्राज्य के राजा थे
- 11 जुलाई 1595 – 7 सितंबर 1619 उनकी बहन सम्राट जहाँगीर और शाहजहाँ की माँ की तीसरी पत्नी थीं।
वह अपने पिता की मृत्यु पर सफल हुआ 11 जुलाई 1595। उसने गुजरात की विजय में राजकुमारों मुराद और दनियाल मिर्जा की सहायता की और सम्राट अकबर के लिए डेक्कन को अपनी कई सेवाओं की मान्यता में सवाई राजा की वंशानुगत उपाधि प्राप्त की 7 सितंबर 1619 को डेक्कन के महाकाल में सक्रिय सेवा के दौरान उनकी मृत्यु हो गई।
नोट: सवाई राजा सूर सिंह का इतिहास की ऐतिहासिक जानकारी काफी विस्तृत है हमने अपने इस पोस्ट में मुख्य पहलुओं पर ही जानकारी दी है फिर भी कोई महत्वपूर्ण जानकारी छूट गयी है तो हम उसके लिए क्षमाप्रार्थी हैं।
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