शुक्ल गोत्र लिस्ट

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शुक्ल गोत्र लिस्ट

ब्राह्मणो के बारे में –
ब्राह्मण जाति को हिन्दू धर्म में शीर्ष पर रखा गया है। लेकिन ब्राह्मणो के बारे में आज भी बहुत ही कम लोग जानते है, कि ब्राह्मण कितने प्रकार के होते है। और उनके गोत्र कौन-कौन से होते है। आज के दौर में 90% ब्राह्मण भी ब्राह्मणो की वंशावली को नहीं जानते।

ब्राह्मण होने का अधिकार सभी को आज भी है। चाहे वह किसी भी जाति, प्रांत या संप्रदाय से हो वह गायत्री दीक्षा लेकर ब्रह्माण बन सकता है, लेकिन नियमों का पालन करना होता है। अपने ब्राह्मण कर्म छोड़कर अन्य कर्मों को अपना लिया है। हालांकि अब वे ब्राह्मण नहीं रहे कहलाते अभी भी ब्राह्मण है। > स्मृति-पुराणों में ब्राह्मण के 8 भेदों का वर्णन है:- मात्र, ब्राह्मण, श्रोत्रिय, अनुचान, भ्रूण, ऋषिकल्प, ऋषि और मुनि। ब्राह्मण को धर्मज्ञ विप्र और द्विज भी कहा जाता है।> उपनाम में छुपा है पूरा इतिहास

1. मात्र : ऐसे ब्राह्मण जो जाति से ब्राह्मण हैं लेकिन वे कर्म से ब्राह्मण नहीं हैं उन्हें मात्र कहा गया है। ब्राह्मण कुल में जन्म लेने से कोई ब्राह्मण नहीं कहलाता। बहुत से ब्राह्मण ब्राह्मणोचित उपनयन संस्कार और वैदिक कर्मों से दूर हैं, तो वैसे मात्र हैं। उनमें से कुछ तो यह भी नहीं हैं। वे बस शूद्र हैं। वे तरह तरह के देवी-देवताओं की पूजा करते हैं और रा‍त्रि के क्रियाकांड में लिप्त रहते हैं। वे सभी राक्षस धर्मी भी हो सकते हैं।

2. ब्राह्मण : ईश्वरवादी, वेदपाठी, ब्रह्मगामी, सरल, एकांतप्रिय, सत्यवादी और बुद्धि से जो दृढ़ हैं, वे ब्राह्मण कहे गए हैं। तरह-तरह की पूजा-पाठ आदि पुराणिकों के कर्म को छोड़कर जो वेदसम्मत आचरण करता है वह ब्राह्मण कहा गया है।

3. श्रोत्रिय : स्मृति अनुसार जो कोई भी मनुष्य वेद की किसी एक शाखा को कल्प और छहों अंगों सहित पढ़कर ब्राह्मणोचित 6 कर्मों में सलंग्न रहता है, वह ‘श्रोत्रिय’ कहलाता है।

4. अनुचान : कोई भी व्यक्ति वेदों और वेदांगों का तत्वज्ञ, पापरहित, शुद्ध चित्त, श्रेष्ठ, श्रोत्रिय विद्यार्थियों को पढ़ाने वाला और विद्वान है, वह ‘अनुचान’ माना गया है।

5. भ्रूण : अनुचान के समस्त गुणों से युक्त होकर केवल यज्ञ और स्वाध्याय में ही संलग्न रहता है, ऐसे इंद्रिय संयम व्यक्ति को भ्रूण कहा गया है।

6. ऋषिकल्प : जो कोई भी व्यक्ति सभी वेदों, स्मृतियों और लौकिक विषयों का ज्ञान प्राप्त कर मन और इंद्रियों को वश में करके आश्रम में सदा ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए निवास करता है उसे ऋषिकल्प कहा जाता है।

7. ऋषि : ऐसे व्यक्ति तो सम्यक आहार, विहार आदि करते हुए ब्रह्मचारी रहकर संशय और संदेह से परे हैं और जिसके श्राप और अनुग्रह फलित होने लगे हैं उस सत्यप्रतिज्ञ और समर्थ व्यक्ति को ऋषि कहा गया है।

8. मुनि : जो व्यक्ति निवृत्ति मार्ग में स्थित, संपूर्ण तत्वों का ज्ञाता, ध्याननिष्ठ, जितेन्द्रिय तथा सिद्ध है ऐसे ब्राह्मण को ‘मुनि’ कहते हैं।

उपरोक्त में से अधिकतर ‘मात्र’नामक ब्राह्मणों की संख्‍या ही अधिक है।

सबसे पहले ब्राह्मण शब्द का प्रयोग अथर्वेद के उच्चारण कर्ता ऋषियों के लिए किया गया था। फिर प्रत्येक वेद को समझने के लिए ग्रन्थ लिखे गए उन्हें भी ब्रह्मण साहित्य कहा गया। ब्राह्मण का तब किसी जाति या समाज से नहीं था।

“मनु-स्मॄति” के अनुसार आर्यवर्त वैदिक लोगों की भूमि है। “गोत्र” शब्द का अर्थ संस्कृत भाषा में “वंश” है। ब्राह्मण जाति के लोगों में, गोत्रों को पितृसत्तात्मक रूप से माना जाता है। प्रत्येक गोत्र एक प्रसिद्ध ऋषि या ऋषि का नाम लेता है जो उस कबीले के संरक्षक थे।

समाज बनने के बाद अब देखा जाए तो भारत में सबसे ज्यादा विभाजन या वर्गीकरण ब्राह्मणों में ही है जैसे:- सरयूपारीण, कान्यकुब्ज , जिझौतिया, मैथिल, मराठी, बंगाली, भार्गव, कश्मीरी, सनाढ्य, गौड़, महा-बामन और भी बहुत कुछ। इसी प्रकार ब्राह्मणों में सबसे ज्यादा उपनाम (सरनेम या टाईटल ) भी प्रचलित है। कैसे हुई इन उपनामों की उत्पत्ति जानते हैं उनमें से कुछ के बारे में।

ब्राह्मणों की श्रेणियां
ब्राह्मणों को सम्पूर्ण भारतवर्ष में विभिन्न उपनामों से जाना जाता है, जैसे पूर्वी उत्तर प्रदेश में दीक्षित, शुक्ल, द्विवेदी त्रिवेदी, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड में जोशी, जोशी उप्रेती त्रिवेदी, दिल्ली, हरियाणा व राजस्थान के कुछ भागों में जोशी,त्रिवेदी भार्गव, डाकोतखाण्डल विप्र, ऋषीश्वर, वशिष्ठ, कौशिक, भारद्वाज, सनाढ्य ब्राह्मण, राय ब्राह्मण, त्यागी , अवध (मध्य उत्तर प्रदेश) तथा मध्यप्रदेश के बुन्देलखण्ड से निकले जिझौतिया ब्राह्मण,रम पाल, राजस्थान, मध्यप्रदेश व अन्य राज्यों में बैरागी वैष्णव ब्राह्मण, बाजपेयी, बिहार, झारखण्ड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश ,बंगाल व नेपाल में भूमिहार, जम्मू कश्मीर, पंजाब व हरियाणा के कुछ भागों में महियाल, मध्य प्रदेश व राजस्थान में गालव, गुजरात में श्रीखण्ड,भातखण्डे अनाविल, महाराष्ट्र के महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण, मुख्य रूप से देशस्थ, कोंकणस्थ , दैवदन्या, देवरुखे और करहाड़े है. ब्राह्मण में चितपावन एवं कार्वे, कर्नाटक में निषाद अयंगर एवं हेगडे, केरल में नम्बूदरीपाद, तमिलनाडु में अयंगर एवं अय्यर, आन्ध्र प्रदेश में नियोगी एवं राव, ओड़िशा में दास एवं मिश्र आदि तथा राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, बिहार में शाकद्वीपीय (मग)कहीं उत्तर प्रदेश में जोशी जाति भी पायी जाती है। आदि।

ब्राह्मणों में कई जातियां है।इससे मूल कार्य व स्थान का पता चलता है
सामवेदी: ये सामवेद गायन करने वाले लोग थे।
अग्निहोत्री: अग्नि में आहुति देने वाला।
त्रिवेदी: वे लोग जिन्हें तीन वेदों का था ज्ञान वे त्रिवेदी है
चतुर्वेदी: जिन्हें चारों वेदों का ज्ञान था।वेलोग चतुर्वेदी हुए।
*एक वेद को पढ़ने वाले ब्रह्मण को पाठक कहा गया।
वेदी: जिन्हें वेदी बनाने का ज्ञान था वे वेदी हुए।
द्विवेदी:जिन्हें दो वेदों का ही ज्ञान था वे लोग द्विवेदी कहलाएं
*शुक्ल यजुर्वेद को पढ़ने वाले शुक्ल या शुक्ला कहलाए।
*चारो वेदों, पुराणों और उपनिषदों के ज्ञाता को पंडित कहा गया, जो आगे चलकर पाण्डेय, पांडे, पंडिया, पाध्याय हो गए। ये पाध्याय कालांतर में उपाध्याय हुआ।
*शास्त्र धारण करने वाले या शास्त्रार्थ करने वाले शास्त्री की उपाधि से विभूषित हुए।

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